RE: Free Sex kahani आशा...(एक ड्रीमलेडी )
अचानक से हुए इस हमले से आशा संभल नही पाई और इस बार दिल खोल कर, ज़ोर से चिल्ला उठी ---
“आआआआsssssssssssssआआआआआआssssssssssआआआआआ----आआआआआssssssssआआआआआआ---- आआहहहsssssहहहहहहहहsssssss ---- हहहहहहsssssssssssहहहहहहहहह----- हहहहहहहहह्हह्हssssssssssssssssह्हह्हह्हह्हह्हह्हssssssssssssह्हह्हह्ह --- माँआअssssssssssssssअआआआsssssssssssआsssss---- स्स्सस्स्स्सस्सस्सस्सस्स्सssssssssss ---- आआआआआआऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊssssssssss----”
दर्द थोड़ा कम होते ही आशा तीन चार लंबी गहरी सांस ली और धीरे से आँखें खोल कर रणधीर बाबू की ओर देखी,
रणधीर बाबू उसी की ओर टकटकी बांधे देख रहे थे---
उन्होंने एक-दूसरे की आँखों में देखा और नज़रें मिलते ही रणधीर बाबू ने एक और ज़ोर का धक्का दिया जिससे आशा के होंठ एक बार फिर खुल गए और एकबार फिर से पहले के तरह ही “आआआअह्हह्हह्ह” से कराह उठी ----
इसी तरह रुक रुक कर करीब दस धक्के लगाने के बाद रणधीर ने अपने होठों को आशा को चूमने के लिए आगे बढ़ाया ; आशा ने न कोई प्रतिक्रिया दी और न ही किसी तरह के विरोध का भाव दिखाया, बल्कि उल्टे आशा ने भी अपना मुँह रणधीर बाबू की ओर कर दिया और उन दोनों ने एक दूसरे के होंठों को अपने अपने होंठों के गिरफ़्त में ले बड़े वासनायुक्त तरीके से कस कर चूमना शुरू कर दिया ---- |
रणधीर बाबू ने अपनी चुदाई के धक्कों की गति ज़ोरदार रूप से बढ़ाई और परिणामस्वरुप आशा ने भी उसी अनुपात में कराहना शुरू कर दिया, बावजूद इसके की उसके होंठ अभी भी रणधीर बाबू के होंठों के साथ एक भावुक चुंबन में बंद है ;
"आआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआहहहहहहहह ---
आआआआआआआआआआआआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् ---
ऊऊम्मम्मम्मम्मम्मम्ममममममममम्मम्म ----
आअह्ह्ह्हह्ह्हह्ह्ह्हह्ह्हह्ह्ह्ह ------“
आशा को पीड़ा तो निःसंदेह हो रही थी पर साथ ही अंदर ही अंदर वह इस बात से बहुत बहुत ही ख़ुश थी कि रणधीर बाबू के बाहर टूर पर चले जाने के कारण कुछ रातों और दिनों से जो अकेलापन उसे साल रहा था वो सब आज एक ही दिन; ---- बल्कि यूँ कहो कि पिछले एक घंटे से परम सुकून से कट रहा था ---- शायद एक घंटा भी पूरी तरह से न बीता हो, और अभी तक में ही इतनी संतुष्टि और यौन शान्ति मिली है , जिसे वह शायद ही कभी शब्दों में बयाँ कर सके ---- और जो बात उसे सबसे अधिक पसंद आई --- वह है रणधीर बाबू द्वारा उसके सुस्वादु शरीर का ज़बरदस्त एवं अभूतपूर्व रूप से मर्दाना उपभोग करने का तरीका ---
मतलब की क्षण-प्रतिक्षण, पल प्रतिपल, ख़ुद को बखूबी नियंत्रण में रखते हुए आशा के गदराए जिस्म के साथ ऐसे खेलना कि हर बार आशा काम सुख एक शिखर तक पहुँच जाती और क्षण भर उस शिखर पर रहने के बाद अचानक से ही बड़े ही खूबसूरत, करामाती ढंग से ---- रणधीर बाबू के हाथों, होंठों और हथियार के खेल से --- आशा धीरे धीरे उस शिखर से नीचे हो आती --- कुछ देर बाद फ़िर से उसी तरह काम-आनंद के ऊँचाइयों में उड़ने लगती ---
आशा की अकड़ती जिस्म, बीच बीच में तेज़ और फ़िर धीरे हो जाने वाली श्वास प्रक्रिया --- चेहरे पर अनकही प्रसन्नता के आते जाते भाव --- ये सब साफ़ साफ़ बता रहे थे कि वह अब सिर्फ़ और सिर्फ़ --- इस खेल --- इस पूरे काम क्रिया को शीघ्र से शीघ्र समाप्त करना चाहती है --- कुछ ऐसे --- जिससे की जल्दबाज़ी भी न हो ---- और कोई शिकायत भी न हो ---
और ये बातें , कई साल के अनुभवी खिलाड़ी --- रणधीर बाबू कैसे न समझ पाते --- बीते कुछ दिनों वे आशा को भली प्रकार जान चुके थे ---- उसकी अच्छाई--- इच्छाएँ --- कमज़ोरी --- सब कुछ --- ये कहना की आज की तारिख में रणधीर बाबू से बेहतर, आशा को जानने वाला कोई न होगा ; ----- अतिश्योक्ति न होगी --- ऊपर से , पिछले कुछ मिनटों से आशा के आव-भाव ये इस बात की साफ़ गवाही दे चुके हैं कि वह अब लाज शर्म वाली कोई भी बाधा नहीं देने वाली है ---- रणधीर बाबू ने अब ख़ुद को ऊपर उठाते हुए --- आशा को बिस्तर पर लिटा दिया --- आशा की धडकनें तेज़ और आँखें बंद हैं --- मुखरे पर मासूमियत के साथ वासना के बादल भी छाए हुए हैं --- रणधीर बाबू के अधरों के कोनों पर एक कुटिल मुस्कान खेल गई --- अब उनके हर आदेश व निर्देश के प्रति आशा के अनुपालन के बारे में आश्वस्त होकर, उसके टांगों के बीच में आकर उस आरामदायक गद्दे वाले बिस्तर पर अपने घुटने टेक दिए और उसके (आशा) के पैरों को पकड़ कर --- अँगुलियों के हल्के स्पर्शों से सहलाते हुए उन्हें फैला दिया ----
सुर्ख गुलाबी छेद एकबार फ़िर सामने है --- गीली --- दिन के उजाले में --- खिड़की से आती रोशनी में --- गीलेपन के वजह से चमकती हुई --- होंठों पर वही कमीनी, शैतानी मुस्कान लिए --- रणधीर बाबू ने अपने मुँह में एक उंगली घुसाई --- अच्छे से अपने थूक से भिगोया और बिना ज़्यादा चालाकी के उस गुलाबी छेद में डाल दिया ---- इतना ही नहीं ; ---- जैसे ही उन्होंने ऐसा किया, --- ऐसा करते हुए ही वे नीचे झुके और आशा के कड़क --- खड़े निपल्स को चूसना शुरू कर दिया।
“अम्म्मम्म --- आअह्ह्ह्हह्ह्ह्हह ---- स्सस्सस्ससस्सस्सस ---- ”
आशा यौनेत्तेजक रूप से बिस्तर पर कसमसाते हुए बड़े मादक ढंग से कराह उठी ----
उसकी इस कराह को सुनकर कोई भी अपना होश खो सकता था ---
आशा ने अपने नाजुक, खड़े निप्पल्स पर उनके मोटे जीभ को और मोटे फनफनाते अंग को महसूस किया ; ---- जोकि उनकी नर्म चूत की तरफ ही था --- ।
जैसे-जैसे ठरकी बुड्ढे--- रणधीर बाबू की अनुभवी अंगुली अंदर-बाहर होती गई --- ठीक वैसे वैसे --- उसकी चूत जवाब देने लगी और उससे रस टपकने लगा ---
चेहरे के साथ साथ चूत की भी वांछित प्रतिक्रिया देख, रणधीर बाबू की तो बांछे ही खिल गई --- अपने दूसरे मुक्त हाथ से रणधीर बाबू आशा के नरम स्तन और जाँघों को ज़्यादा से ज़्यादा सहलाने और अच्छे से छू महसूस करने के लिए उसके पूरे जिस्म पर उन्मुक्त ढंग से हाथ फ़ेरने लगे ---
आशा भली भांति उस बुड्ढे रणधीर के जननांग की गर्मी और कठोरता को महसूस कर रही थी ---
इधर अब धीरे धीरे रणधीर बाबू भी अपने जोश के आगे अपने हथियार को डालते हुए पाए ---- अब और इंतज़ार नहीं किया जा सकता --- वह तुरंत आशा के पेट पर झुक गए --- उसकी नाभि को चूमा और अपनी जीभ को उसमें घुसा दिया ---- कुछ देर तक नाभि में जीभ को घूमा घूमा कर अच्छे से स्वाद, जोकि पानी और पसीने के मिश्रण से नमकीन सा लग रह था; लेने के बाद रणधीर बाबू ने नीचे से जगह बना कर आशा की गांड के नीचे हाथ फेरा और उसे उठा कर उसकी चूत को और अधिक उन्मुक्त और खुला कर दिया ---- उसके बाद उसकी चूत पर झुक कर अपनी जीभ चूत के होठों में घुसेड़ दी, --- और ---- घुसेड़ कर बेतरतीब तरीके से दाएँ बाएँ घूमाने लगे क्योंकि वह उन्हें अलग-थलग कर के चूत के एक एक कोने का मज़ा लेना चाहते थे --- ऐसा होते ही , --- उसकी चूत फ़िर बहने लगी और उसके रस को रणधीर बाबू पूरी तल्लीनता और श्रद्धा से चाटने लगे--- ।
“आअह्ह्ह्ह ---- ओह्ह्ह्ह ---- र----रण----रण--धीर जी , प्लीज़ ---- य --- ये ---- क्या--- कर र---- रहे ---- हैं ---- आ-- आप ???”
हालाँकि ये कोई पहली बार नहीं था जो रणधीर बाबू उसकी चूत चुसाई कर रहे हैं ---- इससे पहले भी बहुत बार ऐसा हो चूका है --- और --- हर बार आशा को बहुत बहुत मज़ा आया है --- चूत चुसाई का अपना एक अलग ही आनंद है जिसका उपभोग आशा जम के करती है ---
पर आज, अभी , आशा को उस ठरकी रणधीर के छह इंच वाला माँस का लोथड़ा अपने भीतर लेने का बेहद दिल कर रहा था --- बेचारी कब से तड़पे ही जा रही है --- पर ठरकी बुड्ढे को है कि फोरप्ले से मन ही न भरे ---
शुरूआती हाथ पाँव तो चलाए उसने --- परन्तु शीघ्र ही उसकी प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगी क्योंकि उसने महसूस किया कि गर्म जीभ उसकी चूत को बेपनाह मोहब्बत से सहला रही है और कभी-कभी तो उसके अंदर एक गहरी गोता लगा रही है ----
इधर रणधीर बाबू अपने हाथों से उसकी कोमल जांघों को पकड़ कर--- अपनी जीभ के झटके तेज कर दिए ----
दर्द और वासना से आशा के नथुने फूल और सिकुड़ रहे थे ---
सुंदर गुलाबी होंठ ऐसे खुले हुए थे जैसे वह अपनी सांस को हवा से चूस कर ले रही हो, ---
उसके सिर के बाल बिखरे हुए और आँखें खुली हुई थीं , ---- जैसे दया की भीख माँग रही हो बुड्ढे से कि अब तो अंदर डाल दे ---
उसका पूरा जिस्म पसीने से लथपथ था जो कि दिन में खिड़की से आती हल्के उजाले में चमक रहा था ---
उसका दिल जैसे उत्तेजित आतंक से भर गया ---
निप्पल्स और भी तने हुए ---
और उसके स्तन एक घंटे से भी अधिक समय तक दिए गए ज़रूरत से ज़्यादा प्यार और ध्यान से सूज गए ----
अब रणधीर बाबू भी सीधे हुए,
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