RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
गुल्लन मन से मुस्कुराये और बोले, “बिहार.” राणाजी को थोड़ी हैरत तो हुई लेकिन ज्यादा प्रश्न करना उन्हें खुद भी अच्छा न लग रहा था. राणाजी जी उत्तर प्रदेश के एक गाँव के थे और बिहार उनके लिए दूसरा प्रदेश पडता था लेकिन विवाह की मजबूरी उनसे सब करवाए जा रही थी.
जबकि अगर सब ठीक ठाक होता तो राणाजी कम से कम पांच सौ लोगों की बारात ले अपनी ससुराल जाते और दुल्हन को विदा करा कर लाते. लेकिन आज तो इन दो दोस्तों के अलावा तीसरा आदमी भी नही था. ट्रेन बिहार के किसी स्टेशन पर जा रुकी. दोनों दोस्त वहां से आगे बढ़ एक ऑटो में बैठ गये जो सवारियों से खचाखच भरा हुआ था.
राणाजी तो किसी छोटे बच्चे की तरह गुल्लन के साथ चले जा रहे थे. उन्हें नहीं पता था कि गुल्लन उन्हें ले कहाँ जा रहे हैं. ऑटो जाकर एक गाँव के किनारे पर रुक गया.
गुल्लन अपने दोस्त राणाजी को ले उस गाँव में जा पहुंचे. राणाजी ने उत्सुक हो गुल्लन से पूंछा, “गुल्लन यार जिस तरह तुम जा रहे हो उस हिसाब से लगता है तुम पहले भी यहाँ आ चुके हो?”
गुल्लन ने मुस्कुराकर राणाजी की तरफ देखा और बोले, “दस बार से भी ज्यादा. तीन शादियाँ करा चुका हूँ इस गाँव से. अब तुम्हारी चौथी होगी.”
गाँव बहुत ही गरीब सा जान पड़ता था. सारे के सारे लोग मैले कपड़ों में खड़े दिखाई पड़ते थे. बच्चे नंगे घूम रहे थे. अधिकतर घरों पर पक्की छतें नहीं थीं. लोग कुए और तालाब से पानी खींच रहे थे.
पूरे गाँव में नल का नाम भी नहीं था. घर मिटटी से बने कच्चे थे. जिनपर फूस का छप्पर पड़ा हुआ था. अगर एक माचिस की तिल्ली किसी भी तरफ जलाकर डाल दी जाय तो पूरी बस्ती में एक भी घर साबुत न बच सकता था. ऐसे ही एक घर में गुल्लन अपने दोस्त के साथ जा पहुंचे.
उस घर के लोग गुल्लन से पहले से ही परिचित थे. गुल्लन को देखते ही एक पचास की उम्र के आदमी ने हाथ जोड़ कर दुआ सलाम की और उन्हें अपनी झोंपड़ी में पड़ी चारपाई पर ले जाकर बिठा दिया. राणाजी भी गुल्लन के साथ वहीं पर बैठ गये. बुजुर्ग का नाम बदलू था.
बदलू की भाषा भी राणाजी की समझ में ज्यादा न आई. शायद वो भोजपुरी भाषा बोल रहे थे. हाँ गुल्लन उनकी हर बात ठीक से समझ रहे थे. उसके बाद गुल्लन बदलू को अपने साथ बाहर लेकर चल दिए. राणाजी से गुल्लन ने वही बैठने का इशारा कर दिया.
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