RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
राणाजी झोपड़ी में बैठे इधर उधर देखते रहे. तभी एक लडकी पानी का बड़ा सा गिलास ले उनके सामने आ पहुंची. राणाजी ने हडबडा कर उस लडकी को देखा. लडकी की उम्र सत्रह अठारह साल के आसपास थी. पतला सा शरीर, रंग सांवला लेकिन चेहरा दिखने में बहुत आकर्षक लग रहा था.
मैले फटे कपड़े पहने होने के बावजूद भी लडकी सुंदर लग रही थी. जो गिलास उसके हाथ में लग रहा था वो पुराना और पिचका हुआ सा था लेकिन देखकर यह भी लग रहा था कि उसे बहुत अच्छे तरीके से मांजा(साफ़ किया) गया है.
राणाजी ने उस लडकी के हाथ से पानी का गिलास ले लिया. लडकी गिलास दे अंदर चली गयी. राणाजी को गिलास की पिचकाहट देख उन लोगों की गरीबी का अंदाज़ा हो गया था लेकिन साफ सफाई के भी कायल हो गये.
राणाजी पानी पी ही रहे थे कि गुल्लन उनके पास आये और बोले, “राणाजी. दोस्त वो रुपया लाये जो मैने तुमसे कहा था.
राणाजी जल्दी से बोल पड़े, "हाँ लाया तो हूँ,
आज बहुत दिनों बाद रुपयों के दर्शन हुए थे. ये रूपये इन लोगों के लिए भगवान के वरदान से कम न थे. बदलू की लडकी रुपयों को देख कर तो खुश थी लेकिन अपनी शादी की बात सुन उसे बहुत दुःख हो रहा था. वो तो अपने माँ बाप को छोड़ जाना ही नही चाहती थी.
बदलू ने बीबी से चाय बनाने के लिए बोला. चाय बनाने की बात सुन बदलू की बीबी आँखें तरेर कर बोली, “शक्कर और दूध है घर में जो चाय बना दूं? जरा देख कर तो बात करो. लडकियों की शादी कितनी बार की लेकिन किसी को अभी तक चाय पिलाई जो आज इन लोगों को पिलाओगे? फटाफट शादी का काम निपटा इन्हें विदा कर दो? बच्चो को हफ्तों चाय नही मिल पाती और तुम हो कि..?"
बदलू ने हाँ में सर हिला दिया. ये इनकी अथाह गरीबी थी जिसकी वजह से ये लोग किसी भी मेहमान को चाय का घुट तक नही दे पाते थे. धीरे धीरे ये इनकी आदत बन गयी. गुल्लन और राणाजी बाहर बदलू की प्रतीक्षा में बैठे थे.
बदलू अंदर से निकल इन दोनों के पास आ बैठे और गुल्लन से भोजपुरी में कहा, "अभी पंडित को बुला लेते हैं तो शादी का काम आज ही निपट जाएगा." गुल्लन ने मुस्कुरा कर हां में सर हिला दिया. राणाजी चुपचाप बैठे इन लोगों की बात सुन रहे थे. बदलू ने एक बच्चा भेज पंडित को बुलावा भेज दिया.
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