RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
मानिक एक आम घर का लड़का था. जिसके घर में उसके पिता और वो दो ही लोग थे. माँ बचपन में उसे छोड़ चल बसी और ये माला गाँव के सबसे अमीर कहे जाने वाले आदमी राणाजी जी की नवविवाहिता. जो कुछ दिन पहले ही शादी हो इस राजगढ़ी गाँव में आई थी.
माला छत से नीचे जा चुकी थी लेकिन मानिक अब भी वहीं खड़ा हुआ उस छत को देखे जा रहा था जिस पर उसने थोड़ी देर पहले तक उस अनजान स्त्री को देखा था. जिसकी एक चितवन ने उसके समूचे मन को अपना कर लिया था.
मानिक को लगता था कि ये स्त्री जरुर उसके मन की असली मीत है. वरना एक बार देखने से उसका दिल उसके लिए ऐसे भाव क्यों दिखाता? मानिक ने उस स्त्री के बारे में जानने की ठान ली और छत से उतर घर में चला गया.
माला ने नीचे पहुंच मेहरी से बुलाने का कारण पूंछा तो उसने बताया कि राणाजी उसे बुला रहे हैं. माला के दिल में उस छत वाले लडके का खयाल अब तक था जो उसके मन को हवा में उडाये जा रहा था. वो भागती हुई सी राणाजी के कमरे में जा पहुंची.
राणाजी बड़े गम्भीर हो पलंग पर लेटे हुए थे. माला के पहुंचते ही उनका ध्यान भंग हो गया और उठकर बैठ गये. माला ने जाते ही पूंछा, “आप बुला रहे थे मुझे?”
राणाजी ने हाँ में सर हिलाया और माला को अपने पास बैठने का इशारा कर दिया.
माला की समझ में तो ज्यादा कुछ न आया लेकिन राणाजी के पास बैठ गयी. राणाजी ने बड़े प्यार से उसका हाथ अपने हाथ में लिया और बोले, “माला तुमसे कुछ जरूरी बात करनी थी. देखो हम जितने अमीर दिखते हैं दरअसल उतने हैं नही. मेरे ऊपर काफी कर्जा हो गया है लेकिन मैं अब उस कर्जे को निकालना चाहता हूँ. इसके लिए मुझे थोड़ी सी जमीन बेचनी पड़ेगी.चाहता तो तुम्हें कहे बिना भी बेच सकता था लेकिन मेरे मन ने कहा कि एक बार तुम से पूंछ लूँ. क्या तुम्हें इस बात पर कुछ कहना है?"
माला इस पर क्या कहती? उसे तो जमीन से कुछ मतलब ही नही था और न ही वो जमीन के बारे में कुछ जानती थी क्योंकि उसके पिता पर जमीन नाम की कोई बस्तु थी ही नही. हाँ राणाजी के इस तरह से पूंछने पर उसे अपने महत्व का पता जरुर चल गया. सोचती थी ये मुझ पर कितना भरोसा करते हैं. बोली, “आप जो भी करना चाहें कर सकते हैं. मुझे तो इन सब बातों के बारे कुछ पता ही नही है. आप जो भी करेंगे वो ठीक ही होगा."
राणाजी को माला की बात में थोडा भारीपन लगा.
उन्हें माला की आज की बातों से लगा कि उसमे दिमागी विकास होता जा रहा है. राणाजी ने हां में सर हिला दिया और उठकर चल गये. दरअसल ये कर्जा राणाजी की शादी के वक्त और उससे पहले का चला आ रहा था. कमाई उतनी ही थी लेकिन कर्जा बढ़ गया था.
राणाजी के जेल में रहने के वक्त भी काफी कर्जा हो गया था लेकिन राणाजी जब छूट कर आये तो शादी के लिए लिया कर्जा और ऊपर से चढ़ गया. राणाजी ने अपनी माँ को भी ये बात न बताई. सोचते थे कुछ दिन बाद बता दूंगा लेकिन फिर माता जी चल बसीं. आज जमीन बेचने की नौबत आ पहुंची. गाँव में राणाजी की बड़ी इज्जत थी लेकिन वो सिर्फ मुंह पर थी पीठ पीछे लोग तरह तरह की बातें करते थे.
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