अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
07-03-2020, 01:28 PM,
#67
RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
राणाजी की आँखों में बीस साल पहले सी आग जल उठी. शरीर फिर से जवान हो उठा. सीना फिर से जवानी की तरह फूल उठा. बोले, “तबसे मैं इस कारण किसी से कुछ नही कहना चाहता था कि तुम खुद मेरे साथ नहीं थीं लेकिन आज तुम मेरे साथ हो. आज से किसी की इतनी हिम्मत नही जो मेरे द्वार पर भी चढ़ सके. मुझे भी कानून की समझ है. मैं बीस साल पहले वाली गलती नही करूँगा. आज तो मैं सिर्फ क़ानून से सबका सामना करूँगा. कानून पंचायत को नही मानता और न ही उसके फैसलों को. तुम निश्चिंत हो रहो. मैं आज ही थाने में शिकायत दर्ज करा दो सिपाही मंगवा लेता हूँ फिर देखू किसकी हिम्मत होती है कि मेरे आसपास भी भटक जाए?" ।

इतना कह राणाजी ने माला का हाथ अपने हाथ में लिया. चेहरे पर मुस्कान ली और कहने लगे, “अब तो सिर्फ मुझे अपने बाप बनने की जल्दी है. बाकी न कोई दुःख है और न कोई चिंता या डर. तुम जल्दी से माँ बन जाओ फिर सब अच्छा हो जायेगा."

माला राणाजी की इस बात से शरमा गयी. मुंह लाल हो गया और नजरें नीची. राणाजी के होंठ माला के मखमली मुलायम गालों से जा टकराए. और गालों से माला के रसीले होठों से. इश्क की बगिया फिर से आबाद हो उठी. वहां पर चलती ठंडी वयार और फूलों की खुशबू ने दोनों का मन मोह लिया. घर में फिर से चूड़ियाँ और पायलें खनकने लगीं. घर फिर से किसी स्त्री से युक्त हो सच्चा घर बन गया.

राणाजी ने उसी दिन थाने जा अपनी शिकायत दर्ज करा दी. क़ानून के मुताबिक राणाजी को कुछ दिनों तक के लिए सुरक्षा भी दे दी गयी. यह सब देख पंच लोग का मुंह उतर गया. थाने के दरोगा जी ने गाँव में आ मुनादी कर दी कि जो भी लोग पंचायत में उलटे सीधे फैसले देंगे उन्हें जेल भेज दिया जायेगा.

पंचों का दो चार दिन घर से निकलना भी बंद रहा. गाँव में फिर से राणाजी का सिक्का जम गया था. लोग कहते थे किराणाजी बहुत ऊपर तक पहुंचे हुए आदमी हैं. उनसे जितना दूर रहा जाय उतना अच्छा है.

राणाजी का घर माला ने अपने हाथों में सम्हाल लिया. अब महरी का काम बंद हो गया था. घर का सारा काम माला खुद करती थी. राणाजी को खेत पर खाना पहुँचाने से लेकर घर के चौका चूल्हे तक का काम माला यूँ ही कर डालती. अब वो छत पर मानिक को देखने के लिए नही जाती थी और मानिक भी छत पर आता नही था. राणाजी के खेतों की पैदाबार में भी पहले से इजाफा हुआ था. अब वो लग कर खेती करते थे. उन्होने अपने आने वाले बच्चे के लिए बहुत कुछ करने ठान जो ली थी.

माला को बच्चा होने में बस एक महीना रह गया था. राणाजी लाख मना करते थे लेकिन माला फिर भी खेतों पर जा उन्हें खाना देने जाती थी. राणाजी ने इस जिद पर खुद घर आ खाना खाना शुरू कर दिया. राणाजी पहले से अधिक जवान दिखने लगे थे. बालों में काला खिजाब और दाढ़ी सफाचट होने से उनकी रंगत में निखार आ गया था. वे माला से और माला उनसे, दोनों एक दूसरे को टूट कर प्यार करते थे.
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इधर सज्जनपुर गाँव के संतराम की जिन्दगी भी पटरी पर आ गयी थी. सुन्दरी के विना अकेले रहने में उसे काफी दिक्कते तो होती थीं लेकिन अब वो चाहकर भी सुन्दरी को अपने पास नही ला सकता था. क्योंकि उसके वहां सुन्दरी को पहुंचाते ही सुन्दरी की माँ ने भुखमरी और गरीबी से तंग आ सुन्दरी को किसी और के हाथों बेच दिया था.

सुन्दरी रोती बिलखती फिर से किसी मर्द के साथ हो ली. लेकिन वो जाते समय अपनी माँ और भाई से जी भर कर लिपटी और खूब रोई. अपने भाई को कसम दे कर गयी कि वो पढ़ लिखकर अफसर बने तो उसे अपने पास बुला ले. नही तो वो मर जाएगी. उसका भाई भी उससे वादा कर बैठा और सुन्दरी को बेच कर आये पैसों से उसने मन लगाकर पढना शुरू कर दिया है.

सज्जनपुर के बगल वाले गाँव के सीधा(भीख) मांगने वाले बल्ली की दूसरी दुल्हन काली को कोई बहला फुसला कर ले गया था. क्योंकि बल्ली के ढूंढने पर भी काली का कोई सुराग नही मिला. काली की यादें बल्ली के दिल में अब भी थीं लेकिन समय के साथ हल्की होती यादों ने बल्ली को फिर से तीसरी दुल्हन लाने का मशविरा दे दिया.

बल्ली पचास के ऊपर का हो चला था लेकिन जल्दी में ही वो तीसरी दुल्हन लेकर आने वाला था. इसके लिए उसने फिर से मन लगाकर सीधा मांगना भी शुरू कर दिया था. साथ ही एक दो गाँव आगे जाकर भी सीधा मांगने लगा था. जिससे ज्यादा पैदा कम दिनों में इकट्ठा हो सके. जिससे वो तीसरी बार बिहार जा एक दुल्हन ला सके.

लेकिन एक बात थी इन आने वाले मोल की दुल्हनों में कि ये लोगों की जिन्दगी में बहुत बड़ा बदलाव करके मानती थी. वो चाहे उसके पास रहें या लौट जाए लेकिन उस आदमी की मानसिकता जरुर बदलती थी जो इन्हें लेकर आता था. ये बहुत कम कीमत लगाकर खरीदी गयी वेमोल औरतें अपनी जिन्दगी को काटों पर पड़ी पाती थीं.

वेशक इनमें से कुछ खुश थीं लेकिन उनके खुश होने का कारण अधिकतर पेट भर भोजन और सुख सुविधा का होना होता था. इन्हें वो ख़ुशी नही मिलती थी जो पहले से पेट भर खा रही लडकीया एक आम लडकी को मिलती थी.

हर लडकी माला जैसी किस्मत वाली नहीं होती थी. हर लडकी का पति राणाजी नही होता था. दिन रात भगवान को याद करतीं ये गरीब लडकियाँ कभी अपनी जिन्दगी का रोना नही रोक सकतीं थीं. बारिस के बबूले सी जिन्दगी में पहाड़ सा दुःख था.

किस्मत बदलने का इन्तजार करतीं इन लड़कियों को नही पता था कि कब इन्हें अपने मन से सब कुछ करने का अधिकार होगा? इनके तो हाथों से भी लकीरें मिट गयीं थीं. मानो इनके हिस्से में किस्मत होती ही नही थी. अगर किस्मत होती तो वेमोल कही जाने वाली ये देवियाँ कौड़ियों के भाव मोल की न बिक रही होती?


Samapt

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RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत - by desiaks - 07-03-2020, 01:28 PM

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