RE: Thriller Sex Kahani - आख़िरी सबूत
"1981 में उसने अपनी फाइनल परीक्षाएं दी थीं, फिर इंग्लैंड चली गई और एक साल उसने वहां काम किया। अगले साल उसे आरलाक में यूनिवर्सिटी में स्वीकार कर लिया गया। वहां मॉरिस--मॉरिस रर्यूमे--नाम के एक लड़के से मिली, हां, हम पहले ही उसे जान चुके हैं। मेरे ख़्याल से वो पहले से भी उसे थोड़ा-बहुत जानती थी; वो कालब्रिंजेन का था। वो मेडिसन पढ़ रहा था। बड़े घर का था, बहुत आकर्षक और उस लड़के ने ही उसे सिखाया था कि कोकीन कैसे लेते हैं... वो पहला था, लेकिन मैंने उसे आखिर के लिए रखा था।"
सिगरेट फिर भड़की।
"वो साथ रहने लगे। करीब एक साल साथ रहे, फिर मॉरिस ने उसे निकाल बाहर किया। तब तक वो उसे बाकी चीजें भी सिखा चुका था... एलएसडी, शुद्ध माँर्फीन, जिसे उसने खुद कभी नहीं लिया था और कैसे एक नौजवान लड़की सबसे ज़्यादा आसानी और सबसे ज़्यादा प्रभावी तरीके से पैसा कमा सकती है। शायद वो उसका खर्च भी उठाती थी, शायद वो उसका दलाल था... मुझे नहीं पता, हमने इस बारे में कभी बात नहीं की थी। शायद हालात इतनी दूर तक गए भी न हों, तब तक नहीं।
"वो अपने दम पर और अठारह महीने आरलाक में रही। उसके पास अपना कोई घर नहीं था, वो एक आदमी से दूसरे आदमी के पास जाती रही। और अस्पतालों और इलाज केंद्रों में आती-जाती रही। नशामुक्त होती, भाग जाती, आगे बढ़ जाती."
उसने थूक गटका और मोएर्क ने उसे अपनी सांसों पर काबू पाते सुना।
"वो कुछ दिन घर पर भी रही, मगर फिर वापस चली गई। कुछ समय नशे से दूर रही, लेकिन जल्द ही वही पुरानी कहानी शुरू हो गई। आखिरकार, वो किसी किस्म के पंथ के चक्कर में पड़ गई, ड्रग्स से दूर रही लेकिन उनकी बजाय और चीजों में फस गई। ऐसा लगता था मानो उसके अंदर ताकत ही न रही हो, या मानो वो सामान्य किस्म की जिंदगी से घबराती हो... या शायद रोजमर्रा की जिंदगी उसके लिए काफी नहीं रही थी, मैं नहीं जानता। जो भी हो, दो साल बाद वो आरलाक छोड़ने और फिर से हमारे साथ रहने के लिए राजी हो गई, लेकिन अब वो सारी खुशी खो चुकी थी... ब्रिगिट...बिटी । वो चौबीस की थी। वो बस चौबीस की थी, मगर वास्तव में वो मुझसे और मेरी पत्नी से कहीं ज्यादा बूढ़ी हो गई थी। वो जानती थी, मुझे लगता है कि वो तब भी जानती थी कि वो अपनी जिंदगी खाक कर चुकी है... वो अभी भी अपने बालों की सुनहरी चोटियां बना पाती थी, लेकिन वो अपनी जिंदगी को खत्म कर चुकी थी। उसे ये अहसास था, लेकिन हमें नहीं था। मैं नहीं जानता, वास्तव में... शायद उम्मीद की हल्की सी किरण बची थी, सब कुछ सुलझा पाने की एक संभावना थी। हम खुद से तो यही कहते थे, कम से कम, हमें खुद से यही कहना पड़ता था...खोखली उम्मीद का हताशा भरा भ्रम। हम उस पर विश्वास करते हैं जिस पर हम विश्वास करना चाहते हैं। जब तक हम खुद को हकीकत को देखना नहीं सिखाते, हम यही करते हैं। ये साली जिंदगी ऐसी ही नजर आती है। जो हमारे पास होता है, हम उससे ही चिपके रहते हैं। कुछ भी हो..."
वो चुप हो गया। मोएर्क ने अपनी आंखें खोली और देखा कि सिगरेट के शोलों ने उसके चेहरे को जगमगा दिया है, और उसने कबंल को अपने शरीर पर खींच लिया। उसे उस घोर लाचारी का अनुभव और आभास हुआ जो अबाध रूप से उसकी ओर से बहती आ रही थी। लहरों में आती और पल भर के लिए वो अंधकार में समाती, उसे ठोस और शब्दों और विचारों के लिए भी अभेद्य बनाती मालूम दी।
मैं समझती हूं, उसने कहने की, कोशिश की, लेकिन शब्द फूटे ही नहीं। वो उसके भीतर गहरे दबे रहे। जमे हुए और अर्थहीन।
"उसी शरद ऋतु में मैं मॉरिस रयूमे से मिलने गया था," खामोशी को तोड़ते हुए उसने कहा। "उन कुछ महीनों के दौरान जब वो एक बार फिर घर पर हमारे साथ थी, एक दिन मैं उससे मिलने गया। उससे उसी सुव्यवस्थित घर में मिलने गया जहां वो उसके साथ रहती थी और जहां अब वो एक दूसरी औरत के साथ रह रहा था... एक जवान और खूबसूरत औरत जिसने अभी तक अपनी खुशमिजाजी बरकरार रखी हुई थी और जिसने कभी मेरे आने की वजह नहीं जानी। उसने उसे इससे अलग रखा और जब मैंने उससे ब्रिगिट के बारे में बात करनी चाही, तो हम बाहर चले गए और एक बार में बैठ गए। वैल्वेट के एक शानदार सोफे पर बैठे और वो अपनी बांहें नचाता हैरान हो रहा था कि मैं आखिर चाहता क्या हूं; वाइन का पैसा उसने दिया और मुझसे पूछा कि क्या मुझे पैसा चाहिए... मेरे ख्याल से उसी वक्त उसने अपने विनाश के बीज बो दिए थे, लेकिन जब वो यहां वापस आ गया और बाकी लोग भी, तब में जान गया कि अब समय आ गया है। जब मैंने उसे मार डाला, तो वो आनंद कुछ और ही था। एगर्स और सिमेल की मौत के आनंद से कहीं ज्यादा गहरा और प्रचंड, और इससे मुझे जरा भी हैरानी नहीं हुई। वही तो था जिसने ये सब कुछ शुरू किया था, मेरे इरादा करने से पहले उन नीद से रीती रातों में एक जीते-जागते मॉरिस र्यूमे की छवि ही तो सबसे ज़्यादा यातनादायक होती थी... जिंदा, मुस्कुराता मॉरिस र्यूमे, उस सोफे पर मजबूत जिगरे की नहीं थी। कि वो इतनी बुरी तरह गिर जाएगी और खुद को इतना नुकसान पहुंचा लेगी... उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी, अपने मजबूत सुरक्षाकवच में बैठा वो अमीरजादा|"
एक बार फिर वो खामोश हो गया और उसने कुर्सी में पहलू बदला |
"अब मुझे जाना होगा," उसने कहा। "बाकियों के बारे में मैं तुम्हें किसी और वक्त बताऊंगा। अगर कुछ अनपेक्षित नहीं घटा तो..."
वो एक मिनट और वहीं बैठा रहा, फिर उसने उसे उठते और दरवाजा खोलते हुए सुना। उसने कब्जों की चरमराहट सुनी, जबकि उसने फिर से दरवाजा बंद किया, ताला लगाया और कुंडा अड़ाया, और जब उसके कदमों की आवाज भी गुम हो गई तब जाकर उसकी जबान फिर से खुली।
"और मेरा क्या?" वो फुसफुसाई, और पल भर के लिए उसे लगा कि उसके शब्द अंधेरे में प्रतीकों की तरह लटके रह गए हैं।
काली, स्याह रात में छोटी, तेजी से फीकी पड़ती चिंगारियां ।
फिर उसने अपने बदन पर कंबल लपेटा और अपनी आत्मा की आंखें बंद करने की कोशिश करने लगी।
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