RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
मुझे डर लग रहा था की अगर कोई ऊपर आ गया तो, इसलिए मैंने जोर लगाया और ऋतू के होठों की गिरफ्त से अलग हुआ| पर ये क्या ऋतू ने "I Love You" रटना शुरू कर दिया| वो तो अपनी आँख भी नहीं झपक रही थी बस लेटे हुए मुझे देख रही थी और I Love You की माला रट रही थी| मैंने उस के कमरे को बाहर से कुण्डी लगाईं और रसोई में गया और वहाँ से कटोरी में आम का अचार निकाल लाया| ऋतू के कमरे की कुण्डी खोली तो छत पर देखते हुए अब भी I Love You बड़बड़ा रही थी| मैंने कटोरी से एक आम के अचार का पीस उठाया और ऋतू के सिरहाने बैठ गया| मुझे अपने पास देखते ही उसने मुझे अपनी बाहों में कस लिया| मैंने आम का पीस उसकी तरफ बढ़ाया तो अपने होंठ एक दम से बंद कर लिए| पर मैंने भी थोड़ा उस्तादी दिखाते हुए पीस वापस कटोरी में रखा और अपनी ऊँगली ऋतू को चटा दी| ऊँगली में थोड़ा अचार का मसाला लगा था, ऋतू ने खटास के कारन अपना मुँह खोला और मैंने फटाफट अचार का टुकड़ा उसके मुँह में डाल दिया| ऋतू एक दम से मुँह बनाते हुए उठ बैठी और उसने वो अचार का पीस उगल दिया| मुझे उसका ऐसा मुँह बनाते हुए देख बहुत हँसी आई पर वो मेरी तरफ सड़ा हुआ मुँह बना कर देखने लगी| "सो जा अब!" मैंने ऋतू को कहा और उठ कर नीचे आ गया| बारी-बारी कर के सब को अचार चटाया और सब के सब ऋतू की ही तरह मुँह बना रहे थे और मुझे बहुत हँसी आ रही थी| सबसे आखिर में मैंने चन्दर को अचार चटाया तो उस पर जैसे फर्क ही नहीं पड़ा, वो तो अब भी बेसुध से पड़ा था| अब मैं इससे ज्यादा कुछ कर नहीं सकता था तो उसे ऐसे ही छोड़ दिया| बाकी सब के सब नशा होने के कारन सो रहे थे, इधर मुझे भूख लग गई थी| वो तो शुक्र है की घर पर पकोड़े बने थे जिन्हें खा कर मैं अपने कमरे में आ कर सो गया|
शाम को चार बजे उठा तो पाया की घर वाले अब भी सो रहे हैं| मैंने अपने लिए चाय बनाई और फिर रात के लिए खाना बनाने लगा| मैं यही सोच रहा था की बहनचोद चन्दर ने ऐसी कौन सी भाँग खिला दी की सब के सब सो रहे हैं? पर फिर जब मुझे अपने कॉलेज वाला किस्सा याद आया तो मुझे याद आया की जब पहली बार मैंने भाँग खाई थी तो मैंने सुबह तक क्या काण्ड किया था! खेर खाना बन गया था और मेरे उठाने के बाद भी कोई नहीं उठा था| सब के सब कुनमुना रहे थे बस| एक बात तो तय थी की कल चन्दर की सुताई होना तय है!
मैंने अपना खाना खाया और ऊपर आ गया, रात के 1 बजे होंगे की मुझ नीचे से आवाज आई; "मानु!" मैं फटाफट नीचे आया तो देखा ताई जी और माँ चारपाई पर सर झुकाये बैठे हैं| मैंने उन्हें पानी दिया और फुसफुसाते हुए पुछा; "ताई जी भूख लगी है?" उन्होंने हाँ में सर हिलाया तो मैं माँ और उनके लिए खाना परोस लाया| फिर मैंने पिताजी और ताऊ जी को उठाया और उन्हें भी खाना परोस कर दिया| इधर ऋतू भी नीचे आ गई और उसे देखते ही मैं मुस्कुराया और उसे माँ के पास बैठने को कहा| उसका खाना ले कर उसे दिया और मैं सीढ़ियों पर बैठ गया| तभी भाभी ने दरवाजा खटखटाया, क्योंकि उनके कमरे का दरवाजा मैंने बंद कर दिया था इस डर से की कहीं ताऊ जी और पिताजी उठ गए और उन्हें ऐसी आपत्तिजनक हालत में देख लिया तो! भाभी बाहर आईं और सीधा बाथरूम में घुस गईं| वो वपस आईं तो उन्हें भी मैंने ही खाना परोस के दिया| सब ने फटाफट खाना खाया और कोई एक शब्द भी नहीं बोला| खाना खाने के बाद ताऊ जी अपने कमरे से बाहर आये और उन्होंने चन्दर को जमीन पर पड़े हुए देखा तो उनका खून खौल गया| उन्होंने ठन्डे पानी की एक बाल्टी उठाई और पूरा का पूरा पानी उस पर उड़ेल दिया| इतना पानी अपने ऊपर पड़ते ही चन्दर बुदबुदाता हुआ उठा और ताऊ जी ने उसे एक खींच कर थप्पड़ मारा| चन्दर जमीन पर फिर से जा गिरा; "हरामजादे! तेरी हिम्मत कैसे हुई सब को भाँग के लड्डू खिलाने की? वो तो मानु यहाँ था तो उसने सब को संभाल लिया वरना यहाँ कोई घुस कर क्या-क्या कर के चला जाता किसी को पता ही नहीं चलता| तुझे जरा भी अक्ल नहीं है की घर में औरतें हैं, तेरी बीवी है, बच्ची है?” पर चन्दर को तो जैसे फर्क ही नहीं पड़ रहा था| मैंने भाभी को कहा की इन्हें अंदर ले कर जाओ, तो भाभी ने उन्हें सहारा दे कर उठाया और कमरे में ले गईं| इधर पिताजी ताऊ जी की गर्जन सुन कर बाहर आये और मुझे इशारे से अपने पास बुलाया| मैं उनके पास गया और पिताजी का शायद सर घूम रहा था इसलिए मैंने उन्हें सहारा दे कर बैठक में बिठा दिया| सब के सब बैठक में आ कर बैठ गए और मुझसे पूछने लगे की आखिर हुआ क्या था? मैंने उन्हें सारी बात विस्तार से बता दी और अचार वाली बात पर सारे हँसने लगे| पर तभी पिताजी ने पुछा; "तुझे कैसे पता की अचार चटाना है?" अब ये सुन कर मैं फँस गया था| पहले तो सोचा की झूठ बोल दूँ, फिर मैंने सोचा की मेरा किस्सा सुन कर सब हंस पड़ेंगे और घर का माहौल हल्का हो जायेगा इसलिए मैंने अपना किस्सा सुनाना शुरू किया|
"कॉलेज फर्स्ट ईयर था और होली पर घर नहीं आ पाया था क्योंकि असाइनमेंट्स पूरे नहीं हुए थे| होली के दिन सुबह दोस्त लोग आ गए और मुझे अपने साथ कॉलेज ले आये जहाँ हमने खूब होली खेली! फिर दोपहर को हम वापस हॉस्टल पहुँचे और नाहा धो कर खाना खाने आ गए| आज हॉस्टल में पकोड़े बने थे जो सब ने पेट भर कर खाये| जब वापस कमरे में आये तो मेरा एक दोस्त कहीं से भाँग की गोलियाँ ले आया था| उसने सब को जबरदस्ती खाने को दी ये कह कर की ये भगवान का प्रसाद है| अब प्रसाद को ना कैसे कहते, जब सब ने एक-एक गोली खा ली तो वो सच बोला की ये भाँग की गोली है| हम टोटल 4 दोस्त थे, अमन, मनीष और कुणाल| कुणाल को छोड़ कर बाकी तीनों डर गए थे की अब तो हम गए, पता नहीं ये भाँग का नशा क्या करवाएगा| हम ने सुना था की भाँग का नशा बहुत गन्दा होता है और आज जब पहलीबार खाई तो डर हावी हो गया| पर 15 मिनट तक जब किसी ने कोई उत-पटांग हरकत नहीं की तो हम तीनों ने चैन की साँस ली! हमें लगा की किसी ने बेवकूफ बना कर कुणाल को मीठी गोलियाँ भाँग की गोलियाँ बोल कर पकड़ा दीं| ये कहते हुए अमन ने हँसना शुरू किया और उसकी देखा-देखि मैं और मनीष भी हँसने लगा| कुणाल को ताव आया की हम तीनों उसे बेवकूफ कह रहे हैं तो उसने हमें चुनौती दी; 'हिम्मत है तो एक-एक और खा के दिखाओ|' हम तीनों ने भी जोश-जोश में एक-एक गोली और खा ली| और फिर से उस पर हँसने लगे| हम तीनों ये नहीं जानते थे की भाँग का असर हम पर शुरू हो चूका था, तभी तो हम हँसे जा रहे थे| उधर कुणाल बिचारा छोटे बच्चे की तरह रोने लगा था और उसे देख कर हम तीनों पेट पकड़ कर हँस रहे थे| 15 मिनट तक हँसते-हँसते पेट दर्द होने लगा था और बड़ी मुश्किल से हँसी रोकी और तब मनीष ने सब को डरा दिया ये कह कर की हमें भाँग चढ़ गई है| अब ये सुन कर हम चारों एक दूसरे की शक्ल देख रहे थे की अब हम क्या करेंगे? अमन तो इतना डर गया था की कहने लगा मुझे हॉस्पिटल ले चलो, मैं मरने वाला हूँ| तो कुणाल बोला की कुछ नहीं होगा थोड़ी देर सो ले ठीक हो जायेगा, पर मनीष को बेचैनी सोने नहीं दे रही थी| इधर मनीष को गर्मी लगने लगी और वो सारे कपडे उतार कर नंगा हो गया और उसने पंखा चला दिया| मुझे भी डर लगने लगा की कहीं मैं मर गया तो? इसलिए मैंने सोचा की ये हॉस्पिटल जाएँ चाहे नहीं मैं तो जा रहा हूँ| अभी मैं दरवाजे के पास पहुँचा ही था की कुणाल ने हँसते हुए रोक लिया और बोला; 'कहाँ जा रहा है? बड़ी हँसी आ रही थी ना तुझे? और खायेगा?' मैं उस हाथ जोड़ कर मिन्नत करने लगा की भाई माफ़ कर दे, आज के बाद कभी नहीं खाऊँगा ये भाँग का गोला! मैं जैसे-तैसे बाहर आया और घडी देखि ये सोच कर की कहीं हॉस्पिटल बंद तो नहीं हो गया? उस वक़्त बजे थे रात के 2, यानी हम चारों शाम के 4 बजे से रात के दो बजे तक ये ड्रामा कर रहे थे| अब हमारा कमरा था चौथी मंजिल पर, इसलिए मैं हमारे कमरे के दरवाजे के सामने लिफ्ट और सीढ़ियों के बीच खड़ा हो कर सोचने लगा की नीचे जाऊँ तो जाऊँ कैसे? अगर लिफ्ट से गया और दरवाजा नहीं खुला तो मैं तो अंदर मर जाऊँगा? और सीढ़ियों से गया तो पता नहीं कितने दिन लगे नीचे उतरने में? मैं खड़ा-खड़ा यही सोच रहा था की हमारे हॉस्टल के वार्डन का लड़का आ गया और मुझे ऐसे सोचते हुए देख कर मुझे झिंझोड़ते हुए पुछा की मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ? मैंने उसे बताया की मैं हिसाब लगा रहा हूँ की सिढीयोंसे जाना सही है या लिफ्ट से? ये सुन कर वो बुरी तरह हँसने लगा| क्योंकि वहाँ लिफ्ट थी ही नहीं और जिसे मैं लिफ्ट समझ रहा था वो एक पुरानी शाफ़्ट थी जिसमें बाथरूम की पाइपें लगी थी| पर मैं अब भी नहीं समझ पाया था की हुआ क्या है और ये क्यों हँस रहा है? वो मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे कमरे में ले आया और अंदर का सीन देख कर हैरान हो गया| मनीष पूरा नंगा था और उसने अपने गले में तौलिया बाँध रखा था जैसे की वो सुपरमैन हो और एक पलंग से दूसरे पर कूद रहा था| अमन बिचारा एक कोने में बैठा अपना सर दिवार में मार रहा था और बुदबुदाए जा रहा था; 'अब नहीं खाऊँगा....अब नहीं खाऊँगा....अब नहीं खाऊँगा...' कुणाल फर्श पर उल्टा पड़ा था और चूँकि उसे मछलियां बहुत पसंद थी तो वो खुद को मछली समझ कर फड़फड़ा रहा था और मैं रात के 2 बजे से सुबह के 6 बजे तक बाहर खड़ा हो कर हिसाब लगा रहा था की सीढ़यों से जाऊँ या फिर लिफ्ट से!
उसी लड़के ने एक-एक कर हमें आम चटाया और हमारा नशा उतारा| इसलिए उस दिन से कान पकडे की कभी भाँग नहीं खाऊँगा|"
मेरी पूरी राम-कहानी सुन कर सारे घर वाले खूब हँसे और शुक्र है की किसी ने मुझे भाँग खाने के लिए डाँटा नहीं! बात करते-करते सुबह के चार बज गए थे इसलिए ताऊ जी ने कहा की सब कुछ देर आराम कर लें पर मुझे तो सुबह ही निकलना था| पर ताऊ जी ने कहा की आराम कर लो और 7 बजे उठ जाना, इसलिए सारे लोग सो गए और सुबह सात बजे जब मैं उठा तो ताई जी, भाभी और माँ रसोई में नाश्ता बना रहे थे| फ्रेश हो कर नाश्ता किया और ताई जी ने रास्ते के लिए भी बाँध दिया की भूख लगे तो खा लेना| शहर हम 11 बजे पहुँचे और पहले ऋतू को कॉलेज छोड़ मैं ऑफिस पहुँचा| सर ने थोड़ा डाँटा पर मैंने जाने दिया क्योंकि आधा दिन लेट था मैं! दिन गुजरते गए और ऋतू के Exams आ गए और उसने फिर से क्लास में टॉप किया! ये ख़ुशी सेलिब्रेट करना तो बनता था, तो संडे को मैं उसे लंच पर ले जाना चाहता था पर उसके कॉलेज के दोस्त भी साथ हो लिए और सब ने कॉन्ट्री कर के लंच किया|
कुछ महीने और बीते और ऋतू का जन्मदिन आया, मैंने उसे पहले ही बता दिया था की एक दिन पहले ही मैं उसे लेने आऊंगा पर ऋतू कहने लगी की उसके असाइनमेंट्स पेंडिंग हैं और अपने दोस्तों के साथ उसने कुछ क्लास बंक की थीं तो वो भी कवर करना है उसे! तो मेरा प्लान फुस्स हो गया! पर वो बोली की शाम को उसके सारे दोस्त उसके पीछे पड़े हैं की उन्हें ट्रीट चाहिए तो हम शाम को मिलते हैं| अब कहाँ तो मैं सोच रहा था की उसका बर्थडे हम अकेले सेलिब्रेट कर्नेगे और कहाँ उसके दोस्त बीच में आ गए| पर मैं ये सोच कर चुप रहा की कॉलेज के दोस्त कभी-कभी करीब होते हैं और मुझे ऋतू को थोड़ी आजादी देनी चाहिए वरना उसे लगेगा की मैं Possessive हो रहा हूँ! अब मैं भी इस दौर से गुजरा था इसलिए दिमाग का इस्तेमाल किया और ऋतू के बर्थडे को खराब नहीं किया, बल्कि उसी जोश और उमंग से मनाया जैसे मनाना चाहिए| ऋतू के चेहरे की ख़ुशी सब कुछ बयान कर रही थी और मेरे लिए वही काफी था| दिन बीतने लगे और ऋतू के कॉलेज के दोस्तों ने कोई ट्रिप प्लान कर लिया, मुझे लगा की शायद मुझे भी जाना है पर मुझे तो इन्विते ही नहीं किया गया क्योंकि वैसे भी मैं कॉलेज वाला नहीं था| ऋतू ने मुझसे मिन्नत करते हुए जाने की इज्जाजत मांगी तो मैंने उसे मना नहीं किया| इस ट्रिप पर बनने वाली यादें उसे उम्र भर याद रहेंगी| जितने दिन वो नहीं थी उतने दिन मैं रोज उसे सुबह-शाम फ़ोन करता और उसका हाल-चाल लेता रहता| जब वो वापस आई तो बहुत खुश थी और मुझे उसने ट्रिप की सारी pictures दिखाईं और वो संडे मेरा बस ऋतू की ट्रिप की बातें सुनते हुए निकला| दिन बीत रहे थे और काम की वजह से कई बार मुझे सैटरडे को बरेली जाना पड़ता और इसलिए हम सैटरडे को मिल नहीं पाते पर संडे मेरा सिर्फ और सिर्फ ऋतू के लिए था| उस दिन वो आती तो मेरे लिए खाना बनाती और कॉलेज की सारी बातें बताती और कई बार तो हम संडे को पढ़ाई भी करते!
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