RE: raj sharma story कामलीला
शायद यह उसके लिए सख्त हाथों से ज्यादा बेहतर अनुभव था। उसने सर तकिये से टिका कर आँखें बंद कर ली थीं और उस घर्षण में खो गया था।
जबकि यह घर्षण शीला को योनि के निचले सिरे से लेकर ऊपर भगांकुर तक लगातार मिल रहा था और इस किस्म की लज़्ज़त दे रहा था जिसे वह शब्दों में बयां नहीं कर सकती थी।
अपनी नाइटी उसे अवरोध लग रही थी… उसने नाइटी को नीचे से उठा कर पेट पर बांध लिया था, अब उसका कमर से नीचे का पूरा निचला धड़ अनावृत था।
उसने अपने हाथ अपनी जांघों पे टिका लिये थे और सर पीछे की तरफ ढलका कर सिसकारते हुए अपने नितंबों के सहारे योनि को तेज़ी से ऊपर-नीचे करने लगी थी।
उसे ऐसा लगा था जैसे उसके निचले हिस्से में कोई ज्वालामुखी पैदा हो गया हो, जिसमे भरा लावा उबालें मार रहा हो, किनारों को तोड़ कर बाहर निकल आना चाहता हो।
इस यौन-उत्तेजना ने उसके ज़हन के सारे दरवाज़े बंद कर दिए थे और शरीर का सारा नियंत्रण उसकी योनि के हाथ में आ गया था… इच्छाएं बलवती होती जा रही थीं।
इस घर्षण के बीच एक वक़्त ऐसा भी आया जब उसकी योनि के अंदर मौजूद सुराख अपने हक़ की मांग करने लगा। उसकी योनि का बार-बार दबता रगड़ता वह छेद जैसे उससे कह रहा हो कि मुझे भर दो।
इस बेचैनी और तड़प ने उसकी एकाग्रता में खलल पैदा कर दिया।
सेक्स रिलेटेड ज्यादातर चीज़ों से वह अनजान थी लेकिन इस बेसिक चीज़ से नहीं, उसने जानवरों को अपना लिंग योनि में घुसाते देखा था, जब भी उसे स्वप्नदोष हुआ था उसने योनि-संसर्ग देखा था।
उसे पता था लिंग का अंतिम ठिकाना योनि की गहराइयों में ही होता है।
और आज वह इस बाधा को भी पार कर जाने पर अड़ गई।
वह चाचा के ऊपर से उठ गई और खुद उसके लिंग को पकड़ कर सीधा कर लिया।
अब उसके ऊपर इस तरह बैठने की कोशिश की, कि लिंग उसकी योनि के छेद में उतर जाये… लेकिन चिकनाहट और फिसलन इतनी ज्यादा थी कि लिंग फिसल कर पीछे की दरार में चढ़ता चला गया।
उसने फिर आगे की तरफ रखते हुए छेद पर टिकाया और उस पर बैठने की कोशिश की तो इस बार वह फिसल कर उसके बालों से रगड़ खाता पेट की तरफ चला गया।
उसे झुंझलाहट होने लगी…
उसने कई बार कोशिश की लेकिन कहीं वह पीछे चला जाता तो कहीं ऊपर… चाचा भी उलझन में पड़ कर उसे देखने लगा था।
‘दीदी…’ तभी एक तेज़ आवाज़ गूंजी।
उसके ऊपर जैसे ढेर सी बर्फ आ पड़ी हो… ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे दसवीं मंज़िल से नीचे फेक दिया हो… दिल धक से रह गया… सांस गले में फंस गई, ठंड के बावजूद पसीना छूट पड़ा।
उसने आवाज़ की दिशा में देखा… बिना पल्लों की खिड़की पर पड़ा पर्दा एक कोने से उठा हुआ था और एक चेहरा उसकी तरफ झांक रहा था।
‘दीदी!’ चेहरे ने फिर पुकारा तो उसकी समझ में आया कि वह रानो थी।
उसे एकदम जैसे करेंट सा लगा और वह चाचा के ऊपर से हट गई… चाचा की समझ में कुछ भी नहीं आया था और वह उलझन में पड़ा इधर उधर देख रहा था।
शीला ने अपनी नाइटी नीचे की और आगे बढ़ के दरवाज़ा खोल दिया…
‘दीदी।’
उसके होंठों के कोर कांपे मगर शब्द हलक में ही घुंट कर रह गए और वह एकदम आगे बढ़ कर अपने कमरे में घुस गई। दरवाज़ा उसने पीछे ‘भड़ाक’ से बन्द कर लिया।
उधर शीला के हटते ही चाचा उठ बैठा था और एकदम मुट्ठियाँ बिस्तर पर पटकते ‘ईया-ईया’ करने लगा था। रानो उलझन में पड़ गई कि इधर जाए या उधर।
फिर उसकी समझ में यही आया कि शीला समझदार है खुद को संभाल सकती है लेकिन चाचा को कोई समझ नहीं थी और ऐसी हालत में उसे सिर्फ वीर्यपात ही शांत कर सकता था।
उसका यौन-ज्ञान शीला से बेहतर था… उसने देर नहीं लगाई और लपक कर चाचा के पास पहुंच कर उसके तेल और शीला के कामरस से सने और चिकने हुए पड़े लिंग पर हाथ चलाने लगी।
चाचा शांत पड़ते-पड़ते फिर लेट गया और रानो ने उसे अंत तक पहुंचा के ही छोड़ा। फिर गीले कपड़े से उसकी सफाई करके वहां से निकल आई।
शीला का दरवाज़ा अभी भी बंद था… उसने शीला को पुकारते हुए दरवाज़ा खटखटाया। दो तीन बार खटखटाने के बाद दरवाज़ा खुला।
सामने शीला लाल आँखें लिए खड़ी थी… देख कर ही अंदाज़ा होता था कि रो रही थी।
रानो उसे अंदर करते खुद भी अंदर आ गई और दरवाज़ा बंद कर दिया, फिर उसे अपने सहारे चला कर बिस्तर पर लाकर बिठाया और उसके हाथ अपने हाथ में लेकर मलने लगी।
‘दीदी… मैंने तुम्हें पुकार नैतिकता का ज्ञान देने, सामाजिक मूल्यों की याद दिलाने या ताने-उलाहने देने के लिए नहीं लगाई थी।’
‘फिर?’
‘बाज़ रखने के लिए लगाई थी कि जो कर रही थी वह सम्भव नहीं था।’
शीला ने अपनी सूजी हुई आँखें उठा कर सवालिया निगाहों से उसे देखा।
‘दीदी, मैं कौन होती हूँ तुम्हें दुनिया के नियम कायदे बताने वाली… शरीर की जो ज़रूरतें तुम्हें जला रही हैं, क्या उन्हें मैंने नहीं झेला? शरीर में पैदा होने वाली इच्छाओं का बोझ मैंने भी तो उठाया है।’
‘तू… तू समझ सकती है मेरी तकलीफ?’
‘क्यों नहीं दी… क्या मेरी तकलीफ उससे अलग है।’
‘तू नीचे आई कैसे?’
‘पेशाब करने आई थी तो तुम्हारी सिसकारियां सुनी… समझ न सकी तो आके देखा। शर्मिंदा मत हो दी, मुझे देख कर बुरा नहीं लगा, बल्कि इस समाज पे क्रोध आया था जिसने हम जैसी लड़कियों-औरतों के लिए कोई स्पेस नहीं छोड़ा।’
शीला के सब्र का बांध टूट पड़ा और वह रानो के सीने से लग कर फफकने लगी, रानो उसकी पीठ थपथपाते हुए उसे सांत्वना देने लगी।
‘दी, ये मर्यादाएं, नियम, नैतिकता के दायरे, समाज की बेहतरी के लिए खींचे गए थे वरना हर इंसान जानवर ही बना रह जाता…
मानती हूं कि इनकी ज़रूरत है हमें और समाज इन्हीं की वजह से टिका है लेकिन शिकायत बस इतनी है कि इसमें हम जैसी बड़ी उम्र तक कुंवारी बैठे रहने वाली लड़कियों औरतों के लिए घुट-घुट के जीने के सिवा कोई गुंजाईश नहीं छोड़ी गई…’
हमें समाज में स्वीकार्य यौन-संसर्ग उपलब्ध नहीं तो क्या हममें इतनी सामर्थ्य है कि हम अपनी यौन-इच्छाओं को ख़त्म कर सकें…
ये समाज के बनाये नियम क्या शरीर को बांध पाते हैं, जो बस अपनी ज़रूरत देखता है और ज़रूरत के हिसाब से रियेक्ट करता है।
सही-गलत, अच्छा-बुरा, स्वीकार्य-अस्वीकार्य और नैतिक-अनैतिक के मापदंड हम जैसी अभिशप्त जीवन जीने पर मजबूर स्त्रियों के लिए भला क्या मायने रखते हैं?’
‘हम कुछ भी बदल नहीं सकते… क्या करें फिर रानो? ऐसे ही सुलग-सुलग कर ख़त्म हो जायें?’
‘इसीलिए तो कहा कि जब नियम बनाने वालों ने हमारे लिए कोई गुंजाईश नहीं छोड़ी तो हम क्यों उनकी परवाह करें… क्यों न हम उन्हें ठुकरा दें।
क्यों न हम उन बेड़ियों को तोड़ दें… जो तुम कर रही थी वो उन नियमों की नज़र में गलत था जो उन मर्दों ने बनाये हैं जिनकी शादियां न हों तो भी उन्हें भोगने के लिए औरतों की कमी नहीं होती।’
रानो की बातों से उसे तसल्ली मिली… कुछ देर के लिए वह खुद की ही नज़र में गिर गई थी और लगता था कि अपनी बहन से भी कभी आँखें न मिला पायेगी मगर अब खुद में आत्मविश्वास पा रही थी।
रानो खुद भी लेट गई और उसे भी लिटा लिया।
‘पर जो मैं कर रही थी वह संभव क्यों नहीं हो पा रहा था… यौन-संसर्ग का अर्थ लिंग द्वारा योनिभेदन ही तो होता है।’
‘हां दी, पर प्रकृति ने हर कांटिनेंट के हिसाब से शरीरों के जोड़े बनाये हैं और उसी हिसाब से उनके अंग विकसित किये हैं… जैसे सबसे बड़े लिंग नीग्रोज़ के होते हैं, उसके बाद अंग्रेज़, योरोपियन के और फिर एशिया के लोगों के और सबसे छोटे पूर्वी एशिया के।
और उसी हिसाब से उनकी सहचरियों की सीमा और क्षमता भी होती है. भारतीय पुरुषों के साइज़ चार इंच से लेकर सात इंच तक ही होते हैं।’
‘तो चाचा का इतना बड़ा क्यों है… हब्शियों जैसा।’
‘शायद भगवन ने चाचा को दिमाग की जगह लिंग दे दिया है। चाचा जन्मजात कई विकृतियों का शिकार है, दिमाग, उल्टा हाथ, रीढ़ और शायद यह भी किसी किस्म की विकृति ही है।’
‘तो क्या कोई बड़े लिंग वाला नीग्रो किसी चीनी लड़की से सेक्स नहीं कर सकता?’ उसे हैरानी हुई।
‘सेक्स तो कोई भी किसी से कर सकता है… लंबाई मैटर करती है तो योनि की गहराई के हिसाब से ही आदमी अंदर बाहर करेगा और मोटाई ऐसी किसी भी लड़की या औरत के लिए मायने नहीं रखती जिसकी योनि अच्छे से खुली हुई हो।’
‘मतलब?’
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