RE: raj sharma story कामलीला
नमकीन स्वाद बुरा नहीं था मगर दिमाग में भरी वर्जना ने उसे गले में स्वीकारने न दिया और मैंने उसे थूक दिया।
फिर शिश्नमुंड पर जीभ फिराते जैसे उसे साफ़ किया और साइड में थूकती रही।
फिर जब मन में तसल्ली हो गई कि अब वह साफ़ हो चुका है तो उसे होंठों का छल्ला बनाते मुंह में लिया और मुंह जितनी नीचे तक उतार सकती थी उतार लिया।
यहाँ तक कि वह गले में घुसने लगा और उबकाई सी महसूस हुई तो एकदम से बाहर निकाल कर हाँफने लगी।
एक बार फिर कोशिश की, फिर उबकाई महसूस होने पर उसे बाहर निकाल दिया। कुछ सेकेंड खुद को संभाल कर अगली कोशिश की।
थोड़ी देर में समझ में आ गया कि उसे गले में उतारने की ज़रुरत नहीं थी। जितना सहज रूप से मुंह में ले सकती थी उतना ही लेना था और ‘गप-गप’ करके ऐसे चूसना है जैसे बचपन में लॉलीपॉप चूसा करते थी।
थोड़ी देर की कोशिशों के बाद मुझे लिंग-चूषण आ गया और फिर मैं अपनी योनि में उठती तरंगों से ध्यान हटा कर उसके लिंग को चूसने लग गई।
अब फिर उसी नमकीन स्वाद का मुंह में अनुभव हुआ तो उसका कोई प्रतिकार न किया और सहजता से उसे गले में उतार गई।
उधर सोनू भी अपनी पूरी तन्मयता से योनि के चूषण और जीभ से भेदन में लगा हुआ था।
सच कहूँ तो उस वक़्त दिमाग में अनार से छूट रहे थे और नस-नस में ऐसी मादकता भरी ऐंठन हो रही थी कि उसे शब्दों में ब्यान नहीं कर सकती।
फिर उसने मेरे कूल्हों को थाम कर साइड में किया तो मेरी एकाग्रता भंग हुई।
वह मेरी तरफ विजयी नज़रों से देखता, मुस्कराता नीचे उतर कर खड़ा हो गया- दीदी, इधर आओ और इस तरह झुको जैसे ज़मीन पर घुटनों के बल बैठते हुए चारपाई के नीचे घुसते हैं न… बिल्कुल वैसे ही!
उसने आगे बढ़ कर मुझे थामते हुए कहा- जहाँ तक रंजना के बताये मुझे मालूम था कि वह ‘डॉगी स्टाइल’ की बात कर रहा था।
मैंने खुद को उसके हवाले कर दिया और उसने मुझे बिस्तर के किनारे खींच कर उसी अंदाज़ में झुका दिया।
अब मैं किसी बिल्ली की तरह खुद का चेहरा, सीना, दोनों हाथ बिस्तर से सटाये, घुटनों पर बल दिये झुकी बैठी थी और मेरा पिछले हिस्सा हवा में ऊपर उठा हुआ था।
मैं अपने पीछे नहीं देख सकती थी मगर कल्पना कर सकती थी कि इस तरह मेरी योनि और गुदा दोनों उसके सामने साफ़ नुमाया रहे होंगे और उन हिस्सों को इतने नज़दीक से और साफ साफ देख रहा होगा जिन्हें मैं भी आज तक नही देख पाई थी।
यह सोच कर मुझे इतनी शर्म आई कि मैंने आँखें बंद कर लीं।
वह थोड़ा झुक कर नीचे हुआ और मेरे नितंबों को दबाते हुए योनि पर जीभ इस तरह फेरने लगा जैसे कोई रसीली चीज़ मज़े ले लेकर चाट रहा हो।
मेरे खून में कुछ पलों के लिए ठंडी हुई चिंगारियाँ फिर उड़ने लगीं।
और जब उसने महसूस कर लिया होगा कि योनि अंदर तक उसकी लार और मेरे रस से भीग चुकी है और समागम के लिए पूरी तरह तैयार है तो उसने मेरे नितंबों को थोड़ा नीचे दबाते हुए अपने लिंग के हिसाब से एडजस्ट कर लिया।
फिर अपने लिंग को पकड़ कर उसे योनि के छेद से सटाया और आहिस्ता से अंदर धकेलने की कोशिश करने लगा।
अवरोध चिकनेपन के कारण बेहद कमज़ोर साबित हुआ और लिंग योनिमुख की संकुचित दीवारों को चीरता हुआ अंदर धंस गया।
दर्द ने एक बार फिर मेरी खैरियत पूछी लेकिन मैंने दांत पर दांत जमाये उसे झेलने में ही भलाई समझी।
उसने अंदर सरकाते हुए नितम्बों पर मज़बूत पकड़ बना रखी थी।
ऐसे में निकल तो सकती नहीं थी, अलबत्ता यह कर सकती थी कि खुद अपने एक हाथ को नीचे ले जाकर अपनी योनि को रगड़ने लगी थी।
भगांकुर पर उंगलियों का घर्षण उस दर्द से लड़ने में मददगार था जो इस घड़ी मेरे रोमांच के असर को कम कर रहा था।
जब सोनू पूरा लिंग घुसा चुका तो रुक कर नितंबों को मसलने लगा।
शायद लिंग को अपने हिसाब से जगह बनाने का पर्याप्त अवसर दे रहा था। साथ ही थोड़ा झुक कर एक हाथ मेरे वक्षों की तरफ ले आया और उन्हें मसलने लगा।
‘करो।’ थोड़ी देर बाद खुद मेरे मुंह से निकला।
वह इशारा मिलते ही सीधा हो गया और दोनों हाथों से मज़बूती से नितंबों को थाम कर अपने लिंग को आगे पीछे करने लगा।
हर बार उसकी चोट मैं अपनी बच्चेदानी पर महसूस करती और कराह उठती।
‘पूरा मत घुसाओ… मुझे गड़ रहा है।’ अंततः मैंने उसे रोकते हुए कहा।
उसने नितम्ब थपथपा कर सहमति जताई और लिंग को पूरा अंदर करने के बजाय तीन चौथाई लिंग को ही अंदर-बाहर करते सम्भोग करने लगा।
मुझे उससे कहीं ज्यादा मज़ा आया जितना पहले आ रहा था और मैं खुद भी अपने चूतड़ों को आगे-पीछे करते उसे सहयोग देने लगी जिससे उसमें और अधिक उत्साह का संचार हुआ।
फिर कमरे में उसकी भारी सांसों के साथ, मेरी सीत्कारें मिल कर संगीत पैदा करने लगीं और सम्भोग से जो लगातार ‘थप-थप’ की ध्वनि उच्चारित हो रही थी वह हम दोनों के कानों में रस घोल रही थी।
चूंकि काफी देर की चूसा चाटी के कारण हमारी उत्तेजना वैसे भी उफान पर थी तो बहुत ज्यादा देर तक ये धक्कों का सिलसिला चल न सका।
वैसे भी नये लोगों में अधीरता ज्यादा होती है जो चरमोत्कर्ष पर जल्दी ले आती है।
जल्दी ही मैं स्खलन के अकूत आनन्द का अनुभव करते हुए अकड़ गई और ज़ोर की ‘आह’ के साथ बिस्तर ही नोच डाला और उन पलों में योनि भी ऐसी कस गई जैसे उसके लिंग का गला ही घोंट देगी।
और इस कसावट ने उसे भी स्खलन की मंज़िल पर पहुंचा दिया।
वह वैसे ही गर्म धातु की फुहार छोड़ता आखरी बूंद तक धक्के लगाता रहा और पूरी गहराई में अपना लिंग घुसाता मुझे बिस्तर पर रगड़ते हुए खुद मेरे ऊपर ही लद गया।
जब शरीर की अकडन ख़त्म हुई तो मुझसे अलग होकर बिस्तर पर ऐसे फैल गया जैसे बेसुध ही हो गया हो… कुछ ऐसी ही हालत मेरी भी थी।
कुछ देर बाद जब रंजना अंदर आई तब हमारा ध्यान भंग हुआ। वह दो गिलास दूध लिये थी जो उसने हम दोनों को ही पिलाया।
फिर सोनू को अपनी सफाई की ताकीद करके मेरी सफाई की और उस दिन यह सिलसिला वहीं ख़त्म हुआ।
यह बात पिछले साल की है दी, तब से अब तक हमें जितने भी मौके मिले हैं हमने सेक्स का भरपूर आनन्द उठाया है, उसके फोन से ही सेक्स के बारे में जितना जान सकती थी, जाना है।
और जितने आसान उपयोग में लाये जा सकते हैं, उन सबका प्रयोग किया है।
रंजना खुद से अपने सगे भाई के साथ यौन-आनन्द नहीं ले सकती थी लेकिन वह हमेशा हमें सेक्स करते देखती है और खुद अपने हाथों से उन पलों में हस्तमैथुन करती है।
हाँ कभी-कभी अवि भैया जब लखनऊ आये हैं तो उसने भी सेक्स की ज़रूरत को पूरा किया है।
सोनू को यह बात मैंने बता दी थी और अपनी बहन की हालत समझते हुए उसने भी इसे स्वीकार कर लिया था।
जब भी कभी अवि भैया आते हैं, वह खुद से कोशिश करके दोनों को ऐसे मौके उपलब्ध करा देता है कि वह अकेलेपन का मज़ा ले सकें।
सुनने में कितना अजीब और गन्दा लगता है न दी कि मैं अपने से सात साल छोटे भाई जैसे लड़के से सेक्स करती हूँ, रंजना अपने सगे भाई को सेक्स करते देखती है और उससे खुद भी डिस्चार्ज होने का रास्ता निकालती है और अपने मौसेरे शादीशुदा भाई से अवैध सम्बन्ध बनाये हुए है।
कोई समाज का ठेकेदार सुन लेगा तो हमें फांसी की सजा दे देगा लेकिन क्या कोई इस सवाल का जवाब भी देगा कि हम करें तो क्या?
ज़ाहिर है कि इतनी देर से ख़ामोशी के साथ उसकी रूदाद सुनती शीला के पास भी क्या जवाब था।
चाचा के लिंग से उठते वक़्त भी उसकी उत्तेजना अधूरी रह गई थी और अब जब तमाम वर्जनाओं को दरकिनार करते रानो की दास्तान ने उसमें लगी आग और भड़का दी थी, जिसके अंत के बगैर उसमें चैन नहीं पड़ने वाला था।
‘क्या हुआ दी… चुप क्यों हो?’ उसे खामोश देख कर रानों ने उसे टोका।
‘इतना सीख गई और यह न सीख सकी कि ऐसी दास्तान सुन कर इंसान की हालत क्या होगी। क्या स्खलन के बगैर मैं चैन पा सकती हूँ? क्या मैं अभी कुछ सोच-समझ सकती हूँ?’
हाँ, उसने ध्यान भले न दिया हो मगर समझ सकती थी, उसने खुद से शीला की नाइटी को खींचते हुए ऊपर कर दिया।
शीला ने खुद से नितम्ब, कमर ऊपर करते उसे नाइटी खींचने में मदद की थी।
रानो उसके वक्ष उभारों पर आहिस्ता आहिस्ता हाथ फेरने लगी। आज से पहले ऐसी हिम्मत न कभी रानो की हुई थी और न ही शीला कभी ऐसा करने की इज़ाज़त देती, लेकिन आज बात दूसरी थी।
आज उन्होंने शारीरिक इच्छाओं के आगे समर्पण कर दिया था और हर वर्जना को तोड़ने की ठान ली थी तो अब क्या रोकना… अब तो हर चीज़ स्वीकार थी।
आज रानो का उसके वक्ष पे फिरता हाथ उसे भला लग रहा था और उसे खुद से उसने धकेल कर नीचे कर दिया था और अपने ही हाथों से अपने वक्ष का मर्दन करने लगी थी।
रानो ने हाथ नीचे करते उसके भगांकुर तक पहुंचा दिया था और उसकी योनि से ही रस लेकर उससे उंगलियाँ गीली करके उसे रगड़ने लगी थी।
शीला के मुख से कामुक सी सीत्कारें जारी होने लगी थीं।
यहाँ तक कि थोड़ी देर शीला के भगांकुर को रगड़ने के बाद उसने बीच वाली उंगली उसके छेद के अंदर सरका दी थी और शीला ‘उफ़ आह’ करके अकड़ गई थी।
‘दीदी, तुम्हारी झिल्ली अभी बाकी है क्या?’ उसने उंगली अंदर-बाहर करते पूछा।
‘न नहीं… बचपन में… एक… बार साइकिल… चलाते… में फट… गई थी।’ शीला ने अटकते-अटकते जवाब दिया।
रानो ने अब उंगली और गहराई में धंसा दी और अंदर-बाहर करने लगी।
शीला का पारा चढ़ने लगा, जल्दी ही स्खलन की घड़ी आ गई और मुंह से तेज़ सिसकारियाँ निकालते शीला कमान की तरह अकड़ गई और झटके लेने लगी।
फिर एकदम ढीली पड़ गई और बेसुध सी हो गई।
‘दी…’ थोड़ी देर बाद रानो ने उसे पुकारा।
‘ह्म्म्म?’ शीला ने जवाब देते हुए आँखें खोली और ठीक से ऊपर चढ़ के लेट गई।
‘देखो, अगर वर्जनाओं को लात मारनी ही है तो हमारे लिए बेहतर यही है कि हम घर में मौजूद चाचा के लिंग का उपयोग करें।
लेकिन चूंकि चाचा का लिंग ही समस्या है जिससे पार पाने के लिये हमें अपनी योनियाँ इस हद तक ढीली करनी पड़ेंगी कि समागम संभव हो सके।
और योनि ढीली करना कोई दो चार बार उंगली करने से तो हो नहीं जाएगा। इसके लिए बाकायदा हमें सम्भोग करना पड़ेगा। जैसे मैंने किया है, आज मैं तो इस हाल में पहुंच गई हूँ कि कोशिश करूं तो चाचा के साथ सहवास बना सकती हूँ।
लेकिन बात तुम्हारी है, मान लो जैसे तैसे करके घुसा ही लो तो घुसाना ही तो सब कुछ नहीं है, चाचा कोई समझदार इंसान तो है नहीं कि उसे पता हो कि कैसे करना है, कितना करना है।
वह ठहरा बेदिमाग जानवर सा… क्या भरोसा एकदम जोश में आकर सांड की तरह जुट जाये। तो समझो कि फाड़ के ही रख देगा।’
‘यह ख्याल तो मुझे भी आया था कि अगर कहीं चाचा घुसाने और करने के लिए बिगड़ गया तो संभालूंगी कैसे? ये तो ऐसा मसला है कि किसी को बुला भी नहीं सकती थी।’
‘हाँ वही तो… इसीलिये चाचा के लिंग के बारे में तब सोचना जब उसे संभाल पाने की क्षमता आ जाये। फ़िलहाल किसी ऐसे इंसान के बारे में सोचो जो तुम्हारे साथ ऐसा रिश्ता भी बना सके और हमेशा के लिए सर पे भी न सवार हो।’
‘ऐसा इंसान?’ वह सोच में पड़ गई।
‘अवि भैया जैसा जिसकी अपनी मज़बूरी हो कि खुद से कभी न सवार हो या सोनू जैसा जो तुम्हारी ज़रूरत भी पूरी कर दे और फेविकोल भी न बने।’
एक-एक कर उसके दिमाग में वह सारे चेहरे घूम गये जिनके साथ उसका उठना-बैठना था, बोलना था, मिलना-जुलना था लेकिन उन तमाम चेहरों में उसे एक भी चेहरा ऐसा न दिखा जिसपे वह भरोसा कर सके।
‘नहीं।’ उसने नकारात्मक अंदाज़ में सर हिलाते कहा- जो हैं, उनमें मुझे भोगने की लालसा रखने वाले तो कई हैं लेकिन ऐसा एक भी नहीं जिस पे मैं भरोसा कर सकूँ।’
‘फिर… घर के अंदर ही जैसे रंजना को अवि भैया उपलब्ध हैं या मुझे सोनू उपलब्ध है, ऐसा भी तो कोई नहीं… जो हमारी मुश्किल हल कर सके?’
दोनों सोच में पड़ गईं।
थोड़ी देर बाद रानो उसे अजीब अंदाज़ में देखती हुई बोली- दी, अगर तू कहे तो सोनू से बात करूं?
‘क्या!’ शीला एकदम चौंक कर उसे देखने लगी- पागल तो नहीं हो गई रानो? सोच भी ऐसा कैसे लिया तूने? मैं और सोनू… छी!’
‘दी… अब यह तुम्हारे खून में दौड़े संस्कार बोले। ज़रा बताना तो यह छी कैसे हुआ?’
‘नहीं रानो, यह नहीं हो सकता। कहाँ सोनू और कहाँ मैं? मैं भला कैसे… अरे बच्चा है वह। जब पैदा हुआ तो मैं बारह साल की थी। अक्सर मैं संभालती थी उसे जब चाची को ज़रूरत होती थी।’
‘गोद तो मैंने भी खिलाया था न उसे, मुझे भी दीदी ही कहता था, आज भी कहता है पर हमारे बीच यह रिश्ता संभव हुआ न! तो तुम्हारे साथ कौन सी ऐसी वर्जना है जो तोड़ी नहीं जा सकती।’
वह चुप रह गई।
‘सोच के देख दी, क्या बुराई है इसमें? मर्द ही है वह भी, जैसे चाचा मर्द है… हमें एक मर्द ही तो चाहिये जो हमारी शारीरिक ज़रूरतों को पूरा कर सके। चाचा भी तो रिश्ते में है न? तो जब उसके साथ सम्भव है तो सोनू के साथ क्यों नहीं?’
सवाल पेचीदा था।
उसके अंदर मौजूद नैतिकता के बचे खुचे वायरस उसे कचोट रहे थे, उन वर्जनाओं की याद दिल रहे थे जिन्हें उसने बचपन से ढोया था, लेकिन अब उसमें एक बग़ावती शीला भी मौजूद थी।
जो उन वर्जनाओं से पलट कर सवाल पूछ सकती थी कि उन्होंने उसके लिए क्या सम्भावना छोड़ी है। वह जिधर भी जायेगी होगा तो सब अनैतिक ही न। तो जो चाचा के साथ हो सकता है वह सोनू के साथ क्यों नहीं?
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