Indian Sex Stories गाँव की डॉक्टर साहिबा
07-20-2020, 01:17 PM,
#2
RE: Indian Sex Stories गाँव की डॉक्टर साहिबा
दोपहर की कड़ी धूप मे मिसेस. काव्या शर्मा एक देहाती गाओं के कच्चे रास्ते पे अपनी एक सामान की ब्याग लेकर खड़ी थी. मई का महीना था तो छुटियो के दिन थे. हर दम देल्ही रहने वाली एक हाइ प्रोफाइल महिला डॉ. काव्या अपनी यह छुटिया बिताने के लिए अपने नानी के गाओं मे जाने का प्रोग्राम बना चुकी थी.
डॉ काव्या के बारे मे बताए तो यू समझ लीजिए के जिसका जनम ही सिर्फ़ लोगो के अंदर वासना उभारकर उनको तड़पाना था. काव्या एक 28 साल की शादी शुदा औरत थी. वो एक अच्छे घर की पधिलिखी लड़की थी. उसने अपना एजुकेशन डोक्टोरी पेशे में किया था. वैसे तो समाज मे उसका नाम बहुत शरीफ लहजे मे था, पर अंदर मे थी उसके संभोग की देवी. उसकी शादी एके बिज़्नेसमन से हुई थी. मिस्टर रमण शर्मा जो 3५ साल के बड़े आदमी थे. शादी अरेंज थी और रमण जो हमेशा अपने काम मे बीज़ी होने के कारण अपने खूबसूरत बीवी को ज़्यादा वक़्त नही दे पाते थे. इसीलिए शायद शादी के 5 साल बाद भी उनको कोई संतान नही थी. दूसरी तरफ काव्या जो बहुत मादक राजसी महिला थी. उसका चेहरा बहुत खूबसूरत था लेकिन उसको देखके मादकता के भाव ज़्यादा जाग जाते थे. 34-25-36 का बदन मानो जैसे सिर्फ़ मर्दो का मज़ाक उडाने के लिए ही बना हो. उसका बदन इतना कसा हुवा था के हर एक औरत को अंदर से जलन और हर मर्द का पानी देखते ही निकल जाए. गोरा दूध जैसा बदन और उसमे से आती मादक खुश्बू जिसको छुने की चाहत हर मर्द मे थी.

ऐसी शहर की वासना परी आज एक देहाती गाओं के कचे सड़के पे अकेली खड़ी थी. उसका प्लान कही दिनों के बाद अपने गाव जाने का था. पर उसको ये पता न था के यहा एक ही समय बस आती हैं और वो अब निकल गयी थी. उसका मोबाइल जिसपे सिग्नल आना बंद हो गया था उसको गुस्से से अपनी हाथ मे लिए वो कड़ी धूप मे खड़ी थी. धूप इतनी ज़्यादा थी के पसीने से उसकी हालत खराब हो रही थी. देहाती जगह और उपर से गर्मी के दिन थे इसलिए हर समय ए.सी. मे रहने वाली शहरी डॉक्टर को शायद ये धूप हद से ज़्यादा लग रही थी.

काव्या के बालो से और गले से पसीना टार हो के बह रहा था. हल्का सा मेकअप और मलाई जैसे लाल होठो पे भी पसीने की हलकी बूंदे जमा होने लगी थी. उनको बार बार वो अपने दसताने से साफ कर रही थी. वैसे उस समय भी काव्या को देख ऐसा लग रहा था के उसको वही चिपक के दबाया जाए. उसने एक स्लीव्लेस ब्लाउस पहना था जिसका गला आगे से और पीछे से बहुत गहरा था. उसको इस्ससे ज़रा रहत तो मिल रही थी. अंदर महंगी ब्रसियर पहनी थी जो उसको उसके जन्मदिन पे रमण ने गिफट में परदेस से लाके दी थी वो उसके पसीने से साफ दिख रही थी. शिफोन सारी उसके बदन से इस कदर चिपकी थी की जैसे वो अब उसको कभी नही छोड़ने वाली. साडी कमर के निचे पहनी हुयी यही. जिससे उसकी नाभि चमक उठ रही थी. हाइ-हील्स से उसका पिछवाड़ा और उभरा था जो जाने कितने मर्दो का अंतरंग का सपना था. शहर में कभी कबार वो बस से सफ़र करती तो भीड़ में जाने कितने लोग उसके पिछवाड़े को मसलते थे. जाने कीतने बार उसकी गदेदार मुलायम उभरी गांड पे कित्नोने अपने लंड रगड़े थे ये तो उसको भी नहीं पता था. उसकी गांड थी ही इतनी टाइट और उभरी के बुढा लंड भी फुल जाये.उस समय भी डॉक्टर होने की वजह से हद से जादा साफ रहनेवाली काव्या को पसीना आ तो रहा था पर उसमे भी उसके बदन की कामुक खुश्बू और उसका फेवरेट पर्फ्यूम अपना गजब ढा रहा था उसके वजह से पूरा समा जैसे रंगीन हो गया हो.

तभी अचानक उसने अपने ब्रांडेड सनग्लासेस अपने कातिल निगाहों से उपर किए तो देखा उसकी और एक देहाती ऑटो रिक्षा चले आ रहा था. शायद उसको एक आशा की किरण दिख गयी पर उसको नही पता था ये आशा उसकी ज़िंदगी बदलने वाली राह की हैं. सामने से एक ऑटो उसके पास आ रहा था. ऑटो की स्पीड धीरे धीरे कम हो रही थी और काव्या को ऑटो मे कुछ लोग बैठेवाले दिख रहे थे....
चंपकलाल जिसका ऑटो था उसमे सुलेमान और सत्तू दोनो गाओं के दो कमीने और निकम्मे इंसान बैठे थे. और उनके साथ थी एक १९ साल की देहाती जवान लड़की सलमा. ये दोनो भी एक दूसरे के जिगरी दोस्त थे पर इनकी दोस्ती भी थोड़ी अजीब थी. सुलेमान एक ३३ साल का निकम्माँ आवारा किस्म का आदमी था. जिसकी पहली बीवी उसके तीन बच्चे लेकर के उसको छोड़ गयी थी. उसके बाद उसकी दूसरी बीवी उसके रोज के जुवा खेलने की आदत से उससे झगड़े कर के अपने माइके चली गयी थी. जाते समय वो भी पेट से थी. जुवे में हमेशा अपना दिमाग लगाने वाला सुलेमान चुदाई के मामले में कहा कम था. बीवियों के जाने के बाद अब वो शहर की सस्ती रंडियो को चोदके कभी कबार अपनी राते बिताता था. और जो राते बच जाती उनमे वो चोरी या मजदूरी की कामे करके अपनी ज़िन्दगी को चला रहा था . वही दूसरी तरफ सत्तू एक २७ साल का ऑटो चालक था. उसको सुलेमान ने अपने साथ रहकर के जुवे की गन्दी आदत लगवा दी थी. जिससे वो एकदूसरे के मुरीद बन गए थे. शायद किसीने सच कहा हैं जिसके साथ रहोगे ठीक वैसा ही बनोगे. सत्तू इसका सरल उदहारण था.
सत्तू उसके मालिक सेठ चम्पकलाल का ऑटो चलाता था. सत्तू को उसके बदले में चम्पकलाल थोड़ी मजूरी भी देता था. पर सत्तू था एक मामले में बड़ा ही किस्मतवाला. उसको चम्पकलाल का ऑटो तो मिला ही साथ में ही उसकी बीवी मंगलादेवी को टटोलने का मौका भी. मंगला देवी बड़ी ठाकुरों की तरह रॉब चलाती थी. चम्पक लाल की एक न चलती उसके सामने. ४१ की उम्र में भी उसकी जवानी थी के उसको संभाले ही नहीं जाती. सत्तू हर इतवार जब चम्पक लाल के घर जाता तब तब वो उसके घर के सारे काम भी करता था और साथ ही मंगलादेवी की सेवा. कभी कबार चम्पकलाल काम के मामले में शहर जाता तो इतवार में मंगलादेवी सत्तू से न जाने क्या क्या नहीं करवा लेती थी. उसी बहाने सत्तू उसको पूरी तरह से निहारके उसकी भरपूर भरे हुए देहाती भरपूर बदन का जमकर मजा लेता था. कभी मालिश करके तो कभी उसका बदन दबवाके.
सुलेमान और सत्तू की दोस्ती गहरी तब हुयी जब एक दिन वो दोनों सुलेमान के चाचा सलीम की बेटी सलमा को ज़बरदस्ती चोदते टाइम एके दूसरे से मिले थे. वही जो ऑटो में उनके साथ बैठी थी. किस्सा यु था के सुलेमान रंडियों को चोदते उकसा हो गया था तो उसने अपनी गन्दी नज़र अपनी ही भतीजी पे रखी. एक दिन गाँव के कच्ची गली में जब वो सलमा को जबरदस्ती चोद रहा था तभी सत्तू ने वो देख लिया. दोनो ने अपनी मिली भगत च्छुपाने के लिए ये बात आपस मे ही बाट ली. बेचारी सलमा जिसको लगा था शायद सत्तू के आने से उसको मदद मिले पर हुआ उल्टा. उस कमसिन को फिर बारी बारी दोनो ने पेल दिया. उसके बाद मानो दोनों एक दुसरे के जिगरी बन गए हो ऐसे हर बात साथ साथ करते थे. सुलेमान को एक और साथी मिल गया था जो उसको उसके आवारा कामो में साथ दे सके.
अभी अभी एक घंटे पहले ही उन्होने सलमा को बारी बारी गन्ने के खेत मे चोदा था और उन कलूटो की किस्मत देखो आज उनको ऐसी राजसी युवती दिख गयी कि उनके चुदाई के अरमान फिर से सिर चढ़कर बोल उठे.

सत्तू जो सामने की सिट पे ऑटो चलाते बैठा था उसने सुलेमान से कहा “आबे मादरजाद सुलेमान, देख तो सामने...क्या माल खड़ा हैं देख,,”

सुलेमान जो पिछे सलमा के साथ बैठा था उसने नज़र दौड़ाई और वो बी सुन्न हो के रह गया.

सुलेमान: “अरी ह...तेरे मा की कमीने ..साली कौन छिनाल है रे यह..?”

सत्तू : “वही तो, चल पूछते हैं शहर की दिख रही हैं”

पीछे बैठी सलमा भी गौर से देख रही थी पर चुप चाप से. उसके मन में दोनों के प्रति बहुत क्रोध था. पर फिर भी इसबार वो खुद भी काव्या को देख के चौंक गयी. और पहली बार उसको ऐसा एहसास हुआ के दोनों कलुटो ने मानो उसका पल भर के लिए बहिष्कार कर दिया हो. सच में स्त्री की भी अलग विडंबना होती हैं जो दुसरे स्त्री के सुन्दरता को देख कभी खुश हो जाती हैं तो कभी जलन के भाव में गिर जाती हैं. ऐसा ही कुछ सलमा के साथ हो रहा था.
ऑटो ठीक काव्या के सामने रुक गया. दोनो के दोनो कलूटे काव्या को देखकर होश मे ही नही रहे. उन्होने उसको जब देखा तब उनको वो किसी परी से कम नही लगी. उसकी साडी का पल्लू ब्लाउज के ऊपर थोडा सरक गया था. गर्मी के कारण शायद ऐसा हो गया. काव्या के इस मादक रूप को देखके दोनों भौचक्के हो गए थे. सलमा जिसकी जवानी का रस वो कुछ ही वक़्त पहले पिकर उठ चुके थे वो काव्या को ऐसे देख रहे थे जैसे सदियों से वो उसी रस के प्यासे हो.

वो इस कदर काव्या पर अपनी नज़ारे गाढ़ रहे थे मानो आँखो से उसके साथ सुहागरात मना रहे हो. तभी अपने सनग्लासेस वापस अपनी निगाहों पे रखके सुनसान बने माहोल मे काव्या ने चुप्पी तोड़ी....
“..हेलोव.........”अचानक से हुए बात ने दोनो कलूटो को होश आ गया
“जी,,जी.. बीबी जी...”? हिछक हिछक के अपनी थूक गटक के सत्तू ने पुछा.
काव्या: “सुनो..ये बरवाडी कहा हो कर गुज़रता हैं?”
बरवाडी सुनते ही दोनो कलूटो को जैसे लगा आज सच मे खुदा भी हैवानो पे मेहरबान हैं. क्योंकि वो सब उसी गाओं के रहने वाले थे.
“जी बीबीजी बरवाडी..यहा से 15-१७ किमी दूर हैं...हम वही जा रहे हैं..”
सत्तू की नज़रे काव्या के गोरे गोर मखमल जैसे बाजुओं से लेकर उसके स्तनों के उभार पे जैसे झंडा रोन के खड़ी थी.
काव्या ने इन सब बातो से नज़र हटाके अपने बातो पे ध्यान केन्द्रित किया “ओके ओके...मुझे वही जाना हैं..कितना ऑटो भाडा लगेगा बोलो?”
इसपे पीछे बैठा सुलेमान झट से बोला ”अरे बीबीजी..पैसा ज़्यादा नही लेते हम,..तोहा मर्ज़ी हो जितना देना हैं दे दो”.
ऐसा कहते हुए उसने काव्या की गहरी गोरी नाभि की तरफ देख के अपने गंदे काले होंठो पे अपनी खुद्तरी जबान फेर दी.

काव्या इन सभी हरकतों से अब ज़रा अनकंफर्टबल फील कर रही थी दोनो की नज़रे उसको जाने नोच रही थी. उसको ऑटो में बैठी सलमा को देख थोडा अच्छा महसूस हुआ. चलो दो मर्दों के साथ कोई औरत भी थी उसके साथ. इस खयाल को देख के उसको थोड़ी संतुष्टि हुई. गर्मी और उपर से हो रही देरी को देख उसने सब भुलाकर कहा...”चलो ठीक हैं..२०० रुपय दूँगी, डन . इतना चलेगा?”
सत्तू जो 2 रुपय के लिए हिसाब का पक्का था उसने झटसे गर्दन हिलाई. और काव्या को बैठने के लिए इशारा किया. मौके का फायदा उठाते हुए सुलेमान ने सलमा को एक जगह सरका दिया और ऑटो के बाहर जैसे कूद ही गया.
“चलिए बीबी जी..ऑटो अपना ही हैं समझिये..आपको कोई शिकायत का मौका नहीं देंगे. आपका सामान भरी हैं उठाके रख देते हैं. ”
सुलेमान ने बड़ी कामुक अंदाज़ में 'सामान' शब्द का इस्तेमाल किया. उसकी नज़रे काव्या के सुडोल गोरे दूध जैसे बदन पर ऐसी चल रही थी जैसे वो कोई कारागिरी करनेवाला हो और काव्या उसकी मूरत. निचे झुक के उसने काव्या का सामान उठा के ऑटो के अंदर रख दिया. झुकने पर कोई भी चांस ना गवाए उसने काव्या की गोरे पेट के तरफ मूह लेकर एक लम्बी सांस भर ली. और उसका सामान जो के बस एक ब्याग में था उसको ऑटो के अन्दर रख दिया. खुद बीच मे बैठ कर उसने काव्या को बैठने को कहा.
“आइये बीबी जी आपका सामान रख दिया..आप भी आ जाओ अब....”
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RE: Indian Sex Stories गाँव की डॉक्टर साहिबा - by desiaks - 07-20-2020, 01:17 PM

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