RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
मैं सारा दिन और सारी रात सदमे की हालत में रही।
मेरी दोनों जांघें पके फोड़े की तरह दुःख रही थीं और नितम्बों में भी हल्का—हल्का दर्द था।
जो कुछ मुझे झेलना पड़ा था- अगर इतनी कम आयु में किसी दूसरी लड़की को झेलना पड़ता, तो मेरी गारण्टी हैं कि वो निश्चित रूप से मर जाती।
लेकिन मैं जिन्दा थी।
न सिर्फ जिन्दा थी, बल्कि एकदम सही—सलामत थी।
और यही बात अपने आपमें एक पर्याप्त सबूत है कि तेरह वर्ष की आयु में ही मेरा शरीर कितना परिपक्व हो गया था।
कुछ दिन तक दहशत मेरे ऊपर बुरी तरह हावी रही।
परन्तु फिर एकाएक मेरे अंदर बड़ा भूकंपकारी परिवर्तन हुआ। प्रथम सहवास का जो खौफ मेरे दिल में बैठा था,वो निकल गया। मुझे धीरे—धीरे उसका कल्पना मात्र से ही अनोखा सुकून मिलने लगा- जो मेरे साथ हुआ था।
कैसी सैक्सुअल फेंसी थी?
कैसा पागलपन भरा अहसास था?
कोठे पर ही तमाम औरतों के साथ एक तबलची भी रहता था, जो नाच—गाने के प्रोग्राम में कभी—कभार ढोलक बजा लिया करता।
एक रात मैं चुपके से उस तबलची के कमरे में जा घुसी।
कमरे में घुसते ही मैंने अपने शरीर के तमाम कपड़े उतार फेंके।
“यह सब क्या है?” तबलची बौखलाया।
“क्यों?” मैं अपने होठ चुभलाते हुए बड़े कुत्सित भाव से मुस्कुराई—”मुझे देखकर तुम्हारे अंदर कुछ-कुछ होता नहीं?”
तबलची की खोपड़ी उलट गयी।
शायद उसने ख्वाब में भी नहीं सोचा था, कभी मैं भी उससे इस तरह की बात करूंगी।
आखिर मैं तो बच्ची थी।
तबलची की हालत कुछ सोचने-समझने लायक होती, उससे पहले ही मैं आगे बढ़कर उससे लिपट गयी।
फिर मैंने उसका एक चुम्बन भी ले डाला।
चुम्बन विस्फोटक था।
मैंने देखा- उस एक चुम्बन ने ही उसे उन्माद से भर दिया।
और!
खलबली मेरे अंदर भी मच गयी।
मेरा जिस्म रोमांस से भरता चला गया।
“सचमुच!” तबलची अब बड़े दीवानावार आलम में मुझे निहारने लगा—”तुम इतनी खूबसूरत होओगी- मैंने सोचा भी न था।”
तबलची ने अब कसकर मुझे अपनी बांहों के दायरे में समेट लिया।
उसका स्पर्श पाकर मैं रोमांचित हो उठी।
“आई लव यू बेबी- आई लव यू!” तबलची भी पागल हो उठा।
“मुझे बेबी मत बोलो।” मैंने थोड़ा नाराजगी के साथ कहा।
“इसमें कोई शक नहीं।” तबलची मुझे देखता हुआ मुस्कुराया—”अब तुम बेबी नहीं हो।”
उसके बाद उसने मुझे उठाकर वहीँ एक बिस्तर पर पटक दिया।
यह मेरी जिन्दगी का पहला रोमांस था- जिसका मैंने भरपूर मजा लूटा था।
उसके बाद तो वह तबलची भी मेरा खूब दीवाना हो गया।
वह हमेशा मक्खी की तरह मेरे आगे-पीछे मंडराता रहता।
मेरे लिए बाजार से खुश्बूदार तेल लाता। गजरा लाता। मुझे घुमाने ले जाता। मैं जो कहती, मेरा हर वो काम खुशी से दौड़-दौड़कर पूरा करता। मेरी जिन्दगी का वो पहला सबक था, जब मुझे इस बात का पूरी संजीदगी के साथ अहसास हुआ कि इंसानी रिश्तों में औरत की हैसियत किसी मदारी जैसी होती है- जिसकी डुगडुगी पर मर्द बिल्कुल बंदर की तरह नाच सकता है।
शर्त सिर्फ एक है!
औरत अपने फन की पूरी उस्ताद होनी चाहिए।
वरना वही मर्द उसका बेड़ागर्क कर सकता है। उसके ऊपर हावी हो सकता है।
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यह सारी प्रारम्भिक शिक्षाएं थीं- जो मुझे ‘फारस रोड’ के उस कोठे पर रहकर मिलीं।
बीस वर्ष की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते इस प्रकार की ढेरों बातें मुझे सीखने को मिल चुकी थी।
इस बीच मैं वेश्याओं की दुर्दशा से भी अच्छी तरह वाकिफ हुई।
एक बार वो उम्र के ढलान पर पहुंची नहीं, फिर उन्हें कोई नहीं पूछता था। न मर्द! न चकले चलाने वाली बड़ी—बूढ़ियां! फिर तो उनकी हालत गली के उस कुत्ते से भी बद्तर होती थी, जो दुर-दुर करता हुआ सारा दिन इधर-से-उधर मारा-मारा फिरता है।
तब दौलत की अहमियत मेरी समझ में आयी।
दौलत ही वो वस्तु है- जिसकी बिना पर कोई वेश्या उम्र के ढलान पर पहुंचने के बाद भी खुद को सम्भालकर रख सकती है। इसलिए समझदार वेश्या वही है, जो अपनी जवानी के दिनों में खुद को खूब जमकर कैश करे और बुढ़ापे के लिए ढेर सारी दौलत का इंतजाम एडवांस में करके रखे।
यह बात समझ आते ही मैंने सबसे महत्त्वपूर्ण कदम ये उठाया कि मैंने फारस रोड का वो कोठा छोड़ दिया और एक ‘नाइट क्लब’ में बहुत हाई प्राइज्ड कॉलगर्ल बन गयी।
क्योंकि ढेर सारी दौलत कमाने की गुंजाइश ‘नाइट क्लब’में ही ज्यादा थी।
हाई प्राइज्ड कॉलगर्ल बनने के बाद मानो मेरी दुनिया ही बदल गयी।
अब मेरा वास्ता ऐसे बिगडै़ल रईसजादों से पड़ता, जो दोनों हाथों से खुलकर पैसा लुटाते थे। जिनके लिए पैसे की कोई अहमियत ही न थी।
मैं उनके साथ कारों में घूमती।
आलीशान फ्लैट्स और फाइव स्टार होटलों के अंदर जाती।
वह मेरे लिए नई दुनिया थी।
नई और रंगीन दुनिया। जिसमें इन्द्रधनुषी रंग भरे हुए थे।
अब मैंने अपने लिए मुम्बई के चार बंगला इलाके में एक आलीशान फ्लैट भी किराये पर ले लिया था।
मैं कीमती-से-कीमती सौंदर्य प्रसाधन इस्तेमाल करती।
शानदार कपड़े पहनती।
परन्तु शीघ्र ही मुझे एक नई मुश्किल का सामना करना पड़ा।
जहां मेरी आमदनी बढ़ी थी- वहीं मेरे खर्चे भी अब बहुत बढ़ चुके थे। फिर एक मुश्किल और थी, मैं उस ऐशो-आराम की इस कदर आदी हो गयी थी कि उसके बिना जिन्दगी गुजारने की कल्पना मात्र से ही मुझे दहशत होती।
मैं यह भी जानती थी कि उस ऐशो-आराम को तमाम उम्र बरकरार रखना भी मेरे लिए कठिन है।
क्योंकि हाई प्राइज्ड कॉलगर्ल के उस धंधे में चाहे जितना पैसा था- लेकिन उतना पैसा फिर भी नहीं था, जो तीस के बाद की तमाम उम्र उसी ऐशो-आराम के साथ गुजारी जा सकती।
फिर एड्स होने का भी मुझे भय था।
मैं अपनी मां की तरह खौफनाक मौत नहीं मरना चाहती थी।
जिन्दगी की दुश्वारियों का अहसास मुझे अब हो रहा था।
सच बात तो ये है- मैं कभी अपनी मां की मौत के बारे में सोच भी लेती, तो मेरे शरीर में दहशत की लहर दौड़ जाती और मुझे कॉलगर्ल के उस धंधे से नफरत होने लगती।
उन्हीं दिनों मेरे दिमाग में एक बड़ा नायाब विचार आया।
हां!
वह विचार नायाब ही था।
क्योंकि उस एक विचार की बदौलत ही मेरी जिन्दगी में वो जबरदस्त भूकंप आया, जिसकी बदौलत मैं अपने मौजूदा अंजाम तक पहुंची।
जिसके कारण मुझे सजा भुगतनी पड़ी।
मैंने सोचा- क्यों न मैं किसी खूबसूरत रईसजादे को अपने प्रेम-जाल में फांसकर उससे शादी कर लूं?
जरा सोचो- इस तरह तो मेरी तमाम दुश्वारियों का ही हल निकल आता।
फिर मुझे न भविष्य की चिंता थी- न वर्तमान की। वैसे भी मैं ‘नाइट क्लब’ की उस हंगामाखेज गहमा-गहमी से ऊब चुकी थी और फिलहाल हर वक्त मुझे अपने आने वाले कल की फिक्र लगी रहती थी।
जल्द ही मैंने अपने उस नायाब विचार पर काम शुरू कर दिया।
मैंने कई रईसजादों को अपने प्रेम-जाल में फांसने का प्रयास किया।
लेकिन बात नहीं बनी।
शीघ्र ही मुझे इस बात का अहसास हो गया कि वो काम इतना आसान नहीं था- जितना मैं समझ रही थी।
रईसजादे मेरे आगे-पीछे हर वक्त जो मक्खियों की तरह भिनभिनाते हुए घूमते थे, वह अलग बात थी। और उनसे शादी करना सर्वथा अलग बात थी। अपने जिन चुने हुए ग्राहकों के ऊपर मैंने डोरे डाले- उनमें से जहां कुछेक बाद में शादी-शुदा निकल आये, वहीं कुछ घबराहट के कारण मुझे बीच में ही छोड़कर भाग खड़े हुए। दो-एक रईसजादों के साथ बात शादी तक पहुंची भी, तो उनके परिवारजनों की तरफ से इतना सख्त विरोध हुआ कि वह उस विरोध के सामने ज्यादा देर तक टिके न रह सके।
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