Desi Porn Kahani नाइट क्लब
08-02-2020, 12:51 PM,
#8
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
मेरी निगाहें पुनः बृन्दा पर जाकर ठिठकीं।
वह अब बिस्तर पर थोड़ा पीठ के सहारे बैठ गयी थी और अपलक मुझे ही निहार रही थी।
“कैसी हो तुम?” मैंने अचम्भित लहजे में पूछा।
“अच्छी हूं।”
“तुम तो नाइट क्लब से बिल्कुल इस तरह गायब हुई,” मैं बोली—”कि फिर तुम्हारा कहीं कुछ पता ही न चला। कितना ढूंढा सब लोगों ने तुम्हें!”
उसने गहरी सांस ली।
“देख नहीं रही- यह बृन्दा पिछले तीन साल में किस कदर बदल गयी है।” बृन्दा की आवाज में हताशा कूट—कूटकर भरी थी—”कितने बड़े चक्र में उलझा लिया है मैंने अपने आपको! याद है शिनाया- मैंने एक दिन तुझसे क्या कहा था?”
“क्या?”
“मैंने कहा था—एक दिन मैं तुझसे जीतकर दिखाऊंगी। मैं जीत गयी शिनाया! मैं तुझसे पहले दौलतमन्द बन गयी। ल—लेकिन...।” वह शब्द बोलते—बोलते उसकी आवाज कंपकंपायी।
“लेकिन क्या?”
“लेकिन अब इस जीत का भी क्या फायदा!” एकाएक वह बड़े टूटे—टूटे अफसोसनाक लहजे में बोली—”जब मौत इतने करीब खड़ी हो- जब सांसों की डोर यूं टूटने के कगार पर हो।”
वह सचमुच बहुत निराशा से घिरी थी।
“आखिर क्या बीमारी हो गयी है तुझे?”
“मेलीगेंट ब्लड डिसक्रेसिया।”
“मेलीगेंट ब्लड डिसक्रेसिया! यह कैसी बीमारी है?”
“काफी सीरियस बीमारी है।” बृन्दा बोली—”जिसका कोई इलाज भी नहीं। इसमें मरीज की दोनों किडनी बेकार हो जाती हैं और खून में इंफेक्शन भी हो जाता है। ब्लड इंफेक्शन के कारण किडनी को ऑपरेशन करके बदला भी नहीं जा सकता।”
“क्यों?”
“क्योंकि किडनी चेंज करने के लिये जैसे ही पेशेण्ट का ऑपरेशन होगा।” वह बोली—”तो फौरन ऑपरेशन टेबल पर ही उसकी मौत हो जायेगी। सबसे बड़ी बात ये है- दुनिया में इस रोग से ग्रस्त पेशेण्टों की संख्या भी ज्यादा नहीं है।”
“कितनी होगी?”
“दुनिया में मुश्किल से दस पेशेण्ट इस रोग से ग्रस्त हैं, जबकि भारतवर्ष में मेरे अलावा ‘मेलीगेंट ब्लड डिसक्रेसिया’का सिर्फ एक पेशेंट मद्रास में कहीं है।”
“ओह!”
वाकई बृन्दा को गम्भीर बीमारी ने जकड़ा था।
“क्या पूरे शरीर का ब्लड बदलकर भी यह ऑपरेशन नहीं हो सकता?” मैं बोली।
“नहीं।” बृन्दा की गर्दन इंकार में हिली—”वास्तव में यह बीमारी किडनी की कम और ब्लड से सम्बन्धित ज्यादा है। इस बीमारी में ब्लड के अन्दर इंफेक्शन इतनी तेजी के साथ फैलता है कि इधर पेशेण्ट को नया ब्लड चढ़ाया जाता है और उधर ब्लड के शरीर में पहुंचते ही उसमे इंफेक्शन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।”
“लेकिन तुम्हें यह बीमारी कैसे लग गयी?”
“मालूम नहीं- कैसे लगी।”
“कहीं कॉलगर्ल...?”
“सही कहा।” वह फौरन बोली—”कभी—कभी तो सोचती हूं, कॉलगर्ल के उस धंधे के कारण ही मैं इस नामुराद बीमारी का शिकार बनी हूं।”
मुझे अपने हाथ—पैरों में बर्फ जैसी ठण्डक दौड़ती अनुभव हुई।
फौरन मेरी आंखों के इर्द—गिर्द अपनी मां का चेहरा घूम गया।
जिसे एड्स हो गया था।
जो उससे भी कहीं ज्यादा तड़प—तड़प कर मरी थी।
मेरा यह विश्वास दृढ़ हो गया कि जरूर बृन्दा को वह बीमारी उसी धंधे के कारण लगी थी।
“और राजकोटिया के सम्पर्क में कैसे आयीं तुम?”
“तिलक राजकोटिया से मेरी पहली मुलाकात एक शॉपिंग कॉम्पलैक्स में हुई थी।” बृन्दा ने बताया।
“कैसे?”
“मुझे आज भी याद है।” बोलते—बोलते बृन्दा किन्हीं ख्यालों में गुम हो गयी—”तिलक वहां कोई प्रजेन्ट खरीदने की कोशिश कर रहा था, जिसे खरीदने में मैंने उसकी हेल्प की। बस वही बात उसके दिल को छू गयी। फिर तो हमारी मुलाकातें अक्सर होने लगीं। हालांकि तिलक के ऊपर दर्जनों लड़कियों की निगाहें थीं, लेकिन मैंने उसे बड़ी आसानी के साथ अपनी शादी के जाल में फांस लिया। तभी मैं बड़ी खामोशी के साथ ‘नाइट क्लब’ भी छोड़कर अलग हो गयी। क्योंकि मैं अपने पुराने संगी—साथियों में से किसी को इस बात की भनक भी नहीं लगने देना चाहती थी कि मैंने तिलक राजकोटिया जैसे फिल्दी रिच आदमी से शादी कर ली है।”
“क्यों?”
“क्योंकि मुझे डर था।” वह थोड़े सकुचाये स्वर में बोली—”कि कहीं कोई मुझे ब्लकमैल न करने लगे। या मेरे पास इतनी ढेर सारी दौलत देखकर किसी के मुंह में पानी न आ जाये।”
“ओह!”
बृन्दा ने सचमुच काफी चतुराई से काम लिया था।
चतुराई से भी और समझदारी से भी।
क्योंकि उस परिस्थिति में इस प्रकार की घटना का घट जाना कुछ असम्भव न था।
“लेकिन मैं एक बात नहीं समझ पा रही हूं।” बृन्दा जबरदस्त सस्पैंसफुल लहजे में बोली।
“क्या?”
“तुम यहां तक किस तरह पहुंची? क्या तुम्हें मालूम हो गया था कि मैंने तिलक राजकोटिया से शादी कर ली है?”
“नहीं।”
“फिर?”
मैं गहरी सांस लेकर वहीं उसके नजदीक पड़ी एक कुर्सी पर बैठ गयी।
फिर मैंने अपने कोट की जेब में-से एड की कटिंग निकालकर बृन्दा की तरफ बढ़ा दी।
“इस तरह पहुंची।”
“यह क्या है?”
“पढ़ो।”
बृन्दा ने मेरे हाथ से वो एड लेकर पढ़ा।
एड पढ़ते ही उसने एक बार फिर चौंककर मेरी तरफ देखा तथा फिर उसके होठों पर अनायास ही बड़ी प्यारी—सी मुस्कान थिरक उठी।
“मैं सब समझ गयी।” वह बोली।
“क्या समझी?”
“जरूर तू भी यहां अपना सपना साकार करने आयी थी।”
“सपना!”
“हां- सपना! तूने सोचा होगा।” वह अर्द्धनिर्लिप्त नेत्रों से मेरी तरफ देखते हुए बोली—”कि एक करोड़पति की बीवी बीमार है। वह मौत के दहाने पर पड़ी आखिरी सांस ले रही है और ऊपर से इतने बड़े पैंथ हाउस में उसकी देखभाल करने वाला भी कोई नहीं। ऐसी परिस्थिति में तेरे लिये उसे करोड़पति को अपने प्रेमजाल में फांसना कितना आसान होगा। क्यों- मैं ठीक कह रही हूं नं?”
मैं उस क्षण उसमें आंख मिलाये रखने की ताब न ला सकी।
आखिर वो सहेली थी मेरी।
मेरी नस—नस से वाकिफ थी।
“मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया?” बृन्दा पुनःबोली—”क्या मैंने कुछ गलत कहा?”
“नहीं। अब तुझसे क्या छिपा है।” मैंने गहरी सांस छोड़ी—”सच बात तो यही है- मैं यहां इसीलिये आयी थी। अगर मैं यह कहने लगूं कि मैं यहां सिर्फ केअरटेकर का जॉब करने आयी थी- तो तू भी जानती है, यह इस दुनिया का सबसे बड़ा झूठ होगा।”
“यानि तू तिलक से शादी करना चाहती है।” वह अपलक मुझे ही निहार रही थी।
“तिलक से नहीं, बल्कि उसकी दौलत से। उसके रुतबे से।”
“एक ही बात है।”
“नहीं- एक ही बात नहीं है। तिलक राजकोटिया जैसे मर्द मुझे मुम्बई शहर में हजारों मिल सकते हैं। लाखों मिल सकते हैं, लेकिन उस जैसा रुतबा मिलना आसान नहीं।”
“हूं।”
“लेकिन तू फिक्र मत कर- अब मेरे थॉट बदल चुके हैं।”
“क्यों?”
“क्योंकि यह मालूम होने के बाद कि तिलक राजकोटिया की वह बीमार बीवी तू है- अब मैं तेरे हक पर डाका नहीं डालूंगी। अब मैं सच में ही तेरी मन से सेवा करूंगी।”
“सच!”
“हां- सच!” मैंने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया।
बृन्दा जज्बाती हो उठी।
उसकी आंखों में आंसू छलछला आये।
जबकि मैंने उसे अब कसकर अपनी छाती से चिपका लिया था।
“आखिर बिल्ली भी दो घर छोड़कर शिकार करती है डियर- मैं तो फिर भी एक इंसान हूं। तेरी सहेली हूं।”
“तू सच कह रही है शिनाया?”
“हां।”
“ओह- तू नहीं जानती, तेरी यह बात सुनकर मुझे कितनी खुशी हो रही है। तू सचमुच मेरी अच्छी सहेली है।” बृन्दा की आंखों में खुशी के कारण झर—झर आंसू बहने लगे।
मैं भी उस क्षण इमोशनल हुए बिना न रह सकी।
वह जज्बातों से भरे क्षण थे।
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