Desi Porn Kahani नाइट क्लब
08-02-2020, 12:57 PM,
#52
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
अर्द्धरात्रि का समय था।
तिलक राजकोटिया उस वक्त बहुत गहरी नींद में था और कमरे के अंदर उसके मद्धिम खर्राटे गूंज रहे थे।
मैं मानो उसी मौके की तलाश में थी।
मैं बहुत धीरे से बिस्तर छोड़कर उठी।
बिल्कुल निःशब्द।
उस समय मेरी हालत एकदम चोरों जैसी थी।
मैंने एक नजर फिर तिलक राजकोटिया को देखा, जो दीन—दुनिया से बेखबर सोया हुआ था और फिर दबे पांव कमरे से बाहर निकल गयी।
सरदार करतार सिंह लॉज के दूसरे माले पर ठहरा था। मैं दूसरे माले की तरफ ही बढ़ी।
सीढ़ियां चढ़कर ऊपर पहुंची।
थोड़ी देर बाद ही मैं सरदार के कमरे के सामने खड़ी थी। इस बीच मैंने इस बात का खास ख्याल रखा था कि मैं किसी की नजरों में न आऊं।
मैंने दरवाजा खटखटाया।
“कौन है?” तुरंत मुझे अंदर से सरदार की भारी—भरकम आवाज सुनाई पड़ी।
उसके बाद सिटकनी गिरने और दरवाजा खुलने की आवाज आयी। अगले ही पल सरदार करतार सिंह मेरी नजरों के सामने खड़ा था। उसने चैक की लुंगी पहन रखी थी और बाजूदार बनियान पहना हुआ था। उसके लम्बे—लम्बे केश खुले हुए कंधों पर पड़े थे। उस वक्त वो टर्बन (पगड़ी) नहीं बांधे था।
मुझे देखकर वो बिल्कुल भी न चौंका।
“ओह शिनाया शर्मा।” करतार सिंह बोला—”आओ, अंदर आओ।”
मैं बड़ी स्तब्ध—सी मुद्रा में कमरे के अंदर दाखिल हुई।
इस बात ने मुझे काफी अचम्भित किया कि मेरे इतने रात में आने के बावजूद भी सरदार जरा विचलित नहीं था।
“मैं जानदा सी, तुसी आज रात यहां जरूर आओगी।” सरदार बोला—”सच तो ए है कि इस वक्त मैं जागकर त्वाडा ही इंतजार करदा पयासी।”
“मेरा इंतजार कर रहे थे?” मेरे दिल—दिमाग पर भीषण बिजली गड़गड़ाकर गिरी।
“हां।”
सरदार करतार सिंह ने आगे बढ़कर दरवाजा बंद किया और सिटकनी चढ़ाई।
फिर वो पलटा।
मैं अभी भी बेहद कौतुहल नजरों से उसे ही देख रही थी।
“क्या तुम्हें मालूम था कि मैं आज रात यहां आने वाली हूं?”
“हां- मैंन्नू मलूम सी।” सरदार रहस्य की बढ़ोत्तरी करता हुआ बोला—”दरअसल जिस तरह तुस्सी मेरी आंखा विच पढ़ लित्ता सी कि मैं त्वाडी असलियत नू जाण गया हूँ, उसी तरह अस्सी भी त्वाडी आंखा विच ऐ पढ़ लित्ता सी कि तुस्सी इस राज़ नू जाण गयी हो कि मैं त्वाडी असलियत नू जाण गया हूं। और ए पता लगने के बाद मैं जानता था कि तुसी मैनूं अकेले विच मिलने दी कोशिश करोगी। वैसे भी ऐसी खामोश मुलाकात के लिये रात से बढ़िया टाइम और क्या हो सकदा सी।”
“दैट्स गुड!” मैंने मुक्त कण्ठ से करतार सिंह की प्रशंसा की—”बहुत अच्छे! यानि शराब ने अभी तुम्हारे दिमाग के स्नायु तंत्रों को उतना नहीं घिस दिया है, जितना लोग समझते हैं। तुम्हारा दिमाग अभी भी पहले की तरह ही काफी पैना है और उसमें सोचने—समझने की अच्छी सलाहियतें मौजूद हैं।”
“इवे विच ते कोई शक ही नहीं कि मेरे दिमाग दा पैनापन बरकरार है।” करतार सिंह बोला—”अलबत्ता ज्यादा शराब पीने की वजह से मेरी याददाश्त कभी—कभी धुंधलाने लगदी है।”
“जैसे पिछले कुछ दिनों से धुंधला रही थी।”
“हां। बैठ जाओ।”
“नहीं।” मैंने बैठने का उपक्रम नहीं किया—”मैं ऐसे ही ठीक हूं।”
मेरी निगाहें पूरी तरह सरदार के चेहरे पर टिकी थीं।
“सबसे पहले तो तुस्सी अपने ब्याह दी मुबारका कबूल करो।” सरदार करतार सिंह अपने केशों का जूड़ा बांधता हुआ बोला—”चंगी आसामी तलाश कित्ती है। मुबारकां हो, बहोत—बहोत मुबारकां।”
“शटअप!” मैं गुर्रा उठी—”जरा तमीज से बात करो। तुम शायद भूल रहे हो, वह मेरे हसबैण्ड हैं और मुम्बई शहर के एक इज्जतदार आदमी हैं। रसूख वाले आदमी हैं।”
“इज्जत वाला बंदा ए- तभी तो मैं पा जी नू चंगी आसामी कह रहा हूं। वरना पा जी नू कौन पूछदा सी, कौन ऐनू घास डालदा सी?”
“करतार सिंह! तुम बड़ी अजीब ट्यून में बात कर रहे हो।” मेरी आवाज में नागवारी के चिन्ह थे—”मैंने तिलक राजकोटिया को कोई जबरदस्ती नहीं फांसा है। बल्कि हम दोनों ने प्रेम विवाह किया है। और प्रेम विवाह के मायने तो तुम अच्छी तरह समझते ही होओगे। प्रेम विवाह एक भावनात्मक सम्बन्ध है। जिसका जन्म दोनों तरफ की अण्डरस्टेंडिंग के बाद ही होता है।”
“दोनों तरफ की अण्डरस्टेंडिंग?”
“हां।”
“त्वाडी तिलक राजकोटिया नाल किस चीज दे प्रति अण्डरस्टेंडिंग थी? उसके रोकड़े नाल—नावे वाली?”
“मैं तुम्हारे इस सवाल का जवाब देना जरूरी नहीं समझती।”
करतार सिंह सामने पड़ी एक कुर्सी पर पैर फैलाकर बैठ गया।
“ठीक ए।” करतार सिंह गहरी सांस लेकर बोला—”तुसी मेरे दूजे सवाल दा जवाब दो।”
मैं खामोश रही।
“क्या तिलक राजकोटिया इस गल नू जानदा सी कि त्वाडा अतीत क्या है? तुसी ‘नाइट क्लब’ दी एक कॉलगर्ल रह चुकी हो?”
मेरे मुंह से शब्द न फूटा।
“क्या इस सवाल दा जवाब देना भी तुम जरूरी नहीं समझदीं?”
“वो इस रहस्य से वाकिफ नहीं है।” मैं फंसे—फंसे स्वर में बोली।
“फिर भी तुसी यह कहती हो,” करतार सिंह बोला—”कि वो त्वाडे वास्ते एक चंगी आसामी नहीं है, एक तगड़ी आसामी नहीं है।”
मैं कुछ न बोली।
सच तो ये है, मेरा दिमाग उस समय काफी तेज स्पीड से चल रहा था।
एकाएक सरदार करतार सिंह नाम की जो मुश्किल मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी थी, मैं उस मुश्किल का कोई हल सोच रही थी।
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