Desi Porn Kahani नाइट क्लब
08-02-2020, 01:02 PM,
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
उस रात मैं सोई नहीं!

सारी रात जागी।

जबकि तिलक राजकोटिया के साढ़े दस बजे तक ही खर्राटे गूंजने लगे थे।

वह गहरी नींद सो गया था।
वैसे भी सारे दिन के थके—हारे तिलक राजकोटिया को आजकल जल्दी नींद आती थी। फिर भी मैंने हत्या करने में शीघ्रता नहीं दिखाई, मैंने और रात गुजरने का इंतजार किया।
रात के उस समय ठीक बारह बज रहे थे- जब मैं बिल्कुल निःशब्द ढंग से बिस्तर छोड़कर उठी।
मैंने तिलक राजकोटिया की तरफ देखा।
वो अभी भी गहरी नींद में था।
मैं बड़ी खामोशी के साथ चमड़े के कोट की तरफ बढ़ी, जो खूंटी पर लटका हुआ था।
फिर मैंने कोट की जेब में से देसी पिस्तौल बाहर निकाली और उसका चैम्बर खोलकर देखा।
चैम्बर में सिर्फ एक गोली बाकी थी।
एक गोली!
मैंने चैम्बर घुमाकर उस गोली को पिस्तौल में कुछ इस तरह सेट किया, जो ट्रेगर दबाते ही फौरन गोली चले।
तिलक राजकोटिया की हत्या करने के लिए वो एक गोली पर्याप्त थी।
मैंने ठीक उसकी खोपड़ी में गोली मारनी थी और उस एक गोली ने ही उसका काम तमाम कर देना था।
बहरहाल पिस्तौल अपने दोनों हाथों में कसकर पकड़े हुए मैं तिलक के बिल्कुल नजदीक पहुंची।
वो अभी भी गहरी नींद में था।
मैंने पिस्तौल ठीक उसकी खोपड़ी की तरफ तानी और फिर मेरी उंगली ट्रेगर की तरफ बढ़ी।
तभी अकस्मात् एक विहंगमकारी घटना घटी, जिसने मुझे चौंकाकर रख दिया।
उछाल डाला!
तिलक राजकोटिया ने एकाएक भक्क् से अपनी आंखें खोल दी थीं।
•••
तिलक राजकोटिया के आंखें खोलते ही मैं इस तरह डर गयी, जैसे मैंने जागती आंखों से कोई भूत देख लिया हो।
“त... तुम जाग रहे हो?” मेरे मुंह से चीख—सी खारिज हुई।
“क्यों- मुझे जागते देखकर हैरानी हो रही है डार्लिंग!” तिलक बहुत विषैले अंदाज में मुस्कुराते हुए बैठ गया—”दरअसल जब तुम्हारे जैसा दुश्मन इतना करीब हो, तो किसी को भी नींद नहीं आएगी। वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए एक बात और बता दूँ, जो पिस्तौल इस वक्त तुम्हारे हाथ में है- उसमें नकली गोलियां है।”
“न... नहीं।” मैं कांप गयी—”ऐसा नहीं हो सकता।”
“ऐसा ही है माई हनी डार्लिंग!” तिलक राजकोटिया बोला—”थोड़ी देर पहले मैंने खुद गोलियों को बदला है। दरअसल मेरे ऊपर यह प्राणघातक हमले तुम कर रही हो- इसका शक मुझे तुम्हारे ऊपर तभी हो गया था, जब आज रात तुमने सावंत भाई का आदमी बनकर ड्राइंग हॉल से ही मुझे फोन किया।”
“य... यह क्या कह रहे हो तुम?” मैं दहल उठी, मैंने चौंकने की जबरदस्त एक्टिंग की—”मैंने तुम्हें फोन किया?”
“हां- तुमने मुझे फोन किया।”
“लगता है- तुम्हें कोई वहम हो गया है तिलक!”
“बको मत!” तिलक राजकोटिया गुर्रा उठा—”मुझे कोई वहम नहीं हुआ। अगर तुम्हें याद हो- तो जिस वक्त तुम मुझे फोन कर रही थीं, ठीक उसी वक्त ड्राइंग हॉल में टंगा वॉल क्लॉक बहुत जोर—जोर से दस बार बजा था।”
मुझे तुरन्त याद आ गया।
सचमुच वॉल क्लॉक बजा था।
“ह... हां।” मैंने फंसे—फंसे स्वर में कहा—”बजा था।”
“बस उसी वॉल क्लॉक ने तुम्हारे रहस्य के ऊपर से पर्दा उठा दिया। दरअसल वह वॉल क्लॉक अपने आपमें बहुत दुर्लभ किस्म की वस्तु है। कभी उस वॉल क्लॉक को मैं इंग्लैण्ड से लेकर आया था। इंग्लैण्ड की एक बहुत प्रसिद्ध क्लॉक कंपनी ने दीवार घड़ियों की वह अद्भुत रेंज तैयार की थी। उस रेंज में वॉल क्लॉक के सिर्फ पांच सौ पीस तैयार किये गये थे और उन सभी पीसों की सबसे बड़ी विशेषता ये थी कि उनके घण्टों में जो म्यूजिक फिट था, वह एक—दूसरे से बिल्कुल अलग था। यानि हर घण्टे का म्यूजिक यूनिक था- नया था। यही वजह है कि मैंने टेलीफोन पर तुमसे बात करते समय घण्टा बजने की वह आवाज सुनी, तो मैं चौंका । क्योंकि वह म्यूजिक मेरा जाना—पहचाना था। फिर भी मैं इतना टेंशन में था कि मुझे तुरंत ही याद नहीं आ गया कि वह मेरी अपनी वॉल क्लॉक की आवाज थी। और जब याद आया, तो यह मुझे समझने में भी देर नहीं लगी कि यह सारा षड्यंत्र तुम रच रही हो। क्योंकि उस वक्त अगर पैंथ हाउस में मेरे अलावा कोई और था, तो वह तुम थीं। सिर्फ तुम्हें ड्राइंग हॉल से फोन करने की सहूलियत हासिल थी।”
मेरे सभी मसानों से एक साथ ढेर सारा पसीना निकल पड़ा।
उफ्!
मैंने सोचा भी न था कि सिर्फ वॉल क्लॉक ही मेरी योजना का इस तरह बंटाधार कर देगी।
“तुम्हारी असलियत का पर्दाफ़ाश होने के बाद मैंने सबसे पहले तुम्हारी पिस्तौल की गोलियां बदली।” तिलक राजकोटिया बोला—”उसमें नकली गोलियां डाली। क्योंकि मुझे मालूम था कि अब तुम्हारा अगला कदम क्या होगा?”
“ल... लेकिन इस बात की क्या गारण्टी है!” मैंने बुरी तरह बौखलाये स्वर में कहा—”कि मेरी पिस्तौल के अंदर नकली गोली है।”
तिलक राजकोटिया हंसा।
जोर से हंसा।
“इस बात को साबित करने के लिए कोई बहुत ज्यादा दिमाग नहीं लगाना पड़ेगा डार्लिंग!” तिलक बोला—”पिस्तौल तुम्हारे हाथ में है, ट्रेगर दबाकर देख लो। अभी असलियत उजागर हो जाएगी।”
उस समय मेरी स्थिति का आप लोग अंदाजा नहीं लगा सकते।
मेरी स्थिति बिल्कुल अर्द्धविक्षिप्तों जैसी हो चुकी थी, पागलों जैसी। मेरे दिमाग ने सही ढंग से काम करना बंद कर दिया था।
मैंने फौरन पिस्तौल तिलक राजकोटिया की तरफ तानी और ट्रेगर दबा दिया।
धांय!
गोली चलने की बहुत धीमी—सी आवाज हुई।
जैसे कोई गीला पटाखा छूटा हो।
तिलक तुरन्त नीचे झुक गया। गोली सीधे सामने दीवार में जाकर लगी और फिर टकराकर नीचे गिर पड़ी।
दीवार पर मामूली खरोंच तक न आयी।
वह सचमुच नकली गोली थी।
अलबत्ता तिलक राजकोटिया ने उसी पल झपटकर तकिये के नीचे रखी अपनी स्मिथ एण्ड वैसन जरूर निकाल ली।
•••
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