Desi Porn Kahani नाइट क्लब
08-02-2020, 01:03 PM,
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
17
उपसंहार
मैंने शिनाया शर्मा की वो आत्मकथा बड़े मनोयोग के साथ पढ़ी और फिर अपनी रिवाल्विंग चेयर से पीठ लगा ली थीं।
मैंने चश्मा उतारकर अपनी राइटिंग टेबल पर रख दिया।
मैं!
यानि ‘अमित खान’ आपसे सम्बोधित हूं।
इसमें कोई शक नहीं- शिनाया शर्मा ने अपनी वो पूरी कहानी बड़े दिलचस्प अंदाज में लिखी थी।
मैं खुद उसे एक ही सांस में पढ़ता चला गया।
इतना ही नहीं- उस कहानी ने मेरी अंतरात्मा को झंझोड़ा भी। हालांकि शिनाया शर्मा एक खूनी थी- लेकिन फिर भी पूरी कहानी पढ़ने के बाद उसके कैरेक्टर से हमदर्दी होती थी।
वह आत्मकथा मेरे तक पहुंची भी बड़े अजीब अंदाज में थी। कल ही ‘सेण्ट्रल जेल’ के जेलर का मेरे पास फोन आया था।
“मुझे अमित खान जी से बात करनी है।”
“कहिये।” मैंने कहा—”मैं अमित खान ही बोल रहा हूं।”
“ओह- सॉरी अमित जी, मैं आपको पहचान न सका।”
“कोई बात नहीं।”
“मैं दरअसल सेण्ट्रल जेल का जेलर हूं।” उसने बताया—”हमारी जेल में एक कैदी लड़की है, जो आपके उपन्यासों की जबरदस्त फैन है। कल सुबह ठीक पांच बजे उसे फांसी होने वाली है। लेकिन वो मरने से पहले एक बार आपसे जरूर मिलना चाहती है।”
वह मेरे लिए अद्भुत बात थी।
अपने ढेरों प्रशंसकों से मैं मिला था। मगर ऐसा फैन पहली बार देखा था, जो मरने से पहले एक बार मुझसे मिलने को इच्छुक था।
वो भी फांसी पर चढ़ने से पहले!
“उस लड़की की आपसे बहुत मिलने की इच्छा है मिस्टर अमित!” जेलर पुनः बोला—”अगर आप थोड़ी देर के लिए उससे मिलेंगे, तो मुझे भी खुशी होगी।”
“ठीक है।” मैं बोला—”मैं चार बजे तक सेण्ट्रल जेल पहुंचता हूं।”
“थैंक्यू- थैंक्यू वैरी मच! आइ’म वेरी ग्रेटफुल टू यू!”
“ओ.के.।”
•••
जेलर मुझे शिनाया शर्मा से मिलाने सीधे काल—कोठरी के अंदर ही ले गया। वरना अमूमन इस तरह की मुलाकातें ‘मुलाकाती कक्ष’ में ही होती हैं।
मैंने जब जेलर के साथ काल—कोठरी में कदम रखा, तो शिनाया शर्मा सामने ही फर्श पर घुटने सिकोड़े बैठी थी।
आहट सुनते ही उसने अपना चेहरा ऊपर उठाया।
वह सचमुच बहुत सुंदर थी।
उसके जिस्म की रंगत ऐसी थी- मानो जाफरान मिला दूध हो।
मुझे देखते ही उसके चेहरे पर पहचान के चिद्द उभरे।
आखिर मेरी तस्वीरें वो उपन्यासों के पीछे देखती रही थी, इसलिए मुझे पहचानना उसके लिए मुश्किल न था। वहीं नजदीक में उसकी लिखी हुई आत्मकथा रखी थी।
“ओह- आप आ गए।” वह तुरन्त उठकर खड़ी हुई—”मैं तो सोच रही थी, पता नहीं आप आएंगे भी या नहीं।”
“ऐसा नहीं हो सकता था।” मैं बोला—”कि मेरा कोई प्रशंसक मुझे बुलाये और मैं न पहुंचूं।”
मैं अपनी आंखों पर यकीन नहीं कर पा रहा था- इतनी खूबसूरत लड़की ने कोई ऐसा जघन्य अपराध भी किया हो सकता है, जो उसे फांसी जैसी सजा मिले!
“मैं बस कल सुबह तक की मेहमान हूं मिस्टर अमित!” शिनाया शर्मा बोली—”कल सुबह पांच बजे के बाद मेरी सांसों की डोर टूट जाएगी। मेरी जिन्दगी का यह जहूरा खत्म हो जाएगा।”
“लेकिन तुमने ऐसा क्या अपराध किया है!” मैं कौतुहलतापूर्वक बोला—”जिसके कारण तुम्हें इतनी खौफनाक सजा दी जा रही है?”
शिनाया शर्मा ने बहुत संक्षेप में मुझे अपना जुर्म बताया।
मेरे रौंगटे खड़े हो गये।
चार खून!
उस अप्सरा जैसी लड़की ने चार खून किये थे।
“मिस्टर अमित- आज मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहती हूं।”
“कैसा सवाल?”
“आप हमेशा अपने उपन्यासों में एक बात लिखते हैं। आप लिखते हैं कि हर चालाक—से—चालाक अपराधी को उसके अपराध की सजा जरूर मिलती है। वो कहीं—न—कहीं जरूर फंसता है।”
“बिल्कुल लिखता हूं।” मैं बोला—”और सिर्फ लिखता ही नहीं हूँ बल्कि इस बात पर मेरा पूरा यकीन भी है। दृढ़ विश्वास भी है।”
वो हंसी।
उसकी हंसी में व्यंग्य का पुट था।
“मैं क्षमा चाहूंगी मिस्टर अमित!” शिनाया शर्मा बोली—”इस तरह हंसकर अनायास ही मुझसे आपका अपमान हो गया है। सच बात तो ये है- आपका यह यकीन सिर्फ मेरे ऊपर लागू हुआ है। आखिर इतनी चालाकी से खून करने के बावजूद भी मैं कानून के शिकंजे में फंस ही गयी। लेकिन बृन्दा के बारे में आप क्या कहेंगे? इस पूरे खेल की असली खिलाड़ी तो वह थी। सब कुछ उसके इशारों पर हुआ। लेकिन फिर भी कानून उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाया, क्योंकि कानून की इमारत सबूत नाम की जिस बुनियाद पर खड़ी होती है, वह सबूत उसके खिलाफ नहीं थे।”
मैं निरुत्तर हो गया।
शिनाया शर्मा काफी हद तक ठीक कह रही थी।
इसमें कोई शक नहीं- बृन्दा के खिलाफ कोई सबूत नहीं थे और इसीलिए वो बच गयी थी।
“मिस्टर अमित!” शिनाया शर्मा कुपित लहजे में बोली—”अगर हो सके- तो आज के बाद आप अपने उपन्यासों में यह लिखना छोड़ दें कि हर अपराधी को सजा मिलती है। बल्कि आज के बाद आप अपने उपन्यासों में यह लिखें कि इस दुनिया में कुछ अपराधी ऐसे भी होते हैं, जो अपनी बुद्धि के बल पर कानून की आंखों में धूल झोंकने में कामयाब रहते हैं। जिनका कानून कुछ नहीं बिगाड़ पाता।”
मैं कुछ न बोला।
जबकि शिनाया शर्मा ने फिर अपनी ‘आत्मकथा’ उठाकर मेरी तरफ बढ़ाई थी।
“मैंने अपनी यह कहानी लिखी है मिस्टर अमित!” वह बोली—”कागज के इन पन्नों पर मेरे सपने, मेरी उम्मीदें, मेरे गुनाह, मेरी जिन्दगी का एक—एक लम्हा कैद है। अगर हो सके, तो मेरी यह कहानी हिन्दुस्तान के तमाम पाठकों तक पहुंचा दें। मेरे पास बृन्दा के खिलाफ सबूत नहीं है- इसलिए मैं अपने इस केस को अदालत में तो नहीं लेकर जा सकती। लेकिन आपकी बदौलत कम—से—कम पाठकों की अदालत तक तो इस केस को लेकर जा ही सकती हूं- ताकि पाठक फैसला कर सकें कि बृन्दा में और मुझमें कौन बड़ा अपराधी है? ताकि उन्हें पता चल सके कि किस प्रकार इस केस के एक अपराधी को सजा मिली और दूसरे को कानून ने छुआ तक नहीं। अगर आप मेरा यह काम करेंगे मिस्टर अमित, तो आपका मेरे ऊपर बहुत बड़ा अहसान होगा।”
मैंने ‘आत्मकथा’ की वो पाण्डुलिपि अपने हाथों में पकड़ ली।
“मिस्टर अमित!” शिनाया शर्मा पुनः बोली—”आप मेरी इस कहानी को पाठकों की अदालत तक पहुंचाएंगे न?”
“मैं पूरी कोशिश करूंगा।”
“कोशिश नहीं।” शिनाया शर्मा बोली—”बल्कि आप वादा करें।”
“ठीक है- मैं वादा करता हूं।”
“थैंक्यू- थैंक्यू वैरी मच!” शिनाया शर्मा ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया और उस पर अपना प्रगाढ़ चुम्बन अंकित किया—”आप नहीं जानते- आपने यह बात कहकर मेरे दिल का कितना बड़ा बोझ हल्का कर दिया है। मेरे लिए यही बहुत होगा- मेरी कहानी लाखों पाठकों तक पहुंचेगी।”
मेरी निगाह अपलक उस लड़की के चेहरे पर टिकी थी।
कल सुबह उसे फांसी होने वाली थी। लेकिन उसके चेहरे पर किसी भी तरह की कुण्ठा या खौफ के निशान नहीं थे। ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा था कि उसे फांसी का खौफ हो।
“क्या तुम्हें डर नहीं लग रहा शिनाया शर्मा?” मैंने उसकी बिल्लौरी आंखों में झांकते हुए सवाल किया—”आखिर कुछ घंटों बाद तुम मरने जा रही हो?”
“नहीं- मुझे बिल्कुल भी डर नहीं लग रहा।” वह बोली—”बल्कि मुझे खुशी है कि मां की तरह मुझे खौफनाक मौत नहीं मिली। हां- एक बात का अफसोस जरूर है।”
“किस बात का?”
“कुछेक ऐसे निर्दोष आदमियों के खून से मेरे हाथ रंग गये, जिनके खून से मेरे हाथ नहीं रंगने चाहिए थे।”
“इट वाज गॉडस विल।” मैं गहरी सांस लेकर बोला— “मे गॉड गिव यू स्ट्रेंथ टु बीयर दिस टेरिबल ब्लो।”
मैंने धीरे—धीरे शिनाया शर्मा का कंधा थपथपाकर उसे सांत्वाना दी।
•••
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