Thriller विक्षिप्त हत्यारा
"मुझे भय है कि कहीं तुम जाकर सोहन लाल की हत्या न कर दो और तुम्हें रिवाल्वर देने की वजह से तुम्हारे साथ-साथ मैं भी न फंस जाऊं ।"
"ऐसा कुछ नहीं होगा" - सुनील झल्लाकर बोला - "अगर मुझे सोहन लाल की हत्या करनी होती तो मैं तुम्हें उसके बारे में बताता ही क्यों ?"
"यह तो तुम ठीक कह रहे हो ।"
"तो फिर निकालो रिवाल्वर ।"
रमाकांत ने सिगरेट ऐश ट्रे में डाला और कोने में रखी एक मेज के दराज का ताला खोलकर रिवाल्वर निकाल लाया ।
सुनील ने देखा वह 38 कैलिबर की छोटी नाल वाली रिवाल्वर थी । उसने रिवाल्वर का चैम्बर खोलकर देखा । चैम्बर पूरा भरा हुआ था । उस ने रिवाल्वर अपनी पतलून की बैल्ट में खोंस ली ऊपर से बटन बन्द कर लिये ।
वह उठ खड़ा हुआ ।
"एक बात तो बताते जाओ ।" - रमाकांत तनिक व्यग्र स्वर में बोला ।
"पूछो ।"
"इस मामले में कोई नगदऊ के दर्शन नहीं होंगे ?"
"नहीं होंगे ।"
"और जो खर्चा हो रहा है, उसका क्या होगा ? मैंने जौहरी को प्लेन से बम्बई भेजा है ।"
"तुम्हारे खर्चे की भरपाई हो जायेगी ।"
"कैसे ?"
"कैसे मत सोचो । तुम आम खाने से मतलब रखो, पेड़ गिनने से नहीं ।"
"फिर भी ।"
"फिर कुछ नहीं । मैं जाता हूं । अगर इस बार तुमने मुझे टोका तो मैं अगली मार्च तक तुम्हारे इस कमरे में से नहीं टलूंगा ।"
"जाओ बाबा जाओ ।" - रमाकांत बौखला कर बोला - "कहो तो मैं तुम्हें घर तक छोड़ आऊं ?"
"उसकी जरूरत नहीं । मेहरबानी । गुडनाइट ।"
"गुड मार्निंग ।" - रमाकांत मुंह बिगाड़कर बोला ।
"ओके । गुड मॉर्निंग ।" - सुनील बोला और कमरे से बाहर निकल गया ।
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