Thriller विक्षिप्त हत्यारा
08-02-2020, 01:09 PM,
#49
Thriller विक्षिप्त हत्यारा
सुनील वह द्वार ठेल कर बाहर पतले से गलियारे में निकल आया । उस गलियारे के एक सिरे पर सिनेमा हॉल की बाल्कनी का बाहर निकलने का दरवाजा था और दूसरे सिरे पर नीचे जाती हुई सीढियां थीं, जो अक्सर सिनेमा देखकर बाल्कनी से निकलने वाले लोगों द्वारा ही प्रयोग में लाई जाती थी । गलियारे के दूसरी ओर क्लाक रूम था ।
सुनील क्लाक रूम का द्वार ठेलकर भीतर घुस गया । क्लाक रूम की शीशे की स्क्रीन में से उसे बाहर का खाली गलियारा दिखाई दे रहा था ।
सुनील प्रतीक्षा करने लगा ।
मोटा आदमी गलियारे में प्रकट नहीं हुआ ।
सुनील क्लाक रूम से बाहर निकल आया और लम्बे डग भरता हुआ सीढियों की ओर बढा । वह तेजी से सीढियां उतरने लगा । सीढियां नीचे लिबर्टी सिनेमा के बुकिंग ऑफिस की बगल में समाप्त होती थीं ।
सुनील सिनेमा से बाहर निकला और सड़क पर आ गया ।
उसने तेजी से सड़क पार की और उस ओर बढा जिधर उसने अपनी मोटरसाइकल खड़ी की थी ।
उसने पार्किंग में से मोटरसाइकल निकाली और उसे मुख्य सड़क पर ले आया ।
मोटे आदमी का कहीं नाम निशान भी नहीं था ।
***
बैंक स्ट्रीट की तीन नम्बर इमारत के सामने सुनील ने अपनी मोटरसाइकल रोक दी । उसने मोटरसाइकल को इमारत की सीढियों के पास खड़ा करके ताला लगाया, सीढियों के रास्ते अपने फ्लैट के सामने पहुंचा और फ्लैट के मुख्य द्वार का ताला खोलकर भीतर प्रविष्ट हो गया । उसने दरवाजे को भीतर से बन्द करने के लिए हाथ बढाया तो उसी क्षण किसी ने भीतर से बन्द करने के लिए हाथ बढाया तो उसी क्षण किसी ने बाहर की ओर से दरवाजे को भरपूर धक्का दिया । दरवाजे का पल्ला भड़ाक से सुनील के चेहरे पर टकराया । फिर आनन-फानन तीन आदमी भीतर घुस गये । उनमें सबसे आगे वही मोटा आदमी था जो मैड हाउस से उसके पीछे लगा हुआ था और जिसे सुनील अपने ख्याल में 'कोलाबा' रेस्टोरेन्ट में डॉज देकर चला आया था ।
मोटे के हाथ में रिवाल्वर थी उसने रिवाल्वर की नाल को सुनील की छाती पर टिकाया और उसे पीछे की ओर धकेला । सुनील लड़खड़ाता हुआ पीछे हटा और ड्राईंग रूम में आ गया ।
मोटे के पीछे खड़े दोनों आदमी पेशेवर बदमाश मालूम हो रहे थे । उनके चेहरों से क्रूरता टपक रही थी ।
"तुम्हारा नाम सुनील है ।" - मोटा यूं बोला जैसे उससे पूछ न रहा हो बल्कि उसे बता रहा हो ।
"हां ।" - सुनील बोला - "भले आदमी लोगों के घरों में यूं प्रविष्ट नहीं होते जैसे तुम हुए हो ।"
"चिन्ता मत करो ।" - मोटा बोला - "हम में से कोई भला आदमी नहीं है ।"
"क्या चाहते हो ?"
"तुम्हारी टांग बहुत लम्बी होती जा रही है । तुम खामखाह उसे ऐसे मामलों में अड़ाते फिरते हो जिनसे तुम्हारा कोई मतलब नहीं होना चाहिये । आज मैं तुम्हारी टांग तोड़ने आया हूं ।"
"तुम्हारे कौन-से मामले में टांग अड़ाई है मैंने ?"
"ऐसे सवाल मत करो जिनके जवाब तुम्हें मालूम हैं । आज 'मैड हाउस' में तुमने जो हरकत की है, वह तुम्हें नहीं करनी चाहिये थी । इस बार तो मैं सिर्फ तुम्हारी टांग ही तोडूंगा लेकिन अगर तुमने दुबारा कोई वैसी हरकत की तो तुम्हारी लाश कारपोरेशन के किसी भंगी को किसी गन्दे नाले में पड़ी मिलेगी ।"
"लेकिन मुझे पता तो लगे मैंने क्या किया है ? मैंने कौन-से तुम्हारे खेत के गन्ने उखाड़ लिये हैं ?"
मोटे ने उत्तर न दिया । वह एक ओर हट गया और अपने पीछे खड़े आदमियों से बोला - "यह आदमी बोलता बहुत है । इसका थोबड़ा बन्द करो ।"
पीछे खड़े दोनों आदमी दृढ कदमों से सुनील की ओर बढे ।
सुनील ने एकाएक मोटे आदमी पर छलांग लगा दी लेकिन मोटा सावधान था । सुनील का हाथ मोटे के रिवाल्वर वाले हाथ पर पड़ने के स्थान पर हवा में ही लहराकर रह गया । मोटा एक अनुभवी मुक्केबाज की तरह एक कदम पीछे हटा और फिर उसका रिवाल्वर वाला हाथ हवा में घूमा ।
रिवाल्वर की नाल भड़ाक से सुनील की कनपटी से टकराई । सुनील को यूं लगा जैसे उसकी कनपटी से तोप का गोला आकर टकराया हो । उसके नेत्रों के सामने लाल-पीले सितारे नाच गये । वह पीछे की ओर लड़खड़ाया और सोफे पर ढेर हो गया ।
एक आदमी ने उसे कॉलर से पकड़ लिया और एक झटके के साथ उसे सोफे से खड़ा कर दिया । फिर उसके दूसरे हाथ का भरपूर घूंसा सुनील के पेट में पड़ा । उस दौरान उसने सुनील के गिरहबान से अपनी पकड़ ढीली नहीं होने दी थी । सुनील उसकी पकड़ में ही दोहरा हो गया । उस आदमी का दूसरा घूंसा सुनील की गरदन के पृष्ठ भाग से टकराया । साथ ही उसने सुनील का गिरहबान छोड़ दिया । सुनील मुंह के बल फर्श पर जाकर गिरा । दूसरे आदमी का पांव हवा में घूमा और उसकी भरपूर ठोकर सुनील की पसलियों में पड़ी । सुनील फुटबाल की तरह दूसरी ओर पलट गया । पीड़े के अधिक्य से उसके नेत्रों में आंसू आ गये ।
कुछ क्षण के लिये किसी ने उस पर नया प्रहार करने का उपक्रम न किया ।
"सुनील" - मोटे का प्यार भरा स्वर उसके कानों में पड़ा - "उठकर अपने पैरों पर खड़े हो जाओ ।"
सुनील ने जमीन से उठने का उपक्रम न किया ।
मोटा आगे बढा और सुनील के सिर पर आ खड़ा हुआ । उसने अपना दायां पांव ऊपर उठाया और फिर उसे यूं सुनील की खोपड़ी पर पटका जैसी ओखली में मसूल मार रहा हो लेकिन सुनील तत्काल करवट बदल गया । मोटे का पांव भड़ाक से फर्श पर टकराया और वह लड़खड़ा गया । सुनील ने लेटे-लेटे ही हाथ बढाकर उसकी टांग खींच ली । मोटा धड़ाम से फर्श पर आ गिरा । रिवाल्वर उसके हाथ से निकल गई । सुनील बिजली की तेजी से रिवाल्वर की ओर झपटा लेकिन मोटे के दोनों साथियों ने उसे रास्ते में ही दबोच लिया ।
"सुनील साहब !" - एकाएक कहीं से कोई पुरुष स्वर सुनाई दिया - "क्या उठा-पटक मचा रखी है ! आधी रात को तो आराम करने दो ।"
मोटा तब तक सम्भल चुका था । उसने फर्श से रिवाल्वर उठा ली थी ।
"जल्दी करो ।" - वह अपने साथियों से बोला - "यह शायद नीचे के फ्लैट वाला बोल रहा था । मुझे डर है कहीं वह ऊपर न आ जाये ।"
मोटे का सिग्नल मिलने की देर थी कि एक आदमी ने अपने एक हाथ से उसका मुंह दबोच लिया और दूसरे हाथ से उसकी बांह पकड़ ली । दूसरे आदमी ने अपने बायें हाथ से उसकी दूसरी बांह पकड़ी और फिर खाली हाथ से सुनील के शरीर के विभिन्न भागों पर ताबड़-तोड़ घूंसे जमाने लगा ।
सुनील को किस्तों में अपनी जान निकलती महसूस होने लगी ।
"काफी है ।" - मोटे की आवाज उसे यूं सुनाई दी जैसे किसी गहरे कुएं में निकल रही हो - "तलाशी लो ।"
किसी ने सुनील के शरीर से उसका कोट नोच लिया । सुनील की चेतना लुप्त नहीं हुई थी लेकिन वह अपनी उंगली भी हिला पाने की स्थिति में नहीं रहा था । उसके दिमाग में सायं-सायं हो रही थी और उसे ऐसा लग रहा था, जैसे उसका सिर अभी हजार टुकड़ों में विभक्त होकर कमरे में बिखर जायेगा । अपने शरीर का कोई अंग उसे अपने शरीर से सम्बन्धित नहीं मालूम हो रहा था । बदमाशों के रूखे और कठोर हाथ उसे अपने शरीर पर पड़ते मालूम हो रहे थे लेकिन वह किसी भी बात का रंच मात्र भी विरोध करने की स्थिति में नहीं था ।
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Thriller विक्षिप्त हत्यारा - by hotaks - 08-02-2020, 01:09 PM

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