RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान
‘मनुष्य समय के ढाँचे में ढलता रहता है, जहाँ उसके हृदय में आग है वहाँ दर्द भी है। आज वह देवता का रूप है तो कल शैतान भी हो सकता है। परंतु तुम्हारे देवता जो कल थे, वही आज भी पत्थर के पत्थर।’
‘तो फिर इंसानों से पत्थर ही भले।’
राजन से जब कोई उत्तर न बन पड़ा तो मौन हो गया। बातों-ही-बातों में दोनों यूँ खो गए कि वे जान भी न पाए कि कब अंधकार छा गया। दोनों चुपचाप जा रहे थे। शीतल पवन पार्वती के बालों से खेल रही थी, वह बार-बार चेहरे पर आ-आकर बिखर जाते थे। वह हर बार अपनी कोमल उंगलियों से उन्हें हटा देती थी। परंतु एक हवा का झोंका था, जो उसे बराबर तंग किए जा रहा था और अंत में पार्वती को ही हार माननी पड़ी। लट उसके चेहरे पर आकर जम गई। राजन ने मुस्कुराते हुए अपने हाथों से हटा दिया और इस तरह पीछे की ओर बिछा दिया कि वायु के लाख यतन करने पर भी वह माथे पर फिर न आई।
‘तुम्हारे हाथों में जादू है।’ पार्वती ने उसकी ओर देखते हुए कहा।
‘हाथों में नहीं, दिल में।’
‘कैसा जादू?’
‘प्रेम का, पार्वती क्या तुम्हारे दिल में भी प्रेम बसता है?’
‘क्यों नहीं? और जिस दिल में प्रेम न हो वह दिल ही क्या?’
‘तो तुम्हें भी किसी-न-किसी से अवश्य प्रेम होगा।’
‘है तो-बाबा से, भगवान से और... और।’
‘और मुझसे?’ राजन पार्वती के समीप होकर बोला।
‘तुमसे।’ कहकर वह काँप गई।
‘हाँ पार्वती! अब मुझसे भेद कैसा। मैं तुम्हारे मुख से यही सुनने को बेचैन था।’ कहते-कहते राजन ने उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया।
पार्वती काँप रही थी-वह लड़खड़ाती बोली-
‘प्रेम? कैसा प्रेम? राजन यह तुम?’
‘अपने मन की कह रहा हूँ-मेरी आँखों में देखो, इनमें तुम्हें जीवन की एक झलक दिखाई देगी।’
‘राजन मुझे कुछ दिखाई नहीं देता-फिर तुम कहना क्या चाहते हो?’
‘तुम्हारे दिल की कहानी, जो तुम्हारी पुतलियों में लिख गई है, वह मुझे सब कुछ बता रही है।’
पार्वती मौन होकर उसे देखने लगी-राजन उस पर झुकते हुए बोला-
‘देखो-इन दो प्यालों में प्रेम रस छलक रहा है। तुम्हारे हृदय की यह धड़कन बार-बार मेरे कानों में कह रही है कि तुम राजन की हो।’
पार्वती यह सुनते ही चिल्लाई-
‘राजन।’ और वह गाँव की ओर भागने लगी-राजन ने उसे रोकना चाहा, परंतु वह न रुकी-उसने पुकारा भी, पर कोई उत्तर न मिला।
राजन किनारे के एक पत्थर पर बैठ गया और अपने कहे पर विचारने लगा-कहीं पार्वती यह सब अपने बाबा से तो नहीं कह देगी। यदि कह दिया तो वह उन्हें मुँह कैसे दिखाएगा? इसी विचार में डूबा-डूबा आधी रात तक वह वहीं बैठा रहा।
जब वह घर पहुँचा तो हर ओर सन्नाटा छाया हुआ था-सब सो चुके थे। वह धीरे-धीरे अपने कमरे में पहुँचा और चुपचाप अपने बिस्तर पर लेट गया, परंतु नींद न आई।
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