RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान
‘क्या हुआ?’ महात्मा गंभीर स्वर में बोले।
‘चट्टान से पाँव फिसल गया और गिर पड़ी।’
‘आज की तपस्या शायद किसी का जीवन बचाने को ही है।’
‘जी... इसी आशा से तो आपके पास आया हूँ।’
महात्मा अपने आसन से उठे। राजन ने उनका संकेत पाते ही नीचे बिछी चटाई पर पार्वती को लिटा दिया। महात्मा ने एक वस्त्र से बहते हुए रक्त को साफ किया... थैली से कोई दवाई निकाल उसकी चोट पर लगा दी, रक्त बहना तुरंत बंद हो गया। उसके पश्चात् उन्होंने एक जड़ी बूटी निकाली और पार्वती को सुँघाई, फिर वापस अपने आसन पर बैठते हुए बोले-‘अभी थोड़ी देर में होश आ जाएगा।’
‘मैं आपका अनुग्रह जीवन भर न भूलूँगा। यदि आप सहायता न करते तो मैं ठाकुर बाबा को जीवन भर मुँह नहीं दिखा पाता...।’
‘कौन हैं ठाकुर बाबा?’
‘पार्वती के दादा-यह उनकी अमानत है।’
‘मालूम होता है तुम दोनों का आपस में प्रेम है।’
‘प्रेम! गुरुदेव यह तो मेरे प्राण हैं।’
‘परन्तु छाया के पीछे दौड़ने से क्या लाभ?’
‘मैं समझा नहीं गुरुदेव!’
‘तुम दोनों का संबंध असंभव है।’
‘यह आप क्या कह रहे हैं?’
‘मैं नहीं... बल्कि तुम्हारे मस्तिष्क की रेखाएँ यह बता रही हैं।’
‘गुरुदेव!’
‘तुम्हारे प्रेम का परिणाम।’
‘क्या गुरुदेव?’
‘निराशा, जलन और तड़प।’
‘तो क्या मेरे प्रेम का यही अंजाम होगा।’
‘तुम्हारी आँखों की पुतलियाँ यही बता रही हैं कि यह जलन और तड़प, तुम्हारे प्रेम की निशानी छोड़ जाएगी, सारा संसार उसमें जलेगा-बस यही होगा तुम्हारे प्रेम का परिणाम।’
‘परंतु मैं अपने प्रेम को भाग्य की इन रेखाओं से ऊपर मानता हूँ।’
इतने में अपने प्रेम की ‘उफ’ सुनाई दी और दोनों ने उसकी ओर घूमकर देखा। वह चैतन्य हो चुकी थी। दोनों उसके पास गए, राजन ने महात्मा को प्रणाम किया और तुरंत ही पार्वती को सहारा देते हुए गुफा से बाहर ले आया। सब लोग दोनों को देख चकित रह गए।
राजन आश्रम से निकलते ही लिफ्ट की ओर बढ़ा, थोड़ी दूर एक बालक खड़ा उनकी ओर हाथ बढ़ा रहा था। उसके हाथ में कोई वस्तु थी, जो बादलों की धुंध के कारण दिखाई नहीं दे रही थी। दोनों उसकी ओर बढ़े।
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