MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 01:02 PM,
#48
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मेरा अनुमान था कि दरवाजा कीर्ति या कमाल मे से कोई एक खोलेगा. मेरा अनुमान दरवाजा खुलते ही ग़लत हो गया. दरवाजा मौसी ने खोला और मुझे देखते ही मुस्कुराते हुए बोली.

मौसी बोली "अरे तू इतनी जल्दी आ गया. मुझे नही मालूम था कि, तू अपनी मौसी की बात का इतना ख़याल रखेगा."

मौसी के मूह से अपने लिए प्यार भरी बात सुनकर मैं भी पिघल गया और बोला.

मैं बोला "मुझे जैसे ही छोटी माँ ने कहा कि, आप मुझसे मिलना चाहती है, तो मैं अपने आपको रोक नही पाया और फ़ौरन चला आया. मैं छोटी माँ से पूछना ही भूल गया कि, आपने मुझे कब बुलाया है."

मौसी बोली "अब तुझे अपने घर मे आने के लिए भी, समय देख कर आना पड़ेगा. ये तेरा ही घर है. तेरी जब मर्ज़ी तू आ जा सकता है."

मैं बोला "हाँ वो तो है लेकिन आपने मुंबई जाने से पहले मुझे क्यों बुलाया था."

मौसी बोली "आते ही काम की बात शुरू कर दी. तू घर से बिना कुछ खाए पिए अपनी मौसी की बात सुनने यहाँ आ गया. मुझे सुनीता ने सब बता दिया है. अब पहले तुझे कुछ खिला दूं."

मैं बोला "क्या छोटी माँ ने आपको फोन किया था."

मौसी बोली "नही कीर्ति ने फोन लगा कर पूछा था कि, तुम कब आ रहे हो. सुनीता ने बताया कि तू तो निकल चुका है."

मैं बोला"ये कीर्ति और कमल कहाँ है. दिखाई नही दे रहे."

मौसी बोली "कीर्ति तो सुनीता से बात होने के बाद ही कमल को साथ लेकर अपनी किसी सहेली के यहाँ चली गयी. मैने उन लोगों से कहा भी था कि तू आ रहा है तो कम से कम तेरे आने तक तो रुक जाए. लेकिन कीर्ति कहने लगी कि उसे अपनी सहेली से ज़रूरी मिलना है. वो तुझसे बाद मे मिल लेगी. अब तू फालतू की बात छोड़. मैं तेरे लिए खाना लगाती हूँ.

मगर कीर्ति के यूँ चले जाने से मेरी भूक मर चुकी थी. मैं मौसी को टालने के लिए बोला.

मैं बोला "मौसी मुझे बिल्कुल भी भूक नही है."

मौसी बोली "ज़्यादा झूठ मत बोल. तुझे अपनी मौसी के हाथ का खाना अच्छा नही लगता तो साफ बोल दे."

मैं समझ गया कि मौसी को ये भी पता चल गया है की मैं बिना खाना खाए घर से निकला हूँ. फिर भी मैं बात घूमाते हुए बोला.

मैं बोला "नही मौसी ऐसी कोई बात नही है. मैं तो इसलिए बोल रहा था कि छोटी माँ भी खाने के लिए मेरा इंतेजार करेगी."

मौसी बोली "तेरी छोटी माँ तेरा खाने पर इंतजार नही करेगी. मैने बोल दिया है कि मैं तुझे खाना खिलाकर ही भेजुगी. तू बैठ मैं खाना लेकर आती हूँ."

अब मैं समझ चुका था कि मौसी को छोटी माँ ने ही मेरे खाना ना खाने की बात कही है. थोड़ी देर बाद मौसी खाना ले आई तो मैने मौसी से पूछा.

मैं बोला "मौसी ये कमल और कीर्ति कब तक आएँगे."

मौसी बोली "कुछ सही से बता कर नही गये. बस कीर्ति ने इतना ही बताया था कि उसे सहेली के यहाँ देर हो जाएगी. तुम आओ तो मैं तुम्हे बिना खाना खाए ना जाने दूं. अब तू बात करना बंद कर और चुप चाप खाना खा."

मुझे अब पूरी बात समझ मे आ चुकी थी. कीर्ति को मालूम था कि मैं उस से ही मिलने आ रहा हूँ और वो मुझसे मिलना नही चाहती थी, इसलिए मेरे आने के पहले ही घर से चली गयी. उसने इक पल मे ही मेरी सारी उम्मिदो पर पानी फेर दिया था. उस से दिमाग़ मे तो कोई जीत ही नही सकता था. मगर आज उसके दिमाग़ ने सीधे मेरे दिल पर चोट की थी. जिसे मैं सह नही पा रहा था और तिलमिला कर रह गया था.

अब मेरे मौसी के यहाँ रुकने का कोई मतलब ही नही था. मैं जल्द से जल्द यहाँ से जाना चाहता था. मैने जल्दी से खाना खाया और फिर मौसी से उनका काम सुनने लगा. उनका काम सुनने के बाद, मैने मौसी से मेहुल के घर जाने का बहाना किया और उधर से निकल आया.

मैं नितिका के सिवा कीर्ति की किसी सहेली को नही जानता था. मेरे दिमाग़ मे आया कि यदि कीर्ति नितिका के घर होगी तो, उसकी स्कूटी बाहर ही नज़र आ जाएगी. ऐसे मे मैं मेहुल के घर चला जाउन्गा और फिर किसी ना किसी तरीके से कीर्ति से मिलने का बहाना भी निकल ही लुगा.

ये सोच कर मैं नितिका के घर पहुच गया. मगर कीर्ति की तरह मेरी किस्मत यहा भी मुझसे रूठी हुई थी. नितिका के घर के बाहर मुझे कीर्ति की स्कूटी नज़र नही आई. अब मेरे लिए मेहुल के घर जाने का भी कोई मतलब नही था. मैं मजबूर होकर वापस घर के लिए लौट पड़ा.

मैं सारे रास्ते भर मन ही मन कीर्ति के उपर गुस्सा करता रहा कि उसने मेरे साथ ये अच्छा नही किया. कम से कम जाने से पहले इक बार तो मुझसे मिल सकती थी. मेरा कसूर ही क्या था. मैने जो भी किया था उसमे क्या ग़लत था. जो सच था वही तो मैने कहा था. मेरे मन मे ऐसे ही हज़ारों सवाल उठ रहे थे और हर सवाल मे मैं अपने आपको सही और कीर्ति को ग़लत साबित कर रहा था.

यही सब सोचते सोचते मैं घर पहुच गया. घर आकर मैने छोटी माँ से कहा कि मैं मौसी के यहाँ से खाना खा कर आया हूँ. अब रात को मेरे लिए खाना मत बनाना. मैं खाना नही खाउन्गा. इस सब की वजह मैने उन्हे कल सफ़र के लिए निकलना बताया और कहा कि आज मैं आराम करना चाहता हूँ. अमि निमी से भी कह देना कि वो आकर मुझे परेशान ना करे. फिर मैं सीधे अपने कमरे मे आ गया.

कमरे मे आकर मैने कीर्ति के मोबाइल मे फोन लगाया और वो बंद ही मिला. मैं निराश होकर सोने की कोसिस करने लगा पर मुझे नींद ही नही आ रही थी. हर पल मेरे उपर भारी गुजर रहा था. मैने टीवी देखने की कोसिस की लेकिन उसमे भी मन नही लगा. जब हर तरह से मन बहलाने से हार गया तो मैने मोबाइल लगाया और कीर्ति को कॉल लगाया. ऐसा करने से मुझे गुस्सा भी आ रहा था पर कुछ राहत भी महसूस हो रही थी इसलिए मैं फिर बिना रुके कीर्ति को कॉल लगाता रहा.

ऐसा करने से मुझे कुछ राहत थी. शायद ऐसा करने से मैं अपने आपको उसके करीब महसूस कर रहा था. मैं 7 बजे तक यू ही कॉल लगता रहा फिर फ्रेश होने चला गया. मैं फ्रेश होकर अभी निकला ही था कि तभी मेरे दरवाजे पर दस्तक हुई. मैं समझ गया था कि ये निमी के सिवा कोई नही हो सकता. मैने ना तो दरवाजा खोला और ना ही कोई जबाब दिया. जब दो तीन बार फिर दस्तक हुई तो मैने कहा.

मैं बोला "देख निमी अभी मुझे परेशान मत कर. तुझे जो भी कहना है कल कह लेना. मुझे कल सफ़र को निकलना है. अभी मुझे आराम करने दे."

फिर इसके बाद कोई दस्तक नही हुई. मैं समझ गया कि वो नाराज़ होकर चली गयी है. इस बात से मेरा दिल फिर दुख कर रह गया और मैं मन ही मन कीर्ति को बकने लगा. आख़िर ये सब उसके ही कारण तो हो रहा था. अब मुझे बहुत ज़्यादा उदासी ने घेर लिया था. इसी उदासी मे लेटे लेटे मुझे कब नींद आ गयी पता ही नही चला.

मेरी नींद फिर रत को 11:15 बजे खुली. घड़ी देखते ही मैने हड़बड़ा कर अपना मोबाइल उठाया और जल्दी से कीर्ति को कॉल लगाया. कीर्ति का मोबाइल चालू था और रिंग जा रही थी. मैं जानता था कि कीर्ति कॉल नही उठाएगी. फिर भी मेरे मन मे इक उम्मीद थी कि शायद अब उठ जाए. मैं मन ही मन कह रहा था प्लीज़ कीर्ति सिर्फ़ एक बार कॉल उठा लो और शायद इस बार उसे मेरे मन की पुकार सुनाई दे गयी. कीर्ति ने कॉल उठा लिया. ये देखते ही मेरी खुशी का ठिकाना ही नही रहा. मैं तुरंत बोला.

मैं बोला "क्या हुआ तुझे.? कितने दिन से फोन लगा रहा हूँ. उठाती क्यों नही.?"

मगर वो कुछ नही बोली और मैने फिर कहा.

मैं बोला "देख मुझे मालूम है कि तू मुझसे नाराज़ है पर जाने से पहले कम से कम इक बार तो बात कर ले."

लेकिन वो अभी भी चुप ही थी. मैने फिर कहा.

मैं बोला "मैं तुझसे मिलने घर भी गया था, पर तू जानबूझ कर किसी सहेली के घर चली गयी थी. मैने तेरे साथ इतना बुरा तो नही किया. जितना बुरा तू मेरे साथ कर रही है."

इस बार कीर्ति अपने आपको बोलने से ना रोक पाई लेकिन उसकी आवाज़ से ऐसा लग रहा था कि जैसे वो बहुत रोई हो और बहुत ही उदास हो. उसने कहा.

कीर्ति बोली "मैं तेरे साथ क्या बुरा कर रही हूँ. तू ही तो चाहता है कि मैं तुझसे प्यार करने की बात अपने दिल से निकाल दूं. तो मैं तेरी बात मान कर वही करने की कोसिस कर रही हूँ. बुरा तो मैं अपने साथ कर रही हूँ. मैं भला तेरे साथ क्या बुरा करूगी."

मैं बोला "देख तू ऐसे बात मत कर. मुझे अच्छा नही लग रहा है. तू खुश रहा कर. ऐसे बिल्कुल भी अच्छी नही लगती."

कीर्ति बोली "मैं तो तुझे वैसे भी अच्छी नही लगती थी. मेरी चिंता मत कर. मैं भी धीरे धीरे खुश रहना सीख लुगी. तू तो खुश है ना."

मैं बोला "तू ऐसा क्यों कर रही है. तुझे ऐसा कर के क्या हासिल हो जाएगा."

कीर्ति बोली "अब मैं कुछ हासिल करना नही चाहती. मैं पागल थी ना जाने क्या क्या सोच बैठी थी मगर अब मैं सब समझ चुकी हूँ. तेरा मेरा कोई मेल नही है. तू मुझे मेरे हाल पर छोड़ दे."

मैं बोला "तू ऐसी बात मत कर. मैं तुझे उदास नही देख सकता."

कीर्ति बोली "मैं भी नही चाहती कि तू मुझे उदास देखे, इसलिए तो सुबह अपना मनहूस चेहरा लेकर तेरे आने के पहले ही घर से चली गयी थी."

ऐसा बोलते बोलते कीर्ति अपने आँसू रोक नही पाई और रो पड़ी. उसका रोना और बातें सुनकर मेरी आँखो मे भी आँसू आ गये और फिर मैं अपने दिल की बातों को कहने से अपने आपको रोक नही पाया.

मैं बोला "तू क्यों रोती है. मनहूस तू नही, मनहूस तो मैं हू. जो पैदा होने के बाद अपनी माँ को खा गया. जिस छोटी माँ ने मुझे अपने बेटे की तरह प्यार किया उसके सुखी संसार की बर्बादी का कारण मैं ही हूँ और तो और जिस आंटी ने मुझे बेटे से बढ़कर प्यार किया आज उसके उपर भी मेरी मनहूसियत का साया पड़ गया और उसके सुहाग पर बात आन पड़ी. रोना तुझे नही मुझे चाहिए कि तू मुझे इतना प्यार करती है और मैं चाहते हुए भी तेरे प्यार को नही अपना पा रहा हूँ. तुझे तो खुश होना चाहिए कि मेरे जैसे मनहूस से तेरा पीछा छूट रहा है."

कीर्ति मुझे रोते देख अपना रोना भूल चुकी थी और मुझे चुप होने को बोल रही थी मगर अब उसकी बातों से मेरे सब्र का प्याला छलक पड़ा था. जो मेरी आँखों से आँसू बनकर बह रहा था और मैं रोते हुए कहे जा रहा था.

मैं बोला "तू क्या समझती है. मुझे तुझसे दूर रहने का कोई दुख नही, कोई दर्द नही है. तू क्या समझेगी मेरे दर्द को. तू कहती है तू मुझसे प्यार करती है, तो क्या मैं तुझसे प्यार नही करता. तुझे तो सिर्फ़ अपना दर्द दिखता है. तू कभी नही जान सकती कि इन 3 दिनो मे मैं कितना तडपा हूँ, कितना रोया हूँ. एक एक पल मेरे लिए मौत से भी बढ़कर गुजरा है. तू तो इन 3 दिन मुझसे बात किए बिना रह गयी पर मेरा क्या था. मैं तो हर पल तुझसे बात करने की कोसिस मे ही लगा रहा. क्या नही किया मैने तुझसे मिलने के लिए, तुझसे बात करने के लिए. तेरे घर गया, तेरे स्कूल के चक्कर लगाए. रात दिन तुझे कॉल लगाता रहा. तू सिर्फ़ उन कॉल को ही देख सकती है ना जो मैने तेरे चालू मोबाइल पर लगाए. वो कॉल तुझे कैसे दिखेगे जो मैं तेरे बंद मोबाइल पर लगाता रहा इस उम्मीद के साथ कि कही तूने मोबाइल चालू तो नही कर दिया."

ये कहने के साथ ही मेरी आँखों से आँसू बहते गये और मेरा बोलना बंद हो गया. थोड़ी देर कोई कुछ नही बोला और फिर अचानक मेरे दरवाजे पर दस्तक हुई. मैने अपने आँसू पोंछे. मुझे लगा मेरे रोने की आवाज़ से अमि निमी मे से कोई आ गया होगा. लेकिन दरवाजा खोलते ही मुझे अपनी आँखों पर विस्वास नही हुआ.

मेरे सामने कीर्ति खड़ी थी. उसकी आँखों मे भी आँसू थे. वो आकर मुझसे लिपट गयी और मैने भी उसे अपने गले से लगा लिया. हम दोनो एक दूसरे के गले से लगे रोए जा रहे थे. फिर कुछ देर बाद उसने मेरे आँसू पोंछे और दरवाजा बंद करके बेड पर बैठ गयी. मैं भी उसके पास जाकर बैठ गया और उसे फिर अपने सीने से लगा लिया.

मैं बोला "तूने मुझे इतना क्यों रुलाया."

कीर्ति बोली "तूने भी तो मुझे कितना रुलाया है."

मैं बोला "तो तू मुझसे बदला ले रही थी."

कीर्ति बोली "नही मैं सिर्फ़ ये देख रही थी कि मैं तुझे जितना प्यार करती हूँ, तू भी मुझे उतना प्यार करता है कि नही."

मैं बोला "तो तूने क्या देखा."

कीर्ति बोली "मैं जितना सोचती थी तू मुझे उस से भी ज़्यादा प्यार करता है. मैं तो सोच भी नही सकती थी कि तू मुझे इतना प्यार कर सकता है."

अब मेरे मन का सारा गुबार निकल चुका था. मैने उसे अपने सीने से अलग किया और फिर बेड पर टिक कर बैठ गया. कीर्ति भी मेरे बाजू से कंधे पर सर टिका कर बैठ गयी. मैं उसके बालों पर हाथ फेरने लगा और उस से पूछा.

मैं बोला "तू यहाँ कब और कैसे आ गयी और यदि आई थी तो फिर मुझसे पहले क्यों नही मिली."

कीर्ति बोली "मैं तो शाम की आई हूँ और आते ही सबसे पहले तेरे पास आई थी पर तूने दरवाजा ही नही खोला."

मैं बोला "वो तू थी.? मैं तो समझा कि निमी है और तेरे गुस्से मे मैने दरवाजा नही खोला पर तुझे आवाज़ तो देनी ही चाहिए थी."

कीर्ति बोली "मैने सोचा तू गुस्से मे है इसलिए बिना कुछ बोले वापस चली गयी थी कि जब रात को बात होगी तो तुझसे मिल लुगी."

मैं बोला "जब तू मुझसे मिलने ही आई थी तो फिर फोन पर इतना नाटक क्यों कर रही थी."

कीर्ति बोली "वो सब नाटक नही था. मेरे मन की भडास थी. तूने मुझे बहुत रुलाया है."

मैं बोला "तूने नही रुलाया क्या.?"

कीर्ति बोली "पर शुरू तो तूने किया था."

मैं बोला "चल मेरी ग़लती है पर तू तो मुझे कुछ कहने का मौका ही नही दे रही थी. एक तो अपना मोबाइल बंद कर के रखी थी और उपर से जब चालू करती थी तो मेरा कॉल भी नही उठा रही थी."

कीर्ति बोली "अब छोड़ ना इन बातों को. कोई और बात कर."

मैं बोला "नही मुझे जानना है. तूने ऐसा क्यों किया."

कीरी बोली "मेरा किसी से बात करने का मन नही कर रहा था, इसलिए मोबाइल बंद करके रखी थी."

मैं बोला "तो फिर रात को क्यों चालू कर देती थी."

कीर्ति बोली "वो मेरा तुझसे बात करने का टाइम रहता था इसलिए अपने आपको नही रोक पाती थी और मोबाइल चालू कर देती थी."

मैं बोला "चल इस से एक बात तो पता चल ही गयी कि, तू मुझसे बात किए बिना भी रह सकती है."

कीर्ति बोली "बड़ा आया पता करने वाला. तुझे क्या पता कि मैं कितना रोई हूँ."

मैं बोला "चल झुटि. यदि ऐसा ही था तो फिर मेरा कॉल क्यों नही उठा रही थी."

कीर्ति बोली "वो तो मैं गुस्से मे थी इसलिए नही उठा रही थी. लेकिन मुझसे तेरे से बात किए बिना नही रहा जाता था.

मैं बस फोन को देख देख कर रोती रहती थी."

मैं बोला "तू मुझसे इतना ज़्यादा प्यार करती है."

कीर्ति बोली "इस से भी ज़्यादा. ये देख."

ये कह कर उसने अपना हाथ दिखाया. उसे देख कर मेरी आँखों मे खुशी और दर्द दोनो के आँसू एक साथ
छलक पड़े. उसने अपनी हथेली पर काट कर मेरा नाम लिखा था. मैने उसकी हथेली को चूमा और कहा.

मैं बोला "ये सब तूने क्यों किया. कितना दर्द हुआ होगा. ये पागलपन करने की क्या ज़रूरत थी."

मेरी इस बात के जबाब मे कीर्ति ने बड़ा ही अजीब सा मूह बनाया और भोलेपन के साथ कहा.

कीर्ति बोली "मुझसे तेरे बिना नही रहा जा रहा था और तू रात भर फोन लगाए जा रहा था. मुझे अपने उपर गुस्सा आ रहा था और तेरे उपर प्यार भी आ रहा था. जब मुझसे नही सहा गया तो मैने अपने हाथ मे ये कर लिया."

मैं बोला "ये सब करते समय तुझे ये भी नही लगा कि मुझे ये सब देख कर कितना दर्द होगा."

मैने बड़े प्यार से उसके हाथों को चूमा और उसे अपने सीने से चिप्टा लिया.

कीर्ति बोली "उस समय मेरे उपर पागलपन सवार था. मुझे समझ मे ही नही आ रहा था कि मैं क्या करूँ और क्या ना करूँ. लेकिन इस सब मे तेरी ही ग़लती है."

मैं बोला "क्यों.? मेरी ग़लती क्यों है.

कीर्ति बोली "यदि तू उस दिन मेरी बात मान लेता तो मुझे ये सब करने की नौबत ही नही आती."

मैं बोला "कैसे मान लेता. तब मुझे अहसास ही नही था कि मैं तुझे कितना प्यार करता हू. तेरी 2 दिन की जुदाई ने मुझे अहसास करा दिया कि मैं तेरे बिना नही जी सकता. अब तू कभी मुझसे दूर मत जाना. नही तो मैं सच मे मर जाउन्गा."

मेरी बात सुनकर कीर्ति ने मेरे मूह पर हाथ रख दिया और गुस्से मे बोली.

कीर्ति बोली "फिर ऐसा कभी मत कहना. नही तो तुमसे पहले मैं मर जाउन्गी."

मैं बोला "अच्छा नही बोलुगा मगर एक बात बता. आज तू अपनी किस सहेली के यहाँ गयी थी."

कीर्ति बोली "नितिका के यहाँ."

मैं बोला "अगर तू नितिका के यहाँ थी तो फिर तेरी स्कूटी वहाँ क्यों नही दिखी."

कीर्ति बोली "मुझे मालूम था कि तू मुझे ढूँढते हुए ज़रूर नितिका के यहाँ आएगा और मेरी स्कूटी को देख कर तुझे पता चल जाएगा कि मैं नितिका के यहाँ हूँ इसलिए मैं अपने साथ कमल को लेकर गयी थी. मैने स्कूटी लेकर कमल को मेहुल के पास भेज दिया था. अब ये मत पूछना कि मेहुल के यहाँ तो तू भी पहुच सकता था. तब तो तुझे पता चल जाता कि मैं नितिका के यहाँ हू."

मैं बोला "नही पूछुगा."

कीर्ति बोली "क्यों.?"

मैं बोला "क्योंकि छोटी माँ से तुझे पता चल गया होगा कि मैं मेहुल के घर से ही लौट कर आया हूँ और सीधे मौसी से मिलने निकल गया."

मेरी बात सुनकर कीर्ति हँसने लगी और बोली.

कीर्ति बोली "मेरे साथ रहकर तू कितना समझदार हो गया है."

और फिर खिलखिला कर हँसने लगी.

मैं बोला "बहुत रात हो गयी है. अब सोना नही है क्या.?"

कीर्ति बोली "नही. कल तुझे जाना है इसलिए आज हम सारी रात बात करेगे."

मैं बोला "लेकिन मुझे तो नींद आ रही है."

कीर्ति उठ कर बैठ गयी और मुझे उंगली दिखाते हुए बोली.

कीर्ति बोली "खबरदार जो सोने का नाम लिया. आज ना तो मैं सोउंगी और ना ही तुझे सोने दुगी."

मैने अपने पैर फैलाए और आराम से लेटते हुए बोला.

मैं बोला "तुझे जो बोलना है बोलती जा. जब तक मैं जाग रहा हूँ. तेरी बात का जबाब देता रहुगा मगर सो जाउ तो फिर मुझे जगाना मत."

कीर्ति बोली "देख तू ये अच्छा नही कर रहा है. मुझे गुस्सा मत दिकला. नही तो मैं..."

मैं बोला "नही तो तू क्या करेगी."

कीर्ति बोली "नही तो मैं तेरा खून पी जाउन्गी."

मैं बोला "बड़ी आई खून पीने वाली. अपनी बकबक बंद कर और चुप चाप सो जा. सुबह मुझे जाने की तैयारी भी करनी है."

ये कहकर मैने अपनी आँख बंद कर ली मगर कीर्ति चुपचाप बैठी रही. कुछ देर बाद वो फिर मुझे मनाने लगी. मुझे उसका मनाना अच्छा लग रहा था इसलिए मैं चुपचाप आँख बंद किए लेटा रहा और उसके मनाने का मज़ा ले रहा था. कीर्ति मुझे मनाते हुए कह रही थी.

कीर्ति बोली "प्लीज़ उठ जा ना. ऐसा मत कर. देख दो दिन से तू मेरे पीछे पागल बना घूम रहा था और जब मैं तेरे पास हूँ तो तुझे नींद आ रही है. ये अच्छी बात नही है. उठ जा."

ये कहकर वो मुझे हिलाने लगी लेकिन मैं चुपचाप लेटा उसकी बातों का मज़ा लेता रहा. वो फिर बोली.

कीर्ति बोली "देख अब मैं आखरी बार बोल रही हूँ. सीधे तरीके से उठ जा नही तो अब अच्छा नही होगा."

फिर भी मैं उसकी बात को अनसुनी कर आँख बंद कर लेटा रहा, लेकिन कीर्ति तो फिर कीर्ति थी. भला वो अपनी बात मनवाए बिना कहाँ रहने वाली थी. आख़िर मे उसने अपनी हरकतों से मुझे अपनी आँख खोलने पर मजबूर कर दिया.

कीर्ति ने अपने खुले हुए बाल मेरे चेहरे पर बिखरा दिए और अपना चेहरा मेरे चेहरे के बिल्कुल पास ले आई. उसके बालों की खुश्बू ने मुझे मदहोश कर दिया और उसकी आती जाती सांसो का अहसास मुझे मेरे चेहरे पर हो रहा था. जिससे मुझे एक अलग ही सुख की अनुभूति हो रही थी.

मैने आँख खोलकर देखा तो वो बड़ी ही कातिल नज़रों से मेरी ही तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी. मैने बनावटी गुस्सा दिखा कर कहा.

मैं बोला "ये क्या हो रहा है."

कीर्ति भी अपने चेहरे को सिकोडते हुए डरावने चेहरे बनाने के अंदाज मे अपनी दोनो हाथो की उंगलियों को चलाते हुए बोली.

कीर्ति बोली "तेरे खून पीने की तैयारी कर रही हूँ. अब तू आँख बंद करके सो जा और मुझे मेरा काम करने दे."

मुझे उसकी आँखों की रंगत से समझ मे आ गया कि उसका इरादा कुछ नेक नही है. मैं बात को बदलने के लिए बोला.

मैं बोला "तुझे मुझसे बात करना है तो, चल बात करते है पर तू अपना ये नाटक बंद कर."

कीर्ति बोली "सॉरी. तूने अपना फ़ैसला बदलने, मे बहुत देर कर दी है. अब मेरा बात करने का मूड बदल चुका है. अब तो मैं सिर्फ़ तेरा खून पीकर ही रहूगी."

मैं कुछ बोलने के लिए अपना मूह खोल कर, कुछ बोलने ही वाला था कि मेरा मूह खुला का खुला ही रह गया. कीर्ति ने अपने दोनो हाथों से मेरा चेहरा पकड़ कर, अपने नरम नरम होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. कीर्ति के बालों से मेरा चेहरा ढका हुआ था. वो मेरे उपर झुकी हुई थी और मेरे होंठो को चूस रही थी.

एक पल को तो मैं हक्का बक्का रह गया और फटी फटी आँखों से उसकी इस हरकत को देखता रह गया. मगर दूसरे ही पल उसकी बालों की सुगंध और उसके कोमल होंठों के स्वाद से, मेरी आँखें खुद ब खुद बंद होती चली गयी, और मेरा हाथ उसके सर पर चला गया. अब मैं भी उसके नरम होंठो को चूसने लगा.

मैं धरती से सीधा स्वर्ग पर पहुच गया था. मेरी धड़कने तेज से भी तेज बढ़ती गयी और मैने कीर्ति की कमर मे हाथ डालकर उसे अपने उपर खीच लिया. अब कीर्ति मेरे उपर लेटी थी. उसके नाज़ुक बदन के भर से मेरी उतेज्ना और भी ज़्यादा बढ़ चुकी थी और मैं उसे अपने शरीर से और मजबूती से अपने से चिपकाए जा रहा था. धीरे धीरे मेरे हाथ उसके बूब्स पर चले गये और मैं उन्हे मसल्ने लगा. हम दोनो की उत्तेजना चरम पर पहुच गयी थी और साँसे तेज हो गयी थी.

लेकिन तभी अचानक ही कीर्ति ने किस करना बंद कर दिया. उसने अपने आपको मुझसे छुड़ाया और बैठते हुए अपने बाल ठीक करने लगी. मैने उसकी तरफ देखा तो वो अपनी साँसे संभालने की कोसिस कर रही थी. मैने सवालिया नज़रों से उसकी तरफ देखा और उसने भी मेरी तरफ देखा. उसका चेहरा ना जाने क्यों उतर गया था. जब वो कुछ नही बोली, तो मैने पुछा.

मैं बोला "ये अचानक तुझे क्या हो गया.? तेरा चेहरा क्यों उतर गया.?"

कीर्ति कुछ नही बोली बस खामोशी से उसने अपना सर नीचे झुका लिया. उसकी आँखों से आँसू बहने लगे. उसके आँसू देख कर मैं घबरा गया. मैं उठ कर उसके पास बैठ गया और उसके आँसू पोछते हुए बोला.

मैं बोला "देख तू रो मत. तेरे दिल मे जो कुछ भी है. तू मुझे साफ साफ बोल दे. मैं तेरी किसी बात का बुरा नही मानूँगा. लेकिन मैं तेरा इस तरह रोना नही देख सकता. अभी तो तू इतनी अच्छी भली थी. फिर अचानक तुझे ये क्या हो गया."

कीर्ति कुछ नही बोली बस खामोशी से नीचे देखती रही. तब मैं फिर बोला.

मैं बोला "तुझे मेरी कसम है. तू ये रोना बंद कर और जो भी बात है सच सच बता दे."

मेरी कसम सुनकर कीर्ति ने अपने आँसू पोंछे और बोली.

कीर्ति बोली "मैं तेरे साथ जबरदती कर रही हूँ ना."

उसकी बात सुनते ही मुझे हँसी आ गयी लेकि फिर मैने अपनी हँसी रोकी और उस से बोला.

मैं बोला "हाँ तू आगे बोल फिर मैं बोलता हूँ."

कीर्ति बोली "तू ये सब इसलिए कर रहा है ना क्योंकि ये मेरी खुशी है. तुझे इन सब बातों से खुशी नही होती है. मैं ही हर वक्त तेरे साथ ज़बरदस्ती करती रहती हूँ. अभी भी मैने ही तुझे जबरदती किस किया है."

मैं बोला "तू इतनी समझदार है फिर तेरे मन मे ऐसी फालतू की बातें कैसे आ जाती है."

कीर्ति बोली "समझदार हूँ. तभी दिमाग़ मे ये बातें आती है. नही तो तेरी बातों मे बहल जाती."

मैं बोला "ऐसा कुछ नही है. तूने मेरे साथ कोई ज़बरदस्ती नही की है."

कीर्ति बोली "तू सो रहा था और मैं किस करने लगी. अब भला एक लड़की एक लड़के को किस करेगी तो, वो अपने आपको किस करने से कैसे रोक पाएगा. मैं यदि किस नही करती तो तू सो गया होता. मेरी ही ज़बरदस्ती के कारण तुझे भी मुझको किस करना पड़ा नही तो तेरा मन ज़रा भी नही था."

मैं बोला "तुझे कैसे मालूम कि मेरा मन तुझे किस करने का नही था."

कीर्ति बोली "अगर होता तो तूने मुझे किस किया होता. मैने तुझे नही किया होता और मेरे पास होने पर भी तुझे नींद नही आ रही होती."

मैं बोला "देख तू ये सच बोल रही है कि मेरा मन तुझे किस करने का नही था, मगर तूने मुझे किस किया तो मुझे अच्छा लगा. इसमे ज़बरदस्ती वाली कोई बात नही थी. अब रही मुझे नींद आने वाली बात तो सुन मुझे कोई नींद नही आ रही थी. वो तो मैं तुझे तंग करने के लिए नाटक कर रहा था."

कीर्ति बोली "मगर फिर भी ये बात तो सही है कि तेरा मन किस करने का नही था. यानी कि मैने तेरे साथ ज़बरदस्ती की है."

मैं बोला "अच्छा एक बात बता. उस दिन मैने तुझे ज़बरदस्ती किस किया था. क्या तुझे लगता है कि उस दिन मैने तेरे साथ ज़बरदस्ती की थी."

कीर्ति बोली "तेरी बात अलग है. तू मेरे साथ कुछ भी कर ले. मुझे कभी नही लगेगा कि तूने मेरे साथ ज़बरदस्ती की है."

मैं बोला "ऐसा क्यों."

कीर्ति बोली "क्योंकि मैं तुझे प्यार करती हूँ और तुझे मेरे उपर पूरा हक़ है. तू जो चाहे वो कर सकता है. मुझे बुरा नही लगेगा."

मैं बोला "तो मेरी माँ. मैं क्या करता हूँ. मैं भी तो तुझे प्यार करता हूँ ना. तो फिर तुझे मुझ पर पूरा हक़ हुआ या नही.
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RE: MmsBee कोई तो रोक लो - by desiaks - 09-09-2020, 01:02 PM
(कोई तो रोक लो) - by Kprkpr - 07-28-2023, 09:14 AM

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