RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मेरी हालत को शायद टॅक्सी वाला समझ चुका था. वो शकल सूरत से नेक और पढ़ा लिखा मालूम पड़ रहा था. वो मुझसे उमर मे बड़ा ज़रूर था, लेकिन कोई ज़्यादा बुजुर्ग आदमी भी नही था. उसकी उमर 35-36 साल के आस पास ही होगी. मुझे खड़ा देख कर, वो भी टॅक्सी से उतर कर बाहर आ गया, और मुझे इज़्ज़त देते हुए मुझसे बोला.
टॅक्सी वाला बोला "बाबू साहब आप किसी बाहर सहर से आए लगते हो."
मैं बोला "हाँ भाई मैं बाहर शहर से ही आया हूँ, पर आपको ऐसा क्यों लगा."
टॅक्सी वाला बोला "बस ऐसे ही बाबू साहब."
मैं बोला "ऐसे ही कैसे लग सकता है. मेरी कोई तो ऐसी बात होगी, जिस से आपको ये लगा कि मैं इस शहर का नही हूँ."
टॅक्सी वाला बोला "रहने दो बाबू साहब, आप बुरा मान जाओगे."
मैं बोला "नही भाई, जो भी बात है बोल दो. मैं आपकी किसी भी बात का बुरा नही मानूँगा."
टॅक्सी वाला बोला "जाने दीजिए ना बाबू साहब. बात ही कुछ ऐसी है की आपको बुरी ज़रूर लगेगी."
मैं बोला "अरे भाई ऐसी कोई बात नही है. आपने मुझे देख कर जो समझा होगा, वही तो आप बोलोगे. फिर इस मे बुरा मानने वाली कौन सी बात हो गयी. मैं आपकी किसी भी बात का कोई बुरा नही मानूँगा. अब जो भी बात है, आप दिल खोल कर बोल दो."
टॅक्सी वाला बोला "अब आप इतनी ज़िद कर रहे है तो सुनिए. बात ऐसी है बाबू साहब कि, मैं तो टॅक्सी मे आपकी पतली हालत को देख कर ही समझ गया था कि, आप इस शहर के नही हो. यदि इस शहर के होते तो, बहती गंगा मे हाथ ज़रूर धो चुके होते."
मैं बोला "मैं समझा नही आप क्या कहना चाह रहे है."
टॅक्सी वाला बोला "आपकी गर्लफ्रेंड आपको टॅक्सी मे गरम किए जा रही थी, और आप मोम के पुतले बने बैठे रहे. वरना यहाँ तो चलती टॅक्सी मे वो सब हो जाता है. जो छोटे शहरों मे बंद कमरे मे भी नही हो पाता. हम लोग सब देख के भी आँख बंद किए रहते है. क्योंकि ऐसे जोड़ों के बैठने से हमे पैसे कुछ ज़्यादा ही मिलते है."
मैं समझ गया कि टेक्सी मे जो कुछ भी रिया कर रही थी. उसे टॅक्सी वाले ने भी किसी तरह से देख लिया था. मैने उसकी बात को घूमाते हुए कहा.
मैं बोला "ऐसी कोई बात नही है. वो लड़की मेरी गर्लफ्रेंड नही है."
टॅक्सी वाला बोला "बाबू साहब आप भी किस जमाने की बात कर रहे है. यहाँ तो पल भर मे मिलते ही लड़के लड़कियाँ एक दूसरे के बाय्फ्रेंड गर्लफ्रेंड बन जाते है, और रोज लड़के लड़कियाँ अपने बाय्फ्रेंड गर्लफ्रेंड बदलते रहते है."
मैं बोला "मैं जानता हूँ. मेरे शहर मे भी ये सब आम बात है, बल्कि इस से भी कहीं ज़्यादा ये सब चलता है. लेकिन मुझे ये सब पसंद नही है."
टॅक्सी वाला बोला "लगता है किसी लड़की से प्यार करते हो, और वो लड़की इस लड़की से भी ज़्यादा खूबसूरत और भली लड़की है."
मैं बोला "आपको ऐसा क्यों लगता है."
टॅक्सी वाला बोला "वो इसलिए क्योंकि भरी थाली को वो ही लात मारता है. जिसका पेट भरा हो या फिर जिसे उस से भी अच्छा खाना मिलने की उम्मीद हो. अब अभी अभी जो लड़की आपके साथ थी. उस जैसी सुंदर लड़की को भी घास ना डालना, तो यही बताता है कि, आपके जीवन मे कोई उस से भी सुंदर लड़की है."
मैं बोला " हाँ भाई बात तो आपकी सही है. मेरे जीवन मे एक लड़की है. जो बहुत सुंदर और भली होने के साथ साथ, मुझे प्यार भी बहुत करती है."
टॅक्सी वाला बोला "ये तो बड़ी अच्छी बात है बाबू साहब. जिंदगी मे यदि कोई सच्चा प्यार करने वाला साथ हो तो, जिंदगी जन्नत बन जाती है. लेकिन सच्चे प्यार को कभी बिछड़ना नही चाहिए. वरना जिंदगी जहन्नुम से भी बदतर हो जाती है."
मैं बोला "लगता है आपने भी किसी से सच्चा प्यार किया है, और आपका प्यार आपको नही मिला."
टॅक्सी वाला बोला "हाँ किया है बाबू साहब, पर ये प्यार व्यार हम जैसे ग़रीब लोगों के नसीब मे नही होता. समझ मे नही आता, जब हमारे नसीब मे उस उपर वाले ने प्यार लिखा ही नही है तो, फिर हम लोगों को प्यार भरा दिल क्यों दे दिया."
मैं बोला "ऐसी बात नही है भाई. प्यार तो सभी के लिए बना है. प्यार अमीरी ग़रीबी नही देखता. हो सकता है आपने जिस से प्यार किया हो, उसे आप से सच्चा प्यार ना हो."
टॅक्सी वाला बोला "शायद आप ठीक कह रहे है बाबू साहब. उसका प्यार ही सच्चा नही था, तो नसीब को क्या कोसना."
मैं बोला "क्या हुआ था भाई. यदि बताना चाहो तो, मुझे अपने दिल का हाल बता सकते हो."
अभी टॅक्सी वाला आगे कुछ और बोल पाता, उस से पहले ही उसे, प्रिया और बाकी के लोग घर से बाहर निकलते दिखे. उन्हे आते हुए देख कर उसने मुझसे कहा.
टॅक्सी वाला बोला "बाबू साहब आपसे मिल कर दिल का दर्द ताज़ा हो गया, पर बहुत दिन बाद किसी से दिल की बात करके कुछ सुकून भी मिला. अभी तो मेरी सवारी आ रही है, इसलिए मुझे जाना होगा, पर यदि आपसे दोबारा मुलाकात होती है तो, मैं आपको अपनी दुख भरी प्रेम कहानी ज़रूर सुनाउन्गा. वैसे भी अभी आप जब तक उस हॉस्पिटल मे हो, तब तक तो हमारी मुलाकात होती रहेगी. क्योंकि मैं अपनी टॅक्सी उसी हॉस्पिटल मे लगाता हूँ."
मैं बोला "ठीक है भाई. मुझे भी इस अंजान शहर मे, आपसे मिल कर बहुत अच्छा लगा. लेकिन मैं हॉस्पिटल मे सिर्फ़ रात को ही रुका करूगा. दिन के समय तो मेरा मिल पाना मुश्किल ही होगा."
टॅक्सी वाला बोला "ये तो और भी अच्छी बात है बाबू साहब, क्योंकि मैं रात को ही टॅक्सी चलाता हूँ, इसलिए अब आपसे ज़रूर मुलाकात होगी. वैसे मेरा नाम अजय है, पर प्यार से सब मुझे अज्जु कहते है."
मैं बोला "मेरा नाम पुनीत है, और प्यार से सब मुझे पुन्नू कहते है."
टॅक्सी वाला बोला "अच्छा बाबू साहब, अब मैं चलता हूँ. हो सका तो आज ही रात को आपसे मुलाकात होगी."
ये कह कर वो टॅक्सी मे बैठ गया. तब तक दादा जी, आंटी, रिया और प्रिया भी टॅक्सी के पास आ चुके थे. प्रिया अब रेड कलर का टॉप और ब्लॅक कलर की शॉर्ट स्कर्ट पहने थी. जो उसकी जांघों तक ही थी. जिसे देख कर मेरा लिंग फिर फडफडा उठा. मैने उसे देखा तो, देखता ही रह गया.
मैं सोचने लगा कि ये लड़की इतनी सुंदर है तो, कल मेरी नज़र इस पर क्यों नही पड़ी. शायद इसकी वजह कल इसके साथ, निक्की का होना था. जिसकी वजह से कल मेरा ध्यान, इस पर नही गया था. लेकिन ये इस तरह के कपड़े क्यों पहनती है. जिससे इसका सारा बदन दिखाई देता है. शायद इसे लड़को को तड़पाने मे मज़ा आता है, इसलिए ये अपनी जांघे दिखाती रहती है.
मैं ये सब सोच रहा था, और सब एक एक कर के टॅक्सी मे बैठ रहे थे. जब प्रिया टॅक्सी मे बैठ गयी तो, मेरी नज़र उस पर से हटी. मैने अजय की तरफ देखा तो, वो ना जाने कब से मुझे प्रिया को घूरते देख रहा था. मेरी नज़र उस पर पड़ते ही वो मुस्कुराने लगा. मैने भी अपने सर को झटका और मुस्कुरा दिया. सब टॅक्सी मैं बैठ चुके थे, इसलिए टॅक्सी आगे बढ़ गयी.
जब टॅक्सी नज़रों से ओझल हो गयी तो रिया ने मुझसे कहा.
रिया बोली "क्या हुआ. सब जा चुके है. अब घर चलो और आराम कर लो. शाम के 6:30 बज गये है. यदि नींद पूरी ना हुई तो, रात को जागने मे तकलीफ़ भी होगी."
मैं बोला "हाँ चलो. मैं भी आज बहुत थक गया हू. अब आराम करना बहुत ज़रूरी है."
फिर मैं और रिया घर के अंदर आ गये. अंदर आने के बाद रिया ने मुझसे खाने के लिए पुछा तो, मैने मना कर दिया. मैने कहा नही अब मुझे नींद आ रही है. मैं तो अब सोने जा रहा हूँ. तुम मुझे 9:30 बजे तक उठा देना. इतना बोल कर मैं अपने कमरे मे आ गया.
कमरे मे आने के बाद मैने मूह हाथ धोया, और फिर नाइट सूट पहन ने के बाद कीर्ति को कॉल किया. मेरा कॉल आया देख उसने, पहली ही रिंग पर कॉल उठा लिया, और मेरे बोलने से पहले ही बोल पड़ी.
कीर्ति बोली "अरे तुम अभी तक जाग रहे हो."
मैं बोला "तुझसे किसने बोला कि मैं सो रहा हू."
कीर्ति बोली "मैने मेहुल को कॉल किया था तो उसने बताया कि तुम घर आराम करने गये हो."
मैं बोला "मैं सोने ही वाला था पर सोचा, पहले तुझसे बात कर लू फिर सोता हूँ. लेकिन मुझे क्या पता था कि, तुम्हारा मुझसे बात करने का मन ही नही है."
कीर्ति बोली "ऐसा मत बोलो जान. मेरा मन तुमसे बात करने का कब नही होता. लेकिन आंटी ने मेहुल से बात करने की ज़िद की तो, मैने उसे कॉल किया था. उस से पता चला कि तुम रात को हॉस्पिटल मे रुकोगे, इसलिए 5:30 बजे वहाँ से आराम करने घर गये हो, और रात को 10 बजे वापस हॉस्पिटल आओगे. इस बात को सुनकर मैं खुद इस सोच मे पड़ गयी कि, भला 3-4 घंटे मे तुम्हारी नींद कैसे पूरी हो पाएगी. यही सब सोच कर मैने तुम्हे कॉल नही किया था, और तुम सोच रहे हो कि मेरा मन तुमसे बात करने का नही है."
इतनी बात के बाद कीर्ति के सिसकने की आवाज़ आने लगी. वो रोने लगी थी. उसे रोते देख मुझे खुद पर गुस्सा आया कि, मैने ये कैसा बेतुका सवाल कर लिया. मैने अपनी बात को संभालते हुए कहा.
मैं बोला "अरे तू रोने क्यों लगी. मैं तो मज़ाक कर रहा था. भला मैं ऐसा सोच भी कैसे सकता हूँ."
मगर वो सिसकते ही जा रही थी. उसकी सिसकी थमते ना देख, मैने फिर उस से कहा.
मैं बोला "देख अब तू रोकर खुद मेरी नींद को खराब कर रही है. भला तुझे रुलाने के बाद, मुझे कैसे नींद आ सकती है."
मेरी बात सुनते ही उसने रोना बंद कर दिया और बोली.
कीर्ति बोली "मैं रो कहाँ रही हूँ. तुम बेकार मे किसी बात को लेकर अपनी नींद खराब मत करना."
मैं बोला "चल झूठी. अभी तू रो नही रही थी तो, क्या कर रही थी. ये सिसकने की आवाज़ क्यों आ रही थी."
मेरी इस बात का जबाब कीर्ति ने बड़े ही भोलेपन से दिया.
कीर्ति बोली "वो तो मुझे सर्दी है, इसलिए मेरी नाक की सुरसुराने की आवाज़ थी."
मैं बोला "तुझसे बहस मे कोई नही जीत सकता. चल अब मुझे सच मे बहुत नींद आ रही है. जल्दी से मुझे एक किसी दे और कॉल रख."
कीर्ति बोली "ओये ओये मैं मर जावां. आज ये उल्टी गंगा कैसे बह निकली."
मैं बोला "क्यों क्या हो गया."
कीर्ति बोली "अभी तक तो मुझे एक क़िस्सी के लिए कितनी ज़िद करना पड़ती थी, और आज तुम खुद किसी माँग रहे हो."
मैं बोला "आज सच मे मैने दिन भर अपनी जान को बहुत मिस किया, इसलिए अब उसकी मीठी किसी लेकर, मीठी नींद मे सोना चाहता हूँ."
कीर्ति बोली "नही पहले ये बोलो कि रात को हॉस्पिटल पहुच कर कॉल करोगे."
मैं बोला "रात को हॉस्पिटल पहुचने के बाद मुझे कब टाइम मिलेगा, और कब मैं तुम्हे कॉल कर पाउन्गा. मैं इस बारे मे कुछ का नही सकता. अच्छा तो यही है कि अब हम कल सुबह ही बात करे."
कीर्ति बोली "तुम्हे रात को जब टाइम मिले तुम कॉल कर लेना, पर मुझे रात को बात करना है."
मैं बोला "नही रहने दे. बेकार मे तू मेरे कॉल के इंतजार मे जागती रहेगी."
कीर्ति बोली "प्लीज़ जान सिर्फ़ एक बार. मैं ज़्यादा देर बात नही करूगी. तुम जितनी देर चाहोगे, बस उतनी देर ही बात करूगी, मगर मुझे रात को एक बार बात करना है."
मैं बोला "ठीक है. मैं कॉल लगा लूँगा. अब जल्दी से एक क़िस्सी दे और फोन रख."
कीर्ति बोली "ऊऊ मेरे अच्छे जानू. आइ लव यू. मुहह मुहह."
मैं बोला "आइ लव यू जान. मुहह मुहह."
इसके बाद कीर्ति ने फोन रख दिया. मैने भी मोबाइल किनारे रखा और आँख बंद कर के, कीर्ति के बारे मे सोचने लगा. उससे बात करने के बाद मुझे एक अनोखी शांति मिली थी. मेरे मन मे अभी तक आ रहे, सारे बुरे ख़याल कहीं खो गये थे. मैं कीर्ति की मीठी मीठी बातों को सोचते हुए, सोने की कोसिस करने लगा.
अभी मुझे आँख बंद करके लेते कुछ ही देर हुई थी कि, तभी मुझे मेरे कमरे का दरवाजा खटखटाने की आवाज़ आई. अब घर मे मेरे और रिया के सिवा कोई नही था. इसलिए रिया के सिवा किसी और के होने की उम्मीद ही नही की जा सकती थी.
मैने उठ कर दरवाजा खोला तो रिया ही थी. वो ब्लॅक कलर का सिल्की गाउन पहने हुई थी. जिसमे वो और भी सेक्सी लग रही थी. लेकिन अब उसे इस लिबास मे देख कर भी, मेरे मन मे कोई बुरा विचार नही आया. मुझे दरवाजे पर ही खड़ा देख कर रिया ने कहा.
रिया बोली "क्या मुझे अंदर आने के लिए नही कहोगे."
उसकी बात सुनकर, मैं तुरंत दरवाजे के सामने से अलग हो गया, और रिया अंदर कमरे मे आ गयी. कमरे मे आकर वो मेरे बेड पर बैठते हुए बोली.
रिया बोली "क्या हुआ. दरवाजे पर ही क्यों खड़े हो. क्या तुम्हे मेरा आना अच्छा नही लगा."
मैं बोला "नही ऐसी बात नही है. तुम्हारा ही घर है. तुम जब चाहे, जहा चाहे, आ जा सकती हो."
रिया बोली "तुम्हारी बात सही है, मगर इस वक्त ये कमरा तुम्हारा है. यदि तुमको मेरा आना पसंद नही है तो, मैं यहा से चली जाती हूँ."
मैं रिया के आने का मकसद समझ रहा था. मगर अब मैं उसकी किसी हरकत मे, उसका साथ देना नही चाहता था. लेकिन मैं उसे नाराज़ भी करना नही चाहता था. इसलिए मैने उस से बड़े ही प्यार से कहा.
मैं बोला "भला ऐसा कैसे हो सकता है कि, मुझे तुम्हारा आना पसंद ना आए. लेकिन तुम तो जानती हो कि, मैं सुबह 5 बजे का जगा हुआ हूँ, और मुझे रात को हॉस्पिटल मे भी रुकना है. इसलिए मैं अभी सोना चाहता हूँ."
रिया बोली "मैं सब जानती हूँ. मैं तो बस ये कहने आई थी कि, तुम दरवाजा लॉक करके मत सोना. ताकि जब तुमको जगाने का टाइम हो तो, मैं तुमको जगाने आ सकूँ. अब तुम आराम से सो सकते हो. मैं तुम्हे फिर परेशान करने नही आउन्गी. बस दरवाजा लॉक मत करना."
ये कह कर रिया उठ कर जाने लगी. मुझे लगा कि उसे मेरी बात का बुरा लग गया है, इसलिए मैने उस से कहा.
मैं बोला "कहीं तुम्हे मेरी बात का बुरा तो नही लग गया."
रिया बोली "अरे इसमे बुरा मानने वाली क्या बात है. मुझे तो अच्छा लगा कि तुमने, बिना जीझक के अपनी बात कह दी. तुम ये बुरा लगने वाली बात को अपने दिमाग़ से निकाल दो, और आराम से सो जाओ. मैं तुम्हे 9:30 बजे जगा दूँगी."
इतना कह कर वो कमरे से बाहर निकल गयी. मैने दरवाजा बंद किया और वापस लेट गया. अब मेरे दिमाग़ मे कभी कीर्ति का ख़याल आ रहा था तो, कभी रिया की हरकतें घूम रही थी. मैं इसी कशमकश मे था कि, मैं रिया का क्या करूँ. वो ज़रूर मुझसे किसी ना किसी बात की उम्मीद लगाए हुए है. यही सब सोचते सोचते, कुछ देर बाद मुझे नींद आ गयी. ना जाने कितनी देर तक मैं गहरी नींद मे सोता रहा.
मेरी गहरी नींद तब टूटी, जब मुझे ये अहसास हुआ की, कोई मुझे हिला कर जगाने की कोशिस कर रहा है. मुझे इस बात का भी अहसास नही था कि, मुझे जगाने वाला कौन है. मुझे यही लगा कि रिया ही मुझे जगा रही है.
मैं बहुत गहरी नींद सोया था, इसलिए नींद टूट जाने के बाद भी, मेरी आँख नही खुल रही थी. जब बहुत कोसिस करने के बाद भी, मेरी आँख नही खुली. तब मैने एक जोरदार अंगड़ाई लेते हुए ज़मीन ली, और एक झटके मे पालती मार कर, बेड पर बैठ गया. फिर मैने धीरे धीरे अपनी आँख खोली. आँख खुलते ही जगाने वाले पर मेरी नज़र पड़ी. जिसे देखते ही मुझे अपनी आँखों पर विस्वास नही हुआ.
मैं अपने दोनो हाथो से अपनी आँखों को मलने लगा. उसके बाद फिर मैने जगाने वाले को देखा. लेकिन अब भी मेरे सामने वही सूरत थी. मैने हंसते हुए अपने सर पर एक चपत मारी और खुद से कहा "तू अभी भी नींद मे ही है, और सपना देख रहा है. चल चुप चाप से सो जा."
ये बोल कर मैं फिर से बेड पर धम्म से लेट गया, और आँख बंद कर ली. मैं अब भी उनिंदा था, इसलिए आँख बंद करते ही, मुझे फिर से नींद घेरने लगी. लेकिन जगाने वाले ने मुझे फिर से लेटते देखा तो, उसने मुझे फिर से हिलाना शुरू कर दिया.
जब मैं दो तीन बार हिलाने पर भी नही जागा और वैसे ही लेटा रहा. तब मेरे कानो मे हिलाने वाले की कड़कदार और रोबिली आवाज़ सुनाई दी. वो आवाज़ मेरे पापा की थी. पापा ने मुझे ना उठते देख कहा.
पापा बोले “पुन्नू तुम कोई सपना नही देख रहे हो. मैं तुम्हारे सामने सच मे ही हूँ. चलो अब जल्दी से उठ जाओ और फ्रेश होकर बाहर आ जाओ. सब तुम्हारा खाने पर वेट कर रहे है.
पापा की आवाज़ सुनते ही मेरी सारी नींद गायब हो गयी. मैं एक झटके मे ही उठ कर बैठ गया. मुझे अभी भी अपनी आँखों पर विस्वास नही हो रहा था कि, पापा मेरे सामने खड़े है. पापा ने मुझे इस तरह आश्चर्य चकित देखा तो उन्हो ने कहा.
पापा बोले "इतना आश्चर्य करने की कोई बात नही है. यहाँ काफ़ी समय से मेरी एक बिज़्नेस डील रुकी पड़ी है. जिसे मैं समय ना होने की वजह से पूरी नही कर पा रहा था. लेकिन आज राजेश की तबीयत की वजह से मेरा काम मे मन नही लग रहा था. इसलिए सोचा कि यहाँ आकर राजेश को भी देख लुगा और उस रुकी हुई डील को भी निपटा लुगा. बस यही सोच कर मैं शाम की फ्लाइट पकड़ कर यहाँ आ गया."
मैं बोला "क्या आप अंकल से मिल कर आ रहे है."
पापा बोए "हाँ मैं एरपोर्ट से सीधे हॉस्पिटल ही गया था. जब मैं राजेश के पास पहुचा तो उसे होश आ चुका था. उस से मिल कर लौटने पर मुझे राज रिया के दादा जी मिल गये और वो ज़िद कर के, मुझे यहाँ ले आए. अब बातों मे ज़्यादा टाइम बर्बाद मत करो और जल्दी से फ्रेश हो जाओ.”
मैं बोला “ठीक ही, आप चलिए. मैं अभी फ्रेश होकर आता हूँ."
मेरी बात सुनकर पापा चले गये और मैं सोचने लगा कि काश ये सपना ही होता तो, कितना अच्छा होता. अभी थोड़ी देर पहले जिस चेहरे को सपना समझ कर हंस रहा था. अब उसी चेहरे को हक़ीकत मे देख कर मेरे 12 बज रहे थे.
मैने घड़ी मे टाइम देखा तो अभी 9:15 ही बजा था. ये देख कर मुझे और भी चिड छूट गयी थी कि, पापा ने मुझे 9 बजे ही नींद से जगा दिया. मैं गुस्से मे बिस्तर से उठा और फ्रेश होने चला गया.
फ्रेश होने के बाद मैं तैयार होने लगा. तभी रिया आ गयी. उसे देखते ही मुझे याद आया कि, मैने रिया से जगाने के लिए कहा था. ये बात याद आते ही मैने रिया से कहा.
मैं बोला "जब मैने तुमसे जगाने के लिए कहा था, तो तुमने मुझे जगाया क्यों नही."
रिया बोली "तुमने कहा था कि तुम्हे 9:30 बजे के बाद जगाना. बस यही सोच कर मैने तुम्हे नही जगाया था. मैने ये बात अंकल को भी बताई थी. लेकिन वो नही माने और खुद ही तुम्हे जगाने आ गये."
अब रिया की इस बात के जबाब मे, मैं भला उस से क्या कहता. वो पापा की ज़िद के आगे कर भी क्या सकती थी. इसलिए फिर मैने उस से इस बारे मे कुछ नही कहा. मैं चुप चाप तैयार हुआ और तैयार होने के बाद रिया के साथ डाइनिंग रूम मे आ गया.
डाइनिंग रूम मे आते ही मैने एक नज़र सब पर डाली. डाइनिंग टेबल की बीच वाली सीट पर हमेशा की तरह दादा जी बैठे हुए थे. दादा जी के लेफ्ट वाली सीट मे रिया के पापा, मम्मी, प्रिया बैठी हुई थी. प्रया के बाद वाली सीट खाली थी. दादा जी की राइट वाली सीट मे, मेरे पापा बैठे हुए थे और उनके बाद की तीनो सीट खाली थी.
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