MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 01:26 PM,
#70
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मेरी बात सुनकर, दादा जी मेरे कमरे से बाहर चले गये. दादा जी के जाने के बाद मैं फ्रेश हुआ और फिर तैयार होने लगा. तैयार होते होते मुझे 9 बज गये थे. तैयार होने के बाद मैं डाइनिंग रूम मे आ गया. दादा जी और आंटी वहाँ पहले से ही बैठे हुए थे. मुझे आया देख आंटी डिन्नर लगाने लगी.

आज पहली बार मैं आंटी को इतने ध्यान से देख रहा था. उनकी उमर कोई 40 के आस पास ही होगी. उन्हे देख कर कोई कह नही सकता था कि, वो 3 जवान बच्चो की माँ है. वो इस समय येल्लो कलर की साड़ी पहने हुई थी. जिसमे उनका दूध की तरह गोरा रंग और भी दमक रहा था. उनकी साड़ी का पल्लू उनकी कमर पर ख़ुसा हुआ था. जिस वजह से उनका पेट और नाभि साफ साफ नज़र आ रही थी.

शृंगार के नाम पर उनके गले मे एक सोने का हार था और कमर मे चाँदी का कमर बँध बँधा हुआ था. कानों मे सोने की बड़ी बड़ी बलियाँ थी. जो उनके काम करने पर इधर उधर झूल रही थी. अपने बालों को उन्हो ने एक चोटी बनाकर बाँधा हुआ था. फिर भी उनके कानों के किनारे के कुछ बाल, बाँधने से बचे हुए थे. जो उनके गालों पर आ रहे थे. जिससे उनकी सुंदरता और भी बढ़ जाती थी.

उनके मान्थे पर एक छोटी सी बिंदी थी और माँग मे सिंदूर की लालिमा थी. जो उनके पतिव्रता होने की निशानी थी. वो इस समय सुंदरता की जीती जागती मूरत नज़र आ रही थी. मुझे ये भी याद नही रहा कि दादा जी भी मेरे साथ बैठे है. ऐसे मे वो या आंटी खुद मुझे इस तरह से घूरते देखेगे तो, मेरे बारे मे क्या सोचेगे. मैं इन सब बातों से अंजान, आंटी को एक टक देखे ही जा रहा था.

मैं आंटी के इस मन मोहक रूप मे खो सा गया था. मेरे मन मे वासना नाम की कोई बात नही थी. ना ही आंटी को लेकर मेरे मन मे, कोई ग़लत विचार आ रहा था. लेकिन मुझे इस तरह आंटी को घूरते हुए देख कर आंटी ने कहा.

आंटी बोली "क्या हुआ बेटा. मुझे ऐसे क्यों देख रहा है. क्या तुझे ये डिन्नर पसंद नही है."

मैं बोला "नही आंटी ऐसी कोई बात नही है. डिन्नर अच्छा है. मैं तो ये देख रहा हूँ कि, आपके अंदर सब के लिए कितनी ममता है. आप हम सब का कितना ख़याल रखती है. इतना सब करने के बाद भी आपके चेहरे पर थकान का नामो निशान तक नही है."

आंटी बोली "चल हट पागल. माँ अपने बच्चो का ख़याल नही रखेगी तो और कौन रखेगा. कोई भी माँ अपने घर के काम काज को करने से कभी नही थकती. तेरी माँ भी तो घर मे तेरे लिए यही सब करती होगी. क्या तूने उसे कभी थकते देखा है."

आंटी की बात सुनकर दादा जी बोल पड़े.

दादा जी बोले "बहू पुन्नू की माँ नही है. वो अपनी सौतेली माँ के साथ रहता है. फिर भला वो इन सब बातों को कैसे समझेगा."

दादा जी की बात सुनकर आंटी ने कहा.

आंटी बोली "सॉरी बेटा, मेरे दिमाग़ से ये बात निकल गयी थी. मेरी बात यदि तुम्हे बुरी लगी हो तो, उसके लिए मैं माफी चाहती हूँ. सौतेली माँ से तो तुम्हे कभी माँ का प्यार मिला ही नही होगा. क्योंकि कोई भी सौतेली माँ कभी सग़ी माँ की जगह नही ले सकती."

मुझे आंटी की मेरी माँ ना होने वाली बात का ज़रा भी बुरा नही लगा. लेकिन जब उन्हो ने कहा कि कोई भी सौतेली माँ सग़ी माँ की जगह नही ले सकती. तब मुझसे रहा नही गया. मैने उनकी इस बात का जबाब देते हुए कहा.

मैं बोला "नही आंटी इसमे माफी माँगने वाली कोई बात नही है. मुझे जनम देने वाली माँ सच मे इस दुनिया मे नही है. लेकिन फिर भी मेरी माँ है. मेरी छोटी माँ ने कभी भी मुझे अपनी माँ की कमी महसूस नही होने दी. वो मुझे इतना प्यार करती है. जितना कोई सग़ी माँ भी अपने बेटे को नही करती होगी. उनने सिर्फ़ मेरी वजह से मेरे बाप के दिए हर दर्द को सहा है. नही तो वो कब का मेरे बाप को छोड़ कर चली गयी होती. वो मेरे लिए मेरी सग़ी माँ से भी बढ़ कर है. मैं अपनी सग़ी माँ को तो कब का भूल चुका हूँ. लेकिन मेरी छोटी माँ हमेशा मेरे दिल मे रहती है."

दादा जी बोले "सॉरी बेटा, जो मैने तुम्हारी छोटी माँ को सौतेली माँ कहा. शायद तुम्हे इस बात का बुरा लग गया."

मैं बोला "दादू इसमे सॉरी बोलने वाली कोई बात नही है. लोग अक्सर सौतेली माँ को बुरा ही समझते है. लेकिन मेरे लिए मेरी छोटी माँ देवी है. उन्हे मेरी हर छोटी से छोटी बात की फिकर रहती है. यहाँ भी उनका फोन बराबर आता रहता है. उन्हे चिंता लगी रहती है कि, मैने खाना खाया या नही. कही रात को जागने की वजह से मेरी तबीयत तो खराब नही हो गयी. अब क्या इसके बाद भी आप लोगों को लगता है कि कोई सौतेली माँ सग़ी माँ की जगह नही ले सकती."

मेरी बात सुनकर दादा जी कुछ नही बोले. शायद उनके पास मेरी इस बात का कोई जबाब नही था. लेकिन आंटी ने मेरी बात सुनकर कहा.

आंटी बोली "बेटा तुम सच मे बहुत किस्मत वाले हो. जो तुम्हे ऐसी माँ मिली. तुम्हारी माँ सच मे देवी ही है. जो तुम्हे इतना प्यार करती है. क्या तुम्हारे घर मे तुम्हारे कोई भाई बहन भी है."

मैं बोला "हाँ आंटी है. मेरे घर मे मेरे छोटी माँ और पापा के अलावा मेरी दो छोटी बहने भी है. एक का नाम अमिता है. हम उसे प्यार से अमि बुलाते है. वो अभी तीसरी कक्षा मे पढ़ रही है. दूसरी का नाम नमिता है. हम उसे प्यार से निमी बुलाते है. उसने इसी साल से स्कूल जाना शुरू किया है. दोनो ही एक से बढ़ कर एक है. उनकी शैतानियों से हमारे घर मे हँसी खुशी हमेशा ही बनी रहती है. जितना प्यार मैं उन दोनो से करता हूँ. उस से भी ज़्यादा प्यार वो दोनो मुझसे करती है. यदि उनका बस चलता तो वो भी मेरे साथ यहाँ आ गयी होती."

आंटी बोली "तब तो दोनो तुम्हे बहुत मिस कर रही होगी."

मैं बोला "हाँ आंटी, दोनो ही बहुत मिस कर रही है. निमी को तो बुखार तक आ गया है. अब उसने शर्त रखी है कि, मैं रोज उस से 3 बार बात करूगा, नही तो वो खाना नही खाएगी."

आंटी बोली "और अमि क्या कहती है."

मैं बोला "अमि उस से बड़ी है, इसलिए उसने इस से भी बड़ी बात की है. उसने कहा कि अंकल का ऑपरेशन तो हो चुका है और अभी पापा भी वही है. ऐसे मे कुछ दिन के लिए मैं घर आ जाउ."

आंटी बोली "सच मे तुम बहुत किस्मत वाले हो. जो तुम्हे इतना प्यार करने वाला परिवार मिला है."

मैं बोला "हाँ आंटी वो तो मैं हूँ. लेकिन आप भी कम किस्मत वाली नही है जिसे इतना अच्छा परिवार मिला है."

मेरी बात सुनकर आंटी का चेहरा उतर सा गया था. लेकिन फिर भी वो मुस्कुराते हुए कहने लगी.

आंटी बोली "सच है ऐसा परिवार किस्मत वालों को ही मिलता है. अब तुम ये बातें छोड़ो और डिन्नर करो. नही तो फिर पहुचने मे देर हो जाएगी."

मैं बोला "जी आंटी."

इसके बाद कोई कुछ नही बोला. सब खोमोशी से डिन्नर करते रहे. मैं मन ही मन आंटी से खुसकिस्मत होने वाली बात बोलने के लिए खुद को कोष रहा था. कुछ देर बाद हम सब डिन्नर कर चुके थे. अब मैने टाइम देखा तो 9:30 बज चुके था. तब मैने दादा जी और आंटी से हॉस्पिटल जाने के लिए इजाज़त माँगी और फिर मैं बाहर आ गया.

बाहर आकर मैने टॅक्सी ली और हॉस्पिटल के लिए निकल गया. मैं 10 बजे हॉस्पिटल पहुच चुका था. मैने देखा तो नीचे राज बैठा था. मैने उस से कहा.

मैं बोला "अब अंकल की तबीयत कैसी है."

राज बोला "अब उनकी तबीयत पहले से बेहतर है. डॉक्टर. ने उन्हे ज़्यादा से ज़्यादा वॉक करने को कहा है."

मैं बोला "ऐसी हालत मे क्या अंकल का वॉक करना ठीक रहेगा."

राज बोला "यही बात मैने डॉक्टर, से भी पुछि थी. उसका कहना था कि इनकी जो सर्जरी की गयी है. उसके लिए इनका वॉक करना ज़रूरी है. इससे इनकी सभी कोशिकाएँ सही तरीके से काम करने लगेगी और इनकी हालत मे भी सुधार जल्दी आ जाएगा."

मैं बोला "ओके डॉक्टर,. ने कहा है तो सोच समझ कर ही कहा होगा. लेकिन क्या अंकल बिस्तेर से उठने लगे है."

राज बोला "हाँ अब वो बिस्तर से उठने लगे है. मैने खुद उन्हे वॉक कराया था और अभी मेहुल उन्हे वॉक करा रहा है. वो खुद ही वॉक भी कर सकते है. मगर अभी उन्हे ड्रिप लगी हुई है. जिस वजह से किसी एक का उनके साथ होना ज़रूरी है. रात को यदि अंकल तुम्हे वॉक के लिए बोले तो, तुम उनकी ड्रिप को पकड़ लेना बाकी वॉक वो खुद कर लेगे. उन्हे वॉक करने मे कोई परेशानी नही है."

मैं बोला "ओके यदि अब अंकल का वॉक हो गया हो तो, मेहुल को बुला लो. तुम लोगों को अब घर जाना चाहिए."

राज बोला "ओके मैं अभी मेहुल को कॉल करता हूँ."

ये कह कर राज ने मेहुल को कॉल किया. कुछ देर बाद मेहुल नीचे आ गया. नीचे आते ही वो मेरे गले से लग गया और कहने लगा.

मेहुल बोला "भाई यहाँ के डॉक्टर. सच मे कमाल के है. उन्होने पापा को 2 दिन मे ही खड़ा कर दिया. मैं तो सोच रहा था कि ना जाने अभी पापा कितने दिन यू ही बेड पर लेटे रहेगे. लेकिन आज उन्हे चलते हुए देख कर मुझे बहुत खुशी हुई. अब लग रहा है कि पापा जल्दी ही ठीक हो जाएगे."

मैं बोला "अब तो तू खुश है ना. अब बस हमें कुछ दिन यहाँ अंकल की सेवा और करना है. फिर हम खुशी खुशी अपने घर लेकर चलेगे."

मेहुल बोला "पर भाई अभी वो कुछ खा नही पा रहे है. उन्हे जो भी दिया जा रहा है. राइस ट्यूब से दिया जा रहा है."

मैं बोला "हमारे जाने से पहले वो भी दूर हो जाएगी. अंकल के गले का ओपरेशन हुआ है. इसलिए उन्हे खाने पीने मे परेशानी है. इसी वजह से उन्हे इस तरह खाना दिया जा रहा है. लेकिन कुछ दिन मे उनके जख्म भरते ही उन्हे फिर वैसे ही खाना दिया जाने लगेगा. अब तू इस बारे मे ज़्यादा मत सोच. धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा."

मेहुल बोला "भगवान करे जैसा तू बोल रहा है. सब वैसा ही हो."

मैं बोला "सब वैसा ही होगा. अब तुम लोग यहाँ की चिंता मत करो. मैं यहाँ सब संभाल लुगा. अब तुम लोग घर जाओ."

मेरी बात सुनने के बाद उन्हो ने मुझे कुछ बातें बताई और फिर दोनो घर चले गये. उनके जाने के बाद मैं उपर अंकल के पास चला गया. वो अभी भी बात नही कर पा रहे थे, इसलिए वो मुझसे नोटबुक पर लिख कर बातें करने लगे. कुछ देर बाद वो सोने की बोल कर आँख बंद कर के लेट गये. थोड़ी ही देर मे उन्हे नींद भी आ गयी.

उनके सोने के कुछ देर बाद तक मैं उनके पास बैठा रहा. फिर 11:30 बजे मैं नर्स को बता कर नीचे आ गया. नीचे आकर मैने कॉफी ली और फिर बाहर आकर बैठ गया. शाम को 6 बजे के बाद से अब मुझे खुद के लिए फ़ुर्सत मिली थी. नही तो अभी तक मैं किसी ना किसी के साथ बिज़ी ही था.

अब मैने जैसे ही खुद को अकेला पाया तो सब से पहले कीर्ति को कॉल किया. उसका मोबाइल अभी भी बंद मिला तो फिर मैने वही करने की ठान ली. जो मैं दादा जी के अपने कमरे मे आने के पहले करने वाला था. मैने मौसी के मोबाइल का नंबर लगाया. रिंग जा रही थी लेकिन कोई कॉल नही उठा रहा था. मैने दो तीन बार कॉल किया लेकिन कॉल नही उठा.

अब मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी. कीर्ति के बिना बहुत सुना सुना लग रहा था. तभी मुझे लगा कि शायद वो घर वापस आ गयी हो. मुझे निमी से भी बात करना था. इसलिए मैने सीधे छोटी माँ को कॉल किया. छोटी माँ से बात होने के बाद मेरी निमी से थोड़ी बहुत बात हुई. उसके बाद मैने छोटी माँ से कीर्ति के बारे मे पुछा, तो उन्हो ने बताया.

छोटी माँ बोली "कीर्ति तो जब से घर गयी है. तब से वापस ही नही लौटी है."

मैं बोला "वो कुछ बता कर नही गयी कि, वो घर क्यों जा रही है."

छोटी माँ बोली "नही उसने ऐसा कुछ खास नही बताया. उसने बस इतना कहा था कि घर से मम्मी का फोन आया है और उसे ज़रूरी काम से बुलाया है."

छोटी माँ के इस जबाब से मुझे बहुत निराशा हुई. मैने उनसे एक दो इधर उधर की बात की फिर फोन रख दिया. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि कीर्ति ऐसा क्यों कर रही है. वो यदि मुझसे गुस्सा है तो उसे मुझ पर गुस्सा कर लेना था. लेकिन कम से कम मुझसे बात तो कर लेना था. क्या मुझे उस पर गुस्सा करने का भी हक़ नही है. जो वो इस तरह से मुझे तडपा रही है. उपर से उसका मोबाइल भी बंद जा रहा है. उसका मोबाइल तो मेरे गुस्सा करने से पहले ही बंद था.

कीर्ति से जुड़ी हर बात मेरी समझ के बाहर जा रही थी. मैं इनकी कड़ी से कड़ी जोड़ने की कोसिस कर रहा था. तभी मेरे मोबाइल पर मौसी का फोन आने लगा. उनका फोन आते देख मेरे चेहरे पर चमक आ गयी. मैने खुशी खुशी फोन उठाते हुए कहा.

मैं बोला "क्या मौसी कभी कभी तो मैं कॉल लगाता हूँ. उस पर भी मेरा कॉल नही उठाती हो."

मौसी बोली "ऐसी बात नही है रे. घर मे कुछ मेहमान आए हुए है. उन्ही की देख भाल मे फसि हुई हूँ. इसी वजह से तेरा कॉल नही उठा पाई थी. लेकिन देख जैसे ही मेहमानो से फ़ुर्सत मिली, सब से पहले तुझे ही कॉल लगाया है."

मैं बोला "कैसे मेहमान मौसी. क्या मौसा जी के ऑफीस से कोई आया है. या फिर कोई पार्टी वार्टी कर रही हो."

मौसी बोली "जैसा तू सोच रहा है. ऐसा कुछ भी नही है. ये बात तुझे ऐसे समझ मे नही आएगी. तू लौट के आजा फिर मैं तुझे सब कुछ समझा दुगी."

मैं बोला "क्या मौसी आप कभी मुझे अपना बेटा नही मानती. इसलिए कोई भी बात मुझे नही बताती."

मौसी बोली "तू तो मेरा राजा बेटा है रे, और तू ही इस घर का बड़ा बेटा भी है. सब कुछ तुझको ही तो संभालना है."

मैं बोला "रहने दो मौसी मुझे बातों मे मत बहलाओ. यदि सच बात नही बताना है तो मत बताओ."

मौसी बोली "तू इतना ज़िद कर रहा है तो, मैं तुझे सच बात बता देती हूँ. लेकिन देख ये बात तू अपनी छोटी माँ को मत बताना. नही तो वो मुझ पर नाराज़ हो जाएगी."

मैं बोला "आप कहती हो तो बिल्कुल नही बताउन्गा. अब बताइए तो कि कौन से खास मेहमान आए है. जिनकी इतनी ज़्यादा आवभगत चल रही है."

मौसी बोली "कीर्ति को देखने वाले आए हुए है. हम आज कीर्ति की सगाई कर रहे है."

मौसी की इस बात को सुनते ही मेरे कान के पर्दे ही फट गये. मुझे कुछ भी सुनाई देना बंद हो गया. मेरे दिल की धड़कने थम गयी. जिस की कल्पना मैने सपने मे भी नही की थी. वो सब हो रहा था. कीर्ति मुझे दुल्हन बनी नज़र आ रही थी. मुझे ऐसे लग रहा था. जैसे कोई मेरा दिल मेरे सीने से निकाल कर ले जा रहा हो. मेरी आँखों से आँसू निकल पड़े. निकलते भी क्यों ना. कीर्ति ही मेरी सब कुछ थी और अब उसी को मुझसे छीना जा रहा था.

मेरे मूह से मौसी की इस बात को सुनने के बाद कोई बोल ही ना फूटे. मैं कहता भी तो क्या कहता. मुझे चुप देख मौसी ने कहा.

मौसी बोली "देख मैने ये बात तेरे सिवा किसी भी नही बताई है. सुनीता को भी कुछ नही मालूम है. यदि उसे बताती तो वो ये सब होने ही नही देती. बेकार का लड़ाई झगड़ा लगा देती."

मेरे दिल की दुनिया लुट रही थी. मेरी प्यार की कश्ती डूब रही थी. डूबने वाला बचने के लिए हाथ पैर तो चलाता ही है. मैने भी एक नाकाम कोसिस करते हुए कहा.

मैं बोला "मौसी ये कैसे हो सकता है. कीर्ति की अभी शादी की उमर ही कहाँ हुई है. अभी तो उसके पढ़ने लिखने के दिन है. कम से कम उसकी पढ़ाई तो पूरी हो जाने दो"

मौसी बोली "उन लोगों को कीर्ति के पढ़ने लिखने से कोई आपत्ति नही है. कीर्ति यदि शादी के बाद पढ़ना चाहती है तो, वो उसे पढ़ने से नही रोकेगे."

मैं बोला "फिर भी मौसी कीर्ति की अभी शादी की उमर नही है. आप बहुत जल्दबाज़ी कर रही है."

मौसी बोली "देख अब तू भी सुनीता की तरह मुझे समझाने की कोशिश मत कर. मैने उसे इसीलिए नही बताया क्योंकि वो ये सब होने नही देती. मुझे लड़का पसंद आ गया, और मैं नही चाहती थी कि, कीर्ति की जगह और किसी से उसकी शादी हो."

मैं जानता था कि मौसी को उनकी मनमानी करने से सिर्फ़ छोटी माँ के सिवा कोई नही रोक सकता था. लेकिन उन्हो ने छोटी माँ को ही इस सब से दूर रखा हुआ था. मेरी कुछ समझ मे नही आया कि मैं क्या करूँ. मैने मौसी से पुछा.

मैं बोला "मौसी कहीं आप कीर्ति के साथ ज़बरदस्ती तो नही कर रही है. क्या आपने उसकी मर्ज़ी जान ली है."

मौसी बोली "कैसी बात कर रहा है. मैं कीर्ति की माँ हूँ. उसकी दुश्मन थोड़े ही हूँ. उसकी सहमति से ही सब कुछ हो रहा है."

मुझे मौसी की इस बात पर ज़रा भी भरोसा नही हो रहा था. मैं जानता था कि कीर्ति शादी के लिए कभी हाँ नही कह सकती. मैं मौसी से बोल पड़ा.

मैं बोला "मौसी कही आप झूठ तो नही बोल रही. कीर्ति भला शादी के लिए इतनी जल्दी कैसे तैयार हो सकती है. मुझे तो लग रहा है कि आप उसके साथ ज़ोर ज़बरदस्ती कर रही है."

मौसी बोली "नही रे, ये तू कैसी बात कर रहा है. मैं भला कीर्ति के साथ क्यों कोई ज़ोर ज़बरदस्ती करूगी. अपने दोनो बच्चों की कसम खा कर बोलती हूँ कि, ये सब कीर्ति की मर्ज़ी से ही हो रहा है. मैं झूठ नही बोल रही. पहले कीर्ति ने शादी के लिए ना नुकुर ज़रूर की थी. लेकिन जब मैने उसे लड़के और लड़के के परिवार के बारे मे सब कुछ बताया. तब वो भी इस शादी के लिए तैयार हो गयी. देख अब मेहमानो के जाने का समय हो रहा है. मैं तुझसे बाद मे बात करती हूँ. अब मैं रखती हूँ."

ये कह कर मौसी ने फोन रख दिया. लेकिन मौसी की इस बात से मेरा कलेजा छल्नि हो गया था. अब मुझे मौसी से कोई शिकायत नही रह गयी थी. शिकायत थी तो सिर्फ़ कीर्ति से थी. वो इस शादी के लिए कैसे तैयार हो गयी थी. क्या उसे एक पल के लिए भी मेरा ख़याल नही आया. ये सारे सवाल मेरे सीने मे उछल रहे थे, और मेरे दिल को लहुलुहन किए जा रहे थे.

मैने अपने आपको इतना बेबस कभी नही पाया था. जितना कि आज महसूस कर रहा था. मेरी आँखों के सामने कीर्ति का चेहरा आ रहा था और मैं रोए जा रहा था. लेकिन ना तो वहाँ कोई मेरा रोना देखने वाला था, और ना ही मेरे आँसू पोछने वाला था.

मैं कीर्ति के सिवा सब कुछ भूल चुका था. मुझे हर तरफ कीर्ति ही नज़र आ रही थी. मैं उस से रोते हुए कहते जा रहा था.

जान तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया. तुम्हे मुझसे धोका करने की क्या ज़रूरत थी. तुम एक बार मुझसे कहती कि, तुम्हे कोई और पसंद आ गया है. मैं खुद हंसते हंसते तुम्हे उसके साथ विदा कर देता. तुम्हे मेरे साथ ये धोका नही करना चाहिए था. तुम मेरी जान थी. तुम्हारी खुशी मे ही मेरी खुशी थी. तुम्हे एक बार तो मुझसे कह कर देखना था. मैं खुशी खुशी तुम्हारे रास्ते से हट जाता. तुम तो कहती थी कि, तुम मेरे सिवा किसी को अपना नही बनोगी. फिर तुम्हारे उस वादे का क्या हुआ. तुम तो कहती थी, तुम मेरे बिना जी नही सकोगी, तो तुम्हारी उस कसम का क्या हो गया. मैं तुम्हारे बिना नही जी सकता जान. मैं तुम्हारे बिना मर जाउन्गा."

मैं तुम्हारे बिन मर जाउन्गा जान. जैसे इन शब्दों ने मुझे सारे दर्द से निजात दिला दी हो. सच मे उस समय जीने से ज़्यादा मुझे मरने के नाम से सुकून मिला था. मैने फ़ैसला कर लिया कि अब मैं ज़िंदा नही रहुगा. मैने अपना मोबाइल निकाला और कीर्ति के बंद मोबाइल पर कॉल लगाया. मोबाइल अभी भी बंद था. मेरे चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कान आई. ये मुस्कान मेरे प्यार की हार के लिए थी. जो मोबाइल रात को 11 के बाद कभी बंद नही रहता था. वो आज मेरे मरने के समय पर भी बंद था.

मैने कीर्ति को एक मेसेज टाइप किया.

"जान ये तुम्हरे लिए मेरा आख़िरी मेसेज है. माफी चाहता हूँ कि तुम्हारी खुशियों से भरी जिंदगी को देख कर मैं अपने आपको खुश नही रख सका. मगर क्या करूँ. मेरे लिए मेरा सब कुछ तुम ही थी. जब तुम्हे ही मेरा साथ पसंद नही है. तब भला मैं जीकर क्या करूगा. मेरे दिल मे आख़िरी बार तुमसे बात करने की हसरत थी. लेकिन मेरी हसरत मेरे दिल मे ही दब कर रह गयी. तुम अपनी खुशियों मे इतनी खोई रही कि तुम्हे मैं याद ही ना रहा. लेकिन अब मैं तुम्हे याद आना भी नही चाहता. मैं तुम्हारी जिंदगी से हमेशा हमेशा के लिए जा रहा हूँ. मैं अपनी इस जिंदगी को आज अभी ख़तम कर रहा हूँ. आइ लव यू जान."

मैने कीर्ति के बंद मोबाइल पर मेसेज सेंड किया और फिर समुंदर की तरफ बढ़ चला. अब ना तो मेरे पास जीने का कोई मकसद बचा था. ना ही किसी की मुझे कोई परवाह थी. मुझे सिर्फ़ कीर्ति का मुझसे दूर जाना नज़र आ रहा था. जिस से बचने के लिए मेरे पास मौत के सिवा कोई दूसरा रास्ता नही था. इसलिए मैं अपनी मौत की तरफ बढ़ा चला जा रहा था.

लेकिन मेरे उपर अभी किसी के प्यार का क़र्ज़ बाकी था. उसे उतारे बिना मारना मेरे नसीब मे नही था. मेरे कदम रात के सन्नाटे मे समुंदर की तरफ बढ़े चले जा रहे थे. तभी मेरा मोबाइल बज उठा. मैने कॉल देखा तो कीर्ति का कॉल था. मैने कॉल काट दिया. लेकिन फिर मोबाइल बज उठा. मैने जितनी बार कॉल काटता. उतनी बार कॉल आता.

जब मैने कॉल नही उठाया तो कुछ देर बाद मेरे पास मेसेज आया. मैने बेमन से मेसेज पढ़ा. लेकिन मेसेज पढ़ते ही मेरे कदम जहाँ के तहाँ रुक गये. मेरी समझ मे नही आया कि ये सब कैसे हो गया. मैं वापस आकर अपनी जगह पर बैठ गया. कॉल अभी भी आए जा रहे थे. लेकिन अब मेरे अंदर कॉल उठाने की हिम्मत नही थी. मैं सोच रहा था क्या करूँ और क्या ना करूँ.
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RE: MmsBee कोई तो रोक लो - by desiaks - 09-09-2020, 01:26 PM
(कोई तो रोक लो) - by Kprkpr - 07-28-2023, 09:14 AM

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