RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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मैं अभी अपनी इस सोच से उभर भी नही पाया था कि, तभी छोटी माँ का मोबाइल बजने लगा. उन्हो ने कॉल देखा और सबको सॉरी बोल कर जाने लगी. उनको वहाँ से जाते देख, मैं भी उठ कर खड़ा होने लगा.
लेकिन उन्हो ने मुझे बैठे रहने का इशारा किया और फिर हम लोगों से थोड़ी दूर जाकर मोबाइल पर बात करने लगी. मैं इतना तो समझ गया था कि, ये कॉल घर से ही आया है. मगर ये बात मेरी समझ मे नही आ रही थी कि, रात को 2 बजे किसने और क्यो कॉल किया है.
मेरी नज़र छोटी माँ पर ही टिकी हुई थी और वो बात करते करते कुछ परेशान सी नज़र आ रही थी. कुछ देर बात करने के बाद, उन्हो ने कॉल रख दिया और वापस हमारे पास आ गयी.
उनके पास आते ही मैं उनसे कुछ पुच्छने वाला था की, तभी मेरा मोबाइल बजने लगा. मैने मोबाइल देखा तो, कीर्ति का कॉल आ रहा था. मैने फ़ौरन कॉल उठाते हुए कहा.
मैं बोला “क्या हुआ, घर मे सब ठीक तो है.”
मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने मुझे वहाँ का हाल समझाते हुए कहा.
कीर्ति बोली “यहाँ सब ठीक है. बस निमी नींद से अचानक जाग गयी और रोने लगी. हम सबने इसे समझाने की बहुत कोसिस की, लेकिन ये चुप होने का नाम ही नही ले रही थी. आंटी ने मौसी को कॉल किया था, पर ये उनकी बात भी कोई बात मानने को तैयार नही है. इसलिए मौसी ने इस से तुम्हारी बात करवाने को कहा है. लो अब अपनी लाडली से बात करो.”
ये कहते हुए कीर्ति ने निमी को मोबाइल पकड़ा दिया. निमी के हाथ मे मोबाइल लेते ही मुझे उसके रोने की आवाज़ सुनाई देने लगी और मैने उस से प्यार से कहा.
मैं बोला “क्या हुआ मेरी निम्मो को.? क्या उसने फिर कोई बुरा सपना देखा है.”
मेरी बात सुनकर, निमी ने रोते हुए कहा.
निमी बोली “भैया, वो आदमी फिर आपको मार रहा था और आप ज़ोर ज़ोर से रो रहे थे.”
निमी की ये बात सुनते ही मैं समझ गया कि, उसको हमेशा आने वाले सपने की वजह से ही वो इतना डरी हुई है. ये ही सपना उसे मेरे मुंबई आने के पहले भी आया था. मैने उसे उसी दिन की तरह समझाते हुए कहा.
मैं बोला “छोटी, मैने तुझे कितनी बार समझाया है कि, ऐसे सपने कभी सच नही होते है. इन सपनो का कभी कोई मतलब नही होता और हमेशा ही सपने का उल्टा होता है.”
लेकिन निमी पर मेरी इस बात का कोई असर नही पड़ा. वो अभी भी रोए जा रही थी. शायद वो बहुत ज़्यादा डर गयी थी. इसलिए मैने उसका ध्यान सपने पर से हटाते हुए कहा.
मैं बोला “छोटी, तू डरती क्यो है. मुझे कुछ नही हुआ है. देख मैं अच्छा भला तुझसे बात कर रहा हूँ ना. मैं तो यहाँ मेहुल भैया के साथ बैठा खाना खा रहा था. लेकिन अब तेरा रोना देख कर तो, मेरी सारी भूख ही मर गयी है.”
मेरी इस बात ने मेरी उस नन्ही सी बहन के दिल पर तीर की तरह किया. उसका रोना बंद हो गया और मुझे उसकी सिसकियों की आवाज़ सुनाई देने लगी. उसकी सिसकियाँ बहुत तेज थी, इसलिए मुझे इस समय उसकी हालत का अहसास सॉफ सॉफ हो रहा था. उसने सिसकियाँ लेते हुए मुझसे कहा.
निमी बोली “नही भैया, मैं बिल्कुल नही रो रही हूँ, आप खाना खा लो.”
उसकी सिसकियाँ बहुत तेज थी, जिस से मुझे अहसास हो रहा था कि, वो अपने आपको रोने से रोकने के लिए कितनी कोसिस कर रही है. अभी जो सपने मे मुझे पीटता हुआ देख कर, अपने आँसू रोक नही पा रही थी. वो ही अब मेरे भूखा रहने की बात सुनकर, अपने आँसू को बहने नही दे रही थी.
उसने तो अपने आँसू रोक लिए थे. लेकिन अपनी इस नन्ही परी का, अपने लिए ये प्यार देख कर, मैं अपने आँसू ना रोक सका और मेरी आँखे छलक गयी. मैने अपने आपको संभाला और फिर उसे समझाते हुए कहा.
मैं बोला “तू मेरी बिल्कुल फिकर मत कर, पहले तू सो जा, फिर मैं खाना खा लूँगा.”
निमी बोली “भैया, मुझे बहुत डर लग रहा है.”
मैं बोला “पागल डरती क्यो है. जब तक तू सो नही जाती, मैं तुझसे बात करता रहुगा. तू ज़रा कीर्ति को फोन दे.”
मेरी बात सुनकर, उसने कीर्ति को मोबाइल दे दिया. कीर्ति के मोबाइल लेते ही मैने उस से कहा.
मैं बोला “अमि निमी के पास कौन सो रहा है.”
कीर्ति बोली “उनके पास आंटी सो रही है.”
मैं बोला “ठीक है, तू आंटी को मोबाइल दे.”
कीर्ति ने आंटी को मोबाइल दिया तो, मैने आंटी से निमी को अपने से लिपटा लेने का कहा और फिर उनको मोबाइल निमी को दे देने को कहा. निमी के फोन लेने पर, मैने उसे आँख बंद करने को कहा और फिर मैं उसे बताया कि, अब मैं खाना खाते खाते उसके साथ बात भी करता जाउन्गा.
ये कह कर मैं खाना खाते हुए निमी से बात करने लगा. उधर मेरे कहे अनुसार आंटी ने निमी को अपने सीने से चिपका लिया था और उसे थपकी देती जा रही थी. मेरा खाना खाना तो हो चुका था. लेकिन मैं निमी के सोने के इंतजार मे अभी भी बैठा हुआ था. जिस वजह से बाकी लोग भी खाना खा लेने के बाद भी, अभी भी वही बैठे हुए थे.
कुछ ही देर मे निमी की नींद लग गयी. उसकी नींद लगते ही, आंटी ने उसके हाथ से मोबाइल ले लिया और मुझसे कहा.
आंटी बोली “अमि निमी दोनो सो गयी है. अब तुम मोबाइल रख सकते हो.”
आंटी की बात सुनकर, मैने सुकून की साँस ली और उन से कहा.
मैं बोला “आंटी, अभी उसकी नींद कच्ची ही होगी. इसलिए अभी आप उसे अपने सीने से चिपकाए ही रहना, वरना वो फिर उठ कर, रोना सुरू कर देगी.”
मेरी बात सुनकर, आंटी ने मुझे झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.
आंटी बोली “क्या अब मुझे अपने बच्चों सीखना पड़ेगा. सोनू ठीक कहती थी कि, तू वहाँ जाकर बहुत बड़ी बड़ी बातें करने लगा है. तू वापस आ फिर मैं तुझे बताती हूँ कि, मुझे क्या करना चाहिए और क्या नही करना चाहिए.”
आंटी की ये बात सुनकर, मैं हँसने लगा और उन ने मोबाइल कीर्ति को थमा दिया. कीर्ति को एक दो बातें समझाने के बाद, मैने जैसे ही कॉल रखा, वैसे ही छोटी माँ ने मुझसे कहा.
छोटी माँ बोली “क्या हुआ, निमी सो गयी.”
मैं बोला “जी छोटी माँ, वो दोनो सो गयी है. सपने की वजह से थोड़ा डर गयी थी, इसलिए परेशान कर रही थी.”
मेरी बात सुनकर, छोटी माँ ने भी सुकून की साँस लेते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “मैं तो उसे समझाते समझाते तक गयी थी. इसलिए मैने कीर्ति से उसकी तुझसे बात करवाने को कहा था.”
थोड़ी देर सब अमि निमी के बारे मे ही बातें करते रहे. लेकिन ये सिलसिला सिर्फ़ कुछ ही देर का था. क्योकि अभी शादी की बहुत सी रस्मे बाकी थी. इसलिए सब वहाँ से फ़ौरन उठ कर शादी की बाकी रस्मो की तैयारी मे लग गये और फिर शादी की बाकी की रस्मे सुरू हो गयी.
अब 3:30 बज गये थे और सब घर के बाहर फेरो के लिए बने पंडाल के नीचे, रस्मो को पूरा करने मे लगे थे. ऐसे ही रस्मे चलते चलते एक रस्म लड़की के मामा की आई और दुर्जन को देखा जाने लगा. लेकिन वो अभी भी कही नज़र नही आ रहा था. इसलिए अलका आंटी ने बरखा और नेहा को दुर्जन को देखने नेहा के घर भेजा.
कुछ देर बाद वो दोनो वहाँ से वापस लौटी तो, बरखा ने बताया कि, घर पर तो ताला लगा है और दुर्जन मामा का मोबाइल भी बंद बता रहा है. ये बात सुनकर, सब परेशान हो गये कि, अब मामा की रस्म कौन पूरी करेगा. लेकिन तभी धीरू शाह ने आगे आते हुए कहा.
धीरू शाह बोला “वैसे तो मैं लड़के की तरफ से हूँ. लेकिन यदि किसी को बुरा ना लगे तो, लड़की के मामा की ये रस्म मैं पूरी करना चाहता हूँ. शायद इस रस्म को पूरा करने से मेरे पाप का बोझ कम हो जाए.”
धीरू शाह की इस बात का किसी ने विरोध नही किया और उसने लड़की के मामा की ये रस्म पूरी कर दी. धीरू शाह की ये बात मेरे दिल को छु गयी थी और अब वो भी मुझे एक अच्छा इंसान समझ मे आ रहा था.
धीरू शाह की पिच्छली जिंदगी के बारे मे सोचते सोचते, मुझे छोटी माँ की कही हुई बात याद आने लगी की, बुराई को बुराई से कभी नही मिटाया जा सकता. बुराई से बुराई सिर्फ़ बढ़ती ही है. बुराई को सिर्फ़ अच्छाई से ही मिटाया जा सकता है. इसलिए बुरे के साथ भी अच्छा ही करो, एक ना एक दिन उसकी बुराई, तुम्हारी अच्छाई के सामने हार जाएगी. अच्छाई को जीतने मे समय ज़रूर लगता है. लेकिन अंत मे जीत हमेशा अच्छाई की ही होती है.
आज मेरे सामने बुराई की दो मिसालें, धीरू शाह और मोहिनी आंटी थी. जिनकी बुराई को, अजय और प्रिया की अच्छाई ने हरा कर, उन्हे एक अच्छा इंसान बनने पर मजबूर कर दिया था. छोटी माँ की ये बात उस समय तो मेरे गले से नही उतर रही थी. लेकिन आज जब मैं उनकी इस बात की सच्चाई अपनी आँखों से देख रहा था तो, मुझे अहसास हो रहा था कि, उन्हो ने मुझे कितनी सच्ची बात बताई थी.
इस बात का अहसास करते ही, मेरी नज़रे यहाँ वहाँ छोटी माँ को तलाश करने लगी.
छोटी माँ जहाँ पर ये रस्मे चल रही थी. वहाँ से थोड़ी ही दूरी पर एक सोफे पर बैठी मेहुल से बात कर रही थी.
उन पर नज़र पड़ते ही मैने अजय से थोड़ी देर बाद आने की बात जताई और सब के पास से उठ कर, सीधे छोटी माँ और मेहुल के पास पहुच गया. उनके बीच मे शायद मुझे लेकर ही कोई बात चल रही थी. इसलिए मुझे देखते ही मेहुल ने छोटी माँ से कहा.
मेहुल बोला “लो नाम लिया शैतान का और शैतान हाजिर हो गया. अब आप ही इसको सम्भालो, मैं तो चला यहाँ से वरना अभी झगड़ा सुरू हो जाएगा.”
ये कहते हुए मेहुल हमारे पास से चला गया. उसके जाने के बाद, छोटी माँ ने मुझसे कहा.
छोटी माँ बोली “क्या हुआ, तू वहाँ से उठ कर यहाँ क्यो आ गया.”
छोटी माँ की इस बात के जबाब मे मैने अपनी पीठ पर हाथ रख कर, उसे कमान की तरह मोडते हुए कहा.
मैं बोला “छोटी माँ, दिन भर यहाँ वहाँ भटकते हुए थक गया हूँ. इसलिए थोड़ा पीठ सीधा करने यहाँ आ गया हूँ.”
ये कहते हुए, मैं छोटी माँ की गोद मे सर रख कर लेट गया और उन्हे आज की मोहिनी आंटी वाली सारी बातें बताने लगा. छोटी माँ मेरी बातें सुन रही थी और मुस्कुराते हुए मेरे सर पर हाथ फेर रही थी. मोहिनी आंटी की बात ख़तम होने के बाद मैने छोटी माँ से कहा.
मैं बोला “प्रिया बता रही थी कि, आप कल घर वापस जा रही है. क्या आप एक दिन ऑर नही रुक सकती. फिर हम सब लोग साथ ही घर चलेगे.”
मेरी बात सुनकर, छोटी माँ ने प्यार से मेरे गाल पर थपकी मारते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “तू कहेगा तो मैं तेरी ये बात भी मान लुगी. लेकिन अभी कुछ देर पहले खुद ही निमी की हालत देखी है. क्या इसके बाद भी तुझे लगता है कि, मुझे यहा एक दिन ऑर रुकना चाहिए.”
छोटी माँ की ये बात सुनकर, मुझसे उनसे कुछ भी कहते ना बना. मैने उनकी इस बात के जबाब मे अपना सर ना मे हिलाकर, उनके जाने को अपनी सहमति देते हुए अपनी आँख बंद कर ली.
वो मुझे इस बारे मे समझाने लगी और मैं आँख बंद करके लेटा लेटा, उनकी बात सुनता रहा. लेकिन उनकी गोद के असर और मेरे सर पर हाथ फेरने के जादू से, मुझे पता ही नही चला कि, मैं कब गहरी नींद की आगोश मे चला गया.
फिर मेरी नींद सुबह 6 बजे जूते चोरी होने की आवाज़ का शोर सुनकर खुली. मैने आँख खोली तो, मैं अभी भी छोटी माँ की गोद मे सर रख कर लेटा हुआ था और वो अभी भी वैसी की वैसी ही बैठी हुई थी, जैसी की मेरे नींद लगने के पहले बैठी थी. ये देखते ही मैं फ़ौरन उठ कर बैठ गया और उन से कहा.
मैं बोला “छोटी माँ, यदि मेरी नींद लग गयी थी तो, आपको मुझे जगा देना चाहिए था. आप इतनी देर ऐसी ही बैठी बैठी थक गयी होगी.”
मेरी बात पर छोटी माँ ने मुस्कुराते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “मैं बिल्कुल भी नही थकि, बल्कि तुझे इस तरह अपनी गोद मे सुला कर, मुझे तो आराम ही मिला है. फिर तू दो रात से ज़रा भी सोया नही था. ऐसे मे तेरा थोड़ा आराम करना ज़रूरी था. इसलिए मैने तुझे जगाना ठीक नही समझा.”
अभी मेरी और छोटी माँ की बातें चल ही रही थी कि, तभी हमारे पास प्रिया और निक्की आ गयी. उन दोनो को एक बार फिर से साथ देख कर, मुझे बेहद खुशी हुई. उनके पास आते ही मैने उन से कहा.
मैं बोला “ये इतना शोर किस बात का हो रहा है.”
मेरी इस बात का जबाब निक्की ने देते हुए कहा.
निक्की बोली “ये जूते चोरी होने का शोर है.”
मैं बोला “लेकिन जूते चोरी होने मे इतना शोर क्यो हो रहा है.”
निक्की बोली “वो इसलिए क्योकि जब हम सब अजय भैया और अमन भैया के साथ घर के अंदर जाकर रस्मे पूरी कर रहे थे. इसी समय जूते भी चोरी करना था. लेकिन जैसे ही बरखा दीदी जूते चोरी करने गयी तो, पता चला कि जूते पहले ही चोरी हो चुके है.”
“ये देख कर, बरखा दीदी समझ गयी कि, ये काम नेहा के अलावा कोई नही कर सकता. इसलिए वो चुप चाप वापस अंदर चली गयी. लेकिन जब हम सब बाहर वापस आए तो देखा कि, अजय भैया के साथ साथ अमन भैया के जूते भी गायब है.”
“अब बरखा दीदी तो जानती थी कि, ये काम नेहा का है. इसलिए उन्हो ने नेहा से पुछा कि, उसने अजय भैया के साथ साथ अमन भैया के जूते भी चोरी क्यो किए, तो उसने बताया कि, अजय भैया और अमन भैया दोनो के जूते एक जैसे थे. जिस वजह से उसे समझ मे नही आ रहा था कि, कौन से जूते किसके है. इसलिए उसने दोनो के ही जूते चोरी कर लिए थे.”
“यहाँ तक तो सब मामला ठीक था. लेकिन अब जूते वापस करने के समय नेहा अजय भैया के साथ साथ अमन भैया के जूते वापस करने का भी नेंग माँग रही है. जिसके लिए सीरू दीदी लोग तैयार नही है और नेहा अपनी ज़िद पर अडी हुई है. इसलिए इतना हंगामा हो रहा है.”
निक्की की ये बात सुनकर, मुझे भी हँसी आ रही थी और मैं भी ये सब देखने के लिए जाने लगा. लेकिन तभी छोटी माँ ने मुझे रोकते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “अभी वहाँ मत जाओ. पहले जाकर मूह हाथ धो लो. क्योकि अंदर विदा होने की तैयारी चल रही है.”
छोटी माँ की बात सुनकर, मैं उपर जाकर मूह हाथ धोने लगा. मूह हाथ धोने के बाद, मैं नीचे आया तो, मेहुल ने फूलों से सजी धजी कार, शिखा दीदी को विदा करने के लिए घर के सामने खड़ी कर दी. अब विदा की तैयारी चल रही थी.
मैं घर के अंदर आया तो, शिखा दीदी आंटी से गले लग कर रो रही थी. मुझसे ये सब देखा नही गया और मैं उपर आकर छत की दीवार से टिक कर ज़मीन पर ही बैठ गया.
शिखा दीदी को रोते देख कर, मेरे भी आँसू रुकने का नाम नही ले रहे थे. मैं चाहते हुए भी शिखा दीदी का सामना करने की हिम्मत नही जुटा पा रहा था. इसलिए उपर ही बैठा अकेले मे आँसू बहा रहा था.
नीचे शिखा दीदी की विदा हो रही थी और सब मुझे यहाँ वहाँ ढूँढ रहे थे. मुझे कही ना पाकर सभी परेशान हो रहे थे. तभी बरखा मुझे ढूँढती हुई उपर आ गयी और मुझे इस तरह से बैठा देख, वो भी मेरे पास बैठ गयी.
लेकिन बरखा को अपने पास देख कर, मेरे लिए अपने आँसू रोक पाना और भी मुस्किल हो गया. मैने उसके कंधे पर सर रखा और बेहताशा आँसू बहाते हुए कहा.
मैं बोला “दीदी, मुझसे ये नही हो पाएगा. मैं इस समय दीदी का सामना नही कर पाउन्गा. मैं उन्हे रोते हुए नही देख सकता.”
मेरी बात के जबाब मे, बरखा ने मेरे आँसू पोछे और मुझे समझाते हुए कहा.
बरखा बोली “भाई, मैं तुम्हारे इस दर्द को समझ सकती हूँ. लेकिन ये दीदी की नयी जिंदगी की शुरुआत है. वो तुमसे मिले बिना नही जाएगी. इसलिए तुम्हे खुशी खुशी उनको विदा करना होगा.”
इतना कह कर बरखा खड़ी हो गयी. उसने मेरा हाथ पकड़ कर, मुझे भी खड़ा किया और फिर मुझे नीचे ले आई. नीचे शिखा दीदी सबसे गले मिल कर रो रही थी. जैसे ही उनकी नज़र मुझ पर पड़ी, वो मेरे पास आई और मुझसे लिपट कर रोने लगी. उनके मेरे गले लग कर रोते ही, मैं बरखा की दी हुई सारी समझाइश भूल गया और उनके साथ साथ मैं भी रोने लगा.
पद्मिानी आंटी शिखा दीदी को कार तक ले जाने की कोसिस कर रही थी. लेकिन शिखा दीदी थी कि, मुझे छोड़ ही नही रही थी और मुझसे लिपट कर रोए जा रही थी. मैं भी कुछ समझ नही पा रहा था और रोने मे उनका साथ दिए जा रहा था.
तब पद्मिरनी आंटी ने मुझसे कहा कि, शिखा ले जाकर कार मे बैठाओ. आंटी की ये बात सुनकर मैं किसी तरह शिखा दीदी को कार तक ले आया और उन्हे कार मे बैठाने की कोसिस करने लगा.
लेकिन वो अभी भी मुझे नही छोड़ रही थी और मुझसे लिपट कर रोए ही जा रही थी. मैं खुद को तो रोने से नही रोक पा रहा था. लेकिन उनको बार बार रोने से मना कर रहा था.
तभी पद्मिेनी आंटी ने आकर किसी तरह शिखा दीदी को गाड़ी मे बैठा दिया. इसके बाद भी उनका रोना जारी था. बरखा और आंटी आकर शिखा दीदी से मिलने लगी. आंटी और बरखा के शिखा दीदी के पास से दूर हटते ही शिखा दीदी की गाड़ी धीरे धीरे आगे बढ़ने लगी.
हम सब अपनी आँसू भरी आँखों से दूर जाते हुए देखने लगे और शिखा दीदी भी अपनी आँखों मे आँसू भरे पलट पलट कर हम लोगों को देख रही थी. फिर कुछ ही देर मे शिखा दीदी हमारी नज़रों से ओझल हो गयी.
शिखा दीदी के हमारी नज़रों से ओझल होते ही, एक सूनापन सा मेरे दिल मे समाने लगा. मैं अब दिल खोल कर रोना चाहता था. इसलिए मैं भाग कर फिर उसी जगह पर आ गया, जहा से बरखा मुझे उठा कर ले गयी थी.
वहाँ आकर बैठते ही मैने बेहताशा रोना सुरू कर दिया. जिस बहन की विदाई के लिए मैने रात दिन एक कर दिए थे. आज उसी बहन की विदाई के बाद, उसकी जुदाई मैं सहन नही कर पा रहा था और उसे याद करके रोए जा रहा था.
मेरी आँखों के सामने शिखा दीदी के साथ बिताया हर एक लम्हा घूम रहा था. मैं हर एक जगह पर उनकी कमी को महसूस कर रहा था और उनकी कही हर एक बात मुझे उनकी याद दिला कर रुलाए जा रही थी.
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