RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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वहीं दूसरी तरफ वाणी दीदी की इस बात को सुनकर, मेरे मन मे भी एक सवाल गूंजने लगा था कि, कहीं पोलीस कमिशनर के उपर इस हमले के पिछे वाणी दीदी का हाथ ही तो, नही है.
मैं अभी अपनी इसी उधेड़ बुन मे लगा था कि, तभी निशा भाभी ने मुझे कोहनी मारते हुए, धीरे से कहा.
निशा भाभी बोली “कहीं पोलीस कमिशनर पर हमला वाणी ने ही तो नही करवाया.”
निशा भाभी की इस बात ने मुझे चौका दिया. क्योकि मैं तो खुद अभी यही बात सोच रहा था. मैने भी धीरे से निशा भाभी की इस बात के जबाब मे उन से कहा.
मैं बोला “भाभी, मेरे मन मे भी अभी ये ही सवाल आ रहा था. दीदी की बात से तो, ऐसा ही लग रहा है कि, जैसे क्या हुआ है और क्या होने वाला है. उन्हे सब कुछ पहले से ही पता है. फिर भी यदि उन दोनो हमला करने वालों की लाश पोलीस को मिलती है तो, फिर हमे ये ही मानना पड़ेगा कि, इसके पिछे इन्ही का हाथ था.”
हम दोनो आपस मे बात करने मे लगे थे. तभी कोयल की आवाज़ सुनकर, हमारा ध्यान उसकी तरफ चला गया. कोयल ने मेहुल को खाना खाते नही देखा तो, उसने मेहुल से कहा.
कोयल बोली “भैया, आप क्यो चुप चाप बैठे है. आप भी खाना खाइए ना.”
कोयल की बात सुनते ही, हम सबके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. वहीं मेहुल ने बुरा सा मूह बनाते हुए कहा.
मेहुल बोला “नही भाभी, आज सुबह से मेरा पेट सही नही है. इसलिए आज मैं कुछ नही खाउन्गा.”
लेकिन कोयल उस से कुछ ना कुछ खा लेने की ज़िद करती रही और मेहुल उन्हे मना करता रहा. मगर वो बार बार वाणी दीदी की तरफ इस उम्मीद से ज़रूर देख रहा था कि, शायद कोयल की बात सुनकर ही, उनका दिल पिघल जाए और वो उसे खाना खाने के लिए कह दे.
लेकिन वाणी दीदी ने ऐसा कुछ भी नही किया तो, मेहुल की भी कुछ खाने की हिम्मत नही हुई. वो सिर्फ़ सबको खाना खाते देखने के सिवा कुछ ना कर सका. अभी हमारा खाना चल ही रहा था की, तभी प्रीतम का कॉल आ गया.
वो फोन पर बात करने लगा और बात ख़तम होते ही, उसने हमें बताया कि, जिन दो लोगों ने पोलीस कमिशनर पर हमला किया था. उन्हे सीआइडी ने मार गिराया है और उनकी लाश पोलीस कमिशनर को सौंप दी गयी है.
लेकिन प्रीतम की इस बात को सुनने के बाद भी, वाणी दीदी ऐसे खाना खाती रही. जैसे की कुछ हुआ ही ना हो. अब मेरा शक़ पूरी तरह से यकीन मे बदल गया था कि, ये सब वाणी दीदी का ही किया हुआ है.
मगर मेरी समझ मे ये नही आ रहा था कि, वाणी दीदी ने ये सब क्यों किया है. ये ही सब बातें सोचते सोचते, सबके साथ साथ मेरा भी खाना खाना हो गया. खाना खाने के बाद, हम सब कोयल और पायल से वापस जाने की इजाज़त लेने लगे.
कोयल और पायल दोनो हमें घर के बाहर तक छोड़ने आई. हम बाहर आए तो, वहाँ सीआइडी ऑफीसर अनिरूद्धा खड़ा था. वाणी दीदी ने उसे अकेले मे कुछ बात की और फिर हमारे पास आकर, छोटी माँ से कहा.
वाणी दीदी बोली “मौसी, मुझे एक ज़रूरी काम से जाना है. आप लोग अनिरूद्धा और प्रीतम के साथ हॉस्पिटल जाइए, तब तक मैं भी अपना काम निपटा कर आती हूँ.”
वाणी दीदी को अकेले जाते देख कर, छोटी माँ को उनकी चिंता होने लगी. लेकिन वो ये बात वाणी दीदी से सीधे सीधे नही कह पा रही थी. इसलिए उन्हो ने अपनी बात को घूमाते हुए, वाणी दीदी से कहा.
छोटी माँ बोली “बेटा, तू हमारी फिकर मत कर और इनको अपने साथ ही ले जा. हम लोग प्रीतम के साथ हॉस्पिटल चले जाएगे.”
लेकिन वाणी दीदी छोटी माँ की इस बात का मतलब समझ गयी थी. इसलिए उन्हो ने मुस्कुराते हुए कहा.
वाणी दीदी बोली “मौसी आप मेरी ज़रा भी फिकर मत कीजिए. जब तक आपका आशीर्वाद मेरे साथ है. तब तक मुझे कुछ नही हो सकता. हां आपकी कार को ज़रूर थोड़ी बहुत खरोंच आ सकती है.”
ये कह कर, वाणी दीदी हंसते हुए, छोटी माँ की कार मे हमारी नज़रों से ओझल हो गयी. उनकी बातों से छोटी माँ के चेहरे पर मुस्कुराहट ज़रूर आ गयी थी. लेकिन उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें भी सॉफ देखी जा सकती थी.
वाणी दीदी के जाते ही, अमि, निमी कीर्ति और छोटी माँ प्रीतम के साथ और मैं, बरखा दीदी, निशा भाभी और मेहुल अनिरूद्धा के साथ गाड़ी मे बैठ कर, हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े.
रास्ते मे निशा भाभी को शरारत सूझी और वो बरखा दीदी ने कोयल के बनाए खाने की तारीफ करने लगी. मेहुल निशा भाभी की इस शरारत को समझ गया था. उसने पलट कर उन्हे देखते हुए कहा.
मेहुल बोला “भाभी, यहा मेरी भूख के मारे जान निकली जा रही है और आपको मज़ाक सूझ रहा है. मैं तो वाणी दीदी के गुस्से से बचने के लिए कल मामा के घर भाग रहा था. लेकिन इसकी और कीर्ति की बात सुनकर, यहाँ रुक गया और अब यहाँ रुकने का नतीजा भी भोग रहा हूँ.”
मेहुल की ये बात सुनकर, मैं उसे कुछ बकने ही वाला था कि, तभी बरखा दीदी ने मेरी तरफ़दारी करते हुए कहा.
बरखा दीदी बोली “अरे, तुम इस सब का दोष इसे क्यो दे रहे हो. ये सब तो तुम्हारी खुद की ग़लती से हुआ है. तुमने उनसे झूठ क्यो कहा था.”
मेहुल बोला “अरे मुझे लगा था कि, अमि निमी मेरे इस झूठ मे मेरा साथ देगी. इसलिए मैने बिना किसी डर के वाणी दीदी से झूठ बोल दिया.”
मेहुल की इस बात पर बरखा दीदी को कुछ हैरानी हुई और उन्हो ने मेहुल से पुछा.
बरखा दीदी बोली “लेकिन तुमको ये ग़लतफहमी क्यो हो गयी थी कि, वो दोनो इस झूठ मे तुम्हारा साथ देगी.”
मेहुल बोला “दीदी, मुझे कोई ग़लतफहमी नही हुई थी. उन दोनो ने ही परसो मुझसे कहा था कि, वाणी दीदी ने उनको बहुत परेशान किया है. अब हम सब मिल कर वाणी दीदी को सबक सिखाएगे. अब मुझे क्या पता था कि, वो दोनो चुर्की मुरकी इतनी जल्दी पाला बदल लेगी.”
मेहुल की इस बात को सुनकर, निशा भाभी और बरखा दीदी हँसने लगी. लेकिन मैने निमी का बचाव करते हुए, बरखा दीदी से कहा.
मैं बोला “दीदी, निमी के इसका साथ ना देने मे भी इसकी ही ग़लती है. आपको याद होगा कि, इसने निमी को मोटी कहा था और उसने रोना सुरू कर दिया था. निमी मोटी कहने पर चिढ़ती है. इसके बाद भी इसने उसे मोटी कह कर नाराज़ कर दिया था. जिसका बदला निमी ने इसके झूठ मे साथ ना देकर और इसे मोटू कह कर निकाल लिया.”
मेरी बात सुनकर, एक बार फिर बरखा दीदी और निशा भाभी की हँसी गूँज उठी. निशा भाभी ने मेहुल को फिर से छेड़ते हुए कहा.
निशा भाभी बोली “तुम कुछ भी कहो. लेकिन निमी के तुम्हारे साथ ना देने से तुम्हारा भला ही हुआ है. अब तो वाणी तुम्हारी शादी पक्की करवा कर ही दम लेगी.”
निशा भाभी की इस बात पर मेहुल ने चिड़चिड़ाते हुए कहा.
मेहुल बोला “क्या भाभी, क्या वाणी दीदी मेरी खिचाई करने के लिए कम थी, जो आप भी सुरू हो गयी. शिल्पा ने तो वाणी दीदी की आवाज़ सुनकर, ऐसे मोबाइल बंद किया है कि, अभी तक उसका मोबाइल बंद है.”
“वाणी दीदी को अभी आप अच्छे से जानती नही है. यदि वो धोखे से भी शिल्पा के घर चली गयी तो, शादी पक्की होना तो दूर की बात है. शिल्पा के सर से प्यार का भूत भी उतर जाएगा.”
“उपर से ये सारा लफडा मम्मी के सामने हुआ है. अब वो अलग घर जाकर मेरी खिचाई करेगी और मुझसे ये जानने की कोसिस करेगी कि, मुझे कॉल करने वाली वो लड़की कौन थी. वाणी दीदी की वजह से तो, अब मेरा जीना ही हराम होने वाला है.”
मेहुल की बात सुनकर, निशा भाभी ने उसे दिलासा देने की गरज से कहा.
निशा भाभी बोली “तुम्हारी ये बात तो बिल्कुल सही है. मुझे तो उन मुजरिमो से कहीं ज़्यादा इस वाणी से डर लग रहा है. ये तो गाजर मूली की तरह लोगों को काट देती है और अपने आगे किसी को कुछ नही समझती है.”
“ये हर पल ऐसे झटके दे रही है कि, यदि हमारीी जगह कोई कमजोर दिल वाला इसके साथ होता तो, उसे पता नही, अब तक कितनी बार दिल का दौरा पड़ गया होता. इसके साथ सुरक्षित रहने से अच्छा तो, मुजरिमो के चंगुल मे फसे रहना है.”
निशा भाभी की ये बात सुनकर, हम सबकी हँसी छूट गयी. ऐसे ही हँसी मज़ाक करते करते हम हॉस्पिटल पहुच गये. हॉस्पिटल मे अनुराधा मौसी, रिचा आंटी और मोहिनी आंटी तीनो बैठी बातें कर रहे थी.
हम सब भी उन्ही के पास जाकर बैठ गये. निशा भाभी लोगों को यहाँ आए, बहुत देर हो चुकी थी और वो जब से आई थी, तब से ही हमारे साथ ही लगी हुई थी. इसलिए छोटी माँ उनसे घर चल कर, आराम करने की बात कहने लगी.
निशा भाभी को भी छोटी माँ की ये बात सही लगी. उन्हो ने एक बार चंदा मौसी को देख लेने की बात कह कर, घर चलने की सहमति दे दी. इसके बाद, वो चंदा मौसी को देखने चली गयी.
निशा भाभी के चंदा मौसी के पास जाने के बाद, छोटी माँ बरखा दीदी से बात करने लगी. मैं कीर्ति को यहाँ वहाँ देखने लगा. वो मुझे सबसे अलग थलग बैठी, अख़बार पढ़ती नज़र आई.
मैं जाकर उसके पास बैठ गया. उसके हाथ मे आज का अख़बार देख कर, मुझे याद आया कि, आज बुधवार (वेडनेसडे) है. ये बात याद आते ही, मैने उस से अख़बार ले लिया और उस मे तृप्ति की रचना तलाशने लगा.
कीर्ति मेरी इस हरकत को हैरानी से देखने लगी. तभी मुझे तृप्ति की रचना दिखाई दे गयी. उसकी आज की रचना का शीर्षक “ज़रुरू तो नही” था. मैं उसकी ये रचना पढ़ने लगा.
“ज़रूरी तो नही”
“उनको भी मुझसे मोहब्बत हो ज़रूरी तो नही.
एक सी दोनो की ही हालत हो ज़रूरी तो नही.
दिल की चाहत तो कई ख्वाब जगा देती है,
हां मगर साथ मे किस्मत हो ज़रूरी तो नही.
मेरी तनहाईयाँ करती हैं जिन्हे याद सदा,
उनको भी मेरी ज़रूरत हो ज़रूरी तो नही.
वो वादा करके भूल जाया करते है.
भूलना मेरी भी फ़ितरत हो ज़रूरी तो नही.
मुस्कुराने से भी हो जाते है बयान दिल के गम,
मुझको रोने की भी आदत हो ज़रूरी तो नही.
उनके पहलू मे ही दम तोड़े “तृप्ति.”
पूरी मेरी ये हसरत हो ज़रूरी तो नही.”
तृप्ति की इस रचना को पढ़ कर, एक बार फिर मेरी आँखों के सामने प्रिया का भोला भाला चेहरा घूमने लगा. इस रचना की हर पंक्ति मुझे प्रिया के दिल का हाल कहती, नज़र आ रही थी.
मेरे साथ साथ कीर्ति भी इस रचना को पढ़ रही थी. इस रचना को पढ़ने के बाद, उसने मुझसे मेरा मोबाइल माँगा और फिर उसमे से प्रिया का एक एस एम एस खोल कर मेरे सामने रख दिया. मैं प्रिया का एस एम एस देखने लगा.
प्रिया का एस एम एस
“वादा करके निभाना उनकी आदत हो ज़रूरी तो नही.
भूल जाना मेरी फ़ितरत हो ज़रूरी तो नही.
मेरी तनहाईयाँ करती है जिन्हे याद सदा,
उनको भी मेरी ज़रूरत हो ज़रूरी तो नही.”
प्रिया का वो एस एम एस तृप्ति की रचना से काफ़ी मिलता जुलता दिख रहा था. लेकिन मैं कीर्ति की इस बात का मतलब समझ नही पाया और हैरानी से उसकी तरफ देखने लगा. मुझे इस तरह हैरान देख कर, कीर्ति ने मुझसे कहा.
कीर्ति बोली “क्या तुम्हे इस रचना और प्रिया के एस एम एस मे कुछ खास दिखाई दिया.”
मैं बोला “हां, प्रिया के एस एम एस की लाइन इस रचना से बहुत कुछ मिलती जुलती है. लेकिन तू कहना क्या चाहती है.”
कीर्ति बोली “मुझे लगता है कि, कहीं प्रिया ही तो तृप्ति नही है.”
मैं बोला “तू पागल हो गयी है क्या. अख़बार मे छपि रचना को, कोई भी भेज सकता है.”
कीर्ति बोली “तुम्हारा कहना सही है. लेकिन सोचने वाली बात ये है कि, किसी रचना के छपने के पहले ही, कोई कैसे उसकी लाइन भेज सकता है.”
कीर्ति की इस बात को सुनकर, मैने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं बोला “तू सच मे पागल हो गयी है. तुझे आज कल हर बात के पिछे प्रिया ही नज़र आती है. अरे ये भी तो हो सकता है कि, ये रचना इसके पहले किसी दूसरे अख़बार मे छपि हो और प्रिया ने उसी मे से पढ़ कर इसको भेजा हो.”
मेरी ये बात सुनकर, कीर्ति कुछ सोचने लगी और मैं मुस्कुराते हुए, उसे देखने लगा. मैं कीर्ति के चेहरे को देखने मे खोया हुआ था कि, तभी चिल्लाने की आवाज़ सुनकर, हम दोनो चौक गये और छोटी माँ की तरफ देखने लगे.
छोटी माँ के पास पापा और मौसा जी खड़े थे. पापा किसी बात को लेकर छोटी माँ पर गुस्सा कर रहे थे. मुझे ये समझते देर ना लगी कि, वो यहाँ हुए हादसे की खबर ना देने के उपर से छोटी माँ पर गुस्सा कर रहे है.
ये बात समझ मे आते ही, मैं उठ कर उनके पास जाने को हुआ. लेकिन कीर्ति ने मेरा हाथ पकड़ कर, मुझे वापस बैठते हुए कहा.
कीर्ति बोली “अभी वहाँ पर निशा भाभी और बरखा दीदी भी है. तुम वहाँ जाकर गुस्से मे कोई नया हंगामा खड़ा मत कर देना. तुम फिकर मत करो, मौसा जी के साथ पापा भी है. पापा सब संभाल लेगे.”
कीर्ति की बात सुनकर, मैं छोटी माँ के पास जाने से रुक गया. उधर मौसा जी पापा को समझाने की कोसिस कर रहे थे. लेकिन पापा फिर भी छोटी माँ पर गुस्से किए ही जा रहे थे.
निशा भाभी और बरखा दीदी के सामने, पापा के छोटी माँ पर चिल्लाने से मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था. मैं ज़्यादा देर तक ये सब ना देख सका और छोटी माँ के पास जाने के लिए उठ कर खड़ा हो गया.
लेकिन तभी वहाँ वाणी दीदी पहुच गयी. उन्हो ने पापा को छोटी माँ पर गुस्सा होते देखा तो, वो पापा का हाथ पकड़ कर, उन्हे पास बने कमरे मे ले गयी. अब उन दोनो को कोई नही देख पा रहा था.
लेकिन मैं और कीर्ति उस कमरे के सामने ही बैठे थे. इसलिए वो दोनो हमें सॉफ सॉफ नज़र आ रहे थे. उस कमरे मे जाने के बाद, पापा की वाणी दीदी से भी कुछ ज़्यादा ही बहस होने लगी.
पहले तो वाणी दीदी पापा से बराबरी से बहस करती नज़र आ रही थी. लेकिन फिर अचानक ही, उन्हो ने गुस्से मे अपनी रेवोल्वेर निकाल कर, पापा के मूह मे ठूंस दी और उन्हे कुछ धमकी देने लगी.
जिसे सुनने के बाद, पापा के पसीने छूट गये. कुछ देर तक वाणी दीदी बोलती रही और पापा सुनते रहे. फिर उन्हो ने पापा के मूह से अपनी रेवोल्वेर निकाल ली और पापा से कुछ कहा. जिसके बाद, पापा अपनी जेब से रुमाल निकाल कर, पसीना पोछ्ने लगे.
पापा के पसीना पोंच्छ लेने के बाद, वाणी दीदी और पापा बाहर आ गये. बाहर आने के बाद, वाणी दीदी तो मुस्कुरा रही थी. लेकिन पापा के चेहरे की मुस्कुराहट गायब थी और वो सबके पास आकर, मौसा जी के साथ वापस लौट गये.
उनके जाते ही, मैं और कीर्ति भी सबके पास आ गये. जब हम सबके पास पहुचे तो, वाणी दीदी सबको पापा के बारे मे बता रही थी.
वाणी दीदी बोली “बड़े मौसा जी (कीर्ति के पापा) ने मौसा जी (पापा) को कॉल करके यहाँ के हादसे के बारे मे बताया था. जिस वजह से उन्हे यहाँ की चिंता होने लगी थी और वो अपनी ज़रूरी मीटिंग छोड़ कर यहाँ भागते हुए आ गये थे.”
“इसी वजह से वो सब पर इतने गुस्से मे थे. लेकिन मैने उन्हे यहाँ सब कुछ ठीक होने का विस्वास दिला दिया है और अब वो किसी बात पर, किसी से गुस्सा नही है. वो यहाँ से बेफिकर होकर, अपनी मीटिंग पूरी करने वापस चले गये है.”
वाणी दीदी की बात सुनकर, सबने राहत की साँस ली. लेकिन वाणी दीदी के सबसे कहे गये, आधे सच और आधे झूठ को मैं और कीर्ति अच्छी तरह से जानते थे. इसलिए हम दोनो के चेहरे पर राहत के कोई भाव नही थे.
वाणी दीदी अभी पापा से हुई झूठी सच्ची बता रही थी कि, तभी निशा भाभी का मोबाइल बजने लगा. वो सबको बात करता छोड़ कर, मोबाइल पर बात करने हम से दूर चली गयी.
लेकिन जब वो हमारे पास वापस आई तो, वो बहुत ज़्यादा घबराई हुई सी लग रही थी. उन्हे घबराया हुआ देख कर, हम सबका मन भी किसी आशंका से भर गया. निशा भाभी ने हमारे पास आते ही, छोटी माँ से कहा.
निशा भाभी बोली “सॉरी आंटी, मुझे और बरखा को अभी ही मुंबई वापस लौटना होगा. वहाँ अचानक ही प्रिया की तबीयत खराब हो गयी है.”
निशा भाभी की ये बात सुनते ही, मोहिनी आंटी ने घबराते हुए कहा.
मोहिनी आंटी बोली “मेरी प्रिया को क्या हुआ. मैं तो उसे अच्छा भला छोड़ कर आई थी.”
मोहिनी आंटी की इस बात के जबाब मे निशा भाभी ने कहा.
निशा भाभी बोली “आंटी, अभी मुझे खुद भी सही से कुछ नही मालूम है. अभी अभी मेरे पास अमन का कॉल आया था. उसने ही बताया कि, प्रिया अचानक कोमा मे चली गयी है.”
“उसे लेकर, इस समय वहाँ सभी परेशान है. इसलिए अमन ने मुझे वहाँ फ़ौरन लौट आने को कहा है. अब प्रिया को क्या हुआ है. ये बात तो हमें वहाँ पहुचने पर ही पता चल सकेगी.”
निशा भाभी की इस बात ने, मेरे साथ साथ वहाँ खड़े, सभी लोगों के पैरों के नीचे की ज़मीन खिसका दी थी. प्रिया के कोमा मे चले जाने की बात ने, एक ही पल मे हम सबके दिल और दिमाग़ को हिला कर रख दिया था.
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