RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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अनु मौसी ने हमे इस तरफ हैरान देखा तो, उन्हो ने हमारी हैरानी को दूर करते हुए कहा.
अनु मौसी बोली “इसमे इतना हैरान होने वाली कोई बात नही है. एक आक्सिडेंट मे सुनीता की आँखों की रोशनी चली गयी थी. पूर्णिमा ने उसे अपनी आँखे देकर, उसकी अधेरि जिंदगी को फिर से रोशन बनाया था.”
“आज सुनीता भले ही पूर्णिमा की दी हुई आँखों से ये दुनिया देख रही है. लेकिन इस सच्चाई को वो खुद भी नही जानती है कि, उसकी अंधेरी जिंदगी को रोशन बनाने वाली आँखे पूर्णिमा की है.”
“तुम्हारी माँ एक बहुत ही महान औरत थी और उसके दिल मे हर एक के लिए बेशुमार प्यार था. क्या तुम्हे कभी सुनीता की आँखों मे अपनी माँ नज़र नही आती. जो तुम्हे अपनी माँ एक बदनसीब माँ लगती है.”
अनु मौसी की इस बात को सुनकर, मैने अपना चेहरा सॉफ करते हुए कहा.
मैं बोला “मौसी, छोटी माँ सिर्फ़ आँखों से ही नही, बल्कि सर से लेकर पाँव तक मेरी माँ है. उनके प्यार ने कभी मुझे माँ की कमी महसूस नही होने दी और इसी वजह से मुझे मेरी जनम देने वाली माँ का चेहरा तक याद नही रहा.”
“मुझे जनम देने वाली माँ कितनी महान थी, ये तो मैं नही जानता. लेकिन मैं ये अच्छी तरह से जानता हूँ कि, मेरी छोटी माँ दुनिया की सबसे अच्छी माँ है और ये मेरी खुशनसीब है कि, मैं उनका बेटा हूँ.”
मेरी बात सुनकर, अनु मौसी ने मुस्कुराते हुए, एक बार फिर मुझे अपने गले से लगा लिया. तभी उनका मोबाइल बजने लगा. उन्हो ने मोबाइल देखा तो, छोटी माँ का कॉल आ रहा था. उनके कॉल उठाते ही छोटी माँ ने, उनसे कहा.
छोटी माँ बोली “दीदी, हम लोग मुंबई पहुच गये है और अब प्रिया को देखने हॉस्पिटल जा रहे है. वहाँ चंदा मौसी का क्या हाल है और पुन्नू कैसा है.”
अनु मौसी बोली “चंदा को होश आ गया है और अभी वो सो रही है. पुन्नू और मेहुल दोनो मेरे पास ही है. तू खुद ही पुन्नू से बात कर ले.”
ये कहते हुए, अनु मौसी ने मुझे मोबाइल थमा दिया. छोटी माँ ने मुझसे सबका हाल चाल पुछा और फिर मुझे सबका ध्यान रखने के लिए समझाने लगी. मुझसे बात करने के बाद, वो फिर से अनु मौसी से बात करने लगी.
छोटी माँ के बाद, अनु मौसी की वाणी दीदी से बात होने लगी. उन्हो ने वाणी दीदी से मुझे मुंबई भेजने के बारे मे पुछा. मगर वाणी दीदी ने अभी मुझे मुंबई भेजने के लिए मना कर दिया.
वाणी दीदी से बात होने के बाद, अनु मौसी मुझसे और मेहुल से आराम करने को कह कर, वापस चंदा मौसी के पास चली गयी. उनके जाने के बाद, मेरी मेहुल से बातें होने लगी.
मेहुल ने बताया कि, जब मैं खाना खाने घर गया था, तब शीन बाजी और शेज़ा आई थी. वो लोग तब भी आई थी, जब हम प्रीतम के घर खाना खाने गये थे. मेहुल की बात सुनकर, मैं शीन बाजी के बारे मे सोचने लगा.
जब मैं शीन बाजी के घर गया था, तब वो घर पर नही थी और जब वो मुझसे मिलने हॉस्पिटल आई तो, तब मैं यहाँ नही था. मैं जब से वापस आया था, तब से मेरी उनसे मुलाकात नही हो पाई थी.
यदि उनके पास मोबाइल होता तो, मेरी उनसे बात हो सकती थी. लेकिन ना तो उनके पास मोबाइल था और ना ही उनके घर मे फोन था, जिस वजह से मेरी अभी तक उनसे कोई बात भी नही हो पाई थी.
मैं अभी इसी बारे मे सोच रहा था कि, तभी मुझे मेहुल के ख़र्राटों की आवाज़ सुनाई देने लगी. वो मुझसे बात करते करते ही सो गया था. मैने टाइम देखा तो रात के 12:15 बज चुके थे.
अब मुझे भी नींद सताने लगी थी. लेकिन मैं कीर्ति से बात किए बिना नही सोना चाहता था. मगर उसका कॉल आने का नाम नही ही ले रहा था और आख़िर मे उसके कॉल का इंतजार करते करते मेरी नींद लग गयी.
सुबह 6 बजे मेरी नींद किसी के मेरे सर पर हाथ फेरने से खुली. मैने आँख खोल कर देखा तो, मेरी बगल मे शीन बाजी, एक काले रंग का दुशाला ओढ़े बैठी मुस्कुरा रही थी.
शीन बाजी उमर मे मुझसे 8 साल बड़ी थी और ज़्यादा पड़ी लिखी नही थी. उन्हो ने अपनी स्कूल तक की पढ़ाई पूरी की थी और अब दुनियादारी के कॉलेज मे अपनी पढ़ाई पूरी कर रही थी. जिसने उन्हे हम सब से कहीं ज़्यादा समझदार बना दिया था.
शीन बाजी बहुत ज़्यादा सुंदर थी और उनके काले लंबे घने बाल उनकी सुंदरता मे चार चाँद लगा देते थे. कीर्ति के बाल भी बहुत लंबे थे. लेकिन बाजी के मुक़ाबले मे उसके बाल कुछ भी नही थे.
कीर्ति के बाल उसकी कमर के नीचे तक आते थे. जबकि बाजी के बाल उनके घुटनो तक आते थे. यही वजह थी कि, मैं जब कभी भी बाजी के लंबे बालों की तारीफ करता तो, कीर्ति जल भुन जाती थी.
बाजी मुझे बहुत प्यार करती थी. उन्हे कीर्ति का मुझसे लड़ना झगड़ना और मुझे परेशान करना ज़रा भी पसंद नही आता था. वहीं कीर्ति को मेरा बाजी के पास इतनी देर-देर तक बैठे रहना पसंद नही आता था.
यही सब वजह थी कि, कीर्ति और बाजी के बीच मे कभी नही पटती थी और दोनो एक दूसरे को ज़रा भी पसंद नही करती थी. उनके हमेशा के इस झगरे मे मैं पिस जाता था. इसलिए मैं उनके सामने एक दूसरे का नाम लेने से ही बचा करता था.
शीन बाजी के घर मे, उनके अलावा असलम, शेज़ा और उनकी अम्मी थी. उनके अब्बा का कुछ साल पहले इंतिकाल हो गया था. उनके अब्बा एक सरकारी नौकरी मे थे और उनकी जगह अब शीन बाजी को नौकरी मिल गयी थी.
तब से लेकर आज तक शीन बाजी ही अपने परिवार की सारी ज़िम्मेदारी निभाती आ रही थी. मैं शीन बाजी के पास बैठा, उन से घंटो बातें किया करता था और ऐसी ही कुछ आदत शीन बाजी को भी लग गयी थी.
वो हर छुट्टी के दिन मेरे आने का इंतजार करती रहती थी और जब कभी मैं उनके घर नही जा पाता था तो, वो परेशान हो जाया करती थी. पिच्छले एक महीने से, मैं कीर्ति और अंकल के चक्कर मे उनके पास नही जा पाया था.
जिस वजह से वो मुझे ढूँढते हुए पहले घर तक और अब हॉस्पिटल तक आ गयी थी. मैने उन्हे इतनी सुबह सुबह अपने सामने देखा तो, मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी और मैने मुस्कुराते हुए उनसे कहा.
मैं बोला “बाजी, आप इतनी सुबह सुबह यहाँ क्या कर रही हैं.”
मेरी बात सुनकर, बाजी ने मुस्कुराते हुए कहा.
बाजी बोली “तुमको देखे हुए बहुत दिन हो गये थे. इसलिए सोचा कि, तुमको सोते मे ही पकड़ लिया जाए. वरना फिर से तुमसे मिल पाना मुश्किल हो जाएगा.”
बाजी की इस बात पर मैने शर्मिंदा होते हुए कहा.
मैं बोला “सॉरी बाजी, मैं आपसे मिलने गया था. लेकिन आप घर पर नही थी. मैं कल शाम को आपसे मिलने आता. मगर उसके पहले ही ये सब हो गया.”
मेरी इस बात पर बाजी ने प्यार से मेरे गाल पर छपत लगाते हुए कहा.
बाजी बोली “पागल, मैं सब जानती हूँ. मुझे तुझसे कोई शिकायत नही है. मैं खुश हूँ कि, तू बिल्कुल सही सलामत है. वरना तुझ पर हुए हमले की बात सुनकर तो, मेरी जान ही निकल गयी थी. अब तू ये सब बेकार की बातें छोड़ और उठ कर नाश्ता कर ले. मैं तेरे लिए अपने हाथों से नाश्ता बना कर लाई हूँ.”
बाजी ने अभी इतना ही बोला था कि, मेहुल फ़ौरन उठ कर हमारे पास आ गया और उसने बाजी के हाथ से टिफिन लेते हुए कहा.
मेहुल बोला “बाजी आपने ये बहुत अच्छा काम किया. मुझे सुबह उठते ही भूख लगने लगती है.”
ये कहते हुए मेहुल टिफिन खोल कर मेरे सामने रख दिया और मुझे नाश्ता करने को बोल कर, खुद भी नाश्ता करने लगा. मैने नाश्ता करते हुए बाजी से कहा.
मैं बोला “बाजी, आज आप अकेली ही क्यो आई हो. क्या वो हरी मिर्च अभी तक सोकर नही उठी है. अच्छा हुआ कि, आप उसे अपने साथ लेकर नही आई. वरना वो सुबह सुबह ही मेरे दिमाग़ का दही कर देती.”
मेरी ये बात सुनते ही, मेहुल को एक जोरदार ठन्स्का लग गया. उसे ठन्स्का लगते देख, मैने उस पर गुस्सा करते हुए कहा.
मैं बोला “अबे आराम से नाश्ता कर, नाश्ता कहीं भागा नही जा रहा है.”
मगर वो मेरी बात सुनकर भी, फ़टीफटी आँखों से मुझे ही देखे जा रहा था. उसके इस तरह से देखने से मैं इतना तो समझ चुका था कि, मुझसे ही कहीं कोई ग़लती हो गयी हो.
लेकिन मेरे कुछ समझ मे नही आया तो, मैं मेहुल की इस हरकत को जानने के लिए, सवालिया नज़रों से बाजी की तरफ देखने लगा. बाजी ने मुझे अपनी तरफ देखते पाया तो, उन ने मुझे अपने पिछे देखने का इशारा किया.
बाजी का इशारा समझ मे आते ही, मैने फ़ौरन अपने पिछे पलट कर देखा और पिछे देखते ही, मेरी भी बोलती बंद हो गयी. मेरे पिछे हरे रंग के सलवार सूट मे शेज़ा खड़ी थी.
शेज़ा उमर मे मुझसे एक साल छोटी थी और 9थ क्लास मे पढ़ती थी. उसके उपर बाजी की ही परछाई पड़ी थी. वो बाजी की तरह ही बहुत सुंदर थी. उसके बाल बाजी के बराबर तो नही थे. लेकिन बाकी लड़कियों से कहीं ज़्यादा बड़े थे.
मगर उसकी ख़ासियत उसके चेहरे की मुस्कान थी. उसके चेहरे पर हर समय एक मुस्कान थिरकति रहती थी. जो उसे और भी ज़्यादा सुंदर बनती थी. वो बहुत हँसमुख और चंचल थी.
पल भर मे नाराज़ होना और पल भर मे ही मान जाना उसकी आदत थी. मेरी उस से ज़्यादा बात चीत तो नही होती थी. लेकिन थोड़ी बहुत हँसी मज़ाक चलता रहता था और वो कभी मेरे किसी मज़ाक का बुरा नही मानती थी.
लेकिन इस समय मैने उसका जो मज़ाक उधया था. उसे सुनकर, वो गुस्से मे तमतमयी हुई मुझे देख रही थी. मेरी उस से नज़र मिलते ही, उसने गुस्से मे भड़कते हुए शीन बाजी से कहा.
शेज़ा बोली “अपी आपने सुन लिया ना. भाईजान मेरी पीठ पिछे कैसे मेरी बुराई कर रहे है. अब मैं इनसे कभी बात नही करूगी.”
ये कहते ही, उसकी गुस्से मे तमतमाई आँखों मे आँसू झिलमिलाने लगे. मैं हमेशा ही शेज़ा का इसी तरह से मज़ाक उड़ाया करता था और वो भी मेरे इस मज़ाक का कभी बुरा नही माना करती थी.
मगर आज मैं उसका ये मज़ाक उसकी पीठ पिछे उड़ा रहा था. जिस वजह से मेरा ये मज़ाक उसके दिल को चुभ गया था. लेकिन उसकी आँखों मे आँसू देखते ही, मैने फ़ौरन बात को संभालने की कोसिस करते हुए कहा.
मैं बोला “अरे मैं सिर्फ़ मज़ाक कर रहा था और तू मेरे इस मज़ाक को सच समझ कर, आँसू बहाने लगी. मैने तो तुझे मेरे पिछे खड़े, पहले ही देख लिया था.”
मेरी बात सुनकर, शेज़ा ने सिसकते हुए कहा.
शेज़ा बोली “भाईजान, अब झूठ बोलने की कोसिस मत कीजिए. मैं जानती हूँ कि, आपने मुझे नही देखा था.”
शेज़ा कह तो सच रही थी. लेकिन अब उसको मनाने के लिए मेरे पास अपनी ग़लती पर परदा डालने के सिवा कोई रास्ता नही था. मैने उसे अपनी सफाई देने के लिए एक और झूठ बोलते हुए कहा.
मैं बोला “मैं सच बोल रहा हूँ. मैने तुझे हरा सलवार सूट पहन कर मेरे पिछे खड़े देख लिया था. तभी तो मैने तुझे हरी मिर्च कहा था.”
मेरी बात सुनकर, शेज़ा का सिसकना बंद हो गया और वो कुछ सोच मे पड़ गयी. उसे सोच मे पड़ा देख कर, बाजी ने भी मेरा साथ देते हुए कहा.
बाजी बोली “शेज़ा यदि तुझे इसके मज़ाक का इतना ही ज़्यादा बुरा लगता है तो, आज के बाद ये तुझसे बिल्कुल भी मज़ाक नही करेगा. ये पहले से ही बहुत परेशान है. अब तू सुबह सुबह आँसू बहा कर इसकी परेशानी को और मत बढ़ा.”
बाजी की फटकार सुनते ही, शेज़ा ने फ़ौरन अपना मूड बदलते हुए कहा.
शेज़ा बोली “अपी आप भी मुझे ही गुस्सा कर रही है. भाईजान को तो आपने कुछ भी नही कहा, जब देखो, तब मेरा मज़ाक उड़ते रहते है.”
बाजी बोली “इसे घर आने दे, मैं इसे भी बहुत गुस्सा करूगी. लेकिन अभी तू अपनी शिकायत का पिटारा बंद कर और इन दोनो को चाय दे दे.”
बाजी की इस बात को सुनने के बाद, शेज़ा अपना गुस्सा भूल कर, मुझे और मेहुल को चाय निकाल कर देने लगी. हम लोगों के चाय पीने के बाद, बाजी और शेज़ा चंदा मौसी से मिलने अंदर चली गयी.
उनके अंदर जाने के थोड़ी ही देर बाद अनु मौसी बाहर आ गयी. उन्हो ने बाहर आते ही, मुझसे और मेहुल से कहा.
अनु मौसी बोली “शीन अभी रिचा के आने तक यही रुकी है. इसलिए मैं अब घर जा रही हूँ. तुम दोनो मे से जो भी मेरे साथ घर चलना चाहता हो, वो घर चल सकता है.”
अभी मेहुल के घर मे शिल्पा रुकी हुई थी. इसलिए मैने मेहुल को ही अनु मौसी के साथ घर भेज दिया. उनके जाने के बाद, मैं अपना मोबाइल निकाल कर देखने लगा. उसमे रात को 1:30 बजे के आस पास कीर्ति के 3 कॉल आए थे.
लेकिन अभी सुबह के 7 बाज जाने के बाद भी, उसका कोई कॉल नही आया था. इसलिए मैने खुद ही उसको कॉल लगा लेना ठीक समझा और उसे कॉल लगा दिया. मगर उसने मेरा कॉल जाते ही, कॉल काट दिया.
उसके कॉल काटने से मैं इतना तो, समझ गया था कि, वो सोकर उठ चुकी है और इस समय किसी के साथ है. लेकिन मेरी समझ मे अभी तक ये बात नही आ रही थी कि, आख़िर इस बंदी को मुंबई जाने की इतनी ज़्यादा उतावली क्यो पड़ी थी.
कहाँ तो मेरे कहने से भी, वो मुंबई आने को तैयार नही थी और अब कहाँ मुझे यहाँ अकेला छोड़ कर, अपनी इतनी तबीयत खराब होने के बाद भी, ज़िद करके मुंबई मे जाकर बैठी थी.
मुझे उसके मुंबई जाने से कोई परेशानी नही थी. लेकिन अभी उसकी तबीयत सही ना होने की वजह से उसकी फिकर सता रही थी. मैं अभी कीर्ति के बारे मे सोच ही रहा था कि, तभी उसका कॉल आने लगा.
उसका कॉल आते देख कर, मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी और मैने फ़ौरन ही उसका कॉल उठा कर, मूह फुलाने का नाटक करते हुए उस से कहा.
मैं बोला “तुझे मुझसे बात करने की बड़ी जल्दी फ़ुर्सत मिल गयी. अब इतनी जल्दी भी कॉल करने की क्या ज़रूरत थी. सीधे यहाँ वापस आने के बाद ही बात करना था ना.”
मेरी बात सुनते ही, कीर्ति खिलखिला कर हँसने लगी. उसे हंसते देख कर, मैने उस पर झूठा गुस्सा दिखाने का नाटक चालू रखते हुए कहा.
मैं बोला “किसी का मज़ाक उड़ाने की भी हद होती है. मैं तेरे उपर गुस्सा कर रहा हूँ और तुझे मेरी बात पर हँसी आ रही है.”
मेरी इस बात के जबाब मे कीर्ति ने हंसते हुए कहा.
कीर्ति बोली “आए तुम्हारा ये झूठा गुस्सा दिखाने का नाटक बहुत हो गया. अपना ये नाटक बंद करो और सीधे तरीके से बात करो. यदि तुम सच मे ही गुस्सा होते तो, अपना मूह फूला कर बैठे होते. ऐसे एक ही बार मे मेरा कॉल ना उठा लिया होता.”
कीर्ति की ये बात सुनकर, मेरी भी हँसी छूट गयी. मैने गुस्सा करने का नाटक बंद करते हुए उस से कहा.
मैं बोला “अच्छा बाबा, अब तू ये बता की, तेरी तबीयत कैसी है.”
मेरी ये बात सुनकर, कीर्ति ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा.
कीर्ति बोली “मेरी तबीयत बिल्कुल ठीक है. मगर प्रिया को अभी तक होश नही आया है. मैं और वाणी दीदी तो रात को 1 बजे बरखा दीदी के साथ, अजय भैया के बंगलो मे आ गये थे. लेकिन मौसी रिया के घर वालों के साथ सारी रात हॉस्पिटल मे ही थी.”
“अभी जब तुमने मुझे कॉल किया था, तब ही वो अजय भैया के साथ हॉस्पिटल से वापस लौटी थी. वो प्रिया की तबीयत को लेकर बहुत ज़्यादा परेशान थी और वाणी दीदी से तुम्हे यहाँ बुलाने की बात कर रही थी.”
“वाणी दीदी ने उनसे दोपहर तक इंतजार करने को कहा है. शायद आज रात तक या फिर कल किसी समय तुम्हे भी अमि निमी के साथ यहा के लिए निकलना पड़ सकता है. तुम अपनी और अमि निमी की यहाँ के लिए निकलने की तैयारी करके रखना.”
प्रिया की हालत के बारे मे सुनते ही, मेरी आँखों मे नमी छा गयी. शायद कीर्ति को भी मेरी इस हालत का अहसास था, इसलिए उसने मुझे समझाते हुए कहा.
कीर्ति बोली “तुम फिकर मत करो, प्रिया को कुछ नही होगा. प्रिया का इलाज निधि दीदी कर रही है. निशा भाभी बता रही थी कि, निधि दीदी एक बहुत अच्छी नुरोसर्जन है और वो प्रिया की तबीयत पर पल पल नज़र रखे हुए है.”
“मैं जानती थी कि, तुम अभी यहाँ नही आ पाओगे. लेकिन तुम्हे वहाँ प्रिया की तबीयत की चिंता सताती रहेगी. इसलिए मैं ज़िद करके यहाँ आ गयी थी. ताकि मैं तुम्हे यहाँ का सारा हाल बताती रहूं.”
“मैने तुम्हारी मुंबई वाली सिम चालू कर ली है. तुम भी अपने मोबाइल मे मेरी सिम डाल कर चालू कर लेना. वो सिम से बात करना अभी भी फ्री ही है. उस से तुम यहाँ की सारी बात चीत अपने कानो से सुन सकोगे.”
कीर्ति ने थोड़ी बहुत बातें करने के बाद, मुझसे उसकी दी हुई सिम मोबाइल मे डाल कर, एक मिस्ड कॉल देने की बात जाता कर कॉल रख दिया. उसके कॉल रखने के बाद, मैने उसकी दी हुई सिम मोबाइल मे डाली और उसे एक मिस्ड कॉल दे दिया.
कीर्ति को मिस्ड कॉल देने के बाद, मैं उसके बारे मे सोचने लगा. वो ज़िद करके मुंबई सिर्फ़ मेरी वजह से ही गयी थी. इस से ही पता चलता था कि, वो मेरी सोच से कहीं ज़्यादा गहराई तक मुझसे जुड़ी हुई थी.
मैं अभी कीर्ति के बारे मे सोच रहा था कि, तभी शेज़ा आ गयी. उसने मुझे गुम-सूम सा बैठे देखा तो, हँसी मज़ाक करके मेरा दिल बहलाने लगी. उसके इस हँसी मज़ाक से मेरा सारा तनाव दूर हो गया.
ऐसे ही शेज़ा से बात करते करते 9 बज गये. अभी मेरी शेज़ा से बात चल ही रही थी कि, तभी किसी लड़की की आवाज़ ने मुझे चौका दिया. मैने पिछे पलट कर देखा तो, मेरे सामने रेड कलर का पटियाला सलवार सूट मे अंकिता खड़ी थी.
अंकिता को इस तरह से अचानक अपने सामने देख कर, मेरे तो पसीने छूट गये. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, ये अचानक यहाँ कैसे आ गयी और अब मैं इसके बारे मे शेज़ा को क्या सम्झाउन्गा.
वही दूसरी तरफ शेज़ा कभी अंकिता की तरफ तो, कभी मेरी तरफ गौर से देखे जा रही थी. मुझे इस बात का डर भी सता रहा था कि, कहीं अंकिता शेज़ा के सामने कुछ उल्टा सीधा ना बोल जाए. इसलिए अंकिता के कुछ बोलने के पहले ही, मैने उस से कहा.
मैं बोला “आप यहाँ कैसे.? क्या आपका भी कोई यहाँ भरती है.”
मेरी बात सुनकर, अंकिता ने मुस्कुराते हुए कहा.
अंकिता बोली “अरे नही, मेरा यहाँ कोई भरती नही है. वो तो कल मैने टीवी पर न्यूज़ देखी थी और अभी मेरी फ्रेंड से मेरी बात हुई तो, उस से पता चला कि, अभी आप यहीं हो. इसलिए मैं आप से मिलने यहाँ चली आई.”
अंकिता की ये बात सुनकर, मैं समझ गया कि, अभी उसकी कीर्ति से बात हुई है और कीर्ति ने उसे यहाँ आने दिया है तो, इसका मतलब है कि, उसने सब कुछ समझा कर ही अंकिता को भेजा होगा.
इस बात के समझ मे आते ही, मेरे मन मे अंकिता के आने से जो भी डर था, वो निकल गया था और मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी थी. मैने मुस्कुराते हुए अंकिता से कहा.
मैं बोला “उन न्यूज़ वालों ने तो, राई का पहाड़ बना दिया. पता नही उनको ऐसा करने मे क्या मिल गया.”
लेकिन अंकिता ने जैसे मेरी इस बात को सुना ही नही था. उसने शेज़ा की तरफ इशारा करते हुए कहा.
अंकिता बोली “आपने इनसे तो मेरा परिचय करवाया ही नही है.”
अंकिता की बात सुनकर, मैने उसका शेज़ा से परिचय करवाते हुए कहा.
मैं बोला “ये मेरे दोस्त की बहन शेज़ा है और शेज़ा ये मेरी फ्रेंड अंकिता है.”
मेरे उन दोनो का परिचय करवा देने के बाद, दोनो आपस मे बातें करने लगी. अभी उन दोनो की बात चल ही रही थी कि, तभी व्हील्चैर पर एक लड़की को हॉस्पिटल के अंदर आते देख कर, हम तीनो की ही नज़रें उस पर जाकर टिक गयी.
वो लड़की इस समय एक ब्लॅक स्कर्ट टॉप पहनी थी और शेज़ा की उमर की लग रही थी. उसके बाल ज़्यादा लंबे तो नही थे. लेकिन उसके खुले हुए बाल, उसके चेहरे को खूबसूरत ज़रूर बना रहे थे.
वो ना तो शेज़ा की तरह सुंदर थी और ना ही शेज़ा की तरह उसके चेहरे पर कोई मुस्कान थिरक रही थी. फिर भी उसके चेहरे पर एक मासूमियत झलक रही थी. जो हमारा ध्यान उसकी तरफ खीच रही थी.
उस मासूम से चेहरे वाली लड़की को व्हील्चैर पर देख कर, ना जाने क्यो मुझे उसके साथ हमदर्दी सी हो रही थी. ऐसा ही कुछ शायद शेज़ा और अंकिता के साथ भी हो रहा था. वो दोनो भी बड़े गौर से उसी लड़की को देख रही थी.
एक आदमी उस लड़की की व्हील्चैर को धकेलते हुए, उसे आइ.सी.यू. रूम के अंदर ले गया. उस लड़की के हमारी नज़रों से ओझल होते ही, शेज़ा ने उसके साथ हमदर्दी जताते हुए, मुझसे कहा.
शेज़ा बोली “भाईजान, उस लड़की का चेहरा कितना प्यारा लग रहा था. लेकिन लगता है कि, उस बेचारी के पैर खराब है.”
मैने भी शेज़ा की इस बात की सहमति दी. इसके बाद, अंकिता हम दोनो से इजाज़त लेकर, वापस जाने लगी. शेज़ा मुस्कुराती हुई, अंकिता को जाते हुए देखने लगी. मैं जानता था कि, अब ये उसके जाते ही, मेरे उपर सवालों की बौछार कर देगी.
लेकिन अंकिता के हॉस्पिटल से बाहर निकलते ही, हमे रिचा आंटी और अमि निमी हॉस्पिटल के अंदर आते दिखाई दे गयी. रिचा आंटी को आते देख कर, मैने भी राहत की साँस ली कि, अब मेरा शेज़ा के सवालों से पिछा छूट जाएगा.
रिचा आंटी ने हमारे पास आकर शेज़ा से एक दो बातें की और फिर मुझसे चंदा मौसी की तबीयत के बारे मे पुछ्ने लगी. मैने उन्हे चंदा मौसी की तबीयत का बताया और फिर वाणी दीदी की अनु मौसी से हुई बात का हवाला देते हुए कहा.
मैं बोला “आंटी, रात को अनु मौसी की वाणी दीदी से बात हुई थी. वाणी दीदी ने कहा है कि, वो जल्दी ही मुझे भी मुंबई बुला लेगी. मुझे किसी भी समय अमि निमी के साथ मुंबई के लिए निकलना पड़ सकता है.”
मेरी बात सुनने के बाद, रिचा आंटी मुझे मुंबई जाने की तैयारी करने के लिए समझाने लगी. लेकिन तभी हमारी मुंबई जाने की बात सुनकर, अमि ने मुझे टोकते हुए कहा.
अमि बोली “भैया, अभी मेरी स्कूल मे एग्ज़ॅम चल रहे है और मैं अपने एग्ज़ॅम छोड़ कर मुंबई नही जा सकती हूँ. यदि मैं मुंबई नही गयी तो, निमी भी मेरे बिना मुंबई नही जाएगी.”
“अभी यहाँ मम्मी और कीर्ति दीदी भी नही है. आपको पता है कि, निमी रात को अकेले मे कितनी ज़्यादा डर जाती है. ऐसे मे आप हम दोनो को अकेले छोड़ कर मुंबई कैसे जा सकते है.”
अमि की ये बात सुनकर, मेरे साथ साथ रिचा आंटी भी सन्न रह गयी. क्योकि कल प्रिया के बारे मे जो भी बातें हुई थी, वो अमि निमी के सामने ही हुई थी. वो दोनो अपने कानो से सुन चुकी थी कि, प्रिया मेरी जुड़वा बहन है.
वो ये भी अच्छी तरह से जानती थी कि, छोटी मा मुंबई क्यों गयी है और हम लोगों को मुंबई क्यो जाना है. इसके बाद भी अमि का ये बात कहना मेरे गले से नीचे नही उतर रहा था.
निमी तो अभी नासमझ थी और उस से इस तरह की बात करने की उम्मीद की भी जा सकती थी. लेकिन अमि मे इन सब बातों की अच्छी ख़ासी समझ थी और उस से इस तरह की बात करने की उम्मीद हरगिज़ नही की जा सकती थी.
वो एक तरह से मुझे मुंबई जाने से रोकना चाहती थी. उसने कोलकाता मे एक ऐसा बॉम्ब फोड़ा था. जिसकी गूँज मुझे मुंबई तक सुनाई दे रही थी और जिसके धमाके ने मेरे मन मे एक अंजाना सा डर पैदा कर दिया था.
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