RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
भाग २)
“और कुछ लोगे, अभय?” चाची ने पूछा |
विचारों के भंवर से बाहर निकला मैं | ब्रश करके नाश्ते में बैठ गया था | चाची भी मेरे साथ ही बैठ गयी थी नाश्ता करने |
“नहीं चाची.. अब और नहीं |” पेट पर हाथ रखते हुए मैंने कहा | चाची मुस्कुरा दी | पर न जाने क्यूँ उनकी यह मुस्कराहट कुछ फीकी सी लगी | ऐसा लगा की चाची बात तो ठीक ही कर रही है, हाव भाव भी ठीक है पर शायद दिमागी रूप से वो कहीं और ही भटकी हुई हैं | उनका खाने को लेकर खेलना, थोड़ा थोड़ा मुँह में लेना इत्यादि सब जैसे बड़ा अजीब सा लग रहा था | अपने ख्यालों में इतनी खोयी हुई थी की उनको इस बात का पता तक नहीं चला की उनका आँचल उनके सीने पर से हट चूका है और परिणामस्वरुप करीब 5 इंच का लम्बा सा उनका क्लीवेज मेरे सामने दृश्यमान हो रहा था और साथ ही उनके बड़े गोल सूडोल दाएँ चूची का उपरी हिस्सा काफ़ी हद तक दिख रहा था |
“क्या बात है चाची, कोई परेशानी है?” मैंने पूछा |
“अंह ... ओह्ह ... न..नहीं अभय... कुछ नहीं... बस थोड़ी थकी हुई हूँ ..|” चाची ने अनमना सा जवाब दिया | जवाब सुन कर ही लगा जैसे कुछ तो बात है जो वो मुझसे शेयर नहीं करना चाहती | मैंने भी बात को आगे नहीं बढ़ाने का सोचा और चाची के दाएँ हाथ पर अपना बाँया हाथ रखते हुए बड़े प्यार से धीमी आवाज़ में कहा, “ओके चाची... पर चाची... कभी भी कोई भी प्रॉब्लम हो तो मुझे ज़रूर याद करना, ठीक है ?”
मेरी आवाज़ में मिठास थी | चाची मुस्कुरा कर मेरी तरफ़ देखी पर उस वक़्त में मेरी नज़र कहीं और थी | मेरी नज़रों को फॉलो करते हुए चाची ने अपनी तरफ़ देखा और अपने सीने पर से पल्लू को हटा हुआ देख कर चौंक उठी,
“हाय राम ,.. छी: ...|”
कहते हुए झट से अपने सीने को ढक लिया और हँसते हुए झूठे गुस्से से मेरे हाथ पर हल्का सा चपत लगाते हुए बोली, “बड़ा बदमाश होने लगा है तू आज कल |”
चोरी पकड़े जाने से मैं झेंप गया और जल्दी जल्दी नाश्ता खत्म करने लगा | तभी टेलीफोन की घंटी फिर बजी, चाची उठ कर गयी और रिसीव किया, “हेलो...”
“जी.. बोल रही हूँ...|”
“हाँ जी.. हाँ जी...|”
“क्या...पर...परर....|”
“हम्म.. हम्म....|”
इसी तरह ‘हम्म हम्म’ कर के चाची दूसरी तरफ से आने वाली आवाज़ का जवाब देती रही | मैं खाने में मग्न था, सिर्फ एक बार चाची की तरफ नज़र गई.. देखा की उनके चेहरे की हवाईयाँ उड़ी हुई है | मैं कुछ समझा नहीं | मुझे अपनी ओर देखते हुए चाची सामने की ओर मुड़ गई | थोड़ी देर बाद फ़ोन क्रेडल पर रख कर मेरे पास आ कर बैठ गई | मैंने गौर से देखा उन्हें.. बहुत चिंतित दिख रही थी | नज़रें झुकी हुई थी | मुझसे रहा नहीं गया | पूछा, “क्या हुआ चाची... किसका फोन था?”
“कुछ खास नहीं... मेरे एक अपने का तबियत बहुत ख़राब है, इसलिए मन थोड़ा घबरा रहा है |” काँपते आवाज़ में बोलीं ... बोलते हुए मेरी तरफ एक सेकंड के लिए देखा था उन्होंने | उनकी आँखें किनारों से हलकी भीगी हुई थी | मेरा मन बहुत किया की आगे कुछ पूछूँ पर ना जाने क्यूँ मैं चुप रहा |
पर आदत से मजबूर मैं ...
रह रह कर नज़र चाची के सीने की तरफ़ चली जाती ....
अभी भी वही हाल था ...
मतलब,
दायीं ओर से पल्लू हट गया था ...
पुष्टकर, गदराई, ब्लाउज कप में भरी ... कसी हुई , ऊपर की ओर दो चौथाई उठी हुई चूची बरबस ही मुझे अपनी ओर खींचे जा रही है ...
जितना देखता ... उतना ही पौरुष उफ़ान मारता ...
दो जांघों के बीच का मुलायम अंग अब मुलायम न रहा ... सख्त हो कर पैंट के भीतर ही फुंफकार मारने लगा ...
साँस भारी होने लगी मेरी ... आँखों में गुलाबी डोरियाँ बनने लगीं...
और,
जैसा की अंदेशा था... इस बार भी मेरी चोरी छिपी न रही ...
चाची ने देख लिया..!!
पर, आश्चर्य!
कुछ कहा नहीं ..
मुझे अपने वक्ष की ओर देखते हुए साफ़ साफ़ देखा ...
पर निर्विकार भाव से प्लेट पर से खाना उठा कर अपने मुँह के हवाले करती गयी..
जैसा की किसी भी तरह के चोर के साथ होता है ... वैसा मेरे साथ भी हुआ..
डर गया !
अब भैया, चोरी पकड़े जाने पर कौन नहीं डरता है..?!
पर,
चाची की ओर से किसी भी प्रकार की कोई भी प्रतिक्रिया न पा कर बहुत हैरान हुआ मैं...
बल्कि सच पूछो तो हैरानी तो और भी बढ़ गयी जब मुझे इस बात का एहसास हुआ कि जैसे पल्लू दाएँ वक्ष:स्थल पर से और भी अधिक हट गया हो!
अब ये चमत्कार हुआ कैसे --- ये तो पता नहीं --- पर अब मज़ा बहुत आया --- जी भर कर नज़ारा लिया ---
पर थोड़ी देर बाद ख़ुद में बहुत गिल्टी फीलिंग होने लगी ---
इसलिए खाने को ख़त्म करने पर ही ध्यान दिया ---
चाची भी यही कर रही थी ---
दोनों अपने प्लेट्स की तरफ़ देख रहे थे; और निवालों को मुँह के हवाले किए जा रहे थे... |
क्रमशः
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