RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
थोड़ी देर बाद,
होटल मैनेजर को कड़ी हिदायत देने और थोड़ी हेकड़ी और डांट पिलाने के बाद विनय अपने सिपाहियों के साथ पुलिसिया जीप में बैठा वापस थाने लौट रहा था की अचानक एक दुकान के सामने उसे वही आदमी (ख़बरी) दिखाई दिया | उसे देखते ही विनय को कुछ याद आया और तुरंत जीप रोकने को बोलकर उस आदमी को बुलाने लगा,
“ए... ए मंगरू.... इधर सुन |” – पूरे पुलिसिया तेवर में चिल्लाया विनय |
वह आदमी,जिसका नाम मंगरू था , धीरे धीरे सहमे अंदाज़ में उसके पास आया | उसके पास आते ही विनय ने उसे दो ज़ोरदार थप्पड़ देते हुए कहा,
“क्या रे.... तू सुधरेगा नहीं ना..? तेरी फ़िर शिकायत आई है...!!”
मंगरू - “आह्ह्ह... नहीं साब...नहीं.... ज़रूर कुछ गड़बड़ हुयी है... आपको गलतफहमी हुई है सरकार....”
“क्या बोला... मुझे गलतफ़हमी...!! साले.... ज़बान लड़ाता है.. |” कहते हुए विनय ने उसे दो तीन थप्पड़ और रसीद कर दिए |
फिर उसका कालर पकड़ कर अपने पास खींचते हुए बहुत धीरे से बोला, “क्या रे... कोई खबर है?”
मंगरू ने भी उसी अंदाज़ में कहा, “हाँ साब... शाम को मिलो |”
उसके इतना कहते ही विनय ने उसे जोर से झिड़कते हुए कहा, “आज के बाद फ़िर इस तरह की शिकायत नहीं आनी चाहिए... समझा??!!”
“जी सरकार...” मंगरू ने हाथ जोड़ कर कहा |
विनय की जीप अपने मंजिल की ओर आगे बढ़ चुकी ... बाज़ार में मौजूद लोगों में से कोई इसे पुलिस की दबंगई तो कोई मंगरू की ही गलती समझा रहे थे पर कोई भी उन दोनों, अर्थात मंगरू और विनय के होंठों पर उभर आये अर्थपूर्ण मुस्कान को देख नहीं पाया |
उसी दिन शाम को,
उसी चाय दुकान में,
एक कोने में मंगरू और विनय बैठे थे | विनय सादे लिबास में था |
“बोल मंगरू... क्या ख़बर है?”
“साब... उस दिन जो तीन फ़ोटो आप दिए थे ... उन तीनो के बारे में पता किया... आदमी का नाम आलोक है... मिस्टर आलोक रॉय... औरत का नाम दीप्ति रॉय है.. उस आदमी की धर्मपत्नी... और लड़का जो है ..वो है इनका भतीजा.. अभय... अभय रॉय ... होनहार है .. अच्छा है.. कोचिंग सेंटर चलाता है |”
“ठीक है... आगे बोलो..|”
“साब.. ये जो आलोक है... ये आदमी अच्छा है... किसी से कोई झगड़ा नहीं.. लफड़ा नहीं... खा पी के ऑफिस जाता है और टाइम पे आता है.. थोड़ा भुलक्कड़ स्वाभाव का है... पर और कोई दोष नहीं है इसमें.. पर....|”
“पर क्या मंगरू??”
“इसकी पत्नी और भतीजा... दोनों कुछ दिन से ठीक से नहीं लग रहे हैं |”
“क्या मतलब?”
“मतलब ये की सरकार .... पिछले काफ़ी दिनों से इस महिला की कुछ गतिविधियाँ संदिग्ध सी लग रही है .. घर से निकलती रहती है और अक्सर घंटो घर नहीं आती है ... इसके भतीजे को शायद इसपर किसी तरह का कोई शक हो गया था... इसलिए शायद इस औरत के निकलने के कुछेक मिनट बाद ये भी निकल जाता और इसका पीछा करता... पर शायद कुछ हाथ नहीं लगा था लड़के के.. ”
“ह्म्म्म... अच्छा... एक बात बताओ... जिस दिन ये गायब हुआ... क्या उस दिन भी ये इस औरत का पीछा कर रहा था?” विनय बड़ी दिलचस्पी से पूछा |
“ये पता नहीं लगा सका हुजूर...|” – बेबसी से बोला मंगरू |
“ये बताओ ... ये महिला घर से निकल कर जाती कहाँ है... या.. थी?”
“पता नहीं साब... क्योंकि इसे लेने एक लाल रंग की वैन आया करती थी | अभी चार पांच दिनों से ये कहीं नहीं जाती... सारा वक़्त घर में ही बिताती है.. इसलिए पता करना थोड़ा मुश्किल है |”
“कोई बात नहीं... इतना पता लगाया... ये बहुत है.. ये लो.. अपना इनाम..|” कहते हुए विनय ने एक पाँच सौ का नोट थमाया मंगरू को |
मंगरू ख़ुशी से उस नोट को चूम कर अपने शर्ट के अन्दर वाले पॉकेट में भर लेता है ; नमस्ते कर जा ही रहा होता है कि रुक जाता है... कुछ सोचते हुए पीछे मुड़ता है और हाथ जोड़ कर बोला, “साब... एक विनती है... आगे से इतनी जोर से मत मारा करो... हेहे.. दर्द होता है |” सुन कर विनय हँस देता है | मंगरू के चले जाने के बाद एक सिगरेट सुलगाया और जेब से वही फ़ोटो निकाला जिसे वह होटल के रजिस्टर से फाड़ा था | कुछ देर तक उस फ़ोटो को अच्छी तरह से निहारने के बाद वह दो बार उस फ़ोटो पर ऊँगली फेरा और फिर लाइटर जला कर उस फ़ोटो को आग लगा दिया |
कुछ देर बाद,
शाम के साढ़े छ: बज रहे हैं ...
अभय के घर के सामने एक पुलिस जीप आ कर रुकी... और फ़िर उसमे से उतरा विनय... अपने पूरे यूनिफार्म में था वह.. -- खादी वर्दी, सिर पे टोपी, कमर पर रिवोल्वर और हाथ में छोटा सा डंडा जो अक्सर पुलिस इंस्पेक्टरों के हाथों में होता है -- सधे कदमों से चलते हुए वह बिल्डिंग की सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ मेन डोर के पास पहुँचा और उसी डंडे से कुछेक बार दरवाज़ा पीटा -- थोड़े ही देर में दरवाज़ा खुला, सामने मिसेस दीप्ति शर्मा थीं अर्थात चाची .. एक सुंदर सी हलकी चमकीली पतली सी एक लाल साड़ी में... ब्लाउज भी कुछ वैसा ही था .. काला और पतला.. पर ब्रा है या नहीं ; समझना थोड़ा मुश्किल है ....| विनय चाची को साइड करता हुआ अन्दर घुसा ; चाची दरवाज़ा लगाकर धीरे क़दमों से चलते हुई उसके पास आई...
विनय – “कैसी हैं आप दीप्ति जी....?”
चाची – “जी ठीक हूँ...|”
“कौन कौन हैं घर पर...?”
“फ़िलहाल तो कोई नहीं... मेरे पति को आने में थोड़ा लेट है अभी |”
“हम्म... तो दीप्ति जी.. क्या आपने योर होटल का नाम सुना है?”
योर होटल का नाम सुनते ही चाची का चेहरा सफ़ेद पड़ गया... सकपका कर बोली,
“नहीं.. हाँ... आई मीन... हाँ सुना तो है |”
“गुड... कभी गयी हैं वहाँ ?” ये प्रश्न करते हुए विनय चाची की आँखों में देखा |
खुद को सामान्य दिखाते हुए चाची बोली, “नहीं... कभी संयोग नहीं हुआ |”
“सच?? अच्छे से सोच कर बोलिए... ऐसा कुछ है जो हमें आपकी इस बात को मानने नहीं देती |” होठों पर एक शरारती मुस्कान लिए विनय बड़े अर्थपूर्ण तरीके से प्रश्न किया |
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