RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
पार्ट २४)
चाची निढाल सी बेड पर पड़ी रही. और मैं बड़ी तल्लीनता से चूत चाटे जा रहा था | इस वक़्त अगर कोई वहाँ कमरे में होता तो मुझे देख कर यही कहता की बेचारे को चूत की बड़ी प्यास लगी है ... क्योंकि मुझे तो चूत के पास से हटने का मन ही नहीं कर रहा था | काफ़ी देर तक ‘लप लप’ की आवाज़ से चूत को अच्छे से चाटने के बाद जब थोड़ा मन भरा, मैं उठ कर चाची के बगल में जा कर लेट गया और चाची के चेहरे को बड़े प्यार और अपनेपन से देखने लगा | चाची आँख बंद की हुई थी | कसम से, बहुत ही प्यारी लग रही थी | बिना ब्लाउज के नंगे पड़े भीगे चूची और निप्पल, ज़ोर से दाबने के वजह से कहीं कहीं से लाल हो गयी थी | पूरे पेट और नाभि पर भी मेरे चाटने से हलके लार समेत निशान बन गये थे | कमर तक उठे हुए पेटीकोट मामले को और गर्म बना रहे थे |
मैं कुछ देर तक चाची को ऊपर नीचे देखता रहा | फ़िर आगे बढ़ कर दीप्ति (चाची) का एक चूची को पकड़ा और धीरे धीरे सहलाते हुए दबाने लगा | चाची अब भी आँख बंद कर लेटी थी, चूची पर दबाव पड़ते ही ‘उऊंन्ह्ह’ से कराह दी | पर मैं बिना परवाह किये चूची को दबाता और चूमता रहा | कुछ देर ऐसे ही करते रहने के बाद उन्हें बाँहों में भरते हुए लिपकिस करने लगा | चूत के होंठ चूसने के बाद मैं अब मुँह के होंठ चूसने में व्यस्त हो गया |
पर इसमें भी ज़्यादा देर तक नही रह सका | जल्दी से बरमुडा को उतार फेंका और अपने फनफनाते खड़े लंड के सुपारे पर थूक लगाने लगा | फिर चाची की चूत पर ढेर सारा थूक लगाया और अपने लंड के सुपारे को चूत के मुहाने पर लगा कर हल्का सा दबाव बनाने लगा | चाची ज़रा सा आँख खोली और मुझे अपने चूत पर लंड रगड़ते देख कर मुस्करा दी और फिर से आँखें बंद कर आने वाले सुख की परिकल्पना में खो गई |
मैंने लंड को चूत की लकीर रूपी द्वार पर ऊपर नीचे करने के बाद अब चूत के घुसाने में ध्यान देने लगा | धीरे धीरे दबाव बढाते हुए लंड को आधा घुसाने में कामयाब हो गया | लंड के सुपारे से लेकर लंड के आधे प्रवेश तक चाची “स्स्स्सशश्श्श्शह्ह्ह्ह...आअह्ह्ह्हह्ह्ह...!” की आवाज़ निकालती रही और बेडशीट और गद्दे पर अपने नाखूनों को और अधिक बैठाती रही |
चाची – “आअह्ह्ह्हssss..... अभय्य्यsssssss.... अआरामsss...ससsssss....ssss…..सेss.... करोssssss......आह्हssssssss!!”
मेरे मुँह से बस इतना निकला,
“शुरू तो आराम से ही कर रहा हूँ पर आगे का नहीं बता सकताssss.... ओह्हssss!”
मैं अब अपने कमर को धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा | प्रारंभिक कठिनाई के बाद जल्द ही लंड बहुत आराम से चूत के अंदर बाहर होने लगा | चाची को भी अब मज़ा आने लगा | वो दुबारा अपनी आँखें बंद कर ‘ऊऊन्न्हह्ह्ह्हsssssss.....ऊम्म्म्हहssssssssss....’ की सी आवाज़ करते हुए मीठी चुदाई का आनंद लेने लगी |
इधर मैं भी अपना स्पीड बढ़ाने लगा | आगे झुका; अपने दोनों हाथ चाची के कंधों पर रखा और पूरे ज़ोर से ऊपर नीचे करने लगा |
चाची – “आअह्ह्ह्हह्ह्ह्हssssssssss....ओफ्फ्फ़फ्फ्फ्फ़sssss.......अभय्यय्य्यsssssss....!!”
मैं – “ह्ह्म्मम्फ्फ्फ़sssss.....बोsss...बोलssss..बोलोssss..... जाss....sss… जाssssss.....जानsss....sssss... कैसाsss..... आअह्ह्हssss....... ओह्ह्हssss.... कैसाssss.... लगsss... ssssss…. रहा.....है???”
चाची – “आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ssssss......आऊऊचच्च्च्चsssssssss......उम्म्मम्म्म्मsssss........ह्ह्मम्म्म्मsssssssss”
चाची के मुँह से कोई जवाब न पाकर अति उत्तेजना के आगोश में मैंने उनके गांड के बायीं तरफ़ ज़ोर से एक थप्पड़ मारते हुए दाएँ चूची पर भी एक ज़ोरदार तमाचा जड़ दिया....
मैं – “अरे बोल नाsss.....चुप क्यूँ है....बोलssss...”
चाची – “आआआह्ह्ह्हहsssss.....मारो मतssssssss.....”
मैं (फ़िर से चूची पर एक थप्पड़ मारते हुए) –“जल्दी बोलssss.....”
चाची – “आआआह्ह्ह्हहsss.... अच्छा लग रहा हैsssssss.......”
चाची – “रु.....रुकनाss.... मतss....... आअह्ह्ह्हsssss...”
मैं – “कहाँ रुका हूँ मेरी जान....आह्ह........ह्हह्म्म्मफ्फ्फ़sss....”
रात के सन्नाटे में पूरे कमरे में सिर्फ आह्ह.. ओह्ह... उफ्फ्फ़.. ह्ह्ह्मम्फ्फ्फ़... की ही आवाजें गूंज रही थी |
मैंने झट से दीप्ति यानि की मेरी चाची के होंठो पर अपने होंठ रख दिए | हम दोनों ही कामोत्तेजना के आवेग में पड़ कर पशुवत व्यवहार कर रहे थे | दोनों पागलो की तरह एक दूसरे के होंठों को चूस और चूमे जा रहे थे | केवल “उऊंन्ह्हह्ह्हम्मम्म” जैसी लम्बी सी घुटी घुटी सी आवाज़ आ रही थी | जोर जोर से धक्के मारने से दोनों के जांघ आपस में टकराते हुए “ठप ठप” सी आवाजें कर रहे थे | दोनों की ही साँसे अब तेज़ी से चलने और उखड़ने लगे |
इसी तरह काफ़ी देर गुजरने के बाद..
अचानक,
चाची – “आअह्ह्हssssss....ओओओओह्ह्ह्हsssss.....आहsss... अबss.... और...नss....नहींsss..... रुक्कssss....सकती.....आआह्ह्हsss”
मैं – “आह्ह्हह्ह्म्मम्फ्फ्फ़sssss...आहहहsssss... मैं... मैंss.....भीsssss.......”
मैं अब एक चूची को दबाने और दूसरे को चूसने लगा | और दोनों ही काम बड़े ज़ोरों से करते हुए धक्के भी तेज़ देने लगा | गांड और जांघ अकड़ने लगी मेरी... चाची को इस बात का एहसास हो गया की उनकी तरह अब मैं भी अधिक देर तक टिकने वाला नहीं हूँ ... इसलिए उन्होंने अपने दोनों टांगों को ऊपर करते हुए मेरे गांड के पीछे ले जाकर दोनों टांगो को क्रिसक्रॉस करते हुए मेरे गांड को गिरफ़्त में लेते हुए चूत की तरफ़ बढ़ाये रखी | जबकि मैं तो धक्के लगाते हुए अपना ध्यान चूचियों पर दिया हुआ था .... और चूची को ऐसे दबा रहा था जैसे निकाल कर अपने साथ ही ले जाऊंगा | वहीँ दूसरी चूची को “चक्क..चक्क..” की आवाज़ से इतने ज़ोर से चूस रहा था की मानो जो कुछ भी अंदर रह गया है उसे भी मैंने निकाल लेना है .... इन हरकतों से चाची तो मारे दर्द के बुरी तरह छटपटाने लगी |
मैं – “आह्ह्ह..... दीप्ति.... मेरा निकलने वाला है....”
चाची – “अअम्मम्म... मेरा भी .... आह्ह”
और तुरंत ही दोनों एक साथ “आआह्ह्ह्हह्ह्हssssssssss” करते हुए झड़ गए |
अचानक से पूरा कमरा शांत हो गया .... बीच बीच में तेज़ साँसों के चलने की हलकी आवाज़ सी होती... फिर सब शांत.... मानो एक तूफ़ान थम गया हो | हम दोनों एक दूसरे से लिपटे हुए थे | और बहुत देर तक एक दूसरे को लिपटे ही रहे ... शायद छोड़ने का इरादा नहीं था हम दोनों का |
फ़िर,
एक दूसरे के बाँहों से आज़ाद हुए और थोड़ा आराम करने के बाद मैं उठ कर अपना बरमुडा लेने वाला था कि चाची ने मेरा हाथ पकड़ कर वापस बेड पर लिटाते हुए एक बड़ा मोटा सा चादर हम दोनों के नंगे बदन पर लेते हुए बोली, “रुको अभी... कोई जल्दी नहीं है... |”
मेरे कंधे पर सिर रख कर लेटी लेटी मेरे पूरे सीने पर अपनी उँगलियों की पोरों को फ़िरा कर सहलाने लगी |
मैं भी ऊपर तेज़ी से घूमते पंखे को देखता हुआ अपने बाएँ हाथ से चाची के सिर के रेशमी बालों को सहलाते हुए कहीं खो सा गया ... और अनायास ही मेरे मुँह से निकला,
“चाची.... उस इंस्पेक्टर का क्या होगा? मुझे तो वह बड़ा हरामी जान पड़ता है... हमारी ज़िंदगी में कुछ न कुछ बखेड़ा ज़रूर खड़ा करेगा... क्या पता शायद अभी भी वो कहीं दूर बैठा कोई तिकड़म भिड़ा रहा हो |”
मेरे नंगे सीने पे घूमती चाची की उँगलियाँ अचानक से रुकी,
और कुछ सेकंड्स रुकने के बाद फिर से मेरे सीने पर चलने लगीं,
और धीरे से बोली,
“उसकी फ़िक्र तुम न करो अभय... मैंने उसका इंतज़ाम कर लिया है |”
मैं बुरी तरह से चौंका,
“क्या सच?? प... पर... पर कैसे?? क्या इंतज़ाम कर लिया है आपने ... चाची..??”
चाची – “किया है ना कुछ... तुम अभी इन सब बातों की फ़िक्र मत करो.. समय आने पर खुद पता चल जाएगा |”
मैं – “पर दीप्ति........”
मेरे कुछ और कहने के पहले ही चाची ने अपना सिर उठाया और मेरी ओर देखते हुए अपनी एक ऊँगली मेरे होंठों पर रख दी और एक रहस्यमयी कातिलाना मुस्कान लिए धीरे से बोली,
“श्श्श्श....... शांत...बिल्कुल शांत..... मैंने कहा न, मैंने इंतजाम कर लिया है... उस इंस्पेक्टर की चिंता मुझ पर छोड़ कर तुम सिर्फ मेरी चिंता करो... और मेरी दो बातों को अपने दिमाग में बिल्कुल फ़िट कर लो...
पहला, अपनी चाची पर भरोसा करना सीखो... और दूसरा, जब हम इस तरह से साथ हों तो मुझे मेरे नाम से नहीं बल्कि चाची कह कर पुकारो... बड़ा किंकी लगता है... हाहाहा....”
मैं हतप्रभ सा उनकी ओर देखता रहा... कुछ समझ नहीं रहा था उस वक़्त... तभी चाची थोड़ा उठ कर अपने बगल में एक छोटे से टेबल/स्टूल पर रखे एक ग्लास को उठा कर मेरी ओर बढ़ाते हुए बोली,
“लो .. अब एक अच्छे बच्चे की तरह फटाफट इसे पी जाओ...|”
मैं – “ये क्या है चाची?”
चाची – “दूध..”
मैं – “दूध?!! अभी?? ... पर क्यों..?!!”
मेरे इस सवाल पर चाची शर्माते हुए मेरे पूरे शरीर को अच्छे से एक बार सर से लेकर पाँव तक देखी, कुछ सेकंड के लिए उनकी नज़रें चादर के नीचे बन रहे मेरे लंड के उठाव पर टिकी रही ...फ़िर मेरी ओर, मेरी आँखों में झांकती हुई , मेरे सिर को सहलाते , बाएँ कान के ऊपर बिखरे सर के बालों को अपनी उँगलियों से बड़े प्यार से कान के पीछे करते हुए, होंठों पर कातिलाना मुस्कान लिए बोली,
“क्योंकिss....... मुझे..... एक राउंड और चाहिए... ”
मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ..... “व्हाट”??!
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इधर शहर में ही, दूर कहीं किसी वीराने में... एक नदी के किनारे,
एक लम्बा सा आदमी... भुजाएं काफ़ी बलिष्ट सी मालूम पड़ती है उसकी... ताकतवर होगा...
एक बड़ा और काफ़ी गहरा गड्ढा खोदा...
और फ़िर एक बड़ी सी काली प्लास्टिक उस गड्ढे में डाल दिया ...
प्लास्टिक में कुछ लपेटा हुआ था.. देखने से आदमीनुमा जैसा कुछ लग रहा था .. मानो किसी आदमी को लपेटा गया हो |
प्लास्टिक को बड़ी मशक्कत से गड्ढे में डालने के बाद उस आदमी ने जल्दी से गड्ढे को भर दिया ... भरने के बाद कुदाल-फावड़ा ले कर एक ओर बढ़ा.. अभी कुछ कदम चला ही होगा कि रात के सन्नाटे में ‘च्युम’ की सी एक धीमी आवाज़ हुई... और इसी के साथ ही उधर वह आदमी किसी कटे पेड़ की भांति ज़मीन पर गिर गया |
हेडलाइट्स ऑफ़ किये एक कार आ कर रुकी उस आदमी के पास... एक आदमी उतरा.. साथ में एक बड़ी सी प्लास्टिक और चादर लिए. जल्दी से उस गिरे हुए आदमी को पहले चादर में, फिर उस प्लास्टिक में लपेटा.. फिर किसी तरह उठा कर अपने कार की डिक्की में डाला... साथ ही कुदाल वगेरह भी डिक्की में डालने के बाद कार स्टार्ट कर एक ओर तेज़ी से बढ़ गया |
क्रमशः
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