Kamukta kahani अनौखा जाल
09-12-2020, 01:06 PM,
#36
RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
भाग ३३)

मुँह को ऊपर की ओर कर, एक लंबा कश खींच कर धुआँ उड़ाते हुए मेरी ओर देखा और ऐश-ट्रे में राख झाड़ते हुए बोलना शुरू किया बिंद्रा ने,

“देखो अभय, पहले तुम्हें गन ... हैंडगन के बारे में कुछ बेसिक बातें बता देता हूँ ... हालाँकि इस तरह की बातें बताने का कोई तुक तो नहीं है.. ख़ास कर किसी सस्पेक्ट को... फ़िर भी अपने गट्स – फ़ीलिंग पर --- की तुम इस पूरे मामले में निर्दोष हो --- मैं तुम्हें कुछ बारीकियाँ बताने का कष्ट उठाने को तैयार हूँ ..

मैंने मन ही मन कहा,

‘बड़ी मेहरबानी आपकी’

हंसने को जी भी कर रहा था .... की बिंद्रा अब जो मुझे बताने की सोच रहा है... वो सब मोना और उसके ट्रेनर्स ने मुझे बखूबी सीखा और समझा दिया था ---

फ़िर भी बिंद्रा के मुँह से सुनने की एक इच्छा सी रही --- क्योंकि एक पुलिस वाले या ऐसे किसी डिपार्टमेंट वाले का ज्ञान पाने का इससे अच्छा मौका मुझे मिलने वाला नहीं था ... शायद...

बिंद्रा बोलना ज़ारी रखा,

“अभय, कैलिबर को जानने से पहले तुम्हें बोर के बारे में जानना होगा ....”

“बोर?”

“हाँ बोर...”

“वह क्या होता है स..”

“अरे वही तो बताने जा रहा हूँ... पहले सुनो तो भई..”

“जी सर”

“अभी के लिए तुम्हारे जानने लायक दो ही बातें हैं..

१) बोर

२) कैलिबर

बंदूक का बोर पाइप के ‘अंदर के’ डायमीटर या व्यास को बोर कहते हैं --- ‘अंदर के’ को स्पेसिफाई करना इसलिए ज़रूरी है क्यूंकि किसी खोखले पाइप के हमेशा दो डायमीटर होंगे – एक अंदर का और एक बाहर का.

अब अगर यदि कोई पाइप बहुत पतली शीट से बना हो तो उसके अंदर और बाहर का व्यास लगभग बराबर होगा.... लेकिन पाइप का मटेरियल जितना मोटा होता जाएगा, अंदर और बाहर के डायमीटर में उतना अंतर आता रहेगा...

इसी तरह,

पिस्तौल, बंदूक यहाँ तक की तोप की नली के ‘अंदर के’ डायमीटर या व्यास को बोर कहते हैं...

एक बात और समझने की ज़रूरत है कि हम पिस्तौल के ‘अंदर के’ व्यास को ही क्यूं महत्व देते हैं या दे रहे हैं?

इसका उत्तर बहुत सिंपल है – बाहर का व्यास कितना भी हो उससे फ़र्क नहीं पड़ता लेकिन पाइप के अंदर के व्यास से ही पता चल पाएगा कि इसमें कितनी मोटी गोली आएगी ; यानी... किसी पिस्तौल की गोली के इर्द-गिर्द कोई पाइप बनाया जाएगा तो अंदर का डायमीटर स्पेसिफिक होगा और बाहर का डायमीटर मटेरियल की मोटाई के हिसाब से बदलता चला जाएगा....”

मैं – “ओह्ह ... ओके ...”

बिंद्रा – “समझे?”

“जी, समझ रहा हूँ ... आगे सर..?”

“ह्म्म्म... गुड.... तो अब ये बात स्टेब्लिश हुई कि – बोर, बंदूक की बैरल का अंदरूनी भाग या बैरल के अंदरूनी भाग का व्यास होता है....

अब हम आते हैं अपने दूसरे क्वेश्चन पर.. कि ‘कैलिबर’ क्या होता है?

बंदूक का कैलिबर ....

हथियारों में बोर को नापने के लिए दो प्रणालियों (कैलिबर और मिलीमीटर) का उपयोग किया जाता है...

कैलिबर शब्द दरअसल बोर का ही पर्यायवाची है लेकिन अब बन्दूकों, राइफल्स आदि के लिए माप प्रणाली बन गया है --- यदि किसी बंदूक का अंदर का व्यास x होगा तो उसमें यूज़ होने वाली गोली के बाहर का व्यास भी वही यानी x ही होगा ... --- तो यदि कोई x कैलिबर की बंदूक है तो उसमें x कैलिबर की ही गोली यूज़ होगी....

देखो अभय, एक बात अच्छे से समझ लो की इंच और कैलिबर में कोई अंतर नहीं होता है, क्यूंकि एक इंच और एक कैलिबर बराबर ही हैं, यानी .30 कैलिबर राइफल के बोर का व्यास दरअसल .30 इंच होगा...

कहीं-कहीं इस इंच या कैलिबर को दशमलब के तीन स्थानों तक शुद्ध मापा जाता था इसलिए कभी-कभी .303 कैलिबर राइफल भी पढ़, देख या सुना जा सकता है...

कभी-कभी, जब राइफल्स के नाम कैलिबर पर रखे जाते हैं तो उनमें कैलिबर शब्द ‘साइलेंट’ हो जाता है – जैसे .44 स्पेशल या .38 मैग्नम ---

अच्छा एक इंट्रेस्टिंग बात और बताता हूँ... जैसे की मैंने अभी अभी कहा था कि बोर मतलब नली के ‘अंदर का’ डायमीटर --- लेकिन शुरुआत में नापने वालों ने बाहर का डायमीटर नाप दिया और इसी के चक्कर में .38 कैलिबर पिस्तौल का बोर असल में 0.38 इंच नहीं, बल्कि 0.357 इंच होता है... या अगर ऊपर की एक और बात का रिविज़न किया जाए तो .38 कैलिबर की पिस्तौल में .357 इंच डायमीटर की गोली डाली जाती है या आदर्श रूप से डाली जानी चाहिए...

और इसी सब कन्फ्यूज़न के चलते ‘आर्म्स विशेषज्ञ’ कहते हैं कि किसी पिस्तौल के नाम से उसके बोर का पता चलना मुश्किल है.

बहुत से बहुत ‘लगभग’ पता चल जाएगा लेकिन फिर भी ज़्यादा जानकारी के लिए पिस्तौल का मैन्युअल रेफर करें. अब यही लगा लीजिए कि .44 स्पेशल और .44 मैग्नम दोनों ही .429 इंच व्यास की गोलियां यूज़ करते हैं.

बंदूक मिमी मिलीमीटर - मिलीमीटर या एमएम माप प्रणाली पर. एमएम माप प्रणाली जैसी सुनने में आती है, वैसी ही है भी. यानी यदि किसी बंदूक का बोर 5.56 एमएम है तो इसका मतलब ये हुआ कि बंदूक की नली का अंदरूनी व्यास 5.56 मिलीमीटर है.... सिंपल !

और हां, उसमें उपयोग में आने वाली गोली का व्यास (या बाहरी व्यास) भी 5.56 एमएम होना चाहिए.

“ह्म्म्म... सिनैरियो अब थोड़ा थोड़ा क्लियर हुआ सर..”

“वैरी गुड.”

“तो सर... हैवी कैलिबर मतलब?”

“मतलब की कितनी सक्षमता वाले गन का इस्तेमाल किया गया था इस मर्डर में”

“ओ.. ओके..”

“हम्म....”

“और सर... आप पॉइंट ब्लैंक जैसी कुछ बात कर रहे थे..?”

“हाँ... वो टारगेट और गन के बीच की दूरी के बारे में होती है...”

“ओ... ह्म्म्म.. ओके.”

मैं कुछ सोचता रहा.. बिंद्रा की एक एक बात मुझे किसी और ही दुनिया में ले गयी थी...

“क्या सोचने लगे अभय..?”

लगभग खत्म होने को आई सिगरेट को बिंद्रा ने ऐश-ट्रे में बुझाते हुए पूछा ... और साथ ही ऐश-ट्रे मेरी ओर सरका दिया..

मैंने अब ध्यान दिया... मेरी सिगरेट का भी वही हाल है... फ़िल्टर तक पहुँच गई है... तुरंत ऐश-ट्रे के हवाले किया उसे..

“और कुछ जानना नहीं चाहोगे..?”

इस प्रश्न को काफ़ी मतलबी और ख़ास ढंग से पूछा बिंद्रा ने... एक मुस्कान के साथ..

मैंने इंकार में सिर हिलाते हुए कंधे उचका दिया..

एक गहरी साँस छोड़ते हुए बिंद्रा फिर शुरू हुआ,

“मर्डर के दूसरे तरीके की बात कर रहा था...”

“ओह्ह.. हाँ... साइनाइड के बारे में...”

“ह्म्म्म... साइनाइड शब्द तो तुमने सुना ही होगा? इसके बारे में कुछ बता सकते हो?”

“नहीं सर... अख़बारों में पढ़ा है.. इतना पता है की बहुत घातक है यह... पर इससे ज़्यादा और कुछ नहीं जानता.”

बिंद्रा शांत सामने मेज़ की ओर देखता रहा...

कुछ क्षणों की चुप्पी के बाद मैंने खुद ही पूछा,

“सर, क्या आप प्लीज़ इस बारे में कुछ बताएँगें....?”

“ह्म्म्म... वही सोच रहा हूँ... की क्या किया जाय.. बताया जाए या नहीं बताया जाए...”

“प्लीज़ सर... मेरे लिए ये जानना बहुत ही ज़रूरी है..”

“”वह क्यों?” बिंद्रा चकित होते हुए पूछा..

“सर... मैंने एक ऐसे केस में फँसा हुआ हूँ.. जहाँ मैं ऊपर वाले से सिर्फ़ अपनी सलामती के अलावा और कुछ करने की स्थिति में नहीं हूँ.. ऊपर से ये केस एक मर्डर वाला केस है जिसमें मैं एक सस्पेक्ट हूँ --- जबकि मुझे होना नहीं चाहिए था --- सच पूछिए तो मुझे ये भी समझ में नहीं आ रहा है की जब मैं उस दिन नीचे टेबल पर कार्ड्स खेल रहा था तो उसी टाइम ऊपर उस जयचंद के कमरे के सामने कैसे पहुँच गया...? उस एक वीडियो फुटेज के अलावा पुलिस के पास मुझे दोषी साबित करने के लिए और कुछ नहीं है...”

“हा ...! (बिंद्रा ज़रा सा हँसा, फ़िर) --- तो तुम्हारे कहे के मुताबिक वह वीडियो वाकई तुम्हें दोषी साबित नहीं कर सकती?”

“जी सर... ”

“पर मुझे तो लगता है ...”

“क्यों सर...?”

“क्योंकि, वीडियो फुटेज तो बहुत स्ट्रोंग एविडेंस होते हैं किसी भी अपराध में.”

“पर फुटेज के साथ छेड़खानी तो की जा सकती है न, सर?”

“गुड पॉइंट... कैसे?”

“आमतौर पर जैसे होता है... वैसे.” बहुत विश्वास के साथ मैंने अपना तर्क पेश किया ...

“अभय ... अभय.... मर्डर होने के थोड़ी देर बाद पुलिस वहां पहुँच चुकी थी... और जैसे की इस तरह के हाई प्रोफाइल केसेस में होता है --- क्षणिक पूछताछ के बाद पुलिस ने तुरंत ही चल रहे रिकॉर्डिंग्स को चेक किया और ठीक जिस समय वह घटना घटी ; उसके एक घंटे आगे से लेकर एक घंटे पीछे तक के सारे रिकॉर्डिंग्स अपने साथ ले गई... वीडियो में उम्दा किस्म का चेंज --- एकदम बारीक़ वाला --- जोकि किसी के द्वारा जल्द पकड़ा न जाए, ऐसा चेंज करने के लिए कम से कम आधे घंटे का समय तो चाहिए ही ... वो भी अगर चेंज करने वाला कोई बहुत ही एक्सपर्ट टाइप का हो ... तभी संभव है...”

“ओह्ह...”

मन उदास हो गया ...

बिंद्रा ने बहुत सही पॉइंट्स गिनाए ---

थोड़ा चुप रहने के बाद बोला,

“सर, साइनाइड के बारे में कुछ बोल रहे थे आप”

“हाँ ... सुनो, बड़े ध्यान से सुनो --- साइनाइड को लेकर दो थ्योरी है --- और दोनों के ही बारे में पक्के तौर पर कुछ भी कहा नहीं जा सकता --- या तो दोनों ही थ्योरी सही है --- या फ़िर दोनों ग़लत --- या ....”

“या?”

“या दोनों थोड़ा थोड़ा सही हो सकते हैं !”

“ओह”

“ देखो, सबसे पहले साइनाइड को समझो ... रसायनशास्त्र के अनुसार, ‘साइनाइड’ को एक अम्ब्रेला टर्म कहा जा सकता है. अंब्रेला टर्म मतलब ‘साइनाइड’ उन पदार्थों का ग्रुप है जिनमें कार्बन-नाइट्रोजन (सीएन) बॉन्ड होता है.

जिस तरह सभी सांप लीथल या घातक नहीं होते, वैसे ही सभी तरह के साइनाइड भी ज़हर नहीं होते.

सोडियम साइनाइड (NaCN), पोटेशियम साइनाइड (KCN), हाइड्रोजन साइनाइड (HCN), और साइनोजेन क्लोराइड (CNCl) घातक हैं, लेकिन नाइट्राईल्स नाम के ढेरों यौगिक साइनाइड होते हुए भी ज़हर नहीं होते. बल्कि कई नाइट्राईल्स तो दवाइयों में यूज़ होते हैं. नाइट्राईल्स के खतरनाक न होने का कारण केमिस्ट्री में छुपा हुआ है, लेकिन अभी हमें केमिस्ट्री नहीं सालों, इन फैक्ट सदियों, से चली आ रही मिस्ट्री को सॉल्व करना है....

दरअसल साइनाइड, हमारे शरीर की कोशिकाओं और ऑक्सीजन के बीच दीवार का काम करता है. और हमारे शरीर की कोशिकाओं को ऑक्सीजन नहीं मिलेगी तो कोशिकाएं ज़्यादा देर तक जीवित नहीं रह पाएंगी. और कोशिकाएं, जिनसे मिलकर हमारा शरीर बना है, जीवित नहीं रहीं तो शरीर भी मृत.

अगर साइनाइड अपने प्योरेस्ट फॉर्म में अंदर ले लिया जाए तो सेकेंडों में व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है. मिर्गी के दौरे, कार्डिएक अरेस्ट, कोमा वगैरह के बाद, के साथ या उस सबसे पहले ही. और अगर इसकी कम मात्रा ली जाए या प्योर फॉर्म के बजाय किसी में डायल्यूट होकर आए बेहोशी, कमजोरी, चक्कर आना, सिरदर्द, भ्रम की स्थिति और सांस लेने में कठिनाई हो सकती है ....”

“बाप रे!”

“हाँ ... अब आते हैं थ्योरी वाले बातों पर --- ”

“जी सर..”

“ तो पहला थ्योरी यह है कि, सायनाइड इतना खतरनाक ज़हर है कि इसका टेस्ट किसी को पता नहीं चलता. क्यूंकि टेस्ट को बताने से पहले से ही बताने वाले की मृत्यु हो जाती है....

और दूसरा थ्योरी है की,

एक बार एक बंदे ने सायनाइड का टेस्ट पूरी दुनिया को बताने के लिए अपनी जान की कुर्बानी देने की सोची. पेन कॉपी लेकर बैठ गया. एक हाथ में पेन दूसरे में सायनाइड. एक हाथ से सायनाइड मुंह में डाला दूसरे से लिखना शुरू किया – S…

बस अंग्रेजीं का अक्षर एस(s) ही लिख पाया और मर गया. अब अंग्रेजी के एस अक्षर से कितने ही टेस्ट आते हैं –

Sweet – मीठा
Sour – खट्टा
Salt – नमकीन

तो आज तक पता नहीं चल पाया कि सायनाइड का टेस्ट कैसा है --- बस यही पता चल पाया कि सायनाइड का टेस्ट अंग्रेजी के एस(s) अक्षर से शुरू होता है....”

एक ही साँस में इतना सब कुछ कहने के बाद बिंद्रा चुप हुआ ...

“तो क्या डॉक्टरी रिपोर्ट में ये साबित हो गया कि जयचंद को साइनाइड ही दिया गया था?” मैंने पूछा.

“हाँ... पर कौन सा --- आई मीन, साइनाइड बहुत प्रकार के होते हैं --- एक्साक्ट्ली कौन सा दिया गया था, ये पता लगाना थोड़ा मुश्किल है.”

“ओ...”

इतना सब कुछ सुनने के बाद मैं अब तय करने में असमर्थ सा फ़ील करने लगा की अब आगे क्या पूछूँ..

कमरे में फ़िर से शांति छाई रही ..

टेबल पर ही बिंद्रा के पास रखी तीन टेलीफोन में से एक बज उठी --- अपनी सोच की दुनिया से बाहर आया और शायद बिंद्रा भी ---

फ़ोन में दूसरे ओर से जो कुछ भी कहा गया उसके जवाब में बिंद्रा ने बस इतना ही कहा की ‘उसे अंदर भेज दो’ ....

दो मिनट बाद दरवाज़े पर खटखटाया किसी ने...

“कम इन”

बड़े आश्वस्त स्वर में बिंद्रा ने आदेश दिया ---

लगभग मेरे ही उम्र का एक लड़का अंदर घुसा .... थोड़ा सुकड़ा हुआ... दुबला पतला ... आँखों पर चश्मा ... बाल सामान्य से थोड़े बड़े और घूमे हुए (कर्ली) --- तनिक नर्वस सा प्रतीत होता हुआ ---

“आओ आओ... (फ़िर मेरी ओर देख कर) --- अभय, ये गोविंद है... और ये है अभय... जिसके बारे में तुम्हें बताया था ---”

गोविंद नामके उस लड़के ने पहले काँपते हाथों से मुझे नमस्ते किया और फ़िर तुरंत ही अपना हाथ आगे बढ़ा दिया ... मैंने भी देरी नहीं की और हाथ मिलाया उससे --- फ़िर हम दोनों ने ही एक साथ बिंद्रा की ओर देखा ---

“देखो, मैंने सिर्फ़ परिचय करवाया... आगे का क्या बात करना है और कैसे करना है; वो तुम दोनों पर छोड़ता हूँ. नाओ यू बोथ मे लीव --- आई गोट वर्क टू डू.”

इतना कह कर बिंद्रा ने एक सिगरेट सुलगाया और पास पड़ी फ़ाइल को देखने लगा ---

बिंद्रा में अचानक से ऐसे किसी परिवर्तन की मैंने आशा नहीं किया था ... पर और करता भी क्या ---

गोविंद और मेरी आँखें मिली --- एक अनकही सहमती बनी और ‘थैंक्यू बाय’ कहते हुए हम दोनों कमरे से निकल गए ---

क्रमशः

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RE: Kamukta kahani अनौखा जाल - by desiaks - 09-12-2020, 01:06 PM

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