Kamukta kahani अनौखा जाल
09-12-2020, 01:06 PM,
#37
RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
भाग ३४)

गोविंद और मैं बिल्डिंग से कुछ दूरी पर स्थित एक दुकान में बैठे चाय के साथ साथ सुट्टे लगा रहे थे --- यही कोई पन्द्रह मिनट बीत चुके हैं ... सिर्फ़ हाय-हैल्लो और सिवाय एक दूसरे से ये पूछने की हम दोनों क्या करते हैं; और कोई काम की बात नहीं हुई थी ... |

अंततः मैंने ही शुरुआत किया,

“तो.. क्या हुआ तुम्हारे साथ...?”

“वही जो तुम्हारी चाची के साथ हुआ...” उसने उत्तर तो दिया पर उसकी नज़रें सामने रोड पर थी और ख़ुद वो कहीं खोया हुआ सा लगा मुझे ...

“ओह्ह... तुम्हें पता है...?? पर तुम्हें कैसे पता... किसने बताया ...”

“बिंद्रा साहब ने...”

“ह्म्म्म... ओके...”

“हाँ”

“ठीक है ... मेरा तो तुम्हें पता है.. पर मुझे तुम्हारा नहीं पता... कुछ बताओ... क्या हुआ तुम्हारे साथ ??”

“मेरी मम्मी के साथ हुआ है...” वैसा ही खोया खोया सा रहते हुए उत्तर दिया वो..

“हम्म.. पर गुज़री तो तुम्हारे ऊपर....”

मैं सांत्वना देते हुए कहा, पर शायद उसे बुरा लग गया...

तनिक रूखे स्वर में बोला,

“क्यों... मेरी मम्मी पर नहीं गुज़री है क्या...?”

इस अप्रत्याशित व्यवहार के लिए मैं बिल्कुल भी तैयार नहीं था..

थोड़ा रूककर धीरे से पूछा,

“कैसे हुआ ये?”

“पता नहीं...”

उसने फ़िर लगभग उसी अंदाज़ में छोटा सा उत्तर दिया, पर इसबार थोड़ा शांत रहा..

मैंने दोबारा कुछ पूछा नहीं..

चाय खत्म कर सिगरेट भी फेंकने ही वाला था कि गोविंद धीरे से बोला,

“उनको ब्लैकमेल किया था उन लोगों ने..”

कहते हुए थोड़ा रुआंसा हो गया..

मैंने इस बार कोई पहल नहीं किया, उसे सांत्वना देने का या सहानुभूति जताते हुए कुछ कहने का... दोबारा उसके रूखेपन को बर्दाश्त करने का मन नहीं था.. एक तो अपने दिमाग का ही संतुलन बिगड़ रहा है रह-रह कर, ऊपर से ये महाशय ऐसे रिएक्ट कर रहे हैं मानो दुनिया भर के दुःख दर्द इसके ही अंदर पेल दिया गया हो...

शायद इस बात को वह भी ताड़ गया, तभी अधिक प्रतीक्षा किए बिना स्वयं ही चालू हो गया,

“इस बात को हुए छह महीने से भी अधिक हो गया... ऐसा क्या हुआ जो उन्हें ये सब करना पड़ रहा है; पता नहीं... पर इतना ज़रूर पता है कि ये सब शुरू हुआ था किसी दुकान से... तब से लेकर आज --- आज तक --- उनको वही गंदे काम करने पड़ते हैं --- (अब वह सुबकने लगा) --- हर दोपहर निकलती है --- और देर रात घर आती है --- शुरू में कितना टूट चुकी थी वो --- हँसते खेलते चेहरे की रंगत उड़ गयी थी --- पर --- पर उन लोगों के निर्देश पर, फ़िर से मम्मी ख़ुद को वेल मेंटेंड रखने लगी --- रखने क्या लगी रखने के लिए मजबूर हुई --- छह महीने पहले शुरू हुआ वाकया अभी तक अनवरत चल रहा है ---”

उस समय तक यदि चाय दुकान में भीड़ न हो गई होती तो शायद वह फूट – फूट कर रोना शुरू कर दिया होता ---

मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोला,

“देखो दोस्त, जो कुछ भी हुआ; माना की उसमें तुम्हारा कोई नियंत्रण न रहा हो --- पर अब भी कुछ करने योग्य न हो, मैं नहीं मानता ---हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से कुछ नहीं होगा --- कुछ तो करना ही होगा .......”

मेरी बात को बीच में ही काटते हुए गोविंद बोला,

“पर हम कर भी क्या सकते हैं --- हम और आप एक तरफ़ --- और वे लोग --- उफ़ --- क्या बताऊँ --- इतना समझ लीजिए की उनके खिलाफ़ किसी भी तरह का कोई भी एक्शन लेना घातक सिद्ध हो सकता है ...|”

उसकी बात में दम था, पर मुझे फ़िलहाल वो सब बकवास लगा --- इतना ही बोला,

“तुम अपनी मम्मी को इस दलदल से बाहर निकालना चाहते हो या नहीं? --- केवल हाँ या ना में जवाब दो ...”

“हाँ --- चाहता हूँ”

“तो फ़िर ठीक है ... अभी के लिए बस इतना अपने पल्ले बाँध लो की चाहे जो हो जाए तुम पीछे नहीं हटोगे --- राईट?! --- इन लोगों के खिलाफ़ जो भी बन पड़े, बेहिचक करोगे --- करना ही होगा... आज के लिए इतना ही... चलो घर चलते हैं --- मुझे भी देर हो रही है |”

कहते हुए मैं उठ गया; कदम आगे बढ़ाता की तभी गोविंद ने आवाज़ दिया,

“सुनिए...”

मैं पीछे पलटा,

“जी?”

वो उठा ---

मेरे पास आया ---

और झट से मुझे कस कर गले लगा लिया..

दो सेकंड बाद अलग होते हुए धीरे से कहा,

“आपके हौसले की मैं दाद देता हूँ, आपके हिम्मत और बातों ने मुझे उजाले की नई किरण दिखाई है... आशा करता हूँ की मैं और आप, जैसा चाहते हैं; सब कुछ वैसा ही हो...”

“बहुत धन्यवाद... (मैं थोड़ा हँसा) --- पर इतना ध्यान रहे की इस मार्ग में संकट बहुत होंगें --- प्राणघातक संकट --- कठिन से कठिन चुनौती --- स्वीकार है?”

“सब स्वीकार है”

एक नई ऊर्जा और आत्म विश्वास दिखा उसके उत्तर एवं हाव-भाव में ...

बिना कुछ कहे ही वह आगे बढ़ा और बिल चुकता किया...

फ़िर,

दोनों ने एक दूसरे को विदा कहते हुए अपने अपने रास्ते निकल लिए ...

मेरे दिमाग में एक साथ कई बातें घूम रही थीं --- किसी की सलाह लेना चाह रहा था --- और ऐसे मामलों में केवल एक ही शख्स है जिस तक मेरी पहुँच है और जो ख़ुद ऐसे मामलों में एक्सपर्ट है....

---------------

शाम छह बज रहे हैं,

एक कॉफ़ी कैफ़े में मोना और मैं --- आमने सामने बैठे हैं --- सामने टेबल पर हम दोनों के अपने अपने कॉफ़ी मग के साथ ---

काफ़ी देर तक मोना मेरे सभी बात को सुनी..

बड़े ध्यान से...

कोई जल्दबाजी नहीं ...

किसी भी तरह की टोकाटोकी नहीं की...

यहाँ तक की मेरे बात के खत्म हो जाने के अगले पाँच मिनट तक भी वह चुपचाप बैठी रही;

अंतर केवल इतना ही हुआ कि मेरे बात करने के दौरान वह मुझे देखे जा रही थी और अब, जब मैं बात खत्म कर चुका हूँ; वह अपने कॉफ़ी मग के गोल सिरे पर गोल गोल ऊँगली घूमाए जा रही है ---

अधिक देर तक मुझसे चुप रहा नहीं गया और पूछ ही बैठा,

“क्या सोच रही हो?”

“कुछ नहीं..”

“तो फ़िर चुप क्यों हो?”

“कुछ सोच रही हूँ...”

“अरे... कर लो बात... यार मैं अभी अभी तुमसे पूछा कि क्या सोच रही हो तो तुमने कहा की कुछ नहीं --- लेकिन फ़िर तुरंत ही कहती हो की कुछ सोच रही हो --- व्हाट्स द मैटर?”

“एक मिनट.”

आँखों को पैने कर कॉफ़ी को ही देखे जा रही थी वह... मेरे बार बार पूछने पर शायद डिस्टर्ब हो गई...

थोड़ी ही देर बाद उसने खुद ही बात शुरू की,

“मम्म...अभय....”

“बोलो... अब मन हुआ कुछ बोलने का?” थोड़ी नाराज़गी के साथ व्यंग्य भी दिखाया...

“हाँ...”

“तो बोलो?”

“ये इंस्पेक्टर दत्ता के विषय में तुम्हारे क्या सुविचार है?”

“सुविचार?! उस इंस्पेक्टर के बारे में? ना भई --- कोई विचार नहीं है ...”

“पक्का?”

“हाँ पक्का...”

“ओह”

“क्यों... उस दत्ता के बारे में क्यों पूछ रही हो?”

“कुछ नहीं, बस जानकारी ले रही हूँ... वैसे, जहाँ तक मुझे पता है और तुम्हारी बातों को सुनने के बाद ये कन्फर्म है कि इंस्पेक्टर विनय और दत्ता दोनों ही अच्छे मित्र हैं ...”

“हाँ, सम्भव है... और संभव क्या... मुझे पूरा विश्वास है की दोनों ज़रूर बहुत ही अच्छे मित्र हैं... उस दिन जो मैंने दत्ता को विनय की चिंता में गमगीन होते देखा --- उससे तो यही निष्कर्ष लगाया जा सकता है.”

“ह्म्म्म ... अच्छा, क्या तुम्हें पता है कि इंस्पेक्टर दत्ता किसे रिपोर्ट करता है --- आई मीन, उसका बॉस कौन है?”

“नहीं... ये तो नहीं पता.”

“हम्म.. ओके.. और ये बिंद्रा? इसके बारे में क्या कहते हो?”

“कुछ ख़ास नहीं... बंदा दिखता तो बड़ा हेल्पफुल टाइप का... और देखो, उन्होंने मेरी हेल्प भी की ... कई जानकारियाँ शेयर की ...”

“तुमने माँगी थीं वो सब जानकारी?”

“नहीं.”

“पूछा था?”

“नहीं.”

“तो फ़िर?”

मैं एक पल को ठहरा, थोड़ा सोचा...

फ़िर उत्तर दिया,

“मोना, तुम जो कहना चाह रही हो वो मैं समझ रहा हूँ... और सच पूछो तो मैं भी इस बारे में सोच चुका हूँ ...”

“अच्छा?! ज़रा बताओ तो मैं क्या कहना चाह रही हूँ और तुमने किस बारे में क्या सोचा है?” हैरानी से ज़्यादा उसके स्वर में व्यंग्य के पुट थे ...

“यही की यूँ अचानक से बिंद्रा के मन में ऐसी समाज सेवा करने की... या, सीधे शब्दों में मेरी सहायता करने की बात क्यों सूझी? और इतनी सारी बातें एक के बाद एक मुझसे क्यों साझा किया... सम्भव है की ऐसा उन्होंने वाकई तरस खा कर किया होगा ... पर दूसरी सम्भावनाओं को दरकिनार नहीं किया जा सकता है... और...”

“और?” कॉफ़ी का एक सिप लेती हुई मोना पूछी..

“..... और... ये गोविंद का क्या चक्कर है....”

“तुम्हें शक है उसपर?” उत्सुकता झलका... मोना के शब्दों और चेहरे पर...

“हाँ... है तो सही...” मैं भी चिंतित हो उठा..

“क्यों?”

“पता नहीं.. कोई पुख्ता वजह नहीं है..”

“ह्म्म्म... ओके... तो अब क्या करने का इरादा है?”

“इस बारे में कुछ सोचा तो है... पर जो कुछ भी करना है... वह तुम्हारे हेल्प के बिना हो ही नहीं सकता...”

“वाह! तो जनाब ने मुझे किसी योग्य समझा...” कहते हुए खिलखिला कर हँस पड़ी मोना.. पर मुझे सीरियस देख अगले ही क्षण चुप हो गई..

“सॉरी... बोलो... क्या और कैसी हेल्प चाहिए?”

जवाब में उसे एक एक कर बहुत कुछ समझाता चला गया....

मोना मेरी हर बात को बड़े ध्यान से सुनती रही...

अंत में,

“तो ......”

“तो..??”

“क्या कहती हो... हो जाएगा ये? कहीं बहुत ज़्यादा तो नहीं माँग लिया?”

“हाहाहा... इसे कहीं ज़्यादा भी कहते तो वो भी हो जाता... टेंशन न लो... हो जाएगा सब... मैं खुद मॉनिटर करुँगी सब...”

“थैंक्यू सो मच मोना..”

“थैंक्यू से काम नहीं चलेगा मिस्टर.... मेरी कॉफ़ी ठंडी हो गई है... एक और मंगवाओ...”

“हाहा... ओके..” हँसते हुए मैंने एक और कॉफ़ी मँगवाया |

क्रमशः

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RE: Kamukta kahani अनौखा जाल - by desiaks - 09-12-2020, 01:06 PM

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