RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
सुनीलजी ने कहा की वह जब शाम को मार्किट में गए थे तो उन्हें लगा की कोई उनका पीछा कर रहा था। पहले तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ की भला कोई उसका पीछा भी कर सकता है। पर चूँकि कर्नल साहब ने उन्हें बताया था की कुछ दिन पहले उनका भी कोई पीछा कर रहा था इसलिए सुनीलजी ने तय किया की वह भी ध्यान से देखेंगे की क्या वह बन्दा सचमुच उनका पीछा ही कर रहा था की या फिर वह सुनिलजी का वहम था। सुनीलजी चेक करने के लिए थोड़ी देर अचानक ही रुक गए। जब सुनीलजी रुक गए तो वह बन्दा भी रुक गया और दिखावा करने लगा जैसे वह कोई दूकान में सामान देख रहा हो।
दिखने में वह काफी लंबा और हट्टाकट्टा था। उसने कपड़े से अपना मुंह ढक रखा था। सुनील को लगा की शायद उन्हें वहम हुआ होगा। वह चलने लगे तो वह शख्श भी चलने लगा। तब सुनीलजी को यह यकीन हो गया की वह उनका पीछा कर रहा था। सुनील फुर्ती से एक गली में घुसे और कहीं छुप कर उस शख्श का इंतजार करने लगे।
जैसे ही वह शख्श उनके पास से गुजरा तो सुनील ने उसे ललकारा। सुनील ने उसे पूछा, "अरे भाई, तुम कौन हो, और मेरा पीछा क्यों कर रहे हो?"
सुनील की आवाज सुनकर उसने पलट कर देखा तो सुनीलजी पीछे से उसके करीब आने लगे। सुनीलजी को करीब आते हुए देख कर वह एकदम भाग खड़ा हुआ। सुनीलजी उसके पीछे दौड़ते हुए गये पर वह बन्दा अचानक कहीं गायब ही हो गया।
सुनीलजी ने कर्नल साहब से कहा, "जस्सूजी मैं वाकई में चिंतित हूँ। मैं यह समझ नहीं पाता हूँ की मेरा पीछा करने की जरुरत किसीको क्यों पड़ गयी? आखिर मेरे पास ऐसा क्या है? मेरी समझ में तो कुछ नहीं रहा।"
कर्नल साहब काफी चिंतित दिखाई दे रहे थे। उन्होंने सुनीलजी के कंधे पर हाथ फिराते हुए कहा, "आपके पास कुछ ऐसा है जिसकी किसीको जरुरत है। खैर, कोई बात नहीं। मैं पता लगाता हूँ और देखता हूँ की यह मसला क्या है।"
सुनील की पत्नी सुनीता जस्सूजी की बात सुनकर और भी चिंतित दिखाई दे रही थी। उसने कर्नल साहब से पूछा, "जस्सूजी, आखिर बात क्या है? इनका कोई पीछा क्यों करेगा भला? कुछ गड़बड़ तो नहीं? आप की बात से लगता है की हो ना हो आपको कुछ पता है जो हमें नहीं मालुम। कहीं आप हमसे कुछ छुपा तो नहीं रहे हो?"
कर्नल साहब रक्षात्मक हुए और बोले, "नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। मैं आपसे कुछ नहीं छुपाऊंगा। इतना तो जरूर है की कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ तो रहस्य जरूर है। पर जब तक मुझे पक्का पता नहीं चले तब तक क्या बताऊँ?"
सुनील ने पूछा, "जस्सूजी, क्या यह नहीं हो सकता की वह किसी और का पीछा कर न चाह रहा था और गलती से मुझे वह आदमी समझ कर मेरा पीछा कर रहा हो?"
जस्सूजी ने कहा, "हो भी सकता है। पर अक्सर ऐसे शातिर लोग इतनी बड़ी गलती नहीं करते।"
सुनीता को शक हुआ की जस्सूजी जरूर कुछ जानते थे पर बताना नहीं चाहते जब तक उन्हें पक्का यकीन ना हो। सुनीता इसका राज़ जानने के लिए बड़ी ही उत्सुक थी पर चूँकि जस्सूजी बताना नहीं चाहते थे इस लिए सुनीता ने भी उस समय उन्हें ज्यादा आग्रह नहीं किया। पर उसी समय सुनीता ने तय किया की वह इस रहस्य की सतह तक जरूर पहुचेंगी।
सुनीलजी ने कर्नल साहब को धन्यवाद कहा। जस्सूजी जब जाने के लिए तैयार हुए तो सुनीलजी ने सुनीता को कर्नल साहब को छोड़ने के लिए कहा और खुद घरमें चले गए। सुनीता जस्सूजी को छोड़ने के लिए घर से सीढ़ी उतर कर जब निचे उतरने लगी तब उसने जस्सूजी का हाथ पकड़ कर रोका और कहा, "जस्सूजी आप इसका राज़ जानते हैं। पर हमें बता क्यों नहीं रहें हैं। बोलिये क्या बात है?"
जस्सूजी ने सुनीता की और देखा और आँखें झुका कर बोले, "मैं आपको खामखा परेशानी में नहीं डालना चाहता। मैं खुद इसकी सतह तक पहुंचना चाहता हूँ पर क्या बताऊँ? वक्त आने पर मैं आपको खुद बताऊंगा। अभी आप मुझे इस बारेमें प्लीज आग्रह नहीं करें तो अच्छा है।"
इतना कह कर कर्नल साहब फुर्ती से सीढ़ियां निचे उतर गए। सुनीता उन्हें देखती ही रह गयी। जस्सूजी के जाने के तुरंत बाद सुनीता ने तय किया की वह जल्द ही जस्सूजी से बात कर उनसे इसके बारे में सारे राज़ बताने के लिए आग्रह करके मजबूर करेगी। पर उसकी समझ में यह नहीं आ रहा था की उसे जस्सूजी से एकांत में मिलने का मौक़ा कब मिलेगा। पर दूसरे ही दिन यह मौक़ा मिल गया।
सुबह ही ज्योतिजी का फ़ोन आया। ज्योतिजी ने कहा, "सुनीता बहन एक समस्या हो गयी है। जस्सूजी को बुखार है और वह ऑफिस नहीं जा रहे। मेरी स्कूल में स्कूल के वार्षिक दिवस का कार्यक्रम है। मुझे तो जाना पडेगा ही। मैं गैर हाजिर नहीं रह सकती। तो क्या तुम अगर फ्री हो तो आज छुट्टी ले सकती हो? दिन में दो तीन बार जस्सूजी के पास जा कर उनकी तबियत का जायजा ले सकती हो प्लीज? मेरी बेटी भी बाहर ट्रेनिंग में गयी हुई है।"
यह सुन कर सुनीता खुश हो गयी। वह पिछली शाम से यही सोच रही थी की कैसे वह जस्सूजी से अकेले में बात करे। सुनीता ने फ़ौरन कहा, "ज्योतिजी आप निश्चिन्त जाइये। जस्सूजी की देखभाल मैं कर लुंगी। वह मेरे गुरु हैं और उनकी सेवा करना मेरा सौभाग्य होगा। मुझे आज स्कूल में कोई ख़ास काम है नहीं। ज्यादातर पीरियड फ्री हैं। मैं छुट्टी ले लुंगी।"
ज्योतिजी सुबह ही घर से निकल गयीं। सुनील के दफ्तर चले जाने के बाद सुनीता थोड़ा सा ठीकठाक होकर नहा धो कर फ्रेश हुई और ज्योतिजी और जस्सूजी के फ्लैट की और चल पड़ी। फ्लैट की घंटी बजायी तो जस्सूजी ने दरवाजा खोला। सुनीता ने देखा तो जस्सूजी तैयार हो रहे थे। उन्होंने बनियान और पतलून पहन रखा था और अपना यूनिफार्म पहनने जा रहे थे। जस्सूजी सुनीता को देख कर थम गए और आश्चर्य से बोल पड़े, "अरे सुनीता तुम, इस वक्त. यहां? क्या बात है?"
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