RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
कुमार: "मोहतरमा, आप कहना क्या चाहती हो? मैं ख्वाब में क्या देखूं? जहां तक सब्र का सवाल है तो मैं यह मानता हूँ की मुझमें सब्र की कमी है।"
नीतू: "कमाल है कप्तान साहब! अब मुझे ही बताना पडेगा की आप ख्वाब में क्या देखो? भाई देश आजाद है। जो देखना हो वह ख्वाब में देख सकते हो। मुझे क्या पता आप ख्वाब में क्या देखना चाहते हो? पर ख्वाब की दुनिया और असलियत में फर्क होता है।"
कुमार: "मैं बताऊँ मैं ख्वाब में क्या देखना चाहता हूँ?''
नीतू: "फिर वही बात? भाई जो देखना चाहो देखो। बताओ, क्या देखना चाहते हो?"
कुमार: "अगर मैं सच सच बोलूं तो आप बुरा तो नहीं मानोगे?"
नीतू: "कमाल है! आप ख्वाब देखो तो उसमें मुझे बुरा मानने की क्या बात है? कहते हैं ना, की नींद तुम्हारी ख्वाब तुम्हारे। बताओ ना क्या ख्वाब देखना चाहते हो?"
कुमार: "हाँ यह तो सही कहा आपने। तो मैं ख्वाब देखना चाहता हूँ की आप मेरी बाँहों में हो और मैं आपको खूब प्यार कर रहा हूँ।"
नीतू: "अरे! अभी तो हम ढंग से मिले भी नहीं और आप मुझे बाँहों में ले कर प्यार करने के ख्वाब देखने लगे?"
कुमार: "आपने ही तो कहा था की ख्वाब देखने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है? जहां तक ढंग से मिलने का सवाल है तो बताइये ना हम कैसे ढंग से मिल सकते हैं?"
नीतू: "ढंग से मिलने का मतलब है आपस में एक दूसरे को जानना एक दूसरे के करीब आने के लिए समय निकालना, एक दूसरे की ख़ुशी और भले के लिए कुछ बलिदान करना, बगैरह बगैरह। हाँ, मैंने कहा तो था ख्वाब देखने पर कोई पाबंदी नहीं है, पर ख्वाब भी सोच समझ कर देखने चाहिए।"
कुमार: "क्या आप सोच समझ कर ख्वाब देखते हो? क्या ख्वाब पर हमारा कोई कण्ट्रोल होता है क्या?"
नीतू कुमार की बात सुनकर चुप हो गयी। उसके चेहरे पर गंभीरता दिखाई पड़ी। नीतू की आँखें कुछ गीली से हो गयीं। कुमार को यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ। वह नीतू को चुपचाप देखता रहा। सुनीता के चेहरे पर मायूसी देख कर कुमार ने कहा, "मुझे माफ़ करना नीतूजी, अगर मैंने कुछ ऐसा कह दिया जिससे आपको कोई दुःख हुआ हो। मैं आपको किसी भी तरह का दुःख नहीं देना चाहता।"
नीतू ने अपने आपको सम्हालते हुए कहा, "नहीं कप्तान साहब ऐसी कोई बात नहीं। जिंदगी में कुछ ऐसे मोड़ आते हैं जिन्हें आपको झेलना ही पड़ता है और उन्हें स्वीकार कर चलने में ही सबकी भलाई है।"
कुमार: "नीतूजी, पहेलियाँ मत बुझाइये। कहिये क्या बात है।"
नीतू ने बात को मोड़ देकर कुमार के सवाल को टालते हुए कहा, "कप्तान साहब मैं आपसे छोटी हूँ। आप मुझे नीतूजी कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम नीतू है और मुझे आप नीतू कह कर ही बुलाइये।"
नीतू ने फिर अपने आपको सम्हाला। थोड़ा सा सोचमें पड़ने के बाद नीतू ने शायद मन ही मन फैसला किया की वह कुमार को अपनी असलियत (की वह शादी शुदा है) उस वक्त नहीं बताएगी।
कुमार: "तो फिर आप भी सुनिए। आप मुझे कप्तान साहब कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम कुमार है। आप मुझे सिर्फ कुमार कह कर ही बुलाइये।"
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