DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
09-13-2020, 12:25 PM,
#62
RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
तेज हवा और गाड़ी की तेज गति के कारण नीतू पूरी तरह दरवाजे के बाहर जैसे उड़ रही थी। कुमार ने पूरी ताकत से नीतू के दोनों हाथ अपने दोनों हाथोँ में कस के पकड़ कर रखे थे। नीतू के पाँव हवा में झूल रहे थे। अक्सर नीतू का घाघरा खुल कर छाते की तरह फ़ैल कर ऊपर की और उठ रहा था। नीतू डिब्बे में से नीचे उतरने वाले पायदान पर अपने पाँव टिकाने की कोशिश में लगी हुई थी।

सुनीता जोर से "कोई है? हमें मदद करो" चिल्ला ने लगी। कुछ देर तक तो शीशे का दरवाजा बंद होने के कारण कर्नल साहब और सुनीलजी को सुनीता की चीखें नहीं सुनाई दी। पर किसी और यात्री के बताने पर सुनीता की चिल्लाहट सुनकर एकदम कर्नल साहब और सुनीलजी उठ खड़े हुए और भाग के सुनीता के पास पहुंचे। कर्नल साहब ने जोर से ट्रैन की जंजीर खींची।

इतनी तेजी से भाग रही ट्रैन एकदम कहाँ रूकती? ब्रेक की चीत्कार से सारा वातावरण गूँज उठा। ट्रैन काफी तेज रफ़्तार पर थी। नीतू को लगा की उसके जीवन का आखरी वक्त आ चुका था। उसे बस कुमार के हाथ का सहारा था। पर कुमार की भी हालत ऐसी थी की वह खुद फिसला जा रहा था। एक साथ दो जानें कभी भी जा सकतीं थीं।

कुमार ने अपने जान की परवाह ना करते हुए नीतू का हाथ नहीं छोड़ा। नीतू और कुमार के वजन के कारण सुनीता की पकड़ कमजोर हो रही थी। सुनीता कुमार के पाँव को ठीक तरह से पकड़ नहीं पा रही थी। कुमार के पाँव सुनीता के हाथोँ में से फिसलते जा रहे थे। ट्रैन की रफ़्तार धीरे धीरे कम हो रही थी पर फिर भी काफी थी।

अचानक सुनीता के हाथोँ में से कुमार के पाँव छूट गए। कुमार और नीतू दोनों देखते ही देखते ट्रैन के बाहर उछल कर निचे गिर पड़े। थोड़ी दूर जाकर ट्रैन रुक गयी।

नीतू लुढ़क कर रेल की पटरियों से काफी दूर जा चुकी थी। बाहर घाँस और रेत होने के कारण उसे कुछ खरोंचे और एक दो जगह पर कुछ थोड़ी गहरी चोट लगी थी। पर कुमार को पत्थर पर गिरने के कारण काफी घाव लगे थे और उसके सर से खून बह रहा था। निचे गिरने के बाद चोट के कारण कुमार कुछ पल बेहोश पड़े रहे।

ट्रैन रुकजाने पर कर्नल साहब और सुनीलजी के साथ कई यात्री निचे उतर कर कुमार और नीतू को पीछे की और ढूंढने भागे। कुछ दुरी पर उन्हें कुमार गिरे हुए मिले। कुमार रेल की पटरियों के करीब पत्थरों के पास बेहोश गिरे हुए पड़े थे। उनके सर से काफी खून बह रहा था। सुनीता भी उतर कर वहाँ पहुंची। उसने अपनी चुन्नी फाड़ कर कुमार के सर पर कस के बाँधी। कुछ देर बाद कुमार ने आँखें खोलीं।

कर्नल साहब कुमार को सुनीता के सहारे छोड़ और पीछे की और भागे और कुछ दुरी पर उन्हें नीतू दिखाई दी। नीतू और पीछे गिरी हुई थी। नीतू के कपडे फटे हुए थे पर उसे ज्यादा चोट नहीं आयी थी। वह उठ कर खड़ी थी और अपने आपको सम्हालने की कोशिश कर रही थी। उसका सर चकरा रहा था। वह कुमार को ढूंढने की कोशिश कर रही थी।

कर्नल साहब और कुछ यात्री ने गार्ड के पास रखे प्राथमिक सारवार की सामग्री और दवाइयों से कुमार और नीतू की चोटों पर दवाई लगाई और पट्टियां बाँधी और दोनों को उठाकर वापस ट्रैन में लाकर उनकी बर्थ पर रखा। सुनीता और ज्योतिजी उन दोनों की देखभाल करने में जुट गए। ट्रैन फिर से अपने गंतव्य की और जाने के लिए अग्रसर हुई।

नीतू काफी सम्हल चुकी थी। वह कुमार के पाँव के पास जा बैठी। उसने कुमार का हाल देखा तो उसकी आँखों में से आँसुओं की धार बहने लगी। कुमार ने अपने जान की परवाह ना करते हुए उसकी जान बचाई यह उसको खाये जा रहा था। कुमार बच गए यह कुदरत का कमाल था। तेज रफ़्तार से चलती ट्रैन में से पत्थर पर गिरने से इंसान का बचना लगभग नामुमकिन सा होता है।

पर कुमार ने फिर भी अपनी जान को जोखिम में डाल कर नीतू को बचाया यह नीतू के लिए एक अद्भुत और अकल्पनीय अनुभव था। उसने सोचा भी नहीं था की कोई इंसान अपनी जान दुसरेकी जान बचाने के लिए ऐसे जोखिम में डाल सकता था। सुनीता और ज्योति नीतू को ढाढस देकर यह समझा रहे थे की कुमार ठीक है और उसकी जान को कोई ख़तरा नहीं है।

कम्पार्टमेंट में एक डॉक्टर थे उन्होंने दोनों को चेक किया और कहा की उन दोनों को चोटें आयीं थी पर कोई हड्डी टूटी हो ऐसा नहीं लग रहा था। कुछ देर बाद कुमार बैठ खड़े हुए और इधर उधर देखने लगे। सर पर लगी चोट के कारण उन्हें कुछ बेचैनी महसूस हो रही थी। उन्होंने नीतू को अपने पाँव के पास बैठे हुए और रोते हुए देखा।

कुमार ने झुक कर नीतू के हाथ थामे और कहा, "अब सब ठीक है। अब रोना बंद करो। मैंने तुम्हें कहा था ना, की सब ठीक हो जाएगा? हम भारतीय सेना के जवान हमेशा अपनी जान अपनी हथेली में लेकर घूमते हैं। चाहे देश की अस्मिता हो या देशवासी की जान बचानी हो। हम अपनी जान की बाजी लगा कर उन्हें बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। मैं बिलकुल ठीक हूँ तुम भी ठीक हो। अब जो हो गया उसे भूल जाओ और आगे की सोचो।"

थोड़ी देर बाद सुनीता और ज्योति अपनी बर्थ पर वापस चले गये। नीतू ने पर्दा फैला कर कुमार की बर्थ को परदे के पीछे ढक दिया। पहले तो वह कुमार के पर्दा फैलाने पर एतराज कर रही थी। पर अब वह खुद पर्दा फैला कर अपनी ऊपर वाली बर्थ पर ना जाकर निचे कुमार की बर्थ पर ही अपने पाँव लम्बे कर एक छोर पर बैठ गयी। नीतू ने कुमार को बर्थ पर अपने शरीर को लंबा कर लेटने को कहा। कुमार के पाँव को नीतू ने अपनी गोद में ले लिए और उनपर चद्दर बिछा कर वह कुमार के पाँव दबाने लगी।
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