RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
सुनीता को डर था की उस रात कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए। उसके पति सुनील ने उससे से वचन जो लिया था की दिन में ना सही पर रात को जरूर वह सुनीता को खाने मतलब सुनीता की लेने (मतलब सुनीता को चोदने) जरूर आएंगे। शादी के इतने सालों बाद भी सुनील सुनीता का दीवाना था। दूसरे जस्सूजी जो सुनीता को पाने के पिए सब कुछ दॉंव पर लगाने के लिए आमादा थे। जिन्होंने कसम खायी थी की वह सुनीता पर अपना स्त्रीत्व समर्पण करने के लिए (मतलब चुदवाने के लिए) कोई भी दबाव नहीं डालेंगे।
पर सुनीता और जस्सूजी के बिच यह अनकही सहमति तो थी ही की सुनीता जस्सूजी को भले उसको चोदने ना दे पर बाकी सबकुछ करने दे सकती है। यह बात अलग है की जस्सूजी खुद सुनीता का आधा समर्पण स्वीकार करने के लिए तैयार होंगे या नहीं। वह भी तो आर्मी के सिपाही थे और बड़े ही अड़ियल थे।
सुनीता को तब जस्सूजी का प्रण याद आया। उन्होने बड़े ही गभीर स्वर में कहा था की जब सुनीता ने उन्हें नकार ही दिया था तब वह कभी भी सामने चल कर सुनीता को ललचाने की या अपने करीब लाने को कोशिश नहीं करेंगे। सुनीता के सामने यह बड़ी समस्या थी। वह जस्सूजी का दिल नहीं तोड़ना चाहती थी पर फिर वह उनको अपना समर्पण भी तो नहीं कर सकती थी।
सुनीता जस्सूजी को भली भाँती जानती थी। जहां तक उसका मानना था जस्सूजी तब तक आगे नहीं बढ़ेंगे जब तक सुनीता कोई पहल ना करे। वैसे तो माननीयों पर मॅंडराने के लिए उनको चाहने वाले बड़े बेताब होते हैं। पर उस रात तो उलटा ही हो गया। सुनीता अपने पति की अपनी बर्थ पर इंतजार कर रही थी। साथ साथ में उसे यह भी डर था की कहीं जस्सूजी ऊपर से सीधा निचे ना उतर जाएँ। पर जहां सुनीता दो परवानोँ का इंतजार कर रही थी, वहाँ कोई भी आ नहीं रहा था। उधर नीतू अपने प्रेमी के संकेत का इंतजार कर रही थी, पर कुमार था की कोई इंटरेस्ट नहीं दिखा रहा था।
दोनों ही मानीनियाँ अपने प्रियतम से मिलने के लिए बेताब थी। पर प्रियतम ना जाने क्या सोच रहे थे? क्या वह अपनी प्रिया को सब्र का फल मीठा होता है यह सिख दे रहे थे? या कहीं वह निंद्रा के आहोश में होश खो कर गहरी नींद में सो तो नहीं गए थे?
काफी समय बीत जाने पर सुनीता समझ गयी की उसका पति सुनील गहरी नींद में सो ही गया होगा। वैसे भी ऐसा कई बार हो चुका था की सुनीता को रात को चोदने का प्रॉमिस कर के सुनीलजी कई बार सो जाते और सुनीता बेचारी मन मसोस कर रह जाती। रात बीतती जा रही थी। सुनीलजी का कोई पता ही नहीं था। तब सुनीता ने महसूस किया की उसकी ऊपर वाली बर्थ पर कुछ हलचल हो रही थी। इसका मतलब था की शायद जस्सूजी जाग रहे थे और सुनीता के संकेत का इंतजार कर रहे थे।
सुनीता की जाँघों के बिच का गीलापन बढ़ता जा रहा था। उसकी चूत की फड़कन थमने का नाम नहीं ले रही रही थी। कुमार और नीतू की प्रेम लीला देख कर सुनीता को भी अपनी चूत में लण्ड लड़वाने की बड़ी कामना थी। पर वह बेचारी करे तो क्या करे? पति आ नहीं रहे थे। जस्सूजी से वह चुदवा नहीं सकती थी।
रात बीतती जा रही थी। सुनीता की आँखों में नींद कहाँ? दिन में सोने कारण और फिर अपने पति के इंतजार में वह सो नहीं पा रही थी। उस तरफ ज्योतिजी गहरी नींद में लग रही थीं। ट्रैन की रफ़्तार से दौड़ती हुई हलकी सी आवाज में भी उनकी नियमित साँसें सुनाई दे रहीं थीं। सुनीलजी भी गहरी नींद में ही होंगें चूँकि वह शायद अपनी पत्नी के पास जाने (अपनी पत्नी को ट्रैन में चोदने) का वादा भूल गए थे। लगता था जस्सूजी भी सो रहे थे।
सुनीता की दोनों जाँघों के बिच उसकी में चूत में बड़ी हलचल महसूस हो रही थी। सुनीता ने फिर ऊपर से कुछ हलचल की आवाज सुनी। उसे लगा की जरूर जस्सूजी जाग रहे थे। पर उनको भी निचे आने की कोई उत्सुकता दिख नहीं रही थी। सुनीता अपनी बर्थ पर बैठ कर सोचने लगी। उसे समझ नहीं आया की वह क्या करे।
अगर जस्सूजी जागते होंगे तो ऊपर शायद वह सुनीता के पास आने के सपने ही देख रहे होंगे। पर शायद उनके मन में सुनीता के पास आने में हिचकिचाहट हो रही होगी, क्यूंकि सुनीता ने उनको नकार जो दिया था। सुनीता को अपने आप पर भी गुस्सा आ रहा था तो जस्सूजी पर तरस आ रहा था।
तब अचानक सुनीता ने ऊपर से लुढ़कती चद्दर को अपने नाक को छूते हुए महसूस किया। चद्दर काफी निचे खिसक कर आ गयी थी। सुनीता के मन में प्रश्न उठने लगे। क्या वह चद्दर जस्सूजी ने कोई संकेत देने के लिए निचे खिस्काइथी? या फिर करवट लेते हुए वह अपने आप ही अनजाने में निचे की और खिसक कर आयी थी?
सुनीता को पता नहीं था की उसका मतलब क्या था? या फिर कुछ मतलब था भी या नहीं? यह उधेङबुन में बिना सोचे समझे सुनीता का हाथ ऊपर की और चला गया और सुनीता ने अनजाने में ही चद्दर को निचे की और खींचा। खींचने के तुरंत बाद सुनीता पछताने लगी। अरे यह उसने क्या किया? अगर जस्सूजी ने सुनीता का यह संकेत समझ लिया तो वह क्या सोचेंगे?
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