RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
ट्रैन से निचे उतर ने पर सब ने महसूस किया की ज्योतिजी का मूड़ ख़ास अच्छा नहीं था। वह कुछ उखड़ी उखड़ी सी लग रही थीं। जस्सूजी ने सबको रोक कर बताया की उन्हें वहाँ से करीब चालीस किलोमीटर दूर हिमालय की पहाड़ियों में चम्बल के किनारे एक आर्मी कैंप में जाना है। उन सबको वहाँ से टैक्सी करनी पड़ेगी। जस्सूजी ने यह भी कहा की चूँकि वापसी की सवारी मिलना मुश्किल था इस लिए टैक्सी वाले मुंह माँगा किराया वसूल करते थे।
जस्सूजी, ज्योतिजी, सुनीता और सुनीलजी को बड़ा आनंद भरा आअश्चर्य तब हुआ जब एक व्यक्ति ने आकर सबसे हाथ मिलाये और सबके गले में फुलकी एक एक माला पहना कर कहा, "जम्मू में आपका स्वागत है। मैं आर्मी कैंप के मैनेजमेंट की तरफ से आपका स्वागत करता हूँ।"
फिर उसने आग्रह किया की सबकी माला पहने हुए एक फोटो ली जाए। सब ने खड़े होकर फोटो खिंचवाई। सुनील को कुछ अजीब सा लगा की स्टेशन पर हाल ही में उतरे कैंप में जाने वाले और भी कई आर्मी के अफसर और लोग थे, पर स्वागत सिर्फ उन चारों का ही हुआ था। फोटो खींचने के बाद फोटो खींचने वाला वह व्यक्ति पता नहीं भिडमें कहाँ गायब हो गया। सुनील ने जब जस्सूजी को इसमें बारेमें पूछा तो जस्सूजी भी इस बात को लेकर उलझन में थे। उन्होंने बताया की उनको नहीं पता था की आर्मी कैंप वाले उनका इतना भव्य स्वागत करेंगे।
खैर जब जस्सूजी ने टैक्सी वालों से कैंप जाने के लिए पूछताछ करनी शुरू की तो पाया की चूँकि काफी लोग कैंप की और जा रहे थे तो टैक्सी वालों ने किराया बढ़ा दिया था। पर शायद उन चारों की किस्मत अच्छी थी। एक टैक्सी वाले ने जब उन चारों को देखा तो भागता हुआ उनके पास आया और पूछा, "क्या आपको आर्मी कैंप साइट पर जाना है?"
जब सुनील ने हाँ कहा तो वह फ़ौरन अपनी पुरानी टूटी फूटी सी टैक्सी, के जिस पर कोई नंबर प्लेट नहीं था; ले आया और सबको बैठने को कहा। जब जस्सूजी ने किराये के बारे में पूछा तो उसने कहा, "कुछ भी दे देना साहेब। मेरी गाडी तो कैंप के आगे के गाँव तक जा ही रही है। खाली जा रहा था। सोच क्यों ना आपको ले चलूँ? कुछ किराया मिल जायेगा और आप से बातें भी हो जाएंगी।" ऐसा कह कर हम सब के बैठने के बाद उसने गाडी स्टार्ट कर दी।
जब जस्सूजी ने फिर किराए के बारे में पूछा तब उसने सब टैक्सी वालों से आधे से भी कम किराया कहा। यह सुनकर सुनीता बड़ी खुश हुई। उसने कहा, "यह तो बड़ा ही कम किराया माँग रहा है? लगता है यह भला आदमी है। यह कह कर सुनीता ने फ़ौरन अपनी ज़ेब से किराए की रकम टैक्सी वाले के हाथ में दे दी। सुनीता बड़ी खुश हो रही थी की उनको बड़े ही सस्ते किरायेमें टैक्सी मिल गयी। पर जब सुनीता ने जस्सूजी की और देखा तो जस्सूजी बड़े ही गंभीर विचारों में डूबे हुए थे।
कैंप जम्मू स्टेशन से करीब चालीस किलोमीटर दूर था और रास्ता ख़ास अच्छा नहीं था। दो घंटे लगने वाले थे। टैक्सी का ड्राइवर बड़ा ही हँसमुख था। उसने इधर उधर की बातें करनी शुरू की। ज्योतिजी का मूड़ ठीक नहीं था। कर्नल साहब कुछ बोल नहीं रहे थे। सुनील जी को कुछ भी पता नहीं था तब हार कर टैक्सी ड्राइवर ने सुनीता से बातें करने शुरू की, क्यूंकि सुनीता बातें करने में बड़ी उत्साहित रहती थी। टैक्सी ड्राइवर ने सुनीता से उनके प्रोग्राम के बारे में पूछा। सुनीता को प्रोग्राम के बारे में कुछ ख़ास पता नहीं था। पर सुनीता को जितना पता था उसने ड्राइवर को सब कुछ बताया।
आखिर में दो घंटे से ज्यादा का थकाने वाला सफर पूरा करने के बाद हिमालय कीखूबसूरत वादियों में वह चारों जा पहुंचे।
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