DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
09-13-2020, 12:28 PM,
#82
RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
ज्योतिजी सुबह से ही कुछ गंभीर सी दिख रही थीं। पर सुनीता की बचकाना हरकतें देख कर हँस पड़ी और बोली, "ठीक है भाई। चलते हैं। पर तुम मुझे धक्का तो मत मारो।"

सुनीलजी कल्पनाओं की उड़ान में खो रहे थे। वह सोच रहे थे ज्योतिजी जब स्विमींग सूट पहनेंगीं तो अपने स्विमिंग सूट में कैसी लगेंगी? उसदिन वह पहेली बार ज्योतिजी को स्विम सूट में देख पाएंगे। उनके मन में यह बात भी आयी की सुनीता भी स्विमिंग सूट में कमाल की दिखेगी। सुनीलजी सोच रहे थे की उनकी बीबी सुनीता को देख कर जस्सूजी का क्या हाल होगा? इस यात्रा के लिए सुनीलजी ने सुनीता को एक पीस वाला स्विम सूट लाने को कहा था। वह ऐसा था की उसमें सुनीता को देख कर तो सुनीता के पति सुनीलजी का लण्ड भी खड़ा हो जाता था तो जस्सूजी का क्या हाल होगा?

खैर, कुछ ही देर में यह सपना साकार होने वाला था ऐसा लग रहा था। बिना समय गँवाए दोनों जोड़ियाँ अपने तैरने के कपडे साथ में लेकर झरने की और चलदीं। बाहर मौसम एकदम सुहाना था। वातावरण एकदम निर्मल और सुगन्धित था।

सुनीलजी और जस्सूजी मर्दों को कपडे बदलने के रूम में चले गए। पर झरने के पास पहुँचते ही सुनीता जनाना कपडे बदलने के कमरे के बाहर रूक गयी और कुछ असमंजस में पड़ गयी। ज्योतिजी ने सुनीता की और देखा और बोली, "क्या बात है सुनीता? तुम रुक क्यों गयी?"

सुनीता ज्योतिजी के पास जाकर बोली, "ज्योतिजी, मेरा तैरने वाला ड्रेस इतना छोटा है। सुनीलजी ने मेरे लिए इतना छोटा कॉस्च्यूम खरीदा था की मुझे उसको पहन कर जस्सूजी के सामने आने में बड़ी शर्म आएगी। मैं नहाने नहीं आ रही। आप लोग नहाइये। मैं यहां बैठी आपको देखती रहूंगी। और फिर दीदी मुझे तैरना भी तो आता नहीं है।"

ज्योति जी ने सुनीता की बाहें पकड कर कहा, "अरे चल री! अब ज्यादा तमाशा ना कर! तूने ही सबको यहां नहाने के लिए आनेको तैयार किया और अब तू ही नखरे दिखा रही है? देख तूने मुझसे वादा किया था, की तू मेरे पति जस्सूजी से कोई पर्दा नहीं करेगी। किया था की नहीं? याद कर तुम जब मेरी मालिश करने आयी थी तब? तूने कहा था की तुम मेरे पति से मालिश नहीं करवा सकती क्यूंकि तूने तुम्हारी माँ को वचन दिया था। पर तूने यह भी वादा किया था की तुम बाकी कोई भी पर्दा नहीं करेगी? कहा था ना? और जहां तक तुझे तैरना नहीं आता का सवाल है तो जस्सूजी तुझे सीखा देंगे। जस्सूजी तो तैराकी में एक्सपर्ट हैं। मैं भी थोड़ा बहुत तैर लेती हूँ। मुझे पता नहीं सुनीलजी तैरना जानते हैं या नहीं?"

सुनीता मन ही मन में काँप गयी। अगर उस समय ज्योति जो को यह पता चले की सुनीता ने तो ज्योतिजी के पति का लण्ड भी सहलाया था और उनका माल भी निकाल दिया था तो बेचारी दीदी का क्या हाल होगा? और अगर यह वह जान ले की जस्सूजी ने भी सुनीता के पुरे बदन को छुआ था तो क्या होगा?

खैर, सुनीता ने ज्योतिजी की और प्यार भरी नज़रों से देखा और हामी भरते हुए कहा, "हाँ दीदी आप सही कह रहे हो। मैंने कहा तो था। पर मुझे उस कॉस्च्यूम में देख कर कहीं आपके पति जस्सूजी मुझसे कुछ ज्यादा हरकत कर लेंगे तो क्या होगा? मैं तो यह सोच कर ही काँपने लगी हूँ। मेरे पति सुनीलजी भी ऐसे ही हैं। वह तो थोड़ा बहुत तैर लेते हैं।"

ज्योतिजी ने हँस कर कहा, "कुछ नहीं करेंगे, मेरे पति। मैं उनको अच्छी तरह जानती हूँ। वह तुम्हारी मर्जी के बगैर कुछ भी नहीं करेंगे। अगर तुम मना करोगी को तो वह तुम्हें छुएंगे भी नहीं। पर खबरदार तुम उन्हें छूने से मना मत करना! और तुम्हारे पति सुनीलजी को तो मैं तैरना सीखा दूंगी। तू चल अब!"

सुनीता ने हँस कर कहा, "दीदी, मेरी टाँग मत खींचो। मुझे जस्सूजी पर पूरा भरोसा है। वह मेरे जीजाजी भी तो हैं।"

"फिर तो तुम उनकी साली हुई। और साली तो आधी घरवाली होती है।" ज्योतिजी ने सुनीता को आँख मारते हुए कहा।

सुनीता ने ज्योतिजी को कोहनी मारते हुए कहा, "बस करो ना दीदी!" और दोनों जनाना कपडे बदल ने के कमरे में चले गए।

जब सुनीता और ज्योतिजी स्विमिंग कॉस्च्यूम पहन कर बाहर आयीं तब तक सुनीलजी और जस्सूजी भी तैरने वाली निक्कर पहन कर बाहर आ चुके थे।

सुनीता की नजर जस्सूजी पर पड़ी तो वह उन्हें देख कर दंग रह गयी। जस्सूजी शावर में नहा कर पुरे गीले थे। जस्सूजी के कसरती गठित स्नायु वाली पेशियाँ जैसे कोई फिल्म के हीरो के जैसे छह बल पड़े हुए पैक वाले पेट की तरह थीं। उनके बाजुओं के स्नायु उतने शशक्त और उभरे हुए थे की सुनीता मन किया की वह उन्हें सहलाये। जस्सूजी के बिखरे हुए गीले काले घुंघराले घने बाल उनके सर पर कितने सुन्दर लग रहे थे। जस्सूजी के चौड़े सीने पर भी घने काले बाल छाये हुए थे। अपने पति की छाती पर भी कुछ कुछ बाल तो थे, पर सुनीता चाहती थी की उसके पति की छाती पर घने बाल हों। क्यूंकि छाती पर घने बाल सुनीता को काफी आकर्षित करते थे।

पर जब सुनीता की नजर बरबस जस्सूजी की निक्कर की और गयी तो वह देखती ही रह गयी। सुनीता सोच रही थी की शायद उस समय जस्सूजी का लण्ड खड़ा तो नहीं होगा। पर फिर भी जस्सूजी की निक्कर के अंदर उनकी दो जाँघों के बिच इतना जबरदस्त बड़ा उभार था की ऐसा लगता था जैसे जस्सूजी का लण्ड कूद कर बाहर आने के लिए तड़प रहा हो। सुनीता को तो भली भाँती पता था की उस निक्कर में जस्सूजी की जाँघों के बिच उनका कितना मोटा और लंबा लण्ड कोई नाग की तरह चुचाप छोटी सी जगह में कुंडली मारकर बैठा हुआ था और मौक़ा मिलते ही बाहर आने का इंतजार कर रहा था। अगर वह खड़ा हो गया तो शामत ही आ जायेगी।
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