DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
09-13-2020, 12:29 PM,
#87
RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
फिर ज्योति सोचने लगी, "क्या वाकई में उनका अपने पति पर एकचक्र स्वामित्व था?" शायद नहीं, क्यूंकि ज्योति ने स्वयं जस्सूजी को कोई भी औरत को चोदने की छूट दे रक्खी थी। पर जहां तक ज्योति जानती थी, शादी के बाद शायद पहली बार जस्सूजी के मन में सुनीता के लिए जो भाव थे ऐसे उसके पहले किसी भी औरत के लिए नहीं आये थे।

अपने पति और सुनील की पत्नी को एकदूसरे के साथ अठखेलियाँ खेलते हुए देख कर जब ज्योति वापस लौटी तो उसे याद आया की सुनील चाहते थे की उसे ज्योति बनना था। ज्योति फिर सुनील को बाँहों में आगयी और बोली, "जाओ और देखो कैसे तुम्हारी बीबी मेरे पति से तैराकी सिख रही है। लगता है वह दोनों तो भूल ही गए हैं की हम दोनों भी यहाँ हैं।"

सुनीलजी ने ज्योतिजी की बात को सुनी अनसुनी करते हुए कहा, "उनकी चिंता मत करो। मैं दोनों को जानता हूँ। ना तो वह दोनों कुछ करेंगे और ना वह इधर ही आएंगे। पता नहीं उन दोनों में क्या आपसी तालमेल या समझौता है की कुछ ना करते हुए भी वह एक दूसरे से चिपके हुए ही रहते हैं।"

ज्योतिजी ने कहा, "शायद तुम्हारी बीबी मेरे पति से प्यार करने लगी है।"

सुनीलजी ने कहा, "वह तो कभी से आपके पति से प्यार करती है। पर आप भी तो मुझसे प्यार करती हो."

ज्योति ने सुनील का हाथ झटकते हुए कहा, "अच्छा? आपको किसने कहा की मैं आपसे प्यार करती हूँ?"

सुनील ने फिरसे ज्योतिजी को अपनी बाँहों में ले कर ऐसे घुमा दिया जिससे वह उसके पीछे आकर ज्योति की गाँड़ में अपनी निक्कर के अंदर खड़े लण्ड को सटा सके। फिर ज्योति के दोनों स्तनोँ को अपनी हथेलियों में मसलते हुए सुनील ने ज्योति की गाँड़ के बिच में अपना लण्ड घुसाने की असफल कोशिश करते हुए कहा, "आपकी जाँघों के बिच में से जो पानी रिस रहा है वह कह रहा है।"

ज्योति ने कहा, "आपने कैसे देखा की मेरी जाँघों के बिच में से पानी रिस रहा है? मैं तो वैसे भी गीली हूँ।"

सुनील ने ज्योति की जाँघों के बिच में अपना हाथ ड़ालते हुए कहा, "मैं कब से और क्या देख रहा था?"

फिर ज्योति की जाँघों के बिच में अपनी हथेली डाल कर उसकी सतह पर हथेली को सहलाते हुए सुनील ने कहा, "यह देखो आपके अंदर से निकला पानी झरने के पानी से कहीं अलग है। कितना चिकना और रसीला है यह!" यह कहते हुए सुनील अपनी उँगलियों को चाटने लगे।

ज्योति सुनील की उंगलियों को अपनी चूत के द्वार पर महसूस कर छटपटा ने लगी। अपनी गाँड़ पर सुनील जी का भारी भरखम लण्ड उनकी निक्कर के अंदर से ठोकर मार रहा था। ज्योति ने वाकई में महसूस किया की उसकी चूत में से झरने की तरह उसका स्त्री रस चू रहा था। वह सुनीलजी की बाँहों में पड़ी उन्माद से सराबोर थी और बेबस होने का नाटक कर ऐसे दिखावा कर रही थीं जैसे सुनीलजी ने उनको इतना कस के पकड़ रक्खा था की वह निकल ना सके।

ज्योति ने दिखावा करते हुए कहा, "सुनीलजी छोडो ना?"

सुनील ने कहा, "पहले बोलो, सुनील। सुनीलजी नहीं।"

ज्योति ने जैसे असहाय हो ऐसी आवाज में कहा, "अच्छा भैया सुनील! बस? अब तो छोडो?"

सुनील ने कहा, "भैया? तुम सैयां को भैय्या कहती हो?"

ज्योति ने नाक चढ़ाते हुए पूछा, "अच्छा? अब तुम मेरे सैयां भी बन गए? दोस्त की बीबी को फाँस ने में लगे हो? दोस्त से गद्दारी ठीक बात नहीं।"

सुनीलजी ने कहा, "ज्योति, दोस्त की बीबी को मैं नहीं फाँस रहा। दोस्त की बीबी खुद फँस ने के लिए तैयार है। और फिर दोस्त से गद्दारी कहाँ की? गद्दारी तो अब होती ही जब किसी की प्यारी चीज़ उससे छीन लो और बदले में अंगूठा दिखाओ। मैंने उनसे तुम्हें छीना नहीं, कुछ देर के लिए उधार ही माँगा है। और फिर मैंने उनको अंगूठा भी नहीं दिखाया , बदले में मेरे दोस्त को अकेला थोड़े ही छोड़ा है? देखो वह भी तो किसी की कंपनी एन्जॉय कर रहा है। और वह कंपनी उनको मेरी पत्नी दे रही है।"

ज्योति सुनीलजी को देखती ही रही। उसने सोचा सुनीलजी जितने भोले दीखते हैं उतने हैं नहीं। ज्योति ने कहा, "तो तुम मुझे जस्सूजी के साथ पत्नी की अदलाबदली करके पाना चाहते हो?"

सुनीलजी ने फौरन सर हिलाए हुए कहा, "ज्योति, आपकी यह भाषा अश्लील है। मैं कोई अदलाबदली नहीं चाहता। देखिये अगर आप मुझे पसंद नहीं करती हैं तो आप मुझे अपने पास नहीं फटकने देंगीं। उसी तरह अगर मेरी पत्नी सुनीता जस्सूजी को ना पसंद करे तो वह उनको भी नजदीक नहीं आने देगी। मतलब यह पसंदगी का सवाल है। ज्योति मैं तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूँ। क्या तुम्हें मंजूर है?"

ज्योति ने कहा, "एक तो जबरदस्ती करते हो और ऊपर से मेरी इजाजत माँग रहे हो?"

सुनील एकदम पीछे हट गए। इनका चेरे पर निराशा और गंभीरता साफ़ दिख रही थी। सुनील बोले, "ज्योतिजी, कोई जबरदस्ती नहीं। प्यार में कोई जबरदस्ती नहीं होती।"
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