RE: RajSharma Stories आई लव यू
गंगा किनारे पत्थरों पर बैठे-बैठे, कब रात के दस बज गए, पता ही नहीं चला। इस बीच शीतल दो बार कॉल कर चुकी थी। पावभाजी की प्लेट हाथ में लेते ही उसका कॉल आ गया था और अब फोन आया था, ये पूछने के लिए कि घर पहुँचे या नहीं। यही पूछने के लिए पापा भी फोन कर चुके थे। अब हम लोग निकल चुके थे घर के लिए।
हम लोग घर पहुंचे, तो माँ-पापा खाना खा रहे थे। हम लोग साथ बैठकर अपने सैर सपाटे के बारे में उन्हें बताने लगे। खाने के बाद पापा टीवी देखने ड्राइंग रूम में चले गए और मैं और माँ वहीं बैठकर बातें करने लगे।
माँ की बातों में भी समझाने का भाव झलक रहा था। मैं भी ऐसा नहीं था कि शादी करना ही नहीं चाहता था... बस इस वक्त शादी की बात मुझे परेशान कर रही थी। माँ की बातों को समझकर उन्हें विश्वास दिलाया कि ऐसा कुछ नहीं है, शादी कर लूंगा।
इसके बाद मैं अपने कमरे में चला गया। घर की सभी लाइटें बंद हो चुकी थीं। सब लोग अपने-अपने कमरे में जा चुके थे। कपड़े बदलकर बिस्तर पर लेटकर सबसे पहले शीतल को कॉल लगाया।
"हैलो, शीतल, कैसे हो?"
"मैं ठीक हूँ, तुम बताओ कैसे हो? घर पर सब ठीक है न।”
"हाँ, सब ठीक है, तुम परेशान मत होना।"
शीतल की बातों में एक चिंता झलक रही थी। शायद यह चिंता थी मेरी शादी की। दिनभर घर में क्या-क्या हुआ, किसने क्या कहा, सब शीतल को बताया। हम लोग रात तीन बजे तक बातें करते रहे। अगले दिन शीतल को ऑफिस जाना था। हम दोनों में से अगर कोई एक ऑफिस में नहीं होता था, तो दूसरे का मन नहीं लगता था। इसीलिए शीतल भी ऑफिस नहीं जाना चाहती थी।
“यार राज, जल्दी आ जाओ न, मन ही नहीं लग रहा है तुम्हारे बिना।"
"हाँ यार मंगलवार को आऊँगा न ऑफिस।"
"तो मेरा सोमबार कैसे कटेगा मेरी जान, और याद है ना बुधवार को 14 तारीख है, मालविका का बर्थ-डे है।"
"हाँ, मुझे अच्छे से याद है, मैंने बुधवार की छुट्टी ली है... मैं, तुम और मालविका दिनभर साथ रहेंगे और तुमटेंशन मत लो यार, बस कल की ही तो बात है।"
“सुनिए, बुधवार शाम को घर पर बर्थ-डे पार्टी है; दिन में मैं और तुम मालविका को घुमाएँगे, शाम को तुम्हें घर आना है; मालविका से पहली मीटिंग होगी तुम्हारी जनाब।"
“पक्का मालविका को घुमाने ले चलेंगे, पर शाम को मैं शायद नहीं आ पाऊँगा।"
"अरे भई क्यूँ...?"
"शीतल, इतनी जल्दी में तुम्हारे घर नहीं आ सकता हूँ।"
"पहले तुम दिल्ली आओ फिर देखते हैं; चलो अब आराम कर लो, गुड नाइट।"
"हम्म, गुड नाइट, आई लव यू।"
"लव यू टू।"
वैसे तो पहाड़ों की सुबह बेहद खूबसूरत होती है, लेकिन ऋषिकेश की सुबह की बात ही अलग है। ठंडी-ठंडी हवा, चिड़ियों की चहचहाहट और गर्माहट देती सूरज की किरणें, स्वर्ग जैसी अनुभूति देती हैं।
सुबह के सात बज चुके थे। सूरज की रोशनी से कमरा नहा चुका था। मैं रोशनी से छपकर चादर के भीतर था। और माँ दरवाजे पर थीं।
"राज, दरवाजा खोलो बेटा! सात बज गए हैं; चाय तैयार है।"
“आ रहा हूँ माँ।"- मने बेड से उठते हुए कहा। दरवाजा खोला तो माँ चाय का मग लेकर सामने ही खड़ी थीं। वो जानती थीं कि सुबह सुबह मुझे कम-से-कम दो कप चाय चाहिए होती है। एक कप से मेरा भला नहीं होता है। मैंने चाय का मग लेने से पहले माँ को गले लगा लिया।
"अरे-अरे! चाय फैल जाएगी।"
"गुड मार्निग मम्मा।"
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