RE: RajSharma Stories आई लव यू
शीतल, बस की खिड़की की तरफ बैठी थीं। खिड़की से आती ठंडी हवा उन्हें तड़पा रहीं थी। बार-बार शीतल मुझसे कह रहीं थी, "राज, हमें ठंड लग रही है।" मैं समझ नहीं पाया कि शीतल क्यों बोल रही थीं कि खिड़की से ठंडी हवा आ रही है।
शायद वो चाहती थीं कि मैं उन्हें अपनी बाहों में भर लू और उनसे कहूँ, “थोड़ा पास आ जाइए।"
आँखें नम हो चुकी थीं और बस के पहिये होटल के बाहर रुक चुके थे। हम एक-दूसरे के कदमों के पीछे-पीछे होटल की तरफ बढ़ते जा रहे थे। शायद कोई उम्मीद अब नहीं बची थी। दिल रो रहा था बस...
रात के करीब बारह बज चुके थे और ढेर सारी हसीन यादों को समेटे छब्बीस जनवरी का दिन, सत्ताईस जनवरी में दाखिल हो चुका था। ठंड भी काफी बढ़ चुकी थी। होटल के कमरे की तरफ बढ़ते एक-एक कदम भारी हो रहे थे। चाहकर भी पैर आगे नहीं बढ़ पा रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे पैर थक चुके हैं। मैं और शीतल, दोनों फर्श की तरफ देखते देखते चल रहे थे। एक-दूसरे से कहना तो बहुत कुछ चाहते थे, लेकिन पहले कौन कहे और कैसे कहे, ये समझ नहीं आ रहा था। हम दोनों के पास दिल की हालत बयां न करने की एक ही वजह थी।
और वो वजह थीहमारी उम्र का दायरा...हम दोनों के बीच छह साल का अंतर। शीतल अपने कमरे में जा चुकी थीं। इससे पहले हम दोनों ने एक-दूसरे को 'गुड नाइट' जरूर कहा था। शीतल के कमरे का दरवाजा बंद हुआ, तो ऐसे लगा जैसे जिंदगी जीने की आखिरी उम्मीद भी मैं खो चुका हूँ। आँखों में आँसू लिए और एक टूटी हुई उम्मीद के साथ मैं अपने कमरे में चला गया। कमरे में लगे आईने के आगे खड़ा हुआ, तो आँसुओं को रोक नहीं पाया... जोर-जोर से रोने लगा। शायद पिछले कई साल में पहली बार में फूट-फूट कर रोया। फिर अचानक से उठा, आँसू पोंछे और बिना कपड़े बदले कमरे से बाहर निकल आया। एक पल के लिए सोचा, कि जो मैं करने जा रहा हूँ, वो ठीक है या नहीं और शीतल के कमरे की घंटी बजा दी। शीतल, शायद इसी विश्वास के साथ इंतजार में बैठी थीं कि कोई जरूर आएगा।
“अरे, चेंज नहीं किया अभी तक!'' मैंने जान-बूझकर कहा। शीतल कुछ कहतीं, उससे पहले ही मैंने कह दिया- “चलिए थोड़ी देर बाद कर लीजिएगा, अभी बैठते हैं साथ में।"
शीतल और मैं जब भी कमरे में एक साथ बैठते थे, तो कमरे का दरवाजा बंद होता था। होटल के कमरे अक्सर खोलकर रखे भी नहीं जाते हैं। लेकिन इस बार शीतल ने दरवाजा बंद नहीं किया था। मुझे लगा, शायद रात है, इसलिए उन्होंने कमरे का दरवाजा खोल रखा है। बाकी कमरों में ऑफिस के और भी लोग ठहरे थे। कोई कभी भी आ सकता था। शीतल अपने बेड पर बैठी थीं। मैं भी सोफे से उठकर उनके पास उनके बेड पर बैठ गया। बस हमारे और उनके बीच एक हाथ की दूरी थी और इस एक हाथ की दूरी में इस अजीब सी स्थिति का गवाह बन रहा था उनका लैपटाप।
शीतल ने कहा था राज, सुबह हम वापस दिल्ली जाएंगे। तुम्हें मैं एक बात बताऊँ... जब मुझे पता चला था कि कोई राज हमारे साथ चंडीगढ़ जाने वाले हैं, तो मैंने सोचा था कि कोई अच्छा शख्म साथ हो, जो हमारे साथ गलत तरीके से व्यवहार न करे और उसके साथ काम करने में मजा आए। जब आप पहली बार मुझसे मिले थे और तुमने कहा था कि चंडीगढ़ में तीन दिन कौन सोने वाला है, खूब मस्ती करेंगे चंडीगढ़ में... तो हमारी फ्रेंड्स ने मुझसे कहा था कि सँभलकर रहना। लेकिन मैं सच बताऊँ तुम्हें, ये तीन दिन मेरी जिंदगी के सबसे हसीन दिन हैं: ये तीन दिन में कभी नहीं भूल पाऊँगी और वो भी सिर्फ तुम्हारी बजह से। आप मेरे साथ आए, पर मुझे उम्मीद नहीं थी कि ये दिरप मेरे लिए सबसे यादगार दिप हो जाएगी। राज, मैं इन यादों को हमेशा अपने साथ रचूंगी, कभी नहीं भुला पाऊँगी। थॅंक यू सो मच राज , मेरे साथ इतना अच्छा वक्त बिताने के लिए। मैं एक प्यारा दोस्त अपने साथ वापस लेकर जा रही है,थक यू सो मच: चंडीगढ़ बहत याद आएगा।"
ये सब कहते हुए उनकी आवाज टूटती जा रही थी। उनकी आँखें उनके कंट्रोल से बाहर हो चुकी थीं। लैपटॉप के की-बोर्ड पर नजरें गड़ाए शीतल रो रही थीं। किसी के बिछड़ने का दर्द, सबसे बड़ा दर्द होता है। हम दोनों को एक-दूसरे के रूप में एक अच्छा दोस्त तो मिल गया था, लेकिन हम दोनों के दिल, दोस्ती के आगे के रिश्ते की कल्पना कर चुके थे।
शीतल, चंडीगढ़ हमें भी बहुत याद आएगा; इन तीन दिनों की यादें हम कभी नहीं भुला पायेंगे। तुम्हारे साथ बिताया एक-एक पल हमारे लिए बहुत अनमोल है। हम हमेशा एक अच्छे दोस्त बनकर रहेंगे; ऑफिस में एक-दो बार मिल लिया करेंगे और फोन पर तो खूब बात किया करेंगे।
“ठीक है, अब मैं सोने जाता हूँ, रात काफी हो चुकी है"- मैंने उखड़े हुए मन से कहा था। "अरे रुकिए राज मियाँ घर जाकर आराम से सो जाइएगा... बैठिए कुछ देर और।" “यार शीतल, नींद आ रही है अब।" मैंने जवाब दिया।
"अरे यार, हमें कुछ काम है अभी; तो बैठिए न... चलिए कॉफी मगाते हैं।" शीतल ने बिना देर किए दो कॉफी ऑर्डर कर दी।
होटल में कॉफी आने में कम-से-कम आधा घंटा लगता था। मैं समझ गया था कि शीतल ने मुझे आधे घंटे के लिए तो बाँध ही लिया है। सच कहूँ, तो उनके पास से उठना मैं भी कहाँ चाहता था। शीतल अपने लैपटॉप पर उँगलियाँ घुमा रही थीं। मैं उन्हें देखे जा रहा था। मन एक अजीब-सी हालत में था। मेरा दिल मुझसे कह रहा था कि बता दे शीतल को सब-कुछ और दिमाग कह रहा था, नहीं। दिल की बात जुबां पर कई बार आई, लेकिन लबों ने हर बार ये कहकर रोक दिया, कि क्या करने चले हो जनाब? बो तुमसे बहुत बड़ी हैं और उनके दिल में कुछ नहीं हो सकता है तुम्हारे लिए।
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