09-17-2020, 12:44 PM,
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desiaks
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RE: RajSharma Stories आई लव यू
रात में करीब एक बजे पूरा परिवार अस्पताल पहुंच गया था। मैं सोया हुआ था। मेरी हालत देखकर माँ और भाई-बहन का रो-रोकर बुरा हाल था। पापा भी मुझे देखकर घबरा गए थे। मेरे माथे पर भारी भरकम पट्टी बँधी हुई थी। डॉली ने पापा और मम्मी को पूरी बात बता दी। पापा सबसे पहले डॉक्टर्स से मिले और मेरा हाल जाना। डॉक्टर्स ने कहा कि घबराने की बात नहीं है; सिर में बाहरी चोट है, जल्दी ठीक हो जाएगी।
सब लोग कमरे में ही बैठे थे। डॉली, मम्मी को संभाल रही थी। थोड़ी देर में जब सब सामान्य हुआ तो डॉली के पापा अस्पताल आ गए और डॉली उनके साथ अपने घर चली गई।
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"चुप हो जाओ तुम, सब ठीक हो जाएगा।"- पापा ने मम्मी से कहा।
"क्या चुप हो जाऊँ, देखो हालत उसकी... बेटा है...सब आपकी बजह से ही हुआ है।" मम्मी ने कहा
"अरे कैसी बात कर रही हो तुम; मेरी वजह से कैसे हुआ?" – पापा ने कहा।
"और किसकी बजह से। आप ही चाहते थे कि वो घरवालों की मर्जी से शादी करे, अब देखो क्या हुआ।"- मम्मी ने कहा।
"तुम गलत सोच रही हो...इस बात का शादी से क्या लेना है?"- पापा ने कहा।
"आप नहीं समझोगे कभी; मैं माँ हूँ राज की। देहरादून में काव्या के यहाँ भी राज खुश नहीं था... उसके चेहरे पर कोई खुशी नहीं है इस शादी की; वो तो बस हमारी खुशी के लिए शादी कर रहा है, उसकी खुशी शीतल में है राज के पापा, उसकी खुशी शीतल है।" मम्मी ने कहा।
"देखो इन बातों का अब कोई मतलब नहीं है और तुम ये बातें बिलकुल मत करो।" पापा ने कहा।
"हाँ मैं नहीं करूंगी..राज ने हमारी खुशी के लिए काव्या से शादी के लिए हाँ कर दी और आज उसकी जान पर बन आई। राज के पापा, ये काव्या या किसी और के साथ कभी खुश नहीं रहेगा।"
"तो मैं क्या करूँ अब? काव्या के पापा को मैं शादी के लिए हाँ कह चुका हूँ।" – पापा ने कहा।
"मुझे नहीं पता कि आप क्या करेंगे; पर मुझे मेरे बेटे की खुशी चाहिए... मैं अपने बेटे को मरते हुए नहीं देख सकती हूँ।"- मम्मी ने कहा।
"देखो रोना बंद करो, सब ठीक हो जाएगा।"- पापा ने कहा।
"क्या खाक ठीक हो जाएगा...देखो उसकी तरफ; शुक्र है कि कम ही चोट आई उसे वरना...!"- मम्मी ने कहा।
"अरे प्लीज रोना बंद करो; राज के ठीक होने का इंतजार करो।" मम्मी-पापा रात भर सोए नहीं। मम्मी मेरे बेड के पास ही बैठी रहीं, तो पापा सामने सोफे पर बैठकर मुझे देखते रहे। सुबह सात बजे डॉली भी अपने मम्मी-पापा के साथ हॉस्पिटल आ गई। मैं भी जग गया था। मम्मी ने भगवान का कई बार शुक्रिया किया। डॉक्टर भी चकअप के लिए आए थे। मेरी हालत अब ठीक थी।
"डॉक्टर साहब, कैसी है राज की हालत अब?"- पापा ने पूछा।
"सर, राज अब ठीक है; शाम को हम डिस्चार्ज करने की हालत में होंगे... कुछ दिन दबाई चलेगी।"
मम्मी के कंधे पर हाथ रखकर पापा कहीं बाहर चले गए। डॉली, घर से सबके लिए नाश्ता लेकर आई थी। सबने थोड़ा बहुत नाश्ता किया और मैंने सिर्फ जूस पिया इस बीच ऑफिस के लोग मिलने आते रहे। मैंने शीतल को कुछ भी बताने से सबको मना कर दिया था।
शाम को पाँच बजे पापा-मम्मी मुझे डिस्चार्ज कराकर ऋषिकेश ले आए।
ऋषिकेश में पूरा दिन आराम के साथ गुजरता था। आस-पास रहने वाले लोग एक्सीडेंट की खबर सुनकर मुझे देखने आ रहे थे। सब आते थे सहानुभूति देने और मम्मी पापा उन्हें मेरी सगाई की खुशखबरी देकर भेजते थे।
डॉली, रोज फोन करके मेरी हालत जानती रहती थी। सगाई में कुल पाँच दिन ही बचे थे। पापा ने पूरे ऋषिकेश शहर को सगाई का निमंत्रण भेज दिया था। मैंने भी नमित, शिवांग, ज्योति और डॉली के अलावा बाकी दोस्तों को इनवाइट कर दिया था। शीतल को इनवाइट करने का खयाल भी मन में आया था, लेकिन मैंने शीतल को न बुलाना ही बेहतर समझा। शीतल ने मुझे कसम दी थी कि अपनी शादी के बारे में मुझे मत बताना। सब लोग सगाई की तैयारियों में लगे थे, वेन्यू बुक हो चुका था, कैटरर्स भी सहारनपुर से बुलाया जा रहा था। बनारस से पान वाले भी आ रहे थे। शहनाई और संगीत मंडली दिल्ली से बुलाई गई थी। मैं भी अब पूरी तरह ठीक हो गया था। पापा-मम्मी और भाई बहन बहुत खुश थे। सगाई के लिए सभी ने कपड़े भी बनवा लिए थे। मेरे लिए भी मम्मी ने खास शेरवानी बनवाई थी।
आखिरकार वो दिन आ ही गया, जिसका सबको सालों से इंतजार था। मेहमान आने शुरू हो गए थे। नमित, शिवांग पहले से ही तैयारियों में जुटे थे। ज्योति अपने पति आर्यन के साथ पहुंच गई थी। डॉली भी दिल्ली से आ पहुंची थी। पंडाल रंग-बिरंगे फूलों से महक रहा था। सब लोग हाथों में गुलदस्ते लेकर पहुंचने लगे थे। पापा, गेट पर मेहमानों का स्वागत कर रहे थे और मम्मी अंदर मेहमानों की आवभगत में लगी थीं। तय मुहर्त के मुताबिक बारह बजे रिंग सेरेमनी होनी थी। पापा और मम्मी स्टेज पर मेरे पास आ चुके थे। नमित, शिवांग मेरे साथ खड़े थे और ज्योति, डॉली और काव्या को लेने गए थे। ___
मंदिर के घंटों जैसे संगीत के साथ काव्या ने हाल में बनी सीढ़ियों से उतरना शुरू किया था। ऑरेंज कलर के भारी-भरकम लहंगे के सँग, सुनहरी ज्वैलरी पहने काव्या ने वहाँ मौजूद सभी का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया। मैं भी काव्या की तरफ देख रहा था, लेकिन उसने आँखों तक चूंघट किया हुआ था। काव्या, रेडकार्पेट पर मेरी तरफ बढ़ रही थी। उसके चलने का अंदाज बिलकुल शीतल जैसा था; उसके होंठों की मुस्कराहट भी शीतल जैसी थी, उसके नाजुक हाथ मुझे शीतल की याद दिला रहे थे। जैसे-जैसे काव्या मेरे नजदीक आती जा रही थी, उसकी हर अदा में मुझे शीतल नजर आ रही थी। मैं काब्या की तरफ घूरने वाली नजर से देख रहा था। डॉली और ज्योति मुझे देखकर मुस्करा रही थीं। नमित और शिवांग भी मेरे कंधे पर थपकी दे रहे थे। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये सब हकीकत है। मैं सोचने लगा कि काव्या और शीतल के अंदर इतनी सारी चीजें एक जैसी कैसे हो सकती हैं।
अगले ही पल काब्या मेरे सामने थी। पापा और मम्मी भी मेरे पास आ गए थे। सगाई की रस्म अब होने को थी। हम दोनों एक-दूसरे को अँगूठी पहनाने वाले थे।
"नमित बेटा, अंगूठियाँ कहाँ हैं?"- पापा ने कहा।
“बस आ रही है अंकल।" इसके बाद एक छोटी-सी बच्ची, मजे हुए थाल में दो अंगूठियाँ लेकर पास आई। उस बच्ची को देखकर मैं हैरान रह गया। मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसा कैसे हो सकता है? मने बच्ची से नजर हटाकर, काव्या की तरफ देखा। उसके होंठों से मुस्कराहट का आभास हो रहा था। पापा, मम्मी, नमित, शिवांग, डॉली और ज्योति... सब मेरी तरफ देखकर मुस्करा रहे थे। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैंने फिर से उस बच्ची की तरफ देखा और फिर से काव्या की तरफ देखा। वो काव्या थी ही नहीं, अब मुझे पूरा विश्वास हो गया था। लेकिन जिसका विश्वास हुआ था, वो सब कैसे हुआ, ये बात समझ में नहीं आ रही थी। मैंने सामने खड़ी लड़की का चूँघट हटाया, तो मैं उछल पड़ा था। मैं खुशी से चिल्लाने लगा था। मैं किसी पाँच साल के बच्चे की तरह कूद रहा था। सब लोग बहुत खुश थे। मेरी आँखों से आँसू निकल आए थे, मैं फूट-फूट कर रोने लगा था। मम्मी की आँखों में भी आँसू थे। मैंने खुशी से पापा की तरफ देखा, तो उन्होंने मुझे गले से लगा लिया।
"बेटा, तुम्हारी खुशी से बढ़कर हमारे लिए कुछ भी नहीं है।''- पापा ने मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा।
जीवन की सारी खुशियाँ मेरी झोली में आ गई थीं। मेरा तो जन्म लेना सार्थक हो गया था। जो चाहा वो मिल गया था।
ये छोटी-सी बच्ची मालविका थी और सामने काव्या नहीं, शीतल थीं। मालविका ने अपनी नन्ही उँगलियों से मेरे हाथ को थाम लिया। मैंने पापा के गले से हटकर उसे अपनी गोद में उठा लिया।
मैंने शीतल की आँखों में देखा और गले से लगा लिया। न जाने कितनी देर तक हम दोनों एक-दूसरे को गले लगाकर आँसू बहाते रहे।
"बेटा, खुशी के मौके पर आँसू नहीं बहाते हैं।"- शीतल के पापा ने कहा। नजर घुमाई तो शीतल का पूरा परिवार साथ खड़ा था।
मैं और शीतल, रिंग सेरेमनी के लिए स्टेज पर पहुंचे और एक-दूसरे को रिंग पहना दी। पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा था। इस खास मौके पर गुलाब के फूल बरसने लगे थे। सब लोगों की नजरें हम पर टिकी थीं। ज्योति, आर्यन का हाथ थामे मुस्करा रही थी और डॉली, आँखों मे आँसू पोंछ रही थी।
___ "आई लब यू पापा।"- मालविका ने यह कहकर मेरे और शीतल के हाथ को एक-दूसरे के हाथ में उम्र भर के लिए दे दिया।
"आई लव यू बेटा।"- मैंने मालविका को गोद में उठाते हुए कहा। "एंड आई लव यू शीतल...आई लव यू बेरी मच।"
“आई लब यू टू राज..मैं बहुत प्यार करती है तुमसे; आई लव यू।"
समाप्त
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