Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 12:48 PM,
#16
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
अर्चना ने कांच का पानी से भरा गिलास हाथ में लिया और बोली- गुड़िया, क्या नाम है तुम्हारा?” अर्चना ने प्रेम भाव से पूछा।

"मेरा नाम सुधा है।” सुधा ने सीधा-सा जवाब दिया। अर्चना ने गिलास खाली करके सुधा को दे दिया। सुधा गिलास लेकर चली गई। सुधा के जाने के पश्चात् अर्चना फिर से पेन्टिंग को देखने लगी।

विनीत मुंह धोकर तौलिये से साफ करता हुआ कमरे में आया तो सामने बैठी अर्चना को देखकर ठिठककर रुक गया। अनायास ही उसके मुंह से निकला–“आप यहां?" विनीत ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि-अर्चना यहां तक पहुंच जाएगी। मगर वह इतना बुरा भी न था कि घर आये मेहमान से बात न करे।

"क्या हमारे आने से आपका घर अपवित्र हो गया?" अर्चना ने मासूमियत से कहा।

आप कैसी बात करती हैं।" हल्की सी बौखलाहट के साथ बोला—“आप मुझे शर्मिन्दा कर रही हैं।" विनीत का स्वर संयत था।

"उस रोज मैं इतनी डिस्टर्ब थी कि स्वयं को संयत न कर सकी। आपके जाते ही मन दुःखी हो उठा। इच्छा तो यही थी कि आपसे तुरन्त क्षमा मांग लूं, मगर यह सोचकर आपको नहीं रोका कि जब आपके घर जाऊंगी तो उसी समय दिल का बोझ हल्का कर लूंगी। बस यही सोचकर मैं आपका पीछा करती हुई यहां तक आ गई।" अर्चना ने अपने दिल की सच्चाई व्यक्त की। अर्चना के बोलने का ढंग कुछ ऐसा था कि विनीत के मस्तिष्क की घंटियां बज उठीं। विनीत केबल प्रश्नात्मक दृष्टि से अर्चना के सुन्दर मुखड़े को देख रहा था।

कमरे में मौन थिरक उठा था। बाहर भी गहरा सन्नाटा व्यास था। सूरज निकलकर ठंड के कारण फिर कहीं छुप गया था। चारों ओर कोहरा-सा छाने लगा था। अर्चना की उदासी विनीत के दिल में उतरती प्रतीत हुई। विनीत बेड पर बैठा हुआ अर्चना की ओर देख रहा था। उसकी कोमल भावनाओं पर मेरे क्षमा न करने का कितना आघात लगा है, यह अच्छी तरह जान सकता था। विनीत की इच्छा हुई कि वह अर्चना को तुरन्त माफी दे दे। अर्चना अब सिर झुकाये बैठी थी। कभी-कभी सामने लगी हई पेन्टिंग को जरूर देख लिया करती थी। दिल में हलचल सी मची थी, अजीब-सी बेचैनी मानो दिल से निकलकर अभी बाहर आ जायेगा। वह कुर्सी पर बैठी नहीं बल्कि कुर्सी ने उसे पकड़ रखा हो। उसे ऐसा महसूस हो रहा था, कभी-कभी मानब कितना बेजुबान हो जाता है....ऐसा ही कुछ इन दोनों के साथ हो रहा था।

अर्चना से इस कदर खामोशी अब जरा भी सहन नहीं हो पा रही थी। उसने पुनः कहा -"आप मुझसे नाराज हैं?"

"क्यों?" विनीत ने भी अपनी चुप्पी तोड़ी-"नाराजगी का अधिकार तो अपनों के लिये होता है।"

अर्चना के दुःखी मन पर विनीत के ये शब्द कोड़ों के समान पड़े। अर्चना को पहली बार इतनी गहरी ठेस लगी थी। मन के सारे भाबुक तार एक साथ झनझना उठे थे। उसे विनीत से इतनी कठोरता की जरा भी आशा नहीं थी। अत्यन्त कठिनाई से वह स्वयं को संभाल पायी थी। डबडबाई आंखों से विनीत की ओर देखती हुई बोली-“मैं सचमुच तुम्हारी बहुत बड़ी गुनाहगार हूं विनीत।" एक गहरी सांस खींचकर फिर बोली-"बहुत बड़ी गुनाहगार! क्या तुम मुझे इस गुनाह की सजा नहीं दोगे?" अर्चना के स्वर में पीड़ा थी।

"हम जैसे गरीब आदमियों के लिये आप जैसे अमीर लोगों को इस प्रकार बोलना शोभा नहीं देता।" विनीत दृह लहजे में बोला।
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 12:48 PM

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