Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 12:49 PM,
#18
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
"अच्छा, अगर ऐसी कोई बात नहीं है तो आज का लंच तुम मेरे साथ करोगी। जल्दी फ्रैश होकर आओ। मैं डाइनिंग-रूम में तुम्हारा बेट कर रहा हूं।"

"ओके डैडी।" वह अपने कमरे में भाग गई। कहीं डैडी उसके चेहरे पर आने बाले रंगों को न पहचान जायें। उसका चेहरा विनीत के विषय में सोचने मात्र से ही गुलाबी हो रहा था। फ्रैश होकर वापस आयी तो स्वयं को काफी हल्का-फुल्का महसूस कर रही थी। वास्तव में उसके ऊपर से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया था। वो था—विनीत से क्षमा मांगने का बोझ। आज उसे विनीत ने दिल से क्षमा कर दिया था। कई दिनों की उड़ी हुई भूख वापस आ गई थी। आज वह जमकर खाना खाना चाहती थी। वह बालों में रबड़बेन्ड डालकर पिताजी के पास डाइनिंग टेबल पर पहुंची।

उसके पिता काफी देर से उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। "आओ बेटी, जल्दी आओ! बड़े जोर से भूख लगी है।"

“जी डैडी। मुझे भी तेज भूख लगी है....." अर्चना एक कुर्सी घसीटकर बैठ गई और खाना खाने में व्यस्त हो गई। आज का दिन बहुत अच्छा गुजरा। आज अर्चना बहुत खुश थी। रात हुई तो अपने बिस्तर पर लेटी वह विनीत के विषय में ही सोचती रही। 'पता नहीं विनीत हमें कब समझेंगे? क्यों नहीं समझे बे हमें? हम भी उनकी चमकती आंखों में ऐसी ही भावनाएं देखना चाहते हैं, जैसी हमारी आंखों में उनके लिये हैं। उनके खामोश होठों पर ऐसी प्यास चाहते हैं जिसके लिये हम अपना सारा जीवन समर्पित कर दें।' वह अपने कमरे की सभी खिड़कियां खोले, चांद को एक खिड़की से ऐसे निहार रही थी जैसे चांद, चाँद न होकर विनीत हो। रात अपने यौवन पर थी। पूर्णमासी की उजली रात! पहाड़ों के दामन में लिपटा हुआ समय जैसे ठहर गया था। मन्द-मन्द हवा के झोंके अर्चना के मखमली बदन को स्पर्श कर रहे थे। ठंड की हल्की-सी सिहरन उसे आनन्दित करती चली गई। अर्चना के विचारों ने करबट ली तो विनीत का कठोर ब्यबहार सामने दिखाई दिया। वह एकदम उदास हो गई। मन के अन्दर कुछ ‘खन्न' से टूटा तो दर्द आंखों से छलक पड़ा। विनीत के मिलने से पहले बिछड़ने के विषय में सोचकर ही वह बेड पर लेटी सिसक पड़ी। जहां अभी खुशी के फुआरे फूट रहे थे, वहीं गम का पहाड़ टूट पड़ा था। आंखों से अश्कों के धारे छलक पड़े। रात भी अब छलकर नशीला जाम बन चुकी थी, जिसे सूर्य का उजाला पी लेना चाहता था। अर्चना विनीत का स्वभाब देखकर जान गई थी कि वह उसे कतई लिफ्ट नहीं दे रहा है। यही सोचकर उसका दिल टूट गया था। मगर वह विनीत को कभी भी भुलाना नहीं चाहती थी। पता नहीं उसे खुद ऐसा लग रहा था जैसे विनीत अब उसे कॉलिज में कभी नहीं मिलेगा क्योंकि उसकी और अर्चना की कक्षा अलग-अलग थी। बस वह लाइब्रेरी में ही बैठा मिलता था।

इतनी बात होने पर वह हफ्ते भर कॉलिज नहीं आया था। अब न जाने वह कॉलिज आयेगा भी या नहीं- मैं उसके घर क्यों पहुंच गई? शायद घर से जल्दी भगाने की वजह से ही उसने मुझे क्षमा कर दिया। वरना वह मुझे प्यार तो जरा-सा भी नहीं करता।' प्यार करना तो दूर....वह एक प्यार भरी नजर भी मेरी ओर न डाल सका था। खैर, कोई बात नहीं, वह मुझे प्यार नहीं करता तो न करे, मैंने उसे प्यार किया है और हमेशा करती रहूंगी, यही सोचते-सोचते उसके होठों से कुछ बोल निकले-जो वह धीरे-धीरे बड़बड़ा रही थी 'हम जिसे चाहें, जिसे देखें, जिसपे एतबार करें, यह जरूरी तो नहीं वह भी हमें प्यार करे।'
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 12:49 PM

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