Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 12:50 PM,
#25
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
" पत्नी!" विशाल दर्द से नहा उठा, "जिस दिल में सिर्फ अनीता बसी हो, वहां किसी और लड़की का स्थान कहां रह गया है? अगर तुम मुझे न मिलीं तो मैं यहां से चला जाऊंगा। मैं यहां नहीं....रह सकूँगा....।" प्रत्येक शब्द पीड़ा से लथपथ था। उसकी आंखें भर आईं। वह एक पल के लिये चुप हुआ। आंखें साफ की और पुनः बोला-"हां, जाते समय तुम्हें उस शहर का नाम जरूर बता दूंगा जहां मेरे जाने की उम्मीद है। कभी वक्त आने पर तुम मुझे कभी ढूंढना भी चाहो तो मुझे अपना इन्तजार करता ही पाओगी—मैं तुम्हें वहां मिल जाऊंगा।" विशाल अनीता को अपलक देखता रहा।

अनीता स्वयं भी उससे प्रेम करती थी। मगर उसके दिल में ठहरा प्रेम छलककर आंखों में आ गया, "मुझे इतना मत चाहो विशाल! मैं तुम्हारे प्यार के काबिल नहीं हूं। कहां तुम! कहां हम गरीब....।" वह सिर झुकाये-झुकाये बुदबुदायी।

ऐसा मत कहो अनीता....।” विशाल तड़प उठा, "तुम मेरे लिये क्या हो, तुम इसका कभी अहसास कर भी नहीं पाओगी। अगर तुम्हारा यही आखिरी फैसला है तो मैं तुम्हें कुछ नहीं कहूंगा। तुम्हारी खुशी में मेरी खुशी है।" अब विशाल एक लम्बी सांस लेकर चुप हो गया।

अनीता विशाल के मासूम चेहरे को अपलक देख रही थी। विशाल ने अपनी बात पूरी होने के पश्चात् अनीता की ओर देखा तो वह अपनी ओर अपलक देखती अनीता को देखकर एक फीकी मुस्कराहट अपने होठों पर लाया।

अनीता ने पलकों की झालर नीचे गिरा दी। और किसी गहरी सोच में नीचे गर्दन करके बैठ गई। कमरे में खामोशी का बाताबरण ठहर गया। थोड़ी देर बाद खामोशी रहने के पश्चात् विशाल ने चुप्पी तोड़ी “बैसे क्या मैं तुम्हारे इन्कार की बजह जान सकता हूं....."

अनीता ने सकपकाकर विशाल की ओर देखा और फिर नीचे मुंह करके चुप बैठ गई। क्योंकि उसके खुद के पास इसका जवाब न था। दिल तो विशाल का नाम ले-लेकर धड़क रहा था।

"अनीता, मैं तुमसे कुछ पूछ रहा हूं?" वह गुस्से में बोला। "क्यों स्वयं को धोखा दे रही हो अनीता, क्यों? क्या तुम्हारे दिल के किसी कोने में भी मेरे लिये जरा सी भी जगह नहीं है?"

अनीता विशाल की आंखों में उतरने वाले गुस्से को देखकर डर गई। वह सहमी-सहमी आबाज से बोली-“नहीं-नहीं विशाल! ऐसा कुछ नहीं है....जैसा आप सोच रहे हैं।"

"तो फिर कैसा है? साफ-साफ बताओ, क्या बात है?" विशाल कुछ ठन्डा पड़ा।

वह कुछ शर्माकर बोली- ये दिल तो पूरा तुम्हारा है। मगर मुझे इस बात का डर है कि....कहीं यह अमीरी-गरीबी की दीबार हमारे प्यार के बीच में न खड़ी हो जाये।"

विशाल जोश से बोला- मैं तुम्हारे लिये दुनिया की हर दीवार गिरा दूंगा! तुम्हें चिन्ता करने की कोई जरूरत नहीं। वो सब मैं सम्भाल लूंगा। मुझे सिर्फ....सिर्फ तुम्हारा साथ चाहिये। तुम्हारा प्यार चाहिये।” वह भाबुक हो गया।
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 12:50 PM

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