Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 12:52 PM,
#35
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
अचानक उसकी नजर बैड पर लेटे विशाल पर गई। वह एकदम कमरे की ओर दौड़ी। विशाल आंखें बंद किये लेटा था। विशाल की यह दशा देखकर अनीता की हृदय बिदारक चीख निकल पड़ी।
“नहीं....यह नहीं हो सकता।” वह विशाल के पास खड़ी हो गई।

चीखने की आवाज से विशाल ने आंखें खोली। “अनीता तु....म कब आयीं।" वह धीरे से बोला।

"अभी....।" वह इतना ही कह सकी। वह सुबक पड़ी।

“अनीता, रोओ मत! मैं तुम्हारी आंखों में आंसू नहीं देख सकता। मैं इन्हें खुशी से चमकती हुई देखना चाहता हूं। मगर लगता है भाग्य मेरा साथ नहीं दे रहा है।" वह उठने की कोशिश करने लगा।

अनीता हाथ से उसे रोकते हुए बोली-"नहीं....नहीं! तुम उठो मत। लेटे रहो। तुम्हें आराम की आवश्यकता है।"

वह फिर लेट गया। "अनीता, मैं कब से तुमसे मिलने के लिये तड़प रहा हूं....'" वह अनीता को रोती हुई देखता हुआ बोला, "अनीता, मुझे लगता है मैं तुम्हारा साथ नहीं दे सकूँगा। प्लीज मुझे माफ कर देना...."

"नहीं विशाल! तुम्हें कुछ नहीं होगा। ऐसी बातें मत करो....मेरा सिर फट जायेगा....। मैं पागल हो जाऊंगी....।" अनीता का चेहरा पीला पड़ गया।

“अनीता....मुझे लगता है मेरी मृत्यु समीप है....।" ।

इतना सुनकर वह जोर-जोर रोने लगी। अनीता को रोता देख विशाल विवश हो गया। वह चाहकर भी उसके आंसू नहीं पोंछ सका क्योंकि वह बिस्तर से उठ नहीं सकता था। मजबूर होकर वह बोला "मुझे दुःख है, जाते समय मैं तुम्हें आंसुओं के सिवा कुछ नहीं दे सकता अनीता...." वह गहरी सांस खींचकर बोला।

अनीता की आंखें बरस पड़ीं। बहू अपलक विशाल को देखने लगी। विशाल भी किसी प्यासे पथिक की तरह सामने खड़ी अनीता को देख रहा था। "विशाल!" अनीता की आंखों में ठहरा हुआ दर्द छलक आया— “ये दुनिया के सारे गम हमारे हिस्से में क्यों आते हैं? क्या हम इन्सान नहीं? इतने दिनों के बाद तो हम मिले हैं....अब भी तुम बिछड़ने की बातें कर रहे हो....'" वह दर्द में डूबी हुई बोली।

"अनीता....मेरे मरने के बाद तुम किसी अच्छे लड़के से शादी कर लेना....। मैं तो शायद कल तक भी न रह सकू मगर तुम अपनी दुनिया बसा लेना....अपनी दुनिया मत उजाड़ना।" विशाल रो पड़ा।

अनीता को प्रतीत हुआ, मानो अचानक ही उसकी सांस कहीं ठहर गई है। वह बेजान सी होकर सहम गई। सांस भी ठीक प्रकार से नहीं ले पायी तो विशाल के पलंग के पास रखे स्टूल पर बैठ गई। "विशाल! जिस दिल में विशाल बसा हो....सिर्फ विशाल....उसमें किसी और व्यक्ति को बसाने की मैं कल्पना भी नहीं कर सकती। एक दिन तुमने कहा था तुम सिर्फ मेरी हो....सिर्फ मेरी। और आज तुम ऐसी बात कर रहे हो? नहीं विशाल! मैं किसी और की नहीं हो सकती।" वह सिसक पड़ी। अनीता अब सिर झुकाये चुपचाप बैठी थी। पलकों के आंसू छलककर रुई जैसे सफेद गालों पर वह चले थे। उसका मस्तिष्क 'सांय-सांय कर रहा था। दबी-दबी सिसकियों ने कमरे के माहौल को गमजदा कर दिया था।
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 12:52 PM

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