Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 12:55 PM,
#45
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
"मां, आपकी तबियत कैसी है....?" उसने बात का रुख मोड़ा।

"मुझे नहीं लगता ये बीमारी मुझे छोड़कर जायेगी। यह तो मुझे अपने साथ ही लेकर जायेगी।" वह लम्बी सांस खींचकर चुप हो गई।

"मां, ऐसे मत कहो। तुम्हारे बाद हमारा इस दुनिया में है ही कौन?" विनीत के स्वर में दर्द था।

वह बहुत देर तक मां के पास बैठा रहा। तब उठा जब उसकी मां ने कहा-"जा बेटा, तू जाकर खाना खा ले। मेरा क्या! मैं तो यूं ही पड़ी रहूंगी। तू सुवह से भूखा-प्यासा होगा जा, पहले खाना खा ले।"

वह वहां से उठा और आगे बिस्तर पर जाकर लेट गया। उसका खाना खाने को बिल्कुल दिल नहीं किया। वह फिर से प्रीति के विषय में सोचने लगा। तभी अनीता ने उसे उसके ख्यालों से बाहर निकाला—“भइय्या, खाना नहीं खाओगे?" वह खाना लिये विनीत के बिस्तर के पास खड़ी थी।

विनीत ने अनीता की ओर देखे बिना उत्तर दिया-"भूख नहीं है।” अनीता इतना कहकर विनीत ने आंखें मूंद लीं।

भाई के ऐसे व्यवहार से अनीता दुःखी हो गई। वह अपने भाई की हालत समझ सकती थी कि वह किस कदर परेशान है। एक तरफ घर की चिन्ता, दूसरी तरफ प्रीति का प्यार। वह बड़ी उलझन में था, कोई नौकरी मिल नहीं रही थी। दिन का चैन रात की नींद उड़ गई थी उसकी और भूख....भूख से सारा दिन तड़पता रहता मगर दुःखी मन खाने में न लगता। वह मन ही मन सोचने लगी अगर भइय्या खाना नहीं खायेंगे तो कैसे चलेगा....नहीं! मैं इनको खाना खाये बगैर नहीं सोने दूंगी। विनीत ने आंखें खोली तो अनीता सामने ही खाना लिये खड़ी थी।

"नहीं भइय्या....मैं आपको खाना खिलाने के पश्चात् ही जाऊंगी।" अनीता का स्वर दह था। वह विनीत के एक ओर बैठ गई। विनीत अनीता की ओर देख रहा था। वह पुनः बोली। _____"भैया मैं समझती हूं कि आप कितने परेशान हैं। मगर भइय्या....हमारे दिन इतने बुरे भी नहीं जितने तुम समझ रहे हो। दुनिया में ना जाने कितने ऐसे इन्सान हैं जिन्हें एक वक्त भी पेट भर खाना नहीं मिलता। चिन्ता छोड़ो भइय्या, चिन्ता चिता के समान है। आदमी को किसी और पर न सही, ईश्वर पर तो भरोसा करना ही चाहिये। खाना खा लो। खाना नहीं खाओगे तो कमजोर हो जाओगे। जान है तो जहान है। बरना कोई किसी का नहीं। अपनी सेहत अच्छी है तो कुछ भी कठिन से कठिन काम कर सकते हैं।" वह विनीत की ओर देखकर बोली-"आपने पढ़ा भी होगा 'हेल्थ इज वेल्थ'—तब भी आप ऐसी बातें कर रहे

"अनीता!” उसके मुंह से निकला। "तुम बहुत समझदार हो गई हो।" अनीता की बातों को सुनकर जैसे विनीत के सोये हुए साहस ने फिर करवट बदली। उसने शायद आज पहली बार यह सोचा था कि इन्सान को किसी दशा में भी निराश नहीं होना चाहिये। विनीत को चुप बैठा देख अनीता ने खाने की थाली विनीत के आगे रख दी। विनीत बिस्तर से उठा और हाथ धोकर आकर खाना खाने बैठ गया।

अनीता के होठों पर एक बिजयी मुस्कान उभर आयी थी। “बैंक्यू भइय्या।" उसने मुस्कराते हुए कहा था।

जितनी देर में विनीत ने खाना खाया, अनीता वहीं बैठी रही। फिर बर्तन उठाकर वहां से चली गई। विनीत को खाना खाते ही नींद आ गई। अनीता भी बर्तन धोकर सो गई।
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अगले दिन प्रातः विनीत सोकर जल्दी उठ गया। नहा-धोकर पूजा-पाठ किया। उसके शरीर में जैसे किसी नई स्फूर्ति ने जन्म लिया था। वह आज स्वयं को बहुत तरोताजा महसूस कर रहा था। उसने सच्चे दिल से ईश्वर से प्रार्थना की। और रोज की तरह नौकरी की तलाश में निकल पड़ा। जिस कम्पनी में उसे जाना था, उसको ढूंढते दोपहर हो गई। उसका खिलता चेहरा फिर से मुझा गया। निराशा के कुछ भाव उसके चेहरे पर साफ झलकने लगे। मगर उसने साहस का दामन न छोड़ा। अब वह कम्पनी के मैनेजर के सामने बाली कुर्सी पर मौन बैठा था। वह मैनेजर के विषय में सोच रहा था कि यह साहब तो काफी अच्छे स्वभाव के मालिक हैं। वह उसके अच्छे नेचर से प्रभावित हो गया था। मैनेजर की उम्र भी अधिक नहीं थी। वह इन्हीं सोचों में गुम था कि मैनेजर ने उसकी चुप्पी को तोड़ा-"विनीत, तुम नौजवान हो। तुम्हारे शरीर में चट्टानों तक को तोड़ देने वाली शक्ति है। तुम्हारे मन में एक विस्तृत सागर को पार कर जाने का साहस होना चाहिये।" मैनेजर ने विनीत की अंक तालिका से उसका नाम पढ़कर कहा था।

विनीत अपना नाम सुनकर एक पल के लिये चौंका था, फिर ध्यान आया कि मेरे डाक्यूमेन्ट्स तो सर के सामने रखे हैं, उसमें ही नाम पढ़ा होगा। विनीत की समझ में नहीं आया क्या बोले। वह चुप रहा। मैनेजर विनीत द्वारा दिये गये प्रमाण-पत्रों को उलट-पलट करता हुआ एक बार फिर देखकर बोला— लोग उदास चेहरे को देखना पसंद नहीं करते....। लोग इन्सान को हंसते मुस्कराते इन्सान के रूप में देखना चाहते हैं...तुम्हें किसी भी हाल में निराश नहीं होना चाहिये।”

इतना सुनकर विनीत को प्रीति याद आ गई। वह भी यही कहती थी कि मनुष्य को निराश नहीं होना चाहिये। प्रीति का ख्याल झटककर विनीत ने जल्दी से कहा था-“यस सर....।"

"अब तुम्हें निराश होने की आवश्यकता नहीं है....।" विनीत की डाक्यूमेन्ट्स फाईल आगे बढ़ाते हुए मैनेजर ने कहा था।

मैनेजर की यह बात सुनकर विनीत के बुझे से चेहरे पर फीकी मुस्कान तैर गई। “यस सर।” उसने फिर मुंह से दो शब्द निकाले।
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 12:55 PM

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