Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 01:10 PM,
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
"बाह, ठेकेदार साहब।” मंगल उछलकर खड़ा हो गया—"तुम तो ऊंचे दरजे के उस्ताद निकले। यदि पहले से यह बात बता देते तो मैं इन दोनों को पिघला कर डालडा घी बना देता। चलो अब सही....।"

ठेकदार खुश हो गया। उसे कोई तो शागिर्द मिला था। उसे स्वयं आश्चर्य हो रहा था कि इतने पते की बात उसके मुंह से कैसे निकल गयी। उसने फिर उस्तादों बाले लहजे में कहा— लेकिन पहलवान, जरा देख-भालकर काम करना।"

"क्यों "

इस मामले में भी खतरा है।"

"लेकिन इसमें क्या खतरा हो सकता है?" मंगल ने पूछा। उसका ख्याल था कि प्यार करने का इससे आसान तरीका कोई और हो ही नहीं सकता। ठेकेदार के पते की बात सुनकर उसका चेहरा जो खिला था, सहसा ही उदास हो गया। ठेकेदार ने सुनी-सुनायी बात बतायी—"इस मामले में भी खोपड़ी का नम्बर आ जाता है मंगल। इसलिये जरा देखभाल कर काम करना।"

"मैं समझा नहीं।"

“यदि लड़की को लड़का पसन्द न हो तो वह चप्पलों से मरम्मत करनी शुरू कर देती है। दुनिया तमाशा देखती है।"

"तो तुमने मंगल को भी ऐसा ही समझ लिया क्या?"

"देख लो....."

"ठेकेदार साहब, मेरे कसरती शरीर को नहीं देख रहे? रोजाना पचास ग्राम सरसों के तेल की मालिश करके डंड और बैठक लगाता हूं। अगर अनीता या सुधा ने मेरी ओर चप्पल भी उठायी तो साली की हड्डियां तोड़कर रख दूंगा।"

"बैसे तुम्हारे सामने ऐसी बात आयेगी ही नहीं।" ठेकेदार ने हंसते हुए कहा।

"तुम्हारी दुआ चाहिये।” ठेकेदार की कुछ खातिर बगैरह करनी थी। अतः मंगल झोंपड़ी में चाय बनाने के लिये चला गया। ठेकेदार मन-ही-मन मुस्करा उठा।

आज से नहीं, जब से ये दोनों वहनें इस बस्ती में आयी थीं, ठेकेदार की निगाह उन दोनों पर थी। ऐसा होना स्वाभाविक था। यदि रेगिस्तान में कोई फूल खिल जाये तो आसपास की झाड़ियों में उगे कांटे उसकी ओर देखने ही लगते हैं। सुधा और अनीता....ये तो दोनों अकृती जबानियां थीं। किसी भी पुरुष का आकर्षित होना स्वाभाविक था। ठेकेदार अपने मन की बात अनीता से कई बार कह चुका था। सीधे तरीके से तो कहने का सवाल ही नहीं था। हां, घुमा-फिराकर कई दफा कहा था। हर बार उसे रूखा तथा उल्टा ही जवाब मिलता था। मंगल की तरह वह झुलसा नहीं था। उसने केबल यह सोच लिया था कि दोनों वहनें साधारण औरतें नहीं हैं। कुछ भी कहना बेकार है। उसने मंगल से जो कुछ भी बताया था, वह मंगल को बना रहा था। और मंगल इस बात पर खुश था कि उसे एक उस्तादी का दांव मिल गया है। वह दो गिलासों में चाय तैयार करके ले आया। ठेकेदार की ओर उसने एक गिलास बढ़ाकर कहा-"मेरे लायक कोई सेवा बताओ।"

"तुम अपने काम में कामयाब हो जाओ, इतना ही काफी है।" थोड़ी देर के बाद ठेकेदार चला गया। मंगल ने जल्दी से कल के धुले हुये कपड़े पहने, बालों में तेल भी लगाया। सुरती बनाकर मुंह में डाली और झोंपड़ी से बाहर जाने लगा। ठिठककर वह रुक गया। जिस काम के लिये वह जा रहा था, उसके लिये दो फिल्मी गानों का याद होना बहुत जरूरी था। सोचने पर उसे पता चला कि उसको दो चार गाने बिल्कुल उसी तरह के याद हैं जैसे कि ठेकेदार ने सुनाये थे। एक बार दुहराकर भी देखा।

चलकर वह अनीता की झोंपड़ी के सामने आ गया और सामने वाले पेड़ के चबूतरे पर बैठकर इधर-उधर देखने लगा। सुधा और अनीता झोपड़ी से बाहर चारपाई पर बैठी हुई मंगल ने ऊंची आवाज में गाना शुरू किया-"तेरे घर के सामने....एक घर बनाऊंगा।" उसने कई 'बोल 'दोहराये। परन्तु अनीता अथवा सुधा ने उसकी ओर एक बार भी पलटकर नहीं देखा। मंगल सोच रहा था नुक्ते में कोई कमी तो है नहीं, फिर क्या हुआ? तभी वह चौंका। अनीता उठकर उसकी ओर ही आ रही थी। वह कुछ सकपका गया।

अनीता ने उसके बिल्कुल करीब आकर कहा "क्या बात है?"

"बात....बात....।" वह हकलाया।

"हां, खुलकर कहो....इस तरह गाने से क्या लाभ....."

मंगल तनिक हंसा-"अब क्या बताऊं...?"

“जो भी हो...बही बता दो...."

“दरअसल मैं........."

"कह भी डालो...." अनीता ने शांत स्वर में कहा।

"बात यह है कि मैं रात-दिन परेशान-सा रहता हूं।" मंगल ने कहा।

"क्यों....?"

"हर वक्त तुम्हारे बारे में सोचता रहता हूं।"

"ऐसी क्या बात है?"

"दरअसल मुझे....मुझे तुम दोनों से प्यार हो गया है। समझ में नहीं आता क्या चक्कर है? मुझे तुम्हारे चक्कर में खाना-पीना भी नहीं सूझता।"

"अच्छा ...."

"क्या तुम मुझ पर रहम नहीं खाओगी।"

"क्यों नहीं....." कहने के साथ ही अनीता के दांये हाथ का भरपूर थप्पड़ मंगल के गाल पर पड़ा। तुरन्त वह बोली-“खबरदार! यदि फिर इस तरह की गन्दी हरकत करने की कोशिश की तो....। शर्म नहीं आती?"

“अनीता....।” मंगल जैसे चीख उठा। वह इस बात को कैसे सहन कर सकता था कि कोई लड़की उसे थप्पड़ मार दे।

"मुझे बाजारू औरत मत समझना।"
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 01:10 PM

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