Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 01:11 PM,
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
“मुझे अफसोस है।" विनीत ने कहा।

"परन्तु मुझे खुशी है कि आप बच गये। अन्यथा आपकी इतनी लम्बी बेहोशी को देखकर मैं तो घबरा ही गयी थी।"

मेरे जैसे इन्सान के कारण आपको घबराना नहीं चाहिये था। यदि मर भी जाता, तब भी आपसे कोई पूछने न आता।" विनीत ने कहा। लड़की खामोश हो गयी। वह डॉक्टर की ओर मुखातिब हुई—"डॉक्टर, क्या मैं इन्हें....?"

डॉक्टर ने उसके आशय को समझकर कहा-“ले जा सकती हैं। सिर के पिछले हिस्से में गुम चोट लगी है। मैं कुछ टेबलेट्स लिखे देता हूं, आप देती रहिएगा। हां, इनकी बेहोशी को देखकर इनके लिये आठ दस दिन आराम करना बहुत ही जरूरी है।" डॉक्टर ने दवाई लिखकर, विनीत की बांह में एक इंजेक्शन और लगाया। उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी। बाहर तक चलने में उसे किसी प्रकार की दिक्कत महसूस नहीं हुई। अस्पताल में कम्पाउंड में आकर वह रुक गया। सिर कुछ चकरा रहा था। वह लड़की साथ थी।

उसने विनीत को रुकते देखकर कहा— “गाड़ी सामने खड़ी है....बस दस कदम और।"

"नहीं...."

"क्यों....?"

"अभी मुझे आराम की जरूरत है। मैं कुछ देर घास पर बैलूंगा। तबियत ठीक हो जायेगी। फिर खुद ही चला जाऊंगा....आप जाइए....!"

“लेकिन डॉक्टर ने...!" विनीत ने उसकी बात को रोककर कहा-"आराम के लिए कहा है...और वह भी आठ दस दिन तक। लेकिन मैं आराम नहीं कर सकूँगा....!"

"क्यों...?"

“यदि किस्मत में आराम होता तो आपकी गाड़ी से ही न टकराता....!" कहकर विनीत ने एक लम्बी सांस भरी और फिर कहा-"सभी की किस्मत में आराम करना नहीं होता....."

विभा ने उसके चेहरे पर खोजपूर्ण दृष्टि डाली। उसे यह युबक रहस्यमय-सा लगा। कपड़े तो बिल्कुल साधारण थे परन्तु चेहरे पर आकर्षण था। "आप लखनऊ में ही रहते हैं?"

नहीं....."

"फिर....?"

"विभाजी, मैं फुटपाथ पर रातें काटने वाला इन्सान है। आप मेरे लिये बिल्कुल भी परेशान न हों। फिलहाल चोट के कारण सिर चकरा रहा है। तबियत ठीक हो जायेगी तो कहीं-न कहीं चला ही जाऊंगा। मैं बिल्कुल ठीक हूं।"

"मिस्टर विनीत, चूंकि मेरी गाड़ी से आपको चोट लगी है, इसलिये आपके प्रति मेरा कुछ फर्ज हो जाता है। मैं आपको ले चलने के लिये इतनी जिद भी न करती यदि डॉक्टर ने आपके सिर की चोट को खतरनाक न बताया होता। आपको मालूम होना चाहिए कि ठीक तीन घंटे बाद आप होश में आये हैं। यह सब सिर की चोट के कारण ही हुआ है।"

“मुझे विश्वास है कि मुझे कुछ नहीं होगा।"

“विश्वास तो आपको उस समय भी था जब आप भागकर सड़क पार कर रहे थे....। लेकिन आपका विश्वास टूट गया और आपको अस्पताल में आना पड़ा।" विनीत निरुत्तर-सा हो गया। विभा ने कहा- आइए...."

“विभा जी...आप....."

"जिद नहीं कर रही....समझदारी की बात कर रही हूं। यदि आपकी तबियत दो चार दिन बाद ही ठीक हो जाये तो आप चले जाना। मैं रोकुंगी नहीं।" उसने एक बार विभा की ओर देखा। न जाने उसकी आंखों में कैसा जादू था कि वह इन्कार न कर सका। विभा के अधर एक बार फिर खुले-"चलिए....." विभा ने उसे सहारा दिया और कार तक ले आयी। वह बिना सहारे भी चल सकता था, परन्तु उसका सहारा पाकर जैसे उसका मुाया चेहरा खिल उठा था। गाड़ी सड़क पर दौड़ रही थी और विनीत अपने विचारों में उलझा हुआ, गुम-सुम बैठा था। जिंदगी उसे कहां-से-कहां ले आयी थी। अभी आगे का भी कुछ पता न था।
.
विभा शांत गाड़ी चला रही थी। पता नहीं विभा के चेहरे में ऐसा क्या आकर्षण था कि वह बार-बार कनखियों से उसकी ओर देखने पर विवश हो जाता था। उसने विभा की ओर छुपी दृष्टि से देखा तो विभा ने उसे देख लिया। अपनी इस चोरी पर वह बुरी तरह झेंप गया तथा झेंप मिटाने के लिये खिड़की से बाहर की ओर देखने लगा। लेकिन आंखों की पुतलियां बार-बार उसी की ओर घूम रही थीं। चाहकर भी वह अपने मन को उस ओर से न हटा सका। लम्बी खामोशी को तोड़ते हुए विभा ने पूछ लिया—क्या काम करते हो?"

सुरीले शब्दों को सुनकर वह चौंका—“जी....?"

"मेरा मतलब, सर्बिस या कॉलेज....?"

"दोनों में से कुछ नहीं।" उसने बताया- बी.ए. करने के बाद ही पढ़ना छोड़ दिया था।"

“तो जनाब लखनऊ में नौकरी की तलाश में घूम रहे थे?"

“जी नहीं।" उसने उदास लहजे में कहा- अभी जिंदगी को इतनी फुर्सत ही नहीं है कि मैं नौकरी कर सकू। कई दूसरे काम ऐसे हैं जिन्हें पूरा करने के बाद ही अपने जीवन के विषय में सोचा जा सकता है।"

"दूसरे काम....?"

"हां—कुछ ऐसे अभाब जिन्हें पूरा करने के लिये शायद मुझे जिंदगी भर भटकना पड़े। पता नहीं कब तक....।"

विभा तनिक मुस्करायी। वह कुछ और ही समझ बैठी थी, उसने कहा- यह रोग भी आजकल आम हो गया है। इस पर मजेदारी की बात यह है कि हमारे वैज्ञानिक अभी तक इस रोग का निदान नहीं खोज पाये हैं।"

"जी....?"

"इश्क का रोग।" बिभा कहे जा रही थी—“पता नहीं लड़के लड़कियां इस रोक का शिकार ही क्यों हो जाते हैं?"

"आपने गलत समझा।"

"क्या मतलब....?"

“मैं किसी रोग का रोगी नहीं हूं।"

"और...?" विभा ने जिज्ञासा व्यक्त की।
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