Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 01:12 PM,
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
विनीत की समझ में नहीं आ रहा था कि वह विभा की बात का क्या उत्तर दे? वास्तव में वह इस स्थिति में रहा ही नहीं था कि कुछ कह पाता। उसके मस्तिष्क का संतुलन तो बराबर बिगड़ने पर ही था। विभा ने फिर पूछा-"तुम्हें मुझसे प्यार नहीं है विनीत ....?"

“बिभा!” उसने किसी प्रकार अपने को संभाला—“तुम....तुम अपने कमरे में चली जाओ तो....तो अच्छा रहेगा।"

“कायर हो....?" विभा पर जैसे एक नशा-सा छाता जा रहा था।

"न....नहीं....."

"फिर डरते क्यों हो?" बिभा बोली-"क्या प्यार करना पाप है....क्या दो दिलों को एक कर देना भी पाप है? बोलो....।"

"विभा...."

उत्तर में विभा कुर्सी से उठकर बिस्तर पर बैठ गयी। विनीत छिटककर उससे दूर हो गया। जैसे कि सैकड़ों बिच्छू उसकी ओर बढ़ रहे हों। विभा ने उसके दोनों हाथ थाम लिये। वह बुदबुदायी
"विनीत ....."

"तुम....तुम चली जाओ विभा। मेरी तबियत ठीक नहीं है, यदि कुछ और देर तक यही स्थिति बनी रही....तो मैं पागल हो जाऊंगा....मैं बेहोश हो जाऊंगा।"

"प्यार तो मुर्दो में भी जान डाल देता है बिनीता"

“मगर..मगर यह प्यार नहीं है।"

"और....?"

“बासना....यह बासना है बिभा।"

"प्रेम बासना के ऊपर ही आधारित होता है बिनीता” विभा ने कहा—“पुरुष तथा नारी में वासना की लहर न हो तो प्रेम हो ही नहीं सकता...."

"तुम्हारा कहना ठीक हो सकता है परन्तु बासना....वह बाद की बात है। प्लीज विभा....मुझे इस ओर मत ले चलो....।"

“विनीत , तुम पत्थर हो क्या?"

"शायद....।"

और एक झटके से अपने हाथों को छुड़ाकर विनीत बिस्तर से उतरकर नीचे खड़ा हो गया। विभा ने उसकी ओर असहाय सी दृष्टि से देखा। उसकी सांसें उखड़ रही थीं। देर तक यही चुप्पी बनी रही। अन्त में पता नहीं विभा के मन में क्या आया कि वह बिस्तर से उतरी तथा दरवाजे को खोलकर कमरे से बाहर चली गयी। विनीत उसे जाते हुए देखता रहा।

सो नहीं सका विनीत । बिचारों में डूबते-उतराते सुवह हो गयी। वह अभी तक बिभा के विषय में सोच रहा था जो प्रेम के पीछे उसके साथ वासना का नाटक खेलना चाहती थी। यह देखकर उसके हृदय में घृणा भर आयी। उसने अपने माथे पर बंधी पट्टी को छुआ, चोट में बिल्कुल भी दर्द न था। वह बिस्तर से उठकर दरवाजे के पास आ गया। विभा का कमरा बंद था। शायद वह अभी तक सो रही थी। उसके मन में आया कि चल दे। आखिर उसे किसी के सोने अथवा जागने से क्या लेना। उसे कल ही उसके साथ नहीं आना चाहिये था। तभी विभा का कमरा खुलने की आबाज उसके कानों में पड़ी। अनायास ही उसकी दृष्टि उस ओर को उठ गयी। विभा को देखकर उसने अपने चेहरे को घुमा लिया। वह जानता था कि विभा उससे क्षमा मांगेगी। इससे पहले ही उसके कदम आगे बढ़ गये। तभी विभा की आवाज सुनकर उसे रुकना पड़ा। विभा ने निकट आकर पूछा-"कहीं जा रहे हैं?"

"हां।" विनीत ने उसकी ओर देखे बिना ही उत्तर दिया_

"उन्हीं बीरानियों में जहां से तम मुझे उठाकर लायी थीं। जाना तो था ही, परन्तु मुझे दुःख है कि तुम्हारी ओर से मेरे मन में
अच्छे विचार नहीं हैं। हां, यदि मुझसे ही कोई भूल हो गई हो तो मैं उसके लिये क्षमा चाहता हूं।"

"मझे अफसोस है।”

विभा दबे स्वर में बोली- "आपको न पहचानकर मैं एक गलत कदम उठा बैठी थी। आप मुझे क्षमा नहीं करेंगे?"
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 01:12 PM

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