मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
06-10-2021, 12:00 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
काम वासना और रति की इच्छा-2

मुझे अपने कुँवारे दिन याद आ गए.. मैं सोचने लगी कि कब से कर रहा था यह हरकत? इस पढ़ाकू बुद्धू में इतनी सेक्स की प्रेरणा कैसे आ गई? किताब कहाँ से लाया? क्या जानता है सेक्स के बारे में? वीर्य स्खलन के वक़्त सीत्कारी भरता है क्या?
मर्दों को चरम सुख पर कैसा अनुभव होता होगा?
धीरे-धीरे मेरे ख़याल और भी रंगीन होने लगे कि उसका लण्ड कैसा होगा.. कितना बड़ा होगा.. वीर्य कैसा होगा? क्या उसने किसी लड़की के साथ सेक्स किया है? उसकी कोई गर्लफ्रेंड तो नहीं है.. जिसके साथ वो सब कुछ कर चुका हो.. इसे ‘स्वयं सुख’ के बारे में किसने बताया होगा? लड़कें ‘स्वयं सुख’ पाने के लिए के कितने तरीकों से अपने अंग को उत्तेजित करते हैं.. एकांत में हस्तमैथुन करने के बाद जब वीर्य छोड़ते हैं.. तो उसका क्या करते हैं? भान्जे के वीर्य की गंध कैसी होगी?
मेरा पूरा जिस्म पसीने से भीग गया था। मैं काफ़ी गरम हो चुकी थी.. तुरंत हाथों से अपनी ‘छोटी’ को प्रेरित करने लगी। दिमाग़ में विकृत कल्पनाएँ अभी भी कुछ शेष बची थीं.. मेरा जी करने लगा कि भान्जे की तरह अपने कामांग को किसी चीज़ के साथ रगड़ कर सुख पा जाऊँ..। तभी मेरी नज़र एक मोटी मोमबत्ती पर पड़ी.. जो अक्सर बिजली जाने पर जला लेती थी.. वो बिस्तर के बगल के टेबल पर रखी थी।
उसे मैंने हाथ में लेकर अपनी योनि के लिए परखा.. काफ़ी बड़ी और मोटी सी थी.. लंबे समय तक ‘जलने’ वाली।
मोमबत्ती को बिस्तर से लंबाई के हिसाब सटा कर रख दिया.. जब मैं लेटती तो ठीक उस जगह लगा दी.. जहाँ मेरी योनि आ रही थी.. फिर मैं ठीक उसके ऊपर लेट गई और अपने हाथों से उसको ठीक किया ताकि मोमबत्ती की लंबाई मेरी योनि के ठीक नीचे हो।
मोमबत्ती को योनि छिद्र पर दबाया तो एक मधुर अनुभव हुआ.. योनि और बत्ती के बीच मेरी नाईटी और पेटीकोट के कपड़े थे.. इस वजह से दर्द या चुभन नहीं था.. लेट कर मैंने जवानी की उन किताबों की कहानियाँ याद किया और धीरे से योनि को मोमबत्ती से रगड़ने लगी।
करीब 15 मिनट के बाद बिजली की तेजी जैसा एक तेज़ झटका सा अनुभव मेरे मस्तिष्क में भर गया और मुझे समुंदर की उठती गिरती उँची ल़हरों की तरह एक अत्यंत ही रोमांचक चरम-सुख का अनुभव हुआ। ज़ोर की सीत्कारियाँ भरती हुई.. मैंने उस चरम सुख का आनन्द लिया।

पति देव को अच्छी तरह मालूम था कि मैं कभी-कभी हस्तमैथुन मैथुन कर लेती हूँ.. कई बार मेरी सिसकियाँ सुनकर उठ जाते और गौर से मुझे देखते रहते। उनकी आँखों के सामने ही मैं अपनी योनि को ज़ोरों से घिसती और रगड़ती रहती और मादक स्वरों में मिल रही सुख का आनन्द लेती रहती।
अब की ज़ोरदार सीत्कारियों से पति जागे और बोले- चुपचाप करो ना.. या दूसरे कमरे में जाकर रगड़ लो..
मुझ पर उनकी बातों का कोई असर नहीं हुआ.. मेरे कपड़े योनि के रस से गीले हो चुके थे।
कुछ ही पलों के बाद मेरा शरीर हल्का हुआ और एक मीठी नींद आने लगी.. मैंने बत्तियाँ बुझा दीं।
सब लोगों के दिमाग़ में सेक्स की प्रेरणा और दबाव एक जैसे नहीं होती।
कुछ लोगों में सेक्स की इच्छा बहुत होती है.. तो कुछ लोगों में सेक्स की इच्छा मामूली सी होती है।
मैं उन लड़कियों में से हूँ जिनमें काम वासना और रति की इच्छा 19 साल के उम्र से ही कुछ ज़्यादा ही उभर उठी थी।
शादी मेरे लिए उस द्वार का टाला गया था.. जिसको खोलना मेरे जैसी कुँवारी लड़कियों के लिए पाबंदित था। जबकि उस दौर में मेरी कुछ सहेलियों के ब्वॉय-फ्रेण्ड थे.. जिनके साथ उन्होंनें इस द्वार को तोड़ डाले थे.. पर मैं ऐसे परिवार से थी.. जहाँ इच्छाओं को लाज और इज़्ज़त के बल पर दबा देना चाहिए जैसी मान्यताएं थीं।
इस सबके लिए शादी के बाद कोई पाबंदी नहीं होती है।
मेरी कम उम्र में शादी हो गई थी.. लेकिन तब भी मेरा शरीर शादी के बाद सेक्स के लिए पूरी तरह से तैयार था।
कम उम्र में ही मेरी माहवारी शुरू हो गई थी और मैं इस सब के लिए परिपक्व हो गई थी।
एक मर्द को सुख देकर उसके बच्चे की माँ बनने के लिए मैं समर्थ थी। केवल 19 साल की उम्र में मेरा जिस्म एक 25 साल की औरत की जवानी से भारी था।
सुहागरात को मैंने सिर्फ़ थोड़े ही देर तक लाज शर्म का ढोंग किया और पहली ही रात में मैं लड़की से औरत बन गई थी। जब मेरे पति ने मेरे कौमार्य को भंग करते हुए अपनी जवानी को मेरे यौवन में समा दिया और अपना बीज मेरी कोख में बो दिया।
पूरी तरह से विवस्त्र.. मैंने हर उल्लंघन को तोड़ दिया और पति को अपनी अनछुई जवानी के मर्मांग को खुलकर परोस दिया।
पतिदेव ने मेरे उन हर अंग को दबा-दबा कर खूब टटोले और चूमने लगे.. जिन्हें आज तक मेरे सिवा और कोई नहीं देख सका था। पति की उस मदभरी सख़्त ‘मर्दानगी’ को जब मैंने अपने हाथ में लिया.. तो मेरा मन उस मधुर अनुभव को पूरी तरह से संभाल नहीं पाया और मैंने कामुक सीतकारियाँ भरते हुए.. उसे दबा-दबा कर.. अपने मदभरे यौन अंग के छिद्र से मिला दिया।
सुहागरात वैसे ही कटी.. जैसे मैंने सपना देखा.. पर मेरी ज़िंदगी सिर्फ़ एक दिन की ख़ुशी थी.. पति की छोटी सोच.. छोटी सोच से ग्रसित सड़ा सा आत्मसम्मान.. निकम्मापन इत्यादि.. बहुत जल्दी ही बाहर आ गए।
खुशी के कुछ पल जल्दी ही ख़तम हो गए और हमारे बीच एक बर्फ की दीवार बनने लगी.. जो सीधे बिस्तर पर ख़त्म हो रही थी। पति अपनी कमज़ोरियों को पत्नी पर ज़ाहिर करने लग जाए.. तो शादी की गर्मी लगभग ख़्त्म ही समझो।
बिल्कुल मेरे माता-पिता की तरह पति भी मेरी खूबसूरती से परेशान थे। उनकी नाकामयाबी.. मेरे खूबसूरती से हर पल हार रही थी।
उनके ज़हन में बस एक ही ख़याल था कि लोग यही बात कर रहे होंगे कि ऐसी हसीन बीवी के साथ ऐसा नाकामयाब इंसान कैसा? इस छोटे ख्याल की वजह से उन्होंने मेरे साथ आँखें मिलाना भी छोड़ दिया।
बिस्तर पर बर्फ की दीवार जम चुकी थी और हमारे दोनों के बीच मीलों का फासला बन चुका था.. जिसके कारण हमारा मिलन पूरी तरह से बन्द हो गया था।
केवल 20 साल की उम्र में ही मेरे विवाहित जीवन का आखिरी पत्ता गिर चुका था.. कभी-कभी उनके मन में थोड़ी सी आत्मविश्वास भरी हिम्मत उभरती.. और वो रात को मेरे ऊपर मुझे आज़माने के लिए चढ़ जाते थे.. ऐसे मौकों पर मैं भी खुलकर उनका साथ देती.. यही सोचकर कि बुझते दिए में तेल डाल कर ज्योति को और तेज करूँ.. लेकिन ज्योति थोड़ी देर में ही बुझ जाती और वो बिना कुछ हासिल किए ही ढेर हो जाते।
अपने पति के साथ वो अधबुझी आग एक सुलगती लौ की तरह मेरे अन्दर ऐसी आग लगाकर रह जाती.. जो मुझे रात भर जलाती रहती।
आख़िर मायके जाकर की सहेलियों से मिली.. और हस्तमैथुन प्रयोग सीख कर उसके उपचार से खुद को शांत करने लगी।
पिताजी ने इस बेरंग शादी को अपनी नाकामयाबी के क़िस्सों में एक और किस्सा बनाकर अपना मुँह मोड़ लिया।
दोनों बहनें बच्चों की परवरिश में मग्न मुझसे दूर हो गईं। माँ भी क्या करती.. खुद हालत से मजबूर मुझे भी वही नसीयत देती.. जो उन्होंने अपनी जीवन में इस्तेमाल किया।
हालत से सुलह कर लो और पूजा-पाठ में लगे रहो..
केवल 20 साल की उम्र में पूजा-पाठ कैसे होगा? जब मन और तन की माँगें ज़ोर पकड़ रही हैं। मन को कैसे काबू करूँ? जवानी की आग को कैसे बुझा दूँ?
यही सब सोचते हुए मैं अपने भांजे से रिश्ता बनाने के लिए सोचने लगी।
फिर मैंने किसी विद्वान की उस उक्ति को ध्यान में लिया.. जिसमें कहा गया था कि आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है.. मैंने इसी युक्ति को ध्यान में लेते हुए अपने भांजे से अपने जिस्मानी रिश्ते बनाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए।
शाम को जब चंदर कॉलेज से लौट आया.. चाय देने के बहाने उसके कमरे में गई और उससे बातचीत छेड़ने का प्रयास किया।
चंदर बड़ा ही शर्मीला था.. मेरी तरफ देख भी नहीं रहा था और नज़र बचाते हुए बात कर रहा था।
मैं एक पीले रंग की पारदर्शी साड़ी और सफेद रंग का पारदर्शी ब्लाउज पहने हुई थी, मेरा ब्लाउज काफ़ी सेक्सी किस्म का था।
ब्लाउज का गला काफी खुला था जिसमें से मेरी चूचियों की गोलाई बीचों-बीच से बाहर निकली पड़ रही थीं।

ब्लाउज के अन्दर की ब्रा भी काफ़ी सेक्सी किस्म की थी.. और जिस तरह से उनमें मेरी गोलाइयाँ फंसी हुई थीं.. उससे सब कुछ साफ़-साफ़ नज़र आ रहा था।
लेकिन जिसको दिखाना चाहती थी.. वो तो नज़र भी नहीं मिला रहा था।
मैं यूँ ही कॉलेज के बारे में कुछ बातें करने लगी। शरमाते हुए वो कुछ जवाब भी दे रहा था।
इसी तरह बातों-बातों मैं उससे पूछ पड़ी- क्या तुम्हारे कॉलेज में लड़कियाँ नहीं पढ़तीं?
उसने कहा- पढ़ती हैं.. लेकिन बहुत कम.. इंजीनियरिंग में आर्ट्स और कॉमर्स के मुक़ाबले कम लड़कियाँ हैं।
फिर मैंने पूछा- इन लड़कियों में कोई स्पेशल फ्रेंड?
चंदर शर्मा गया और अपने मुँह और भी नीचे कर दिया, शरमाते हुए कहा- नहीं.. ऐसा कोई नहीं है..
मैंने और पूछा- क्या कोई भी गर्ल-फ्रेंड नहीं? तुम्हारी उम्र के लड़कों के लिए ये तो मामूली बात है..
चंदर और भी शरमाता रहा और मैं धीरे-धीरे हमारे बीच की दूरी मिटाती गई।
‘चंदर, शरमाते क्यों हो? गर्ल फ्रेंड होना कोई बुरी बात नहीं.. बल्कि आजकल तो ये ही जायज़ है कि लड़का-लड़की अपने जीवन-साथी को खुद ही चुन लें.. बताओ.. कभी लड़कियों के बारे में सोचते ही नहीं क्या..? उनकी ओर आकर्षित नहीं होते क्या?’
अब चंदर शर्म से पानी-पानी हो गया.. बड़ी मुश्किल से जवाब दिया- जी मामी.. ऐसी कोई बात नहीं.. मेरा ध्यान तो पढ़ाई में है.. आजकल कम्पटीशन ज़्यादा है.. इन सब बातों के लिए वक़्त ही कहाँ है.. मैं ऐसे मामलों में बहुत पीछे हूँ।
मैंने एक और तीर छोड़ा- तो क्या ये सब बेकार की बातें हैं?
‘अरे हमारे ज़माने में इस उम्र के लड़के-लड़कियों की शादी हो जाती थी और वो तो सुहागरात भी मना डालते और बच्चे भी पैदा कर लेते थे। तुम्हारा जेनरेशन तो फास्ट है.. और तुम कहते हो कि लड़कियों के बारे में सोचते ही नहीं हो.. क्या किसी लड़की को देखकर आकर्षण सा नहीं होता? कुछ नहीं लगता तुम्हें? और आजकल की लड़कियाँ ऐसे-ऐसे ड्रेस पहनती हैं.. उस सब को देख कर कुछ तो महसूस होता होगा.. उनके करीब जाने की इच्छा.. उनसे बात करने की इच्छा.. उन्हें छूने की इच्छा.. किस करने की इच्छा.. कुछ और करने की इच्छा?’
चंदर की आँखें एकदम बड़ी हो गई, उसे शरम तो आ रही थी.. लेकिन मेरी बात सुनकर उसे अचरज भी हुआ- मामी.. प्लीज़..!
उसने ज़ोर से कहा और शर्म से मुस्कुराते हुए मुँह मोड़ लिया- मैं ऐसा कुछ नहीं सोचता हूँ.. मैं सीधा सादा लड़का हूँ..
मैं मुस्कुरा उठी.. मुझे मालूम था कि चंदर कितना सीधा-सादा था।
उस रात की हरकत ने खूब दिखाया मुझे.. ऐसी सेक्सी किताबें पढ़ता है और देखो कैसा नाटक कर रहा है। मैंने भी हार नहीं मानी.. मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था.. मेरे अन्दर भी बहुत कुछ हो रहा था.. मुझमें बेशर्मी बढ़ रही थी।
‘इतने भी सीधे-साधे मत बनो कि सुहागरात के दिन पत्नी को छूना तो दूर मुँह भी देखने से शरमाओ.. अरे इस उम्र में तो सबको सेक्स की जिज्ञासा होती है.. यह तो एक सहज बात है। झिझक छोड़ो और खुलकर बात करो.. अब तुम बड़े हो गए हो.. शरमाने से स्मार्ट नहीं बन सकते..’
चंदर फिर भी मुँह मोड़े हुए शर्म से मुस्कुरा रहा था।
‘ठीक है भाई.. अब और नहीं पूछती.. लेकिन गर्ल-फ्रेंड होना.. लड़कियों की ओर आकर्षित होना या सेक्स के बारे में सोचना.. ये सब बुरी बात नहीं है। अरे आजकल तुम्हारी उम्र के लड़के-लड़कियां एक दूसरे के साथ सेक्स भी कर लेते हैं.. अब सब चलता है..’
यह कहते हुए मैं कमरे से निकल गई।
कल शनिवार है.. पति देर से घर आते हैं और वो भी शराब के नशे में धुत्त होकर आते हैं।
हर शनिवार अपने निकम्मे दोस्तों के साथ दारू पीते और घर लौट कर चुपचाप सो जाते।
चंदर का कॉलेज सिर्फ़ आधे दिन के लिए खुलता और वो दोपहर को लौट आता था। मेरी योजना के मुताबिक उसके लौटने के बाद हम दोनों के पास 10 घंटों का एकांत समय होता था.. इसी दौरान मैं उसके साथ कुछ और सनसनीखेज बातें छेड़कर गद्दे के नीचे रखी अश्लील किताबें और कन्डोम उसके सामने निकालती और उसे प्रलोभित करके अपने वश में ले लेती और कामातुर होने पर मजबूर करने लगी थी। शर्म और लाज से वो पूरी तरह मेरे वश में हो गया था। मेरी जवान जिस्म को देख उसकी नीयत तो बदलेगी ही.. उसके बाद.. आप समझ सकते हो..
जब तन की प्यास बुझी.. तो सब कुछ बदल सा गया। पहले जब भी रात के अंधेरे में उसकी हरकत करती और चरम सुख के सनसनाते हुए पल जब बीत जाते.. तो ऐसा लगता कि अचानक मेरा मन पूरा शांत हो गया है।
कुछ ही पल पहले की करतूतें बुरी और अश्लील लगने लगता था.. अपने कुकर्म पर पछतावा होता था.. लेकिन अब मुझे कोई पछतावा नहीं था।
बल्कि एक ऐसी चंचल मस्ती चाह थी कि दोबारा करने को जी चाह रहा था। सेक्स की प्यासी तो थी.. लेकिन मैंने इस तरह अश्लील साहित्य के सहारे जलती हुई वासना की आग में और भी घी डाल दिया था।
भारी साँसें भरती हुई मैंने दोबारा उन किताबों के अन्दर झाँका.. गंदे अश्लील चित्रों को देखते ही एक नई उमंग मेरे अन्दर दौड़ी.. बहुत सारे सनसनीखेज विचार मन में जन्म ले रहे थे। उन विचारों में एक विचार था कि मेरा भांजा चंदर जब इन किताबों को पढ़ता तो उसके दिमाग़ में कैसे ख़याल आते? क्या वो भी किसी लड़की के साथ ये सब कुछ करता हुआ सपना देखता था क्या?
दिमाग़ की ट्रेन का ब्रेक फेल हो गया और मेरे मन में ऐसे-ऐसे विचार आने लगे कि मानो कोई बड़ा सा बाँध टूट पड़ा हो और बाँध में क़ैद पानी उछल-उछल कर बहता जा रहा हो।
चंदर के नंगे जिस्म का दृश्य मेरे मन में आने लगा। थोड़ी ही देर में ख़यालों में अपने आपको भान्जे के साथ संभोग करते हुए देखने लगी।
बस.. फिर क्या था.. ट्रेन पटरी से उतर गई और ख़यालों की दुनिया से असल जगत में आ पहुँची.. लाज और शर्म भी डूब गई.. छी: .. कितना गंदा ख़याल है।
मैंने तुरन्त उठकर सब कुछ ठीक कर दिया और ठंडे पानी से नहा लिया ताकि जिस्म की गर्मी मिटा सकूँ। नहाने के बाद नाइटी पहन ली और खाना खाकर बेडरूम में लेट गई।
इसके बाद एक बार चस्का जो लगा.. सो लगा.. यह तो पहले ही बता चुकी हूँ.. मन जब काबू में ना हो तो दौड़ पड़ता है.. और मेरा मन फिर से ट्रेन की तरह दौड़ने लगा। वही अश्लील विचार मुझे फिर से तंग करने लगे।
अवैध संबंध वाली कहानियों में मामी-भान्जे की एक सनसनाती हुई सेक्स की कहानी थी। जिसमें मामी सब हद पर करते हुए भान्जे के साथ ऐसी हरकतें कर बैठती.. जो एक पति-पत्नी भी एकांत में करने से शरमाते हैं।
मैं मामी की जगह अपने आपको देखने लगी और भान्जे की जगह चंदर को।
मेरे शरीर में करेंट सा दौड़ रहा था और मैं बेहताशा गीली हो रही थी.. अपनी आँखें बन्द करती तो यही दृश्य सामने आ जाता.. आँखें खोलती तो फिर से बन्द करके वही सपना देखने की इच्छा होती।
मन में शर्म और लाज ने मस्ती और वासना से जंग छेड़ रहे थे। आख़िर बहकता हुए मन ने शर्म और लाज को अपने आपसे मिटा डाला। आख़िर कब तक मैं अपने जिस्म को ऐसी दंड देती रहूंगी।
पहली बार जो मेरे और चंदर के अवैध सम्बन्ध बने तो मन ग्लानि से भर उठा था और उसी समय सोच लिया था कि अब आगे से इसके साथ ऐसा नहीं करूँगी.. पर आप सब तो जानते ही हैं कि ये आग ऐसी आग है जो कभी भी नहीं बुझती है सो चंदर से शारीरिक रिश्ते बनते रहे।
मुझे नहीं मालूम कि मैं सही किया या गलत किया पर तब भी यदि सामाजिक वर्जनाओं को एक बार के लिए भूल भी जाएं तो कायनात की शुरुआत में आदम और हव्वा की कहानी याद आती है जब न रिश्ते थे और न कोई सामाजिक बंधन था.. बस जिस प्रकार उस बनाने वाले की रचनाओं ने सृजन करते हुए खुद की ‘संख्या वृद्धि’ का प्रयास किया.. मैं उसी को अपनाती रही.. लेकिन सृजन करके सन्तान का कोई प्रयास नहीं किया.. उधर लोकाचार और पति से कुछ भय बना रहा।
ये मेरी जीवन डायरी के कुछ अंश हैं जो मैंने आप सभी के सामने प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।

end
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RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह - by desiaks - 06-10-2021, 12:00 PM

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