RE: SexBaba Kahan विश्वासघात
कौशल ने फिर अपनी आंखों से पट्टी नोच फेंकने की कोशिश की लेकिन उसके हाथ वापिस नीचे झटक दिए गए। कौशल ने अन्धाधुंध अपना एक हाथ अपने सामने चलाया। उसका हाथ घूंसे की शक्ल में किसी के चेहरे से टकराया। कोई जोर से कराहा।
“मारो साले को।”—फिर कोई चिल्लाया।
तुरन्त चारों तरफ से उस लात घूंसों की बरसात होने लगी।
मार से पहले उसने घुटने मुड़े, फिर सिर और कंधे झुके और फिर वह मुंह के बल फर्श पर लोट गया। तब भी लोगों के जूतों की ठोकरें उसकी खोपड़ी और पसलियों से टकराती रहीं।
उसे फिर उठा कर पैरों पर खड़ा किया गया।
वह बांस की तरह झूलता-लहराता अपने आपको धराशायी होने से रोकने की कोशिश करता रहा।
“हरामजादे!”—रईस अहमद चिल्लाया—“यहां पायल नहीं है जिसका आसानी से तू गला घोंट लेगा।”
कौशल कुछ न बोला। उसे अपना सिर फटता महसूस हो रहा था और उसे यूं लग रहा था जैसे उसके सारे जिस्म में भाले भोंके जा रहे हों।
“अपनी जुबान से कबूल कर कि पायल का गला तूने घोंटा था। बोल! बोल, साले!”
“तेरी मां की...”
इस बार घूंसा उसके पेट में पड़ा। उसका शरीर दोहरा हो गया। उसकी आंखों में आंसू छलक आए। किसी ने उसे बालों से पकड़ कर बड़ी बेरहमी से सीधा कर दिया।
नहीं, मैं अपनी जुबान नहीं खोलूंगा—कौशल मन ही मन दोहरा रहा था—पायल को हीरे की अंगूठी दिखा कर मैं एक बार अपने साथियों के विश्वास की हत्या कर चुका हूं, अब मैं दोबारा ऐसा नहीं करूंगा। अपने साथियों के बारे में अपनी जुबान मैं नहीं खोलूंगा। नहीं खोलूंगा। नहीं खोलूंगा। रंगीला का इन्होंने कहीं से नाम सुन लिया है लेकिन इन्हें पक्का पता नहीं है कि रंगीला मेरे साथियों में से एक है। मैं रंगीला के बारे में चुप रहूंगा।
वे लोग पायल के कत्ल के बारे में, उसके साथियों के बारे में, खास तौर से रंगीला के बारे में, उससे सवाल पूछते रहे। सवालों के साथ साथ उस पर लात घूंसों की बरसात भी होती रही लेकिन कौशल ने अपनी जुबान न खोली।
इस बार मार के आगे हथियार डालकर जब वह धराशायी हुआ तो लोगों के उठाए से भी न उठ सका। उसे उठता न पाकर वे यूं उसकी खोपड़ी पर ठोकरें मारने लगे जैसे ऐसा करने से उसका निष्क्रिय मस्तिष्क सक्रिय हो जाएगा, वह शरीर को उठ खड़ा होने का निर्देश देगा और वह फिर अपने पैरों पर खड़ा हो जायेगा।
लेकिन ऐसा कुछ न हुआ। इस बार तो उसकी खोपड़ी पर पड़ती हर चोट उसे बेहोशी के गहरे, और गहरे गर्त में धकेलती चली गई।
“रुक जाओ।”—एकाएक रईस अहमद ने आदेश दिया—“साला कहीं मर न जाए!”
उसकी खोपड़ी पर ठोकरें पड़नी बन्द हो गईं।
“एक नम्बर का बेवकूफ है हरामजादा।”—कोई असहाय भाव से बोला—“बताओ तो! अक्ल से काम लेने वाला कोई आदमी इतनी मार खा सकता है?”
“इसके मुंह पर पानी के छींटे मारो। होश में लाओ इसे।”
उसके मुंह पर पानी के छींटे मारे जाने लगे। कोई उसका चेहरा थपथपाने लगा। कोई उसके जिस्म को हिलाने डुलाने लगा।
लेकिन कौशल होश में न आया।
उसका चेहरा बुरी तरह से सूज आया था। और मार खा-खाकर विकृत हो गया था। उसकी सांस यूं फंस फंस कर निकल रही थी जैसे वह खर्राटे भर रहा हो।
“इसे कोई दौरा-वौरा तो नहीं पड़ गया?”—उसे होश में न आता पाकर अन्त में कोई बोला।
“राधे”—रईस अहमद अपने समीप खड़े एक आदमी से बोला—“जरा देखना तो।”
सूरत से अपेक्षाकृत सयाना और पढ़ा लिखा लगने वाला राधे आगे बढ़ा। उसने घुटनों के बल झुक कर कौशल का मुआयना किया। उसने उसके माथे पर से पट्टी की सूरत में बंधे रूमालों को सरका कर उसकी आंखों में झांका।
“उस्ताद जी!”—वह तनिक आतंकित स्वर में बोला—“इसे तो ब्रेन हैमरेज हो गया है। इसकी दाई आंख देखो। कैसे खून से भरी हुई है और बाहर को उबली पड़ रही है। इसका चेहरा ही बता रहा है कि इसके सारे दाएं हिस्से को लकवा मार गया है। अब यह बोलने से तो गया। अब यह होश में आ भी जाएगा तो बोल नहीं पाएगा।”
“सालो! हरामजादो!”—गुस्से में रईस अहमद अपने आदमियों पर बरसा—“यूं अन्धाधुन्ध क्यों मारा इसे? अब यह हमारे किस काम का रहा?”
“एक ही हिस्से में तो लकवा है, उस्ताद जी।”—कोई नर्मी से बोला—“बोल नहीं सकेगा तो लिख तो सकेगा!”
“हफ्ता दस दिन से पहले यह लिख सकने वाला भी नहीं।”—राधे बोला।
“जो बोलने को तैयार नहीं।”—रईस अहमद चिल्लाया—“वह लिखने को तैयार जरूर ही होगा।”
कोई कुछ न बोला।
“और हफ्ता दस दिन हम इसे कहां छुपा कर रखेंगे? पुलिस क्या इसे तलाश नहीं कर रही होगी? जब यह पुलिस को मिलेगा नहीं तो वे समझ नहीं जाएंगे कि यह किन हाथों में पहुंचा हुआ होगा? हरामजादो! इसे कार में लादो और कहीं फेंक कर आओ।”
गोदाम का दरवाजा खोला गया।
कौशल को राधे समेत तीन आदमियों ने उठाया और उसे फिएट में लाद दिया। उन्हीं तीनों में से एक आगे ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। राधे और उसका साथी पीछे कौशल के साथ सवार हो गए। एक और आदमी ने आगे बढ़ कर शटर उठाया।
कार बाहर निकल आई।
वह कार चोरी की थी इसलिए कौशल को कार समेत कहीं भी छोड़ा जा सकता था।
“कहां चलूं?”—ड्राईवर बोला।
“शंकर रोड चलो।”—राधे बोला।
कार आगे बढ़ चली।
“गुरु।”—राधे का साथी बोला—“अब तो पहलवान हमसे जुदा हो रहा है।”
“तो?”—राधे बोला।
“इसकी अंटी में कोई नावां पत्ता भी तो होगा?”
“होगा तो?”
“यह क्या करेगा उसका? कहो तो जेबें टटोलूं?”
“क्या हर्ज है?”
उस आदमी ने बड़े ललचाए भाव से कौशल की जेबें टटोलीं।
अगले ही क्षण कौशल की जेब में मौजूद सौ सौ के नोटों की गड्डी उसके हाथ में थी।
“कितने हैं?”—राधे उत्सुक भाव में बोला।
उसके साथी ने जल्दी जल्दी नोट गिने और फिर धीरे से बोला—“छत्तीस।”
“आधे मुझे दो।”
“गुरु।”—ड्राइवर रियरव्यू मिरर में उन्हें देखता चेतावनीभरे स्वर में बोला—“अपुन को भूल रहे हो।”
“दो तिहाई मुझे दो।”—राधे बोला।
उसके साथी ने चुपचाप चौबीस नोट उसे थमा दिए।
राधे ने बारह नोट अपनी जेब में रख लिए और बारह आगे ड्राइवर की तरफ बढ़ा दिए।
कार अब मन्दिर मार्ग पर दौड़ रही थी।
“गुरु”—एकाएक राधे का साथी बोला—“अब यह खर्राटे नहीं भर रहा। न ही यह नाक से सीटी बजा रहा है।”
राधे के नेत्र सिकुड़ गए। उसने झुककर कौशल की नब्ज टटोली।
नब्ज गायब थी।
उसने उसके दिल की धड़कन टटोली।
दिल की धड़कन गायब थी।
“यह तो मर गया”—राधे के मुंह से निकला।
“मर गया?”—उसका साथी घबरा कर बोला—“हम लाश के साथ कार में पकड़े गए तो चौदह-चौदह साल के लिए नप जाएंगे।”
ड्राइवर ने कार एक तरफ करके रोक दी।
“क्या कर रहे हो?”—राधे बोला।
“ठीक कर रहा हूं, गुरु।”—ड्राइवर बोला—“इसे कार में छोड़ कर फूटने की तैयारी करो।”
ड्राइवर जल्दी-जल्दी स्टियरिंग पर और उन तमाम जगहों पर, जिन्हें कि उसने छुआ था, रूमाल फेरने लगा।
राधे और उसके साथी ने भी उसका अनुसरण किया।
फिर तीनों कार से बाहर निकले और चुपचाप सड़क के साथ-साथ बने बहुमंजिला सरकारी क्वार्टरों के बीच की एक राहदारी में घुस गए।
|